नई दिल्ली : पाकिस्तान में आम चुनाव संपन्न हो चुका है. मतगणना भी पूरी हो गई. पर परिणाम को लेकर सबकी अपनी-अपनी राय है. माना जा रहा है कि इमरान खान के राजनीतिक करियर पर ब्रेक लगाने के लिए सारे दांव चल दिए गए हैं. चुनाव में व्यापक पैमाने पर धांधली के आरोप लगे. पाकिस्तान एक बार फिर से दो राहे पर खड़ा है, जहां से या तो जनता का मत उसका भविष्य तय करेगा, या फिर पॉवर और भ्रष्टाचार ही आगे का रास्ता निर्धारित करेंगे.
पाकिस्तान का आम चुनाव महज खानापूर्ति जैसा होगा, इसका अंदेशा पहले से था. लेकिन एस्टेब्लिशमेंट (पाक सेना) को यदि यह गुमान था कि वे प्रजातंत्र को अपने मनमाफिक चलाएंगे, तो उनको भी झटका जरूर लगा है. मतदाताओं ने इमरान खान द्वारा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवारों के पक्ष में जमकर वोटिंग की. यह स्थिति तब थी, जबकि चुनाव से पहले ही इमरान खान की पार्टी पीटीआई पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी गईं. उनके नेताओं को जेल में डाल दिया गया. इमरान खान के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लग गया. पाकिस्तान के प्रमुख अखबार डॉन ने अपने संपादकीय में लिखा, 'नागरिक मामलों में हस्तक्षेप करना मतदाताओं को स्वीकार्य नहीं है.'
इन चुनाव परिणामों से पाकिस्तान आर्मी भी सख्ते में आ गई होगी. हालांकि, उन्होंने संकेत दे दिया है कि वे किसी भी तरह से पीटीआई और निर्दलीय विधायकों के गठजोड़ को सफल होने नहीं देंगे. आंकड़ों की बात करें तो सबसे अधिक निर्दलीय उम्मीदवार जीते हैं, और ये सभी पीटीआई के समर्थक हैं. उसके बाद नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएलएन और फिर पीपीपी का स्थान आता है. पीपीपी का नेतृत्व बिलावल भुट्टो के पास है. पीएमएलएन और पीपीपी मिलकर सरकार बनाने का दावा करने वाले हैं. खबर है कि निर्दलीय विधायकों को खरीदने की कोशिश की जा रही है. उन पर दबाव बनाया जा रहा है. अंतरराष्ट्रीय जगत की नजर पाकिस्तान के चुनाव पर बनी हुई है.
हालांकि, इमरान खान ने सत्ता से निष्कासन के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया था. लेकिन इस वक्त अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपियन यूनियन ने पाकिस्तान चुनाव में धांधली की जांच कराने का समर्थन किया है. पाकिस्तानी मीडिया का एक बड़ा वर्ग देरी से चुनाव परिणाम की घोषणा किए जाने को लेकर पहले ही सवाल उठा चुका है. चुनाव आयोग ने इंटरनेट और मोबाइल बैन का हवाला दिया था, लेकिन उनकी इस दलील को कोई मानने को तैयार नहीं है. पीटीआई के समर्थकों ने कुछ अलग ही सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि नवाज शरीफ और बिलावल भुट्टो की पार्टी को जीत दिलाने के लिए परिणाम देरी से घोषित किए गए.
अगर सेना उनके लिए बैटिंग नहीं करती, तो उनके कई उम्मीदवार चुनाव हार जाते. एक उदाहरण ऐसा भी आया, जहां कुल वोटिंग से ज्यादा वोट की काउंटिंग की गई. सोशल मीडिया पर ऐसी बहुत सारी खबरें भी पोस्ट की गई हैं. इतने अधिक मैनिपुलेशन के बावजूद एस्टेब्लिशमेंट मतदाताओं को डरा और धमका नहीं सके और उन्होंने खुलकर मतदान के जरिए अपना गुस्सा प्रकट किया. एस्टेबलिशमेंट के भय के बावजूद जनता ने निर्भीक होकर मतदान किया. इमरान खान भले ही एक कमजोर प्रशासक रहे हों, लेकिन उनका दिल पाकिस्तान के लिए धड़कता है, ऐसा संदेश देने में वह सफल रहे थे.
न तो नवाज और न ही जरदारी, उस स्तर का सम्मान अर्जित कर पाए हैं. वैसे, अब करीब-करीब तय माना जा रहा है कि नवाज शरीफ और बिलावल भुट्टो मिलकर सरकार बना सकते हैं. उन्हें सेना प्रमुख जनरल असिम मुनीर का समर्थन हासिल है. और पाकिस्तानी सेना का कद पाकिस्तान में बहुत बड़ा है. हालांकि, सेना भी पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति को मजबूत नहीं कर सकी. विदेशी निवेशक को आकर्षित नहीं कर पाए. रेवेन्यू बढ़ा नहीं पा रहे और निचले पायदान पर जो व्यक्ति हैं उनको भी खुश नहीं कर पा रहे हैं.
चुनाव से पहले सेना चाहती थी कि सरकार अर्थव्यवस्था को बेहतर ढंग से प्रबंधित करे, उसे आईएमएफ का लोन जारी हो, ताकि बिगड़ती अर्थव्यवस्था को सुधारा जा सके. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इतनी खराब हो चुकी है, लोगों को लग रहा है कि कोई जादुई समाधान मिल जाए, और जल्द से जल्द स्थिति में सुधार हो. भारत से अच्छे संबंध की शुरुआत इस दिशा में बड़ा कदम हो सकता है. हालांकि, दिल्ली सरकार इन संबंधों को लेकर बहुत अधिक बेताब नहीं दिखती है. उलटे मोदी सरकार ने 370 और सीएए के जरिए पाकिस्तान को और अधिक चिढ़ा दिया. हालांकि, पाकिस्तान को इसके प्रति चिंतित नहीं होना चाहिए, लेकिन एक ऐसा इंप्रेशन जरूर गया कि भारत सहयोग की नीति नहीं अपना रहा है, ताकि इस्लामाबाद क्रॉस बॉर्डर एडवेंचरिज्म बंद कर दे.
पिछली बार जब दोनों के बीच उस समय मुलाकात हुई थी, जब नवाज शरीफ 2014 में पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए थे. एक साल बाद पीएम मोदी भी संक्षिप्त मुलाकात के लिए लाहौर गए थे. ऐसा लग रहा था कि उनकी यह नीति आगे बढ़ेगी, लेकिन घरेलू राजनीति ने कोई भी बड़ा कदम उठाने पर ब्रेक लगा दिया. अब सवाल उठ रहा है कि अगर नवाज शरीफ फिर से पाकिस्तान के पीएम बनते हैं, तो क्या पीएम मोदी फिर से कोई पहल करेंगे. क्या वे इस संदेश को पास करने में कामयाब होंगे कि पाकिस्तान पीएम मोदी पर भरोसा कर सकता है.
विगत में भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारने का प्रयास किया था. उन्होंने लाहौर बस यात्रा निकाली थी. लेकिन बाद में उनके प्रयास को बड़ा धक्का लगा. और तब से भारत के प्रधानमंत्री पाकिस्तान को लेकर फूंक-फूंक कर कदम उठाते हैं.
उम्मीद की जा रही है कि मोदी और नवाज शरीफ की उपस्थिति से दोनों देशों के संबंधों में नया चैप्टर जुड़ सकता है. अगर ऐसा होगा, तो आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान को राहत जरूर मिलेगी. संबंधों में पहल का राजनीतिक फायदा भाजपा को भी मिल सकता है. ऐसे समय में जबकि भारत और चीन के बीच लगातार संबंध बिगड़ रहे हैं, कम से कम पश्चिमी सीमा पर तो भारत को राहत जरूर मिलेगी.
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