नई दिल्ली: सावन का महीना चल रहा है. इस महीने चारों तरफ अध्यात्म की गूंज सुनाई देती है. मंदिरों में भगवान शिव का जलाभिषेक करने वाले भक्तों का तांता लगा रहता है. वहीं, सड़कों पर कांवड़ियों की भीड़. इस समय राजधानी में भी कुछ ऐसा ही नजारा है. दिल्ली के प्राचीन चांदनी चौक बाजार में इन दिनों अलग ही माहौल देखने को मिल रहा है. यहां मौजूद सभी कटरों में कुल मिलाकर करीब 42 मंदिर हैं. इसमें से 27 मंदिर सिर्फ कटरा नील में स्थापित है. सभी मंदिरों में सबसे ज्यादा मंदिर भोलेनाथ के हैं. इनमें सबसे विख्यात और ऐतिहास घंटेश्वर महादेव मंदिर है. आइए जानते हैं घंटेश्वर मंदिर का इतिहास और कटरा नील में 27 मंदिर होने की वजह?
मंदिर के पुजारी विद्याकांत मिश्रा ने 'ETV भारत' को बताया कि यह मंदिर पांडव कालीन है. मंदिर में मौजूद शिवलिंग स्वयंभू हैं. ये मंदिर देश के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है. मंदिर की मान्यता है जो भी भक्त घटेश्वर शिवलिंग पर जलाभिषेक करता है. भगवन भोलेनाथ उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. सौभरि संहिता एवं पद्मपुराण के मुताबिक, घंटेश्वर महादेव का पौराणिक नाम विश्वेश्वर महादेव है. किसी समय कटरा नील विद्यापुरी नाम से लोक प्रसिद्ध था. काशी भी विद्यापुरी कहलाती थी. तत्कालीन आर्यावर्त में दो विद्यापुरियों का अस्तित्व स्वीकार किया गया.
मंदिर में लगे हैं हज़ारों घंटे: कटरा नील में मौजूद घंटेश्वर मंदिर में हजारों की संख्या में घंटे लगे हैं. इसमें एक विशेष घंटा है. पुजारी ने बताया कि मंदिर में छोटे-बड़े सैकड़ों घंटे हैं, तभी मंदिर का नाम घंटेश्वर महादेव पड़ा. वहीं, मंदिर के बीचो-बीच लगा सबसे बड़े घंटा पांडव कालीन है. मंदिर की देखरेख 14 सदस्यी ट्रस्टियों द्वारा किया जाता है.
मंदिर में दर्शन का समय: पुजारी ने बताया कि मंदिर में भक्तों के दर्शन का निश्चित समय है. एक बार मंदिर की सफाई हो जाने के बाद किसी भी भक्त को शिवालय में जाने की अनुमति नहीं मिलती है. सामान्य दिनों में सुबह 6:30 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक भक्त शिवालय में जलाभिषेक करने आकर सकते हैं. वहीं, सावन के दिनों में सुबह 6:30 बजे से दोपहर 2 बजे तक खुला रहता है.
चांदनी चौक मंदिरों का गढ़: चांदनी चौक एक सामाजिक और धार्मिक विविधताओं का केंद्र बिंदु है. चांदनी चौक में चारों तरफ कई बड़े मंदिर हैं, जैसे श्री गौरीशंकर मंदिर और नीली छतरी शिव मंदिर. ऐसे ही सभी कटरे मिलकर चांदनी चौक में कुल 42 मंदिर हैं. लेकिन सभी कटरों में सबसे विशेष हैं कटरा नील. केवल इसी कटरे में 27 मंदिर हैं. जिसमें ज्यादातर मंदिर भोलेनाथ के हैं.
क्या है कटरा नील का इतिहास?: राजधानी में जब मुगलों के बाद अंग्रेजों का शासन आया तब इस कटरा नील बाजार के दो गेट बनाए गए थे. जब भी अंग्रेजी हुकूमत अपने घोड़ों पर आक्रोशित रूप में कटरा नील में प्रवेश करना चाहती थी, तो इन दोनों गेटों को बंद कर दिया जाता था. आज भी वह गेट बाजार में मौजूद है. वहीं, कटरा नील में ज्यादातर समृद्ध परिवार रहा करते थे. उनकी आस्था थी कि घर में अपना विशेष बड़ा मंदिर होना चाहिए. इसलिए ज्यादातर लोगों ने अपने घरों में ही बड़े-बड़े मंदिर बनवा लिए. आज भी कई परिवार ऐसे हैं, जो अपनी ऐतिहासिक धरोहर का घ्याल रख रहे हैं. उसी में एक हैं घंटेश्वर महादेव मंदिर. यह मंदिर काशी के विश्वनाथ मंदिर के समान घंटेश्वर महादेव मंदिर पुण्य और मोक्ष प्रदान करने वाला है. कटरा नील में सबसे अधिक कुएं भी हैं.
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