लखनऊ : केजीएमयू में दांत लगवाने के लिए आने वाले मरीजों अब दांत बनवाने के लिए भी खुद ही मशक्कत करनी पड़ रही है. पिछले एक साल से केजीएमयू में दांत बनाने की मशीनें खराब हैं. संस्थान में कुल 4 मशीनें हैं. रख-रखाव के अभाव में ये सभी खराब हो चुकी हैं. मरीज खुद ही निजी वेंडर से संपर्क कर दांत बनवा रहे हैं. इसके बाद ही चिकित्सक उसे लगा पा रहे हैं.
केजीएमयू के प्रोस्थोडॉन्टिक्स विभाग में मरीजों को दांत लगाए जाते हैं. विभाग में रोज करीब 20 से अधिक मरीज दांत लगवाने के लिए आते हैं. महीने में औसतन छह सौ के आसपास मरीज आते हैं. देखने के बाद दांत की नाप ली जाती है. जितने लगने होते हैं उसके अनुसार शुल्क जमा करवा दांत बनाकर लगाए जाते हैं.
मशीन खराब होने के साथ ही निजी वेंडर से संस्थान का कोई अनुबंध भी नहीं है. ऐसे में मरीजों से खुद ही बाहर से दांत बनवा कर लाने के लिए कहा जा रहा है. दांत के लिए केजीएमयू में सरकारी दरों के अनुसार शुल्क लिया जाता है, यह निजी की तुलना में काफी कम होता है. एक क्राउन में एक हजार रुपये शुल्क निर्धारित है, जबकि निजी क्लिनिक में तीन से चार हजार रुपये तक लिए जाते हैं. ऐसे में निजी वेंडर मरीजों से ज्यादा शुल्क वसूल रहे हैं.
सबसे बड़ी बात यह है कि सरकारी संस्थानों में सिर्फ केजीएमयू में ही दांत बनते हैं. एक साल से सुविधा बंद होने से मरीजों काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. केजीएमयू में चारों मशीनें एक साथ खराब होने की बड़ी वजह सेनेटाइजर बताया जा रहा है. विभागाध्यक्ष डॉ. पूरन चंद ने बताया कि कोरोना काल में सेनेटाइजर का छिड़काव किया जाता था. इस दौरान मशीनों पर भी छिड़काव हुआ था. इसके बाद एक-एक कर मशीनें खराब हो गईं. कोई दूसरी वजह सामने नहीं आने पर सेनेटाइजर ही कारण माना जा रहा है.
केजीएमयू के दंत चिकित्सक एमएस डॉ. नीरज मिश्रा ने बताया कि दो मशीनें 10 साल से भी अधिक पुरानी हैं. जांच में पता चला है कि मशीनें पुरानी होने के चलते बनने की स्थिति में ही नहीं हैं. ऐसे में नई मशीनें खरीदने के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी गई है.
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