प्रयागराज : संगम नगरी में 13 जनवरी से महाकुंभ मेले की शुरुआत होगी. इसके बाद 14 जनवरी को पहला शाही स्नान (अमृत स्नान) है. इसे लेकर अखाड़ों के 2 धड़ों में गतिरोध जारी है. परंपरा के अनुसार अभी तक महानिर्वाणी अखाड़े के साधु-संन्यासी ही पहला शाही स्नान करते रहे हैं, लेकिन इस बार यह सबसे बड़े अखाड़े जूना के हिस्से में जा सकता है.
ईटीवी भारत से बातचीत में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने बताया कि जूना अखाड़ा ही सबसे बड़ा अखाड़ा है, इसलिए शाही स्नान पर पहला हक इस अखाड़े से जुड़े साधु-संन्यासियों का ही है. उधर अखिल भारतीय श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़े के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेंद्र दास भी अपने रुख पर कायम हैं. उनका कहना है कि वर्षों ये चली आ रही परंपरा को नहीं बदला जा सकता है. हालांकि वह यह भी कहते हैं कि अगर परंपरा में किसी भी तरह का बदलाव हो रहा है तो वह आपसी सहमति से ही होना चाहिए.
कौन करेगा 14 जनवरी को पहला शाही स्नान : अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी का कहना है कि अभी हमारे पास 2 दिन का समय है. हम सभी संन्यासी अखाड़ों की बैठक बुलाएंगे. तय करेंगे कि कौन पहले शाही स्नान करेगा. हमारे यहां नियम होता है कि संन्यासी अखाड़े तय करते हैं कि पहला शाही स्नान कौन करेगा, दूसरा कौन करेगा, तीसरा कौन करेगा. वैरागी अखाड़े खुद तय करते हैं कि पहला शाही स्नान कौन करेगा. उदासीन अखाड़े अपना क्रम तय करते हैं. संन्यासियों से राग द्वेष रखने वाले एक-दो संन्यासी हमारे विरोध में खड़े हैं. ये बहुत समस्या की बात है.
गाली देने वाले संन्यासियों को धक्का देकर हटाना पड़ेगा. गांधी जी वाली नीति से अब काम नहीं चलेगा. परंपरा बहुत पुरानी है जो अब बदलाव चाह रही है. जूना अखड़ा सबसे बड़ा अखाड़ा है. समाज के लिए भी जूना अखाड़ा सबसे ज्यादा काम करता है. सबसे ज्यादा संत (एससी, एसटी, ओबीसी, किन्नर और अंग्रेज संत) उसी के पास हैं. ऐसे में जूना अखाड़े को ही पहले अमृत स्नान का हक है.
'शाही स्नान का पहला हक महानिर्वाणी अखाड़े का' : अखिल भारतीय श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़े के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत राजेंद्र दास का कहना है कि हम केवल वैष्णव अखाड़ों की बात करते हैं. वैष्णव अखाड़ों में पहला निर्मोही, दिगंबर और फिर निर्वाणी अखाड़े अपने-अपने क्रम के अनुसार ही शाही स्नान करेंगे. यह पूछने पर कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी का कहना है कि जूना अखाड़ा सबसे बड़ा अखाड़ा है, इसलिए शाही स्नान पर पहला हक इसी अखाड़े का है, अभी तक गलत परंपरा चली आती रही है, इसे बदलना चाहिए, इस पर महंत राजेंद्र दास का कहना है कि परंपराओं से हटकर अगर कोई बात करता है तो उसे मैं नहीं समझता हूं कि वह किसी के भी हित में होगा.
पूर्व में शासन-प्रशासन के पास रिकॉर्ड है. जब समय आएगा तो उसी रिकॉर्ड के अनुसार ही शाही स्नान इस बार भी होगा. परिस्थिति और परंपरा को ध्यान में रखकर चलने की जरूरत है. वैष्णव अखाड़ों में आपस में अच्छा तालमेल है. कहीं कोई दिक्कत नहीं है. सबके विचार अलग-अलग हो सकते हैं पर उद्देश्य एक ही है. यह पूछने पर कि अगर कोई बदलाव की स्थिति बनती है तो आपका रुख क्या रहेगा?, राजेंद्र दास का कहना है कि अगर कोई बदलाव हो तो उसे आपसी सहमति और सलाह से करना चाहिए.
मेलाधिकारी बोले- महानिर्वाणी अखाड़ा ही करेगा पहला अमृत स्नान : अखाड़ों के बीच पहले शाही स्नान को लेकर जुड़े विवाद के सवाल पर प्रयागराज मेला विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष विजय किरण आनंद का कहना है कि पहले शाही स्नान की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. अभी तक का जो शाही स्नान का क्रम रहा है. यानी महा निर्वाणी अखाड़ा ही पहले अमृत स्नान करेगा, इसमें फिलहाल किसी भी प्रकार का कोई बदलाव शासन-प्रशासन की तरफ से प्रस्तावित नहीं है. कड़ी सुरक्षा के बीच 14 जनवरी को महाकुंभ में पहला शाही स्नान होगा.
अखाड़ा ही बदल सकता है परंपरा : महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव महंत यमुना पुरी का कहना है कि परंपरा के अनुसार प्रयागराज में लगने वाले अर्धकुंभ, महाकुंभ में सैकड़ों वर्षों से महानिर्वाणी अखाड़ा ही पहले स्नान करता रहा है. अब एक साजिश के तहत जूना अखाड़ा महाकुंभ में इस वर्षों पुरानी परंपरा को बदलना चाह रहा है. इस परंपरा को बदलने नहीं दिया जाएगा. परंपरा के अनुसार महानिर्वाणी अखाड़ा ही प्रयाग महाकुंभ में पहले स्नान करेगा.
महंत नरेंद्र गिरि की मौत के बाद 2 धड़ों में बंट गए अखाड़े : 20 सितंबर 2021 को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रहे महंत नरेंद्र गिरी की मौत के बाद ही अखाड़ा परिषद में 2 फाड़ हो गया था. नरेंद्र गिरि की मौत के बाद निरंजनी अखाड़े के सचिव महंत रवींद्र पुरी को 25 अक्टूबर 2021 को अखाड़ा परिषद का नया अध्यक्ष चुना गया. हालांकि रवींद्र पुरी के अध्यक्ष चुने जाने के बाद ही विवाद शुरू हो गया था.
वैष्णव संप्रदाय के तीन अखाड़ों ने इस चुनाव में प्रतिभाग नहीं किया था. इनमें श्रीदिगंबर अनी, श्रीनिर्मोही अनी व श्रीनिर्वाणी अनी अखाड़े शामिल थे. बाद में वैष्णव अखाड़ों ने 2021 में ही हरिद्वार में महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव रवींद्र पुरी को नया अध्यक्ष चुन लिया था. इसमें निर्मोही अखाड़े के महंत राजेंद्र दास को महामंत्री चुना गया था. यहीं से अखाड़ों के दो धड़ों में बंटने की शुरुआत हो गई थी. इसका असर 7 नवंबर 2024 को प्रयागराज मेला विकास प्राधिकरण की बैठक में दोनों धड़ों के संताें के बीच मारपीट के रूप में दिखा. संतों के बीच मारपीट का वीडियो सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल हुआ था.
1954 में अखाड़ा परिषद का हुआ था गठन : आदि शंकराचार्य ने सभी अखाड़ों को एकजुट करने के लिए 1954 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का गठन किया था. साधु-संतों की इस सर्वोच्च परिषद में हर अखाड़े के महात्माओं का प्रतिनिधित्व होता है. परिषद में अध्यक्ष व महामंत्री का पद प्रभावशाली होता है. इस समय 13 अखाड़े ही हैं, जिनकी मान्यता है. इनमें जूना, निरंजनी, महानिर्वाणी, अग्नि, अटल, आह्वान व आनंद संन्यासी अखाड़े माने जाते हैं. वैष्णव अर्थात वैरागियों के अखाड़े दिगंबर अनी, निर्वाणी अनी व निर्मोही अनी हैं, जबकि उदासीन के अखाड़ों में बड़ा उदासीन, नया उदासीन व निर्मल शामिल हैं.
सरकार और साधु-संतों के बीच समन्वय बनाती है परिषद : परिषद अध्यक्ष रवींद्र पुरी ने बताया कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद साधु-संतों की सर्वोच्च संस्था है. पिछले एक दशक में इसके अध्यक्ष पद का गरिमा बढ़ी है. अध्यक्ष सीधे सरकार के टच में रहता है. सरकार भी उसकी बात सुनती है. अखाड़ा परिषद का मुख्य उद्देश्य कुंभ मेलों के दौरान सरकार और साधु-संतों के बीच समन्वय स्थापित करना है. इस समन्वय से ही कुंभ मेले में जमीन व अन्य सुविधाएं प्रदान की जाती हैं. सुविधाओं का लाभ दूसरे संत-महात्माओं तक पहुंचाना और संतों की समस्याओं को दूर कराना ही परिषद अध्यक्ष का काम होता है.
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