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विजय दिवस 2024: हरियाणवी योद्धा की जुबानी, सुनिए साल 1971 के युद्ध में भारतीय जवानों के फतह की कहानी - VIJAY DIWAS 2024

विजय दिवस 2024: हरियाणवी योद्धा की जुबानी, सुनिए साल 1971 के युद्ध में भारतीय जवानों के फतह की कहानी

Vijay Diwas 2024
विजय दिवस 2024 (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Dec 16, 2024, 1:59 PM IST

भिवानी: हर साल 16 दिसंबर को देशभर में विजय दिवस मनाया जाता है. आज ही के दिन साल 1971 में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में ऐतिहासिक जीत हासिल की थी. इस जीत के कारण ही बांग्लादेश को खुद का वजूद मिला था. आज विजय दिवस के मौके पर हम आपको हरियाणा ने उन बहादुर जवानों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने इस युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी. इन बहादुर जवानों में हरियाणा के सेवानिवृत्त कैप्टन ब्रह्मानंद, कैप्टन प्रताप सिंह और सूबेदार हवासिंह भी शामिल थे.

युद्ध में महार रेजिमेंट ने निभाई अहम भूमिका: साल 1971 में पाकिस्तान के साथ हुई लड़ाई में महार रेजिमेंट ने बड़ी बहादुरी से पाकिस्तानी सेनाओं से लोहा लिया. इस जंग में मिली जीत में महार रेजिमेंट की अहम भूमिका थी. इस लड़ाई में हरियाणा के जवानों ने भारत का गौरव बढ़ाया था. मौजूदा समय में भी हरियाणा के जवान भारतीय सेना में अपनी बहादुरी के झंडे गाड़ रहे हैं.

कैप्टन ने साझा किया अपना अनुभव: युद्ध से संबंधित अपना अनुभव साझा करते हुए कैप्टन ब्रह्मानंद ने कहा कि हमारी चार आर्म्ड यूनिट थी. फर्स्ट आर्म्ड ब्रिगेड में हम उस समय फाजिल्का में थे. तीन दिसंबर को बार्डर खुला था. मेजर जनरल गुरबचन सिंह गुच हमारे कमांडर थे. ब्रिगेड कमांडर एनएस चीमा थे. सीओ डीएससी राय थे. रातों रात पाकिस्तान के अटैक की खबर आई. खबर मिलते ही हमारी यूनिट कोंट कपूरा पहुंच गई. मैं टैंक पर गनर के तौर पर तैनात था. हम किसी भी हमले का सामना करने के लिए चिड़ेवान फाजिल्का के पास तैनात थे. मानक शाह हमारे चीफ थे. पाकिस्तान की तूफान डू आर्म्ड पर हम अटैक करने को तैयार थे. हमारी यूनिट सबसे मजबूत यूनिट थी, इसलिए हमें रिजर्व रखा गया था. हम एक-एक पल की खबर ले रहे थे.

इसलिए 16 दिसंबर को मनाया जाता है विजय दिवस: वहीं, कैप्टन प्रताप सिंह ने बताया कि हमारी सेना युद्ध के दौरान लगातार आगे बढ़ रही थी. 15 राजपूत पर अटैक हुआ तो उसके 70 जवान मारे गए थे. 15 दिसंबर को हमने पाक को फतह कर लिया था. 16 दिसंबर को सीजफायर हुआ. इसके बाद से ही 16 दिसंबर के दिन को विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है. हमें भारतीय होने पर गर्व है. मैंने 14 अगस्त 1965 को सेना ज्वाइन किया था. 14 अगस्त 1993 को मैं रिटायर्ड हुआ. बड़ा बेटा भी सेना में रहा है.

जवानों ने बढ़ाया देश का मान: युद्ध को लेकर अपना अनुभव साझा करते हुए सूबेदार हवासिंह ने कहा कि युद्ध में पूर्वी पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों को हमारी सेना ने बंदी बना लिया था. मैं जनवरी 1969 में सेना में भर्ती हुआ था. मेरे बड़े भाई भाल सिंह जाट रेजिमेंट में सिपाही सेवानिवृत्त हुए. वर्तमान में हम गांव में परिवार के साथ रह रहे हैं. हरियाणवी वीर जवानों ने हमेशा देश का गौरव बढ़ाया है और भारत मां की रक्षा की है.

कैदी को दी जाती थी ऐसी सजा: इन जवानों ने बताया कि साल 1971 में भारत और पाकिस्तान की लड़ाई शुरू हुई तो उस समय हमारी ड्यूटी अंबाला जेल पर थी. बंदी बनाए गए पाक सैनिकों को अंबाला जेल भेजा गया. हमारी जेल में 550 पाकिस्तानी कैदी थे. कई कैदी ऐसे थे, जो उत्पात या लड़ाई करते तो उनको चक्की में डाल दिया जाता था. चक्की यानि की एक ऐसा कमरा, जिसमें कैदी लेट कर आराम नहीं कर सकता.उसे खड़ा ही रहना होता था. यह उनके लिए कड़ी सजा थी. लड़ाई जीतने और सीज फायर के बाद साल 1972 में इन कैदियों को बाघा बार्डर पर छोड़ दिया गया.

ऐसे हुई थी युद्ध की शुरुआत: बंटवारे के बाद पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से, जिसे अब बांग्लादेश कहा जाता है, उसमे सांस्कृतिक और राजनीतिक भेदभाव के कारण तनाव बढ़ गया था. पूर्वी हिस्से में नरसंहार, बलात्कार और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने में पाकिस्तान ने सारी हदें पार कर दी थी. इसी कारण 26 मार्च 1971 को पहली बार वहां के लोगों ने स्वतंत्रता की मांग की, लेकिन पाकिस्तान ने इस पर दमनकारी नीति अपनाई. ऐसे में मानवता के खातिर भारत ने बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन किया, जो पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में बदल गया था. इसी युद्ध में जीत के बाद बांग्लादेश को अपना वजूद मिला था.

ये भी पढ़ें: 1971 युद्ध के सैनिकों ने खानसामा विजय दिवस मनाया, जवानों ने सुनाए अपने-अपने बहादुरी के किस्से

भिवानी: हर साल 16 दिसंबर को देशभर में विजय दिवस मनाया जाता है. आज ही के दिन साल 1971 में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में ऐतिहासिक जीत हासिल की थी. इस जीत के कारण ही बांग्लादेश को खुद का वजूद मिला था. आज विजय दिवस के मौके पर हम आपको हरियाणा ने उन बहादुर जवानों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने इस युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी. इन बहादुर जवानों में हरियाणा के सेवानिवृत्त कैप्टन ब्रह्मानंद, कैप्टन प्रताप सिंह और सूबेदार हवासिंह भी शामिल थे.

युद्ध में महार रेजिमेंट ने निभाई अहम भूमिका: साल 1971 में पाकिस्तान के साथ हुई लड़ाई में महार रेजिमेंट ने बड़ी बहादुरी से पाकिस्तानी सेनाओं से लोहा लिया. इस जंग में मिली जीत में महार रेजिमेंट की अहम भूमिका थी. इस लड़ाई में हरियाणा के जवानों ने भारत का गौरव बढ़ाया था. मौजूदा समय में भी हरियाणा के जवान भारतीय सेना में अपनी बहादुरी के झंडे गाड़ रहे हैं.

कैप्टन ने साझा किया अपना अनुभव: युद्ध से संबंधित अपना अनुभव साझा करते हुए कैप्टन ब्रह्मानंद ने कहा कि हमारी चार आर्म्ड यूनिट थी. फर्स्ट आर्म्ड ब्रिगेड में हम उस समय फाजिल्का में थे. तीन दिसंबर को बार्डर खुला था. मेजर जनरल गुरबचन सिंह गुच हमारे कमांडर थे. ब्रिगेड कमांडर एनएस चीमा थे. सीओ डीएससी राय थे. रातों रात पाकिस्तान के अटैक की खबर आई. खबर मिलते ही हमारी यूनिट कोंट कपूरा पहुंच गई. मैं टैंक पर गनर के तौर पर तैनात था. हम किसी भी हमले का सामना करने के लिए चिड़ेवान फाजिल्का के पास तैनात थे. मानक शाह हमारे चीफ थे. पाकिस्तान की तूफान डू आर्म्ड पर हम अटैक करने को तैयार थे. हमारी यूनिट सबसे मजबूत यूनिट थी, इसलिए हमें रिजर्व रखा गया था. हम एक-एक पल की खबर ले रहे थे.

इसलिए 16 दिसंबर को मनाया जाता है विजय दिवस: वहीं, कैप्टन प्रताप सिंह ने बताया कि हमारी सेना युद्ध के दौरान लगातार आगे बढ़ रही थी. 15 राजपूत पर अटैक हुआ तो उसके 70 जवान मारे गए थे. 15 दिसंबर को हमने पाक को फतह कर लिया था. 16 दिसंबर को सीजफायर हुआ. इसके बाद से ही 16 दिसंबर के दिन को विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है. हमें भारतीय होने पर गर्व है. मैंने 14 अगस्त 1965 को सेना ज्वाइन किया था. 14 अगस्त 1993 को मैं रिटायर्ड हुआ. बड़ा बेटा भी सेना में रहा है.

जवानों ने बढ़ाया देश का मान: युद्ध को लेकर अपना अनुभव साझा करते हुए सूबेदार हवासिंह ने कहा कि युद्ध में पूर्वी पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों को हमारी सेना ने बंदी बना लिया था. मैं जनवरी 1969 में सेना में भर्ती हुआ था. मेरे बड़े भाई भाल सिंह जाट रेजिमेंट में सिपाही सेवानिवृत्त हुए. वर्तमान में हम गांव में परिवार के साथ रह रहे हैं. हरियाणवी वीर जवानों ने हमेशा देश का गौरव बढ़ाया है और भारत मां की रक्षा की है.

कैदी को दी जाती थी ऐसी सजा: इन जवानों ने बताया कि साल 1971 में भारत और पाकिस्तान की लड़ाई शुरू हुई तो उस समय हमारी ड्यूटी अंबाला जेल पर थी. बंदी बनाए गए पाक सैनिकों को अंबाला जेल भेजा गया. हमारी जेल में 550 पाकिस्तानी कैदी थे. कई कैदी ऐसे थे, जो उत्पात या लड़ाई करते तो उनको चक्की में डाल दिया जाता था. चक्की यानि की एक ऐसा कमरा, जिसमें कैदी लेट कर आराम नहीं कर सकता.उसे खड़ा ही रहना होता था. यह उनके लिए कड़ी सजा थी. लड़ाई जीतने और सीज फायर के बाद साल 1972 में इन कैदियों को बाघा बार्डर पर छोड़ दिया गया.

ऐसे हुई थी युद्ध की शुरुआत: बंटवारे के बाद पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से, जिसे अब बांग्लादेश कहा जाता है, उसमे सांस्कृतिक और राजनीतिक भेदभाव के कारण तनाव बढ़ गया था. पूर्वी हिस्से में नरसंहार, बलात्कार और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने में पाकिस्तान ने सारी हदें पार कर दी थी. इसी कारण 26 मार्च 1971 को पहली बार वहां के लोगों ने स्वतंत्रता की मांग की, लेकिन पाकिस्तान ने इस पर दमनकारी नीति अपनाई. ऐसे में मानवता के खातिर भारत ने बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन किया, जो पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में बदल गया था. इसी युद्ध में जीत के बाद बांग्लादेश को अपना वजूद मिला था.

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