नई दिल्ली : अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को अपने सख्त रवैये और निर्णय के कारण जाना जाता है. तालिबान के सत्ता में वापसी के बाद आए दिन किसी ने किसी चीज पर बैन लगाया जाता रहा है. चाहें वह महिला अधिकारों से संबंधित मुद्दे हों या फिर शरिया के खिलाफ कोई चीज हो, इन सबके बीच अब तालिबान से स्पोर्ट्स भी अछूता नहीं है.
तालिबान के नेतृत्व वाली अफगानिस्तान सरकार ने अब मिश्रित मार्शल आर्ट को अपने देश में बैन कर दिया है. यह एक प्राचीन खेल है जिसमें मुक्केबाजी, कुश्ती, जूडो, जुजित्सु, कराटे, मय थाई (थाई मुक्केबाजी) और अन्य विषयों की तकनीकें शामिल हैं. इस खेल को केज फाइटिंग और अल्टीमेट फाइटिंग के नाम से भी जाना जाता है.
यह एक लड़ाई वाला स्पोर्ट्स है हालांकि शुरुआत में यह खेल बिना किसी नियम के खेला जाता था, जिसके कारण इस खेल में कईं लोगों की मौत तक हो जाती थी. इसी वजह से आलोचकों ने इस खेल को खूनी खेल कहकर इसकी आलोचना की और इसे प्रतिबंधित करने की मांग की. लेकिन मिश्रित मार्शल आर्ट पर कोई पाबंदी नहीं लगाई गई यहां तक कि यह खेल 21वीं सदी की शुरुआत में दुनिया का सबसे तेजी से देखे जाने वाल खेल बन गया.
तालिबान ने मार्शल आर्ट पर प्रतिबंध क्यों लगाया?
अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स (एमएमए) को गैर-इस्लामिक बताते हुए उस पर प्रतिबंध लगा दिया है. अफगानिस्तान के खेल प्राधिकरण के मुताबिक यह फैसला इसलिए लिया गया है क्योंकि यह खेल इस्लामिक कानून या शरिया के खिलाफ है. इस खेल में चेहरे पर मुक्का मारा जाता है जो इस्लाम में सख्त वर्जित है और इस खेल में जान तक जाने का खतरा रहता है जिसकी इस्लाम इजाजत नहीं देता है.
गौरतलब है कि अफगानिस्तान में युवाओं के बीच मार्शल आर्ट सबसे लोकप्रिय खेल रहा है. अफगानिस्तान में मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स फेडरेशन की स्थापना 2008 में हुई थी, जबकि अफगानिस्तान फाइटिंग चैंपियनशिप (एएफसी) और दारुली ग्रैंड फाइटिंग चैंपियनशिप (टीजीएफसी) ने भी दर्जनों मुकाबले आयोजित किए हैं. लेकिन 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद से उन प्रतियोगिताओं को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया जब तालिबान ने "चेहरे पर मुक्का मारने" पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून पारित किया था.
बता दें, अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से महिलाओं के खेलों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और महिलाओं की स्वतंत्रता और अधिकारों पर भी काफी हद तक प्रतिबंध लगा दिया है, जिसके कारण महिलाओं की शिक्षा प्रभावित हुई है. लेकिन अब तालिबान ने पुरुषों के खेल पर भी प्रतिबंध लगा दिया है.
मार्शल आर्ट को ओलंपिक में मान्यता क्यों नहीं दी गई है?
1896 में अपनी स्थापना के बाद से, ओलंपिक ने एक अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की है. खेलों की संख्या भी समय के साथ बदल गई है और अब 2028 में पहली बार क्रिकेट भी ओलंपिक का हिस्सा होगा, लेकिन एक प्रमुख खेल मिक्स्ड मार्शल मार्ट्स को इससे बाहर रखा गया है.
मार्शल आर्ट की अवधारणा सदियों से चली आ रही है, लेकिन आधुनिक मार्शल आर्ट युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय है. इस खेल में मुक्केबाजी, कुश्ती, जूडो और अन्य विषयों की तकनीकें शामिल हैं. इस तकनीक के खेलों को ओलंपिक खेलों में शामिल किया गया है, लेकिन मार्शल आर्ट को नहीं.
मिश्रित मार्शल आर्ट को मुख्य रूप से ओलंपिक खेल के रूप में मान्यता नहीं दी गई है क्योंकि इसे बहुत हिंसक माना जाता है, चोट के उच्च जोखिम के कारण खेल की बढ़ती लोकप्रियता और ओलंपिक मूल्यों और निष्पक्ष खेल के साथ संभावित संघर्षों के बारे में चिंताएं हैं आलोचकों का तर्क है कि मिक्स्ड मार्शल की आक्रामक प्रकृति पारंपरिक ओलंपिक भावना के अनुरूप नहीं है.
भारत में मिश्रित मार्शल आर्ट
आज भी भारत में मिश्रित मार्शल आर्ट को एक विदेशी खेल के रूप में देखा जाता है. भारत में एमएमए सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त खेल नहीं है. जिसके कारण एमएमए सेनानियों को एथलीट के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है. न ही उन्हें वो लाभ और सहयोग मिलता है जो भारत सरकार द्वारा अन्य खिलाड़ियों को दिया जाता है.
सरकार द्वारा मान्यता न मिलने के कारण भारत में इस खेल के लिए कोई उचित शासी निकाय नहीं है. इसका मतलब यह है कि एक भी ऐसा आयोग नहीं है जो सरकार में भारतीय एमएमए समुदाय का प्रतिनिधित्व कर सके. मिश्रित मार्शल आर्ट का खेल भारत में तब शुरू हुआ जब एक किकबॉक्सिंग संगठन के सदस्य डैनियल इसाक ने एमएमए में उद्यम करने का फैसला किया. डेनियल इसाक एक किकबॉक्सर थे जिन्होंने कराटे और तायक्वोंडो की कला में भी प्रशिक्षण लिया था।