kargil vijay diwas: 1999 में पाकिस्तान में भारत पर करगिल युद्ध थोपा था. आज इस युद्ध की विजय की याद में भारत रजत जयंती मना रहा है. ये जयंती और जीत करगिल के उन हीरों के लिए हैं, जिन्होंने इस जीत का सेहरा भारत के सिर पर अपना लहू देकर बांधा था. पाकिस्तान का इरादा करगिल की चोटियों, सियाचिन और लद्दख के हिस्से पर कब्जा करना था.
पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और अटल बिहारी वाजपेयी ने 21 फरवरी, 1999 को लाहौर घोषणा पत्र पर दस्तखत किए थे और इसके लिए वाजपेयी बस में बैठकर लाहौर गए थे. इस शांति समझौते के बाद करगिल में हुई पाकिस्तान की घुसपैठ से भारत हैरान रह गया था. भारत जिन्हें पहले सिर्फ कुछ घुसपैठिये समझ रहा था वो पाकिस्तानी सेना के ट्रेंड जवान थे.
घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए ऑपरेशन विजय
कारगिल क्षेत्र में घुसपैठियों के रूप में घुसे पाकिस्तानी सेना को खदेड़ने के लिए भारत ने ऑपरेशन विजय लॉन्च किया था. इस युद्ध में भारत के 527 जवान शहीद हुए और कई घायल हुए थे. इनमें से हिमाचल के 54 सैनिकों ने भी सर्वोच्च बलिदान दिया था. करगिल युद्ध के पहले शहीद ले. सौरभ कालिया हिमाचल के पालमपुर के रहने वाले थे. इसके अलावा हिमाचल के दो रणबांकुरों कै. विक्रम बत्रा (मरणोपरांत) और बिलासपुर के संजय कुमार को परमवीर चक्र से सम्मानित किया था. करगिल युद्ध में 18 ग्रेनेडियर के कमांडिंग ऑफिसर रहे ब्रिगेडियर (रि.) खुशहाल सिंह ठाकुर याद करते हैं 'पाकिस्तान की सेना ने करगिल, द्रास और बटालिक के इलाकों में घुसपैठ करके अपना कब्जा कर लिया था, जैसे ही भारतीय सेना को इसका आभास हुआ तभी से घुसपैठियों को मार भगाने की कवायद शुरू हो गई. उस समय किसी ने यह नहीं सोचा था कि यह कवायद एक भीषण युद्ध की शुरुआत है.
ब्रिगेडियर (रि.) खुशहाल सिंह ठाकुर कहते हैं 'मेरी यूनिट 18 ग्रेनेडियर जिसका मैं कमान अधिकारी था उन दिनों कश्मीर घाटी के मानसबल इलाके में तैनात थी. तैनात होने के कुछ ही दिनों में हमने 19 आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया था. तभी हमें हमारे उच्च अधिकारियों से आदेश मिला कि पल्टन को तुरंत द्रास के लिए मूव करना है.
घुसपैठियों ने एनएच-1 को किया था बाधित
दरअसल द्रास, तोलोलिंग, टाइगर हिल और मस्को वैली में सभी महत्वपूर्ण चोटियों पर अपना कब्जा जमा लिया था. दुश्मन ने लेह-लद्दाख और सियाचिन ग्लेशियर की लाइफ लाइन कहे जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग-1 को बाधित कर दिया था. भारतीय सेना के हथियार, मेडिकल सप्लाई और रसद लद्दाख तक न पहुंच पाए इसलिए घुसपैठिए पहाड़ियों से बॉम्बिंग और भारी शैलिंग कर रहे थे. करगिल में इस राष्ट्रीय राजमार्ग की लंबाई करीब 217.4 किलोमीटर है और ये श्रीनगर को लेह से जोड़ती है.
ऐसे जीती तोलोलिंग की लड़ाई
ब्रिगेडियर खुशहाल सिंह ठाकुर याद करते हैं कि करगिल पहुंचने पर '18 ग्रेनेडियर को टास्क मिला कि तोलोलिंग की सभी चोटियों को हर कीमत पर दुश्मन से मुक्त कराया जाए. हमने एक बेहतर रणनीति के साथ तोलोलिंग पर बैठे दुश्मन पर धावा बोल दिया. उस समय दुश्मन की तादात और उसकी तैयारी के विषय में सही सूचना का अभाव था. साथ ही हाई एल्टीट्यूड की लड़ाई लड़ने के लिए जरूरी साजो समान और दूसरे सैनिक दस्तों, विशेषकर आर्टिलरी का बेहद अभाव था. यही कारण था कि हर दिन हमारा नुकसान हो रहा था, लेकिन 18 ग्रेनेडियर के जांबाजों ने इन सभी विषम परिस्थितियों के बावजूद भी अपने हौसलों को मजबूत रखा और अपने प्राणों की परवाह किए बिना दुश्मन पर लगातार हमले करते रहे. 22 मई को शुरू हुआ यह हमला 14 जून तक चला और इन 24 दिनों में हम सभी कठिन व दुर्गम चढ़ाई, खराब मौसम और दुश्मन की लगातार हो रही भीषण गोलाबारी का सामना करते रहे. इस लड़ाई में मेजर राजेश सिंह अधिकारी ने अपने प्राणों की आहुति दी जिन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. एक हमले के दौरान जिसे मैं स्वयं लीड कर रहा था मेरे उपकमान अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल आर विश्वनाथन को गोली लगी और उन्होंने मेरी ही गोद में दम तोड़ दिया. लेफ्टिनेंट कर्नल आर विश्वनाथन को उनके अदम्य साहस के लिए वीर चक्र से सम्मानित किया गया. 12 जून को हमने 2 राजपूताना राइफल्स के साथ मिलकर तोलोलिंग की चोटी पर तिरंगा फहरा दिया. तोलोलिंग की लड़ाई में हमारे दो अधिकारी, दो सूबेदार और 21 जवानों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया.'
पाकिस्तान को पड़ी लताड़
13 जून तक भारतीय सेनाओं ने द्रास में तोलोलिंग पर कब्जा जमा लिया. इसके दो दिन बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ से कहा कि वो तुरंत अपने सैनिकों और घुसपैठियों को वापस बुलाए. पाकिस्तान को लगा था अमेरिका उसके साथ खड़ा होगा, लेकिन पाकिस्तान को सिर्फ निराशा ही मिली और अमेरिका ने अपना मुंह फेर लिया था. पाकिस्तान पर लगातार अंतरराष्ट्रीय दबाव पड़ रहा था. 29 जून तक अंतरराष्ट्रीय दबाव बनता रहा. दूसरी तरफ 9 जून को बटालिक सेक्टर की दो महत्वपूर्ण चोटियां सेना के कब्जे में वापस आ गईं. भारतीय सेना ने बटालिक सेक्टर को दो सट्रेटेजिक लोकेशन पर फिर से कब्जा कर लिया था.इसी बीच टाइगर हिल पर भारतीय सेना मोर्चे पर डटी थी. भारतीय सेना को टाइगर हिल पर कब्जा करने में मुश्किल हो रही थी. टाइगर हिल पहाड़ी श्रीनगर-लेह राजमार्ग पर चौकसी बनाए रखने के लिए एक रणनीतिक स्थान था.
टाइगर हिल की लड़ाई
टाइगर हिल की उंचाई इसे खास बनाती थी. ये एनएच-1डी के सबसे नजदीक है. ये करगिल क्षेत्र के लिए मेन सप्लाई का रास्ता है. इस पर कब्जा होने से दुश्मन की नजर 56 ब्रिगेड हेडक्वार्टर पर सीधी पड़ती. यहां से दुश्मन आस-पास की चोटियों पर भी नजर रख सकता था. यहां से पाकिस्तानी सेना की रेज में एनए का 25 किलोमीटर का एरिया आ जाता और भार की सप्लाई बाधित होती.
दुश्मन के दांत किए खट्टे
ब्रिगेडियर खुशाहल सिंह ठाकुर कहते हैं 'तोलोलिंग पर 18 ग्रेनेडियर के शौर्य को देखकर सेना के उच्च अधिकारियों ने एक बार फिर हमें एक और महत्वपूर्ण जिम्मा सौंपा था. द्रास सेक्टर की सबसे महत्वपूर्ण छोटी टाइगर हिल पर कब्जा करना. मैं और मेरी टीम एक बार फिर अपनी तैयारी में जुट गए. हमने टाइगर हिल का हर संभव दिशा से रीकोनोसेन्स किया और सभी टुकड़ियों के कमांडरों के सुझाव को शामिल करते हुए एक बेहद स्टीक रणनीति बनाई. 3 जुलाई की रात को हमने टाइगर हिल पर चौतरफा हमला बोल दिया और सबसे कठिन रास्ते को चुना. जिस तरफ से जाना नामुमकिन था हमारी D कंपनी और घातक प्लाटून ने टॉप पर पहुंचकर दुश्मन को एकदम भौचक्का कर दिया. पूरी रात एक भीषण घमासान युद्ध हुआ और हम टाइगर हिल टॉप पर अपना फुटहोल्ड बनाने में सफल हुए. इसके बाद हमने लगातार हमले जारी रखे और 8 जुलाई को हमने पूरे टाइगर हिल पर विजय पताका फहरा दी. इस लड़ाई में ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव की शौर्य गाथा आज हर बच्चा जानता है, जिसके लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. इस लड़ाई में हमारी यूनिट के 9 नौजवानों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया. लेफ्टिनेंट बलवान सिंह को महावीर चक्र से और कप्तान सचिन निंबालकर को वीर चक्र से नवाजा गया. करगिल की लड़ाई में 18 ग्रेनेडियर ने शौर्य पदक जीतकर अपने आप में एक कीर्तिमान बनाया.'
पाकिस्तान को लगाई लताड़
ब्रिगेडियर खुशाल सिंह ठाकुर बताते हैं 'जैसे ही टाइगर हिल पर हमने विजय पताका फहराई, उधर दूसरी तरफ पाकिस्तान की सेना में खलबली मच गई. पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ युद्ध विराम की गुहार लगाने अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के पास भागे, लेकिन हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने साफ कह दिया कि जब तक पाकिस्तान के आखिरी घुसपैठी को हम भारत की सीमा से नहीं के खदेड़ देते युद्ध विराम का सवाल ही नहीं उठता.'
करगिल के इस युद्ध में भारतीय सशस्त्र सेनाओ ने 527 रणबाकुरों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी, जिसमें 52 योद्धा हिमाचल प्रदेश के थे. ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर बताते हैं, मुझे याद है हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस समय हिमाचल में एक प्रचारक थे प्रेम कुमार धूमल जी जो कि तत्कालीन मुख्यमंत्री थे हिमाचल प्रदेश के, उनके साथ 5 और 6 जून को 92 बेस हॉस्पिटल में घायल सैनिकों से मिलकर उनका हौंसला बढ़ाया था.