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यमुना स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स से निकलकर प्रियांश ने कंपाउंड तीरंदाजी विश्व कप के फाइनल में बनाई जगह, जानें कैसी है उनकी तैयारी - ARCHARY WORLD CUP - ARCHARY WORLD CUP

तुर्की के अंताल्या में तीरंदाजी विश्व कप के तीसरे चरण में व्यक्तिगत स्पर्धा में रजत पदक हासिल कर देश का परचम लहरा कर स्वदेश वापस लौटे भारतीय कंपाउंड तीरंदाज प्रियांश ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. जिसमें उन्होंने कहा कि मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि विश्वकप जीतूं. अभी प्रैक्टिस जारी है.

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भारतीय कंपाउंड तीरंदाज प्रियांश (Animated)
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Jun 26, 2024, 1:29 PM IST

Updated : Jun 26, 2024, 2:26 PM IST

नई दिल्ली: हमारे देश के खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-अलग खेलों में पदक जीतकर लगातार देश का नाम रोशन कर रहे हैं. कुछ साल पहले तक देश में क्रिकेट के प्रति ही अधिकांश युवाओं में रुझान देखने को मिलता था. लेकिन, अब युवा दूसरे खेलों के प्रति भी रुचि दिखाने लगे हैं और उन खेलों में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर उम्दा प्रदर्शन भी करते हैं. इसी तरह का उम्दा प्रदर्शन करके मंगलवार सुबह तुर्की से स्वदेश लौटे युवा तीरंदाज प्रियांश.

प्रियांश के पिता राकेश कुमार और मां रेनू अरोड़ा गाजियाबाद के कौशांबी में रहते हैं. जबकि 21वर्षीय प्रियांश यमुना स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में प्रैक्टिस करने के कारण अपने रिलेटिव के यहां दिल्ली के लक्ष्मी नगर में रहते हैं. यमुना स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स प्रियांश का होम ग्राउंड है. यहीं से उनकी शुरूआत हुई है. प्रियांश ने डीयू के हंसराज कॉलेज से अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की है. उनकी मां डीयू के मिरांडा हाउस कॉलेज में हिंदी की प्रोफेसर हैं. पिता राकेश कुमार का निजी व्यवसाय है. पिछले पांच सालों से वह यमुना स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में कोच लोकेश चंद के नेतृत्व में अभ्यास करते हैं.

पिता राकेश कुमार का कहना है कि बेटे की उपलब्धियों को देखकर गर्व महसूस होता है. मां रेनू अरोड़ा ने कहा कि इस बार के टूर्नामेंट में हम भी प्रियांश के खेल के साक्षी रहे. हम प्रियांश के साथ ही तुर्की गए थे. प्रियांश अपने खेल के लिए बहुत मेहनत करता है. सबसे अच्छी बात यह लगती है कि जब बच्चे अपना लक्ष्य खुद तय करते हैं और उसे हासिल करते हैं. फिर देश के साथ उनका नाम जुड़ता है. तीरंदाजी विश्वकप चार चरणों में होता है. पहला चरण चीन के शंघाई में खेला गया. दूसरा चरण दक्षिण कोरिया में हुआ.

भारतीय कंपाउंड तीरंदाज प्रियांश ने तुर्की के अंताल्या में तीरंदाजी विश्व कप के तीसरे चरण में व्यक्तिगत स्पर्धा में रजत पदक हासिल कर देश का परचम लहरा दिया है. इस जीत के साथ उन्होंने इस साल के अंत में मेक्सिको में होने वाले विश्वकप फाइनल का टिकट भी पक्का कर लिया है. फाइनल मुकाबले में विश्व के नंबर वन तीरंदाज नीदरलैंड के माइक श्लोसेर से बेहद करीबी मुकाबले में प्रियांश को 148-149 से हारकर रजत पदक से संतोष करना पड़ा. 18 दिन बाद टूर्नामेंट खत्म होने पर भारत लौटे प्रियांश ने ईटीवी भारत से खास बात की है. आइए जानते हैं बातचीत का खास अंश.

सवाल: कंपाउंड तीरंदाजी विश्वकप क्वालीफायर के तीसरे चरण में रजत पदक जीतकर आपने अपना विश्वकप का टिकट पक्का कर लिया है. आगे आपका लक्ष्य क्या है?

जवाब : अभी तक हमने तीन विश्वकप खेले हैं. तीनों में ही अच्छा प्रदर्शन किया है. पहले और तीसरे में मेरा व्यक्तिगत स्पर्धा में सिल्वर मेडल जीता है. पहले वाले में टीम गोल्ड, दूसरे वाले में मिक्स टीम सिल्वर और अभी तीसरे में व्यक्तिगत स्पर्धा में सिल्वर रहा ही है. अब मैक्सिको में विश्वकप के लिए टॉप आठ तीरंदाजों को मौका दिया जाएगा. उनमें में भी शामिल हूं. मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि विश्वकप जीतूं. अभी प्रैक्टिस जारी रहेगी.

सवाल : अभी आपने तुर्की में सिल्वर मेडल जीता है. सिर्फ आप एक प्वाइंट से गोल्ड से चूक गए तो क्या कमी रह गई?

जवाब : कमी नहीं कह सकते. ये खेल का हिस्सा है. थोड़ा बहुत तीर इधर-उधर हो ही जाता है. क्योंकि धनुष भी एक मशीन है. हम भी एक इंसान हैं कई बार निशाना लक्ष्य से थोड़ा इधर-उधर हो ही जाता है.

सवाल : अभी तक जो आपका प्रदर्शन रहा है उससे आप संतुष्ट हैं?

जवाब : हां, मैंने जिस हिसाब से प्रैक्टिस की थी मेरे बाकी के मैच सभी वैसे ही गए जैसी मैंने उम्मीद की थी अच्छे स्कोर के साथ. फाइनल में जरूर थोड़ा सा हाथ हिला जिससे एक प्वाइंट कम रह गया.

सवाल : कंपाउंड तीरंदाजी में अभी आपको कितना समय हो गया है. इसकी शुरूआत कैसे हुई?

जवाब : मैं यमुना स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स ऐसे ही घूमने गया था. वहां मैंने लोगों को तीरंदाजी करते हुए देखा तो थोड़ा शौक बढ़ा. फिर मेरा भी मन हुआ और शुरूआत कर दी. अब कंपाउंड तीरंदाजी में मेरा ये पांचवां साल है. मैं यमुना स्पोर्ट्स गया था में लोकेश चांद सर के अंडर प्रैक्टिस करता हूं.

सवाल : तीरंदाजी के लिए देश या दिल्ली में जो सुविधाएं हैं उनके बारे में क्या कहेंगे कम हैं या और सुधार की जरूरत है?

जवाब : पहले से काफी अधिक सुविधाएं अब खिलाड़ियों को मिल रही हैं. खेलो इंडिया की योजना है जिसमें तीरंदाजों को मासिक तौर पर पैसे भी मिलते हैं. उनको खेलो इंडिया की तरफ से सरकारी ग्राउंड में प्रैक्टिस के लिए प्रवेश दिला सकते हैं. फीस भी कम होती है. यहां पर फ्री उपकरण मिलते हैं. खाना-पीना और फ्री हेल्थ चेकअप की भी सुविधा मिलती है. दूसरे देशों में अपने खर्चे पर खिलाड़ी आते हैं, जबकि हमें सरकार स्पांसर करती है तो सुविधाओं की कोई कमी नहीं है.

सवाल : तीरंदाजी का खेल सस्ता है या महंगा है. तैयारी करनी है तो क्या ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ता है प्रैक्टिस के लिए?

जवाब : सस्ता तो बिल्कुल नहीं है. इसलिए सरकार की ओर से हमें जो सुविधा मिलती है वो जरूरी है. जब कोई बच्चा पहली बार खेल की शुरूआत करता है और प्रैक्टिस की तो ढ़ाई तीन लाख रुपये के उपकरण खरीदने पड़ते हैं. कई सारे लोग होते हैं जो इतना वहन नहीं कर पाते हैं. देश में बहुत सारी छुपी हुई प्रतिभाएं हैं, जो पैसे के अभाव में पीछे रह जाती हैं.

सवाल: लक्ष्मीनगर में रहकर आप प्रैक्टिस करते हैं, ताकि ग्राउंड आपको नजदीक पड़े. किस तरह से मैनेज करते हैं ?

जवाब : मेरा पूरा दिन ग्राउंड पर बीत जाता है. लक्ष्मीनगर में मैं अपने रिलेटिव के पास रहता हूं तो खाने-पीने की भी सारी सुविधाएं मिल जाती हैं. प्रैक्टिस पर भी पूरा ध्यान दे पाता हूं.

सवाल: विश्व में तीरंदाजी वाले जो देश हैं उन देशों की श्रेणी में भारत की क्या स्थिति है?

जवाब: कंपाउंड तीरंदाजी में भारत इस समय पहले नंबर पर है. आप किसी भी वेबसाइट पर चेक करेंगे तो सिंगल, डबल, महिला और पुरूष टीम हर श्रेणी में कंपाउंड टीम पहले नंबर पर है.

सवाल: तीरंदाजी में कितनी कैटेगरी हैं. इनमें क्या अंतर होता है?

जवाब: तीरंदाजी में दो कैटेगरी होती हैं इनडोर और आउटडोर. दो तरह के धनुष होते हैं एक कंपाउंड और दूसरा रिकर. भारत आउटडोर तीरंदाजी पर फोकस करता है. अभी कंपाउंड तीरंदाजी ओलंपिक में नहीं है. बाकी हर तरह चैंपियनशिप में यह शामिल है. कॉमनवेल्थ, एशियन, विश्व चैंपियनशिप सभी में. जल्दी ही यह ओलंपिक में भी शामिल होने वाला है. रिकर तीरंदाजी पुरानी विधा है, इसलिए यह ओलंपिक में शामिल है.

ये भी पढ़ें: द‍िल्‍ली के सरकारी अस्पताल DFS के फायर सेफ्टी के 'ग्राउंउ र‍ियल‍िटी' चेक में हुए फेल, कई चौंकाने वाली कम‍ियां आईं सामने

नई दिल्ली: हमारे देश के खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-अलग खेलों में पदक जीतकर लगातार देश का नाम रोशन कर रहे हैं. कुछ साल पहले तक देश में क्रिकेट के प्रति ही अधिकांश युवाओं में रुझान देखने को मिलता था. लेकिन, अब युवा दूसरे खेलों के प्रति भी रुचि दिखाने लगे हैं और उन खेलों में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर उम्दा प्रदर्शन भी करते हैं. इसी तरह का उम्दा प्रदर्शन करके मंगलवार सुबह तुर्की से स्वदेश लौटे युवा तीरंदाज प्रियांश.

प्रियांश के पिता राकेश कुमार और मां रेनू अरोड़ा गाजियाबाद के कौशांबी में रहते हैं. जबकि 21वर्षीय प्रियांश यमुना स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में प्रैक्टिस करने के कारण अपने रिलेटिव के यहां दिल्ली के लक्ष्मी नगर में रहते हैं. यमुना स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स प्रियांश का होम ग्राउंड है. यहीं से उनकी शुरूआत हुई है. प्रियांश ने डीयू के हंसराज कॉलेज से अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की है. उनकी मां डीयू के मिरांडा हाउस कॉलेज में हिंदी की प्रोफेसर हैं. पिता राकेश कुमार का निजी व्यवसाय है. पिछले पांच सालों से वह यमुना स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में कोच लोकेश चंद के नेतृत्व में अभ्यास करते हैं.

पिता राकेश कुमार का कहना है कि बेटे की उपलब्धियों को देखकर गर्व महसूस होता है. मां रेनू अरोड़ा ने कहा कि इस बार के टूर्नामेंट में हम भी प्रियांश के खेल के साक्षी रहे. हम प्रियांश के साथ ही तुर्की गए थे. प्रियांश अपने खेल के लिए बहुत मेहनत करता है. सबसे अच्छी बात यह लगती है कि जब बच्चे अपना लक्ष्य खुद तय करते हैं और उसे हासिल करते हैं. फिर देश के साथ उनका नाम जुड़ता है. तीरंदाजी विश्वकप चार चरणों में होता है. पहला चरण चीन के शंघाई में खेला गया. दूसरा चरण दक्षिण कोरिया में हुआ.

भारतीय कंपाउंड तीरंदाज प्रियांश ने तुर्की के अंताल्या में तीरंदाजी विश्व कप के तीसरे चरण में व्यक्तिगत स्पर्धा में रजत पदक हासिल कर देश का परचम लहरा दिया है. इस जीत के साथ उन्होंने इस साल के अंत में मेक्सिको में होने वाले विश्वकप फाइनल का टिकट भी पक्का कर लिया है. फाइनल मुकाबले में विश्व के नंबर वन तीरंदाज नीदरलैंड के माइक श्लोसेर से बेहद करीबी मुकाबले में प्रियांश को 148-149 से हारकर रजत पदक से संतोष करना पड़ा. 18 दिन बाद टूर्नामेंट खत्म होने पर भारत लौटे प्रियांश ने ईटीवी भारत से खास बात की है. आइए जानते हैं बातचीत का खास अंश.

सवाल: कंपाउंड तीरंदाजी विश्वकप क्वालीफायर के तीसरे चरण में रजत पदक जीतकर आपने अपना विश्वकप का टिकट पक्का कर लिया है. आगे आपका लक्ष्य क्या है?

जवाब : अभी तक हमने तीन विश्वकप खेले हैं. तीनों में ही अच्छा प्रदर्शन किया है. पहले और तीसरे में मेरा व्यक्तिगत स्पर्धा में सिल्वर मेडल जीता है. पहले वाले में टीम गोल्ड, दूसरे वाले में मिक्स टीम सिल्वर और अभी तीसरे में व्यक्तिगत स्पर्धा में सिल्वर रहा ही है. अब मैक्सिको में विश्वकप के लिए टॉप आठ तीरंदाजों को मौका दिया जाएगा. उनमें में भी शामिल हूं. मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि विश्वकप जीतूं. अभी प्रैक्टिस जारी रहेगी.

सवाल : अभी आपने तुर्की में सिल्वर मेडल जीता है. सिर्फ आप एक प्वाइंट से गोल्ड से चूक गए तो क्या कमी रह गई?

जवाब : कमी नहीं कह सकते. ये खेल का हिस्सा है. थोड़ा बहुत तीर इधर-उधर हो ही जाता है. क्योंकि धनुष भी एक मशीन है. हम भी एक इंसान हैं कई बार निशाना लक्ष्य से थोड़ा इधर-उधर हो ही जाता है.

सवाल : अभी तक जो आपका प्रदर्शन रहा है उससे आप संतुष्ट हैं?

जवाब : हां, मैंने जिस हिसाब से प्रैक्टिस की थी मेरे बाकी के मैच सभी वैसे ही गए जैसी मैंने उम्मीद की थी अच्छे स्कोर के साथ. फाइनल में जरूर थोड़ा सा हाथ हिला जिससे एक प्वाइंट कम रह गया.

सवाल : कंपाउंड तीरंदाजी में अभी आपको कितना समय हो गया है. इसकी शुरूआत कैसे हुई?

जवाब : मैं यमुना स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स ऐसे ही घूमने गया था. वहां मैंने लोगों को तीरंदाजी करते हुए देखा तो थोड़ा शौक बढ़ा. फिर मेरा भी मन हुआ और शुरूआत कर दी. अब कंपाउंड तीरंदाजी में मेरा ये पांचवां साल है. मैं यमुना स्पोर्ट्स गया था में लोकेश चांद सर के अंडर प्रैक्टिस करता हूं.

सवाल : तीरंदाजी के लिए देश या दिल्ली में जो सुविधाएं हैं उनके बारे में क्या कहेंगे कम हैं या और सुधार की जरूरत है?

जवाब : पहले से काफी अधिक सुविधाएं अब खिलाड़ियों को मिल रही हैं. खेलो इंडिया की योजना है जिसमें तीरंदाजों को मासिक तौर पर पैसे भी मिलते हैं. उनको खेलो इंडिया की तरफ से सरकारी ग्राउंड में प्रैक्टिस के लिए प्रवेश दिला सकते हैं. फीस भी कम होती है. यहां पर फ्री उपकरण मिलते हैं. खाना-पीना और फ्री हेल्थ चेकअप की भी सुविधा मिलती है. दूसरे देशों में अपने खर्चे पर खिलाड़ी आते हैं, जबकि हमें सरकार स्पांसर करती है तो सुविधाओं की कोई कमी नहीं है.

सवाल : तीरंदाजी का खेल सस्ता है या महंगा है. तैयारी करनी है तो क्या ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ता है प्रैक्टिस के लिए?

जवाब : सस्ता तो बिल्कुल नहीं है. इसलिए सरकार की ओर से हमें जो सुविधा मिलती है वो जरूरी है. जब कोई बच्चा पहली बार खेल की शुरूआत करता है और प्रैक्टिस की तो ढ़ाई तीन लाख रुपये के उपकरण खरीदने पड़ते हैं. कई सारे लोग होते हैं जो इतना वहन नहीं कर पाते हैं. देश में बहुत सारी छुपी हुई प्रतिभाएं हैं, जो पैसे के अभाव में पीछे रह जाती हैं.

सवाल: लक्ष्मीनगर में रहकर आप प्रैक्टिस करते हैं, ताकि ग्राउंड आपको नजदीक पड़े. किस तरह से मैनेज करते हैं ?

जवाब : मेरा पूरा दिन ग्राउंड पर बीत जाता है. लक्ष्मीनगर में मैं अपने रिलेटिव के पास रहता हूं तो खाने-पीने की भी सारी सुविधाएं मिल जाती हैं. प्रैक्टिस पर भी पूरा ध्यान दे पाता हूं.

सवाल: विश्व में तीरंदाजी वाले जो देश हैं उन देशों की श्रेणी में भारत की क्या स्थिति है?

जवाब: कंपाउंड तीरंदाजी में भारत इस समय पहले नंबर पर है. आप किसी भी वेबसाइट पर चेक करेंगे तो सिंगल, डबल, महिला और पुरूष टीम हर श्रेणी में कंपाउंड टीम पहले नंबर पर है.

सवाल: तीरंदाजी में कितनी कैटेगरी हैं. इनमें क्या अंतर होता है?

जवाब: तीरंदाजी में दो कैटेगरी होती हैं इनडोर और आउटडोर. दो तरह के धनुष होते हैं एक कंपाउंड और दूसरा रिकर. भारत आउटडोर तीरंदाजी पर फोकस करता है. अभी कंपाउंड तीरंदाजी ओलंपिक में नहीं है. बाकी हर तरह चैंपियनशिप में यह शामिल है. कॉमनवेल्थ, एशियन, विश्व चैंपियनशिप सभी में. जल्दी ही यह ओलंपिक में भी शामिल होने वाला है. रिकर तीरंदाजी पुरानी विधा है, इसलिए यह ओलंपिक में शामिल है.

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Last Updated : Jun 26, 2024, 2:26 PM IST
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