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कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए व्यापार नीति में बदलाव की जरूरत, चावल-चीनी पर प्रतिबंधों में ढील की उम्मीद - Trade Policy

Trade Policy Agricultural Exports: खरीफ फसलों के उत्पादन की संभावनाएं काफी आशाजनक दिख रही हैं, इसलिए सरकार ने कुछ फसलों, खासकर सोयाबीन को लेकर निर्यात नीति में बदलाव करना शुरू कर दिया है. लेकिन कुछ कृषि उपज की मौजूदा वैश्विक मांग को देखते हुए सरकार को निर्यात नीति में तत्काल बदलाव करना चाहिए. पढ़ें कृषि निर्यात पर परितला पुरुषोत्तम का लेख.

Indian Government Should Change Trade Policy To Encourage Agricultural Exports
प्रतीकात्मक तस्वीर (ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 28, 2024, 8:59 PM IST

नई दिल्ली: कृषि से होने वाली आय में वृद्धि के कारण इस वर्ष ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार की अच्छी संभावना है. मौजूदा वैश्विक कीमतों का लाभ उठाने के लिए त्वरित निर्णय लेना जरूरी है. व्यापार पर प्रतिबंधों को कम करने के निर्णय भी उन्हें लागू करने के फैसलों की तरह ही आसानी से लिए जाने चाहिए.

खरीफ फसलों के उत्पादन की संभावनाएं काफी आशाजनक दिख रही हैं और सरकार ने कुछ फसलों, खासकर सोयाबीन को लेकर निर्यात नीति में बदलाव करना शुरू कर दिया है. हकीकत यह है कि चावल और गन्ने के मामले में भी इसी तरह के कदम उठाए जाने की जरूरत है.

अच्छी फसल की उम्मीद में, केंद्र सरकार ने व्यापार पर कई निर्णयों की घोषणा की. इसके अलावा, अगले कुछ महीनों में गैर-बासमती चावल और चीनी पर निर्यात प्रतिबंधों में कुछ और ढील की उम्मीद की जा सकती है.

खाद्य तेल: किसानों की सुरक्षा

सबसे महत्वपूर्ण घोषणा खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने की थी, क्योंकि सोयाबीन की फसल का रकबा सामान्य से 2.16 लाख हेक्टेयर अधिक है. सोयाबीन की घरेलू कीमतें एमएसपी से लगभग 35 प्रतिशत कम थीं, जो 3,200 से 3,700 रुपये प्रति क्विंटल के बीच थीं, जबकि एमएसपी 4,892 रुपये प्रति क्विंटल है. ये कीमतें लगभग दस साल पहले की कीमतों के बराबर थीं. मध्य प्रदेश सोयाबीन का प्रमुख उत्पादक राज्य है और यह केंद्रीय कृषि मंत्री का गृह राज्य है.

सरकार ने सोयाबीन किसानों को इन कम और बिल्कुल अलाभकारी कीमतों से बचाने के लिए अच्छा काम किया है. 13 सितंबर, 2024 को कच्चे पाम तेल, कच्चे सोया तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर 20 प्रतिशत का मूल सीमा शुल्क (बीसीडी) लगाया गया था. अब तक बीसीडी शून्य था और आयात पर केवल 5.5 प्रतिशत कृषि अवसंरचना और विकास उपकर (एआईडीसी) लगता था. अब इन तेलों पर कुल आयात शुल्क 27.5 प्रतिशत होगा.

आयातित रिफाइंड पाम ऑयल, रिफाइंड सोया ऑयल और रिफाइंड सनफ्लावर ऑयल पर बीसीडी और एआईडीसी अब 35.75 प्रतिशत होगा, जबकि पहले यह दर 13.75 प्रतिशत थी. उच्च शुल्क के बावजूद, सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीद अभी भी आवश्यक हो सकती है, कम से कम बाजार में आने के शुरुआती दिनों में.

वैश्विक स्तर पर सोयामील की कीमतें पिछले साल से कम हैं. भारत का सोयामील गैर-आनुवांशिक रूप से संशोधित है, लेकिन निर्यातकों को इसके लिए प्रीमियम नहीं मिल पा रहा है. सरकार को मीडिया अभियानों के जरिये इसे स्पष्ट करने की आवश्यकता है. ईरान, बांग्लादेश और अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को निर्यात सोयामील की कीमतों को बढ़ा सकता है और इससे सोयाबीन प्रसंस्करण करने वाली कंपनियां किसानों को कम से कम एमएसपी का भुगतान करने में सक्षम हो सकती हैं.

अगर किसानों को सोयाबीन का लाभकारी मूल्य नहीं मिलता है, तो यह संभव है कि किसान अगले साल धान की खेती करें, क्योंकि (राज्य सरकार द्वारा घोषित बोनस के कारण) उन्हें धान के लिए 3,100 रुपये प्रति क्विंटल मिलते हैं, जबकि इसका एमएसपी 2,183 रुपये प्रति क्विंटल है.

चावल: निर्यात प्रतिबंध को खत्म करने की जरूरत

चावल की फसल को लेकर भी चिंता की बात है. सभी राज्यों में अच्छे मानसून के कारण भारत 138 मिलियन टन तक की रिकॉर्ड फसल की उम्मीद कर सकता है. इस साल धान की सफल का रकबा पिछले साल की तुलना में लगभग 16 प्रतिशत अधिक है. 2023 में खराब मानसून के कारण कम वर्षा के बावजूद भारत ने 136.7 मिलियन टन चावल का उत्पादन किया.

1 अगस्त, 2024 को केंद्रीय पूल में चावल का स्टॉक 45.5 मिलियन टन था, जो पिछले दस वर्षों में सबसे अधिक है. पिछले दो वर्षों में गेहूं की कम खरीद के कारण, सरकार मुख्य रूप से गेहूं की खपत वाले राज्यों (राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत) में भी चावल का वितरण कर रही है.

सरकार ने भारतीय खाद्य निगम को इथेनॉल के लिए 2.3 मिलियन टन चावल देने की अनुमति भी दी है. इथेनॉल डिस्टिलरी को संभवतः खुले बाजार बिक्री योजना (2,800 रुपये प्रति क्विंटल) के तहत तय कीमत के आसपास इथेनॉल मिलेगा, जबकि 2024-25 के लिए चावल की आर्थिक लागत 3,975 रुपये प्रति क्विंटल होने का अनुमान है.

केंद्रीय पूल में सरकार के पास चावल का अत्यधिक स्टॉक होने के कारण जुलाई 2023 से गैर-बासमती कच्चे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है. चावल की बंपर फसल को देखते हुए कच्चे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने की मजबूत गुंजाइश है. इससे न केवल एफसीआई और राज्य एजेंसियों को खरीफ विपणन सत्र 2024-25 के तहत खरीदे गए चावल के लिए भंडारण स्थान उपलब्ध होगा, बल्कि चावल की ढुलाई लागत भी कम होगी.

इसके अलावा, राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड (एनसीईएल) के जरिये निर्यात की प्रथा को समाप्त किया जाना चाहिए और निजी व्यापार को निर्यात की अनुमति दी जानी चाहिए. यह ग्लोबल साउथ की खाद्य सुरक्षा में भारत का योगदान होगा.

चीनी: वैश्विक बाजार में अवसर

मई 2022 में चीनी के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. दिसंबर 2023 में सरकार ने चीनी मिलों और डिस्टिलरी को इथेनॉल के उत्पादन के लिए गन्ने के रस या चीनी सिरप का उपयोग करने पर प्रतिबंध लगा दिया. घरेलू खपत के लिए चीनी की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए ऐसा किया गया था.

पिछले साल, खराब बारिश के कारण गन्ने का उत्पादन बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ था, खासकर कर्नाटक और महाराष्ट्र में. सभी राज्यों में अच्छी मानसूनी बारिश को देखते हुए, सरकार ने 30 अगस्त, 2024 को अगले इथेनॉल आपूर्ति वर्ष (नवंबर-अक्टूबर) के लिए गन्ने के रस, बी-हैवी और सी-हैवी गुड़ से इथेनॉल के उत्पादन पर प्रतिबंध हटा दिया.

भारतीय चीनी और जैव-ऊर्जा निर्माता संघ (ISMA) का अनुमान है कि चालू चीनी वर्ष के अंत में 30 सितंबर को भारत में 9.1 मिलियन टन चीनी होगी. इतने अधिक स्टॉक को रखने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि 2024-25 में चीनी उत्पादन 33.3 मिलियन टन होने का अनुमान है. 2023-24 में करीब 20 लाख टन चीनी को इथेनॉल में बदला गया.

चूंकि 2024-25 में घरेलू खपत करीब 29 लाख टन रहने का अनुमान है, अगर 40 लाख टन चीनी को इथेनॉल में बदला भी जाता है, तो 30 सितंबर 2025 को भारत के पास करीब 90 लाख टन चीनी होगी.

आईसीई लंदन में सफेद रिफाइंड चीनी की कीमत करीब 527 डॉलर प्रति टन है. अगर निर्यात की अनुमति दी जाती है तो भारत को चीनी का मूल्य करीब 530 डॉलर प्रति टन मिल सकता है. वैश्विक बाजार में अच्छी कीमत पाने के लिए रिफाइंड चीनी के दस लाख टन तक निर्यात की अनुमति देने की गुंजाइश है.

उपर्युक्त कृषि उपज की मौजूदा वैश्विक मांग को देखते हुए सरकार को निर्यात नीति में तत्काल बदलाव करना चाहिए.

(डिस्क्लेमर: इस लेख में साझा की गई जानकारी और विचार लेखक के हैं. ये ईटीवी भारत की पॉलिसी को नहीं दर्शाते हैं.)

यह भी पढ़ें- प्रधानमंत्री मोदी ने उत्पादकता और किसानों की आय बढ़ाने के लिए जलवायु-अनुकूल बीजों की 109 किस्में जारी कीं

नई दिल्ली: कृषि से होने वाली आय में वृद्धि के कारण इस वर्ष ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार की अच्छी संभावना है. मौजूदा वैश्विक कीमतों का लाभ उठाने के लिए त्वरित निर्णय लेना जरूरी है. व्यापार पर प्रतिबंधों को कम करने के निर्णय भी उन्हें लागू करने के फैसलों की तरह ही आसानी से लिए जाने चाहिए.

खरीफ फसलों के उत्पादन की संभावनाएं काफी आशाजनक दिख रही हैं और सरकार ने कुछ फसलों, खासकर सोयाबीन को लेकर निर्यात नीति में बदलाव करना शुरू कर दिया है. हकीकत यह है कि चावल और गन्ने के मामले में भी इसी तरह के कदम उठाए जाने की जरूरत है.

अच्छी फसल की उम्मीद में, केंद्र सरकार ने व्यापार पर कई निर्णयों की घोषणा की. इसके अलावा, अगले कुछ महीनों में गैर-बासमती चावल और चीनी पर निर्यात प्रतिबंधों में कुछ और ढील की उम्मीद की जा सकती है.

खाद्य तेल: किसानों की सुरक्षा

सबसे महत्वपूर्ण घोषणा खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने की थी, क्योंकि सोयाबीन की फसल का रकबा सामान्य से 2.16 लाख हेक्टेयर अधिक है. सोयाबीन की घरेलू कीमतें एमएसपी से लगभग 35 प्रतिशत कम थीं, जो 3,200 से 3,700 रुपये प्रति क्विंटल के बीच थीं, जबकि एमएसपी 4,892 रुपये प्रति क्विंटल है. ये कीमतें लगभग दस साल पहले की कीमतों के बराबर थीं. मध्य प्रदेश सोयाबीन का प्रमुख उत्पादक राज्य है और यह केंद्रीय कृषि मंत्री का गृह राज्य है.

सरकार ने सोयाबीन किसानों को इन कम और बिल्कुल अलाभकारी कीमतों से बचाने के लिए अच्छा काम किया है. 13 सितंबर, 2024 को कच्चे पाम तेल, कच्चे सोया तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर 20 प्रतिशत का मूल सीमा शुल्क (बीसीडी) लगाया गया था. अब तक बीसीडी शून्य था और आयात पर केवल 5.5 प्रतिशत कृषि अवसंरचना और विकास उपकर (एआईडीसी) लगता था. अब इन तेलों पर कुल आयात शुल्क 27.5 प्रतिशत होगा.

आयातित रिफाइंड पाम ऑयल, रिफाइंड सोया ऑयल और रिफाइंड सनफ्लावर ऑयल पर बीसीडी और एआईडीसी अब 35.75 प्रतिशत होगा, जबकि पहले यह दर 13.75 प्रतिशत थी. उच्च शुल्क के बावजूद, सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीद अभी भी आवश्यक हो सकती है, कम से कम बाजार में आने के शुरुआती दिनों में.

वैश्विक स्तर पर सोयामील की कीमतें पिछले साल से कम हैं. भारत का सोयामील गैर-आनुवांशिक रूप से संशोधित है, लेकिन निर्यातकों को इसके लिए प्रीमियम नहीं मिल पा रहा है. सरकार को मीडिया अभियानों के जरिये इसे स्पष्ट करने की आवश्यकता है. ईरान, बांग्लादेश और अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को निर्यात सोयामील की कीमतों को बढ़ा सकता है और इससे सोयाबीन प्रसंस्करण करने वाली कंपनियां किसानों को कम से कम एमएसपी का भुगतान करने में सक्षम हो सकती हैं.

अगर किसानों को सोयाबीन का लाभकारी मूल्य नहीं मिलता है, तो यह संभव है कि किसान अगले साल धान की खेती करें, क्योंकि (राज्य सरकार द्वारा घोषित बोनस के कारण) उन्हें धान के लिए 3,100 रुपये प्रति क्विंटल मिलते हैं, जबकि इसका एमएसपी 2,183 रुपये प्रति क्विंटल है.

चावल: निर्यात प्रतिबंध को खत्म करने की जरूरत

चावल की फसल को लेकर भी चिंता की बात है. सभी राज्यों में अच्छे मानसून के कारण भारत 138 मिलियन टन तक की रिकॉर्ड फसल की उम्मीद कर सकता है. इस साल धान की सफल का रकबा पिछले साल की तुलना में लगभग 16 प्रतिशत अधिक है. 2023 में खराब मानसून के कारण कम वर्षा के बावजूद भारत ने 136.7 मिलियन टन चावल का उत्पादन किया.

1 अगस्त, 2024 को केंद्रीय पूल में चावल का स्टॉक 45.5 मिलियन टन था, जो पिछले दस वर्षों में सबसे अधिक है. पिछले दो वर्षों में गेहूं की कम खरीद के कारण, सरकार मुख्य रूप से गेहूं की खपत वाले राज्यों (राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत) में भी चावल का वितरण कर रही है.

सरकार ने भारतीय खाद्य निगम को इथेनॉल के लिए 2.3 मिलियन टन चावल देने की अनुमति भी दी है. इथेनॉल डिस्टिलरी को संभवतः खुले बाजार बिक्री योजना (2,800 रुपये प्रति क्विंटल) के तहत तय कीमत के आसपास इथेनॉल मिलेगा, जबकि 2024-25 के लिए चावल की आर्थिक लागत 3,975 रुपये प्रति क्विंटल होने का अनुमान है.

केंद्रीय पूल में सरकार के पास चावल का अत्यधिक स्टॉक होने के कारण जुलाई 2023 से गैर-बासमती कच्चे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है. चावल की बंपर फसल को देखते हुए कच्चे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने की मजबूत गुंजाइश है. इससे न केवल एफसीआई और राज्य एजेंसियों को खरीफ विपणन सत्र 2024-25 के तहत खरीदे गए चावल के लिए भंडारण स्थान उपलब्ध होगा, बल्कि चावल की ढुलाई लागत भी कम होगी.

इसके अलावा, राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड (एनसीईएल) के जरिये निर्यात की प्रथा को समाप्त किया जाना चाहिए और निजी व्यापार को निर्यात की अनुमति दी जानी चाहिए. यह ग्लोबल साउथ की खाद्य सुरक्षा में भारत का योगदान होगा.

चीनी: वैश्विक बाजार में अवसर

मई 2022 में चीनी के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. दिसंबर 2023 में सरकार ने चीनी मिलों और डिस्टिलरी को इथेनॉल के उत्पादन के लिए गन्ने के रस या चीनी सिरप का उपयोग करने पर प्रतिबंध लगा दिया. घरेलू खपत के लिए चीनी की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए ऐसा किया गया था.

पिछले साल, खराब बारिश के कारण गन्ने का उत्पादन बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ था, खासकर कर्नाटक और महाराष्ट्र में. सभी राज्यों में अच्छी मानसूनी बारिश को देखते हुए, सरकार ने 30 अगस्त, 2024 को अगले इथेनॉल आपूर्ति वर्ष (नवंबर-अक्टूबर) के लिए गन्ने के रस, बी-हैवी और सी-हैवी गुड़ से इथेनॉल के उत्पादन पर प्रतिबंध हटा दिया.

भारतीय चीनी और जैव-ऊर्जा निर्माता संघ (ISMA) का अनुमान है कि चालू चीनी वर्ष के अंत में 30 सितंबर को भारत में 9.1 मिलियन टन चीनी होगी. इतने अधिक स्टॉक को रखने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि 2024-25 में चीनी उत्पादन 33.3 मिलियन टन होने का अनुमान है. 2023-24 में करीब 20 लाख टन चीनी को इथेनॉल में बदला गया.

चूंकि 2024-25 में घरेलू खपत करीब 29 लाख टन रहने का अनुमान है, अगर 40 लाख टन चीनी को इथेनॉल में बदला भी जाता है, तो 30 सितंबर 2025 को भारत के पास करीब 90 लाख टन चीनी होगी.

आईसीई लंदन में सफेद रिफाइंड चीनी की कीमत करीब 527 डॉलर प्रति टन है. अगर निर्यात की अनुमति दी जाती है तो भारत को चीनी का मूल्य करीब 530 डॉलर प्रति टन मिल सकता है. वैश्विक बाजार में अच्छी कीमत पाने के लिए रिफाइंड चीनी के दस लाख टन तक निर्यात की अनुमति देने की गुंजाइश है.

उपर्युक्त कृषि उपज की मौजूदा वैश्विक मांग को देखते हुए सरकार को निर्यात नीति में तत्काल बदलाव करना चाहिए.

(डिस्क्लेमर: इस लेख में साझा की गई जानकारी और विचार लेखक के हैं. ये ईटीवी भारत की पॉलिसी को नहीं दर्शाते हैं.)

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