नई दिल्ली : विश्व व्यापार संगठन की मंत्रिस्तरीय बैठक तीन मार्च को अबु धाबी में संपन्न हुई. लेकिन इस बैठक का कोई सार्थक नतीजा नहीं निकल सका. परिणाम नहीं निकलने की वजह इस संगठन का ढांचा है.
हरेक सदस्य अपने हित को इसके सिस्टम से ऊपर रखता है. विश्व व्यापार संगठन का गठन व्यापार संबंधित विवादों के शांतिपूर्वक निपटारे के लिए किया गया था. लेकिन अमेरिका जैसे कुछ ताकतवर देशों ने चुनिंदा देशों के साथ मिलकर फ्री ट्रेड एग्रीमेंट बना लिया. इस एफटीए ने डब्लूटीओ के मूल सिद्धान्त को ही तिलांजलि दे दी.
अमेरिका ने 1993 में नॉर्थ अमेरिकन फ्री ट्रेड एग्रीमेंट बनाया. इसके तहत उसने सब्सिडाइज्ड कृषि उत्पादों को निर्यात करने की अनुमति हासिल कर ली. उसने मेक्सिको और अन्य देशों को निर्यात करना शुरू कर दिया. अमेरिकन कृषि उत्पादों की डंपिंग तो तभी शुरू हो गई थी. अमेरिका के इस रूख को देखकर अन्य देशों ने एफटीए का रास्ता अख्तियार कर लिया. दरअसल, एफटीए के तहत संबंधित देश डब्लूटीओ के नियमों को धता बताते हुए व्यापार कर सकते हैं. एफटीए की वजह से बड़े देशों को फायदा हो रहा है और छोटे देशों को नुकसान हो रहा है. यहां ताकतवर देश ही आगे बढ़ सकता है.
आप कह सकते हैं कि डब्लूटीओ भी संयुक्त राष्ट्र जैसा हो गया. अभी जो बैठक खत्म हुई, उसमें भारत और यूरोप दोनों ने कृषि को लेकर अपनी-अपनी बात रखी. यहां पर सब्सिडी और बाजार में पहुंच को लेकर मुद्दा गरम भी है.
भारत और उसके सहयोगी देशों की ओर से सबसे मुख्य मुद्दा था- खाद्य सुरक्षा के लिए पब्लिक स्टॉकहोल्डिंग. भारत जैसे करीब 80 देशों के लिए यह बहुत ही अहम विषय रहा है. भारत में पब्लिक स्टॉकहोल्डिंग के दो प्रमुख अवयव हैं. पहला- एमएसपी पर किसानों से फसल की खरीद करना. दूसरा- पीएम गरीब कल्याण योजना के तहत 81 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देना. इसके अलावा नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट के तहत सब्सिडाइज्ड फूड बेचना.
डब्लूटीओ का नियम सब्सिडी की सीमा पर रोक लगाता है. भारत और अफ्रीकी देश चाहते हैं कि इन समस्या का स्थायी समाधान निकले. इसके लिए दोनों मिलकर जी-33 बनाया. यह विकासशील देशों का एक समूह है. दिसंबर 2013 में डब्लूटीओ की बाली में हुई बैठक में इस पर संकल्प व्यक्त किया गया था. यह तय किया गया था कि सात दिसंबर 2013 तक जिन देशों के पीएसएच ने लिमिट बढ़ाई भी है, तो उसको लेकर एक एहतियात बरती जाएगी.
भारत चाहता है कि इस विषय पर एक सहमति बन जाए. वह चाहता है कि पब्लिक स्टॉकहोल्डिंग प्रोग्राम जारी रहे और भारत एमएसपी पर खरीद करता रहेगा. वह पीडीएस के लिए अनाज की खरीद जारी रखेगा. भारत ने कहा कि क्योंकि डब्लूटीओ की 2013 में हुई बैठक में यह तय हो चुका है, लिहाजा, इस विषय को आगे उठाने का कोई मतलब नहीं है. ब्राजील और कृषि निर्यातकों का समूह केर्न्स चाहता था कि बैठक में सभी मुद्दों पर चर्चा हो. अमेरिका और कृषि निर्यातक देश चाहते थे कि पब्लिक स़्टॉकहोल्डिंग (पीएसएच) पर रोक लगे.
पीएसएच में एक विशेष प्रावधान है. जिसके तहत इसे चुनौती नहीं दी जा सकती है. इसलिए भारत की स्थिति बेहतर है. उसे अपनी कृषि नीति में कोई बदलाव करने की भी जरूरत नहीं है. वैसे, कुछ किसान संगठनों ने भारत को विश्व व्यापार संगठन से बाहर निकलने की भी सलाह दी है. लेकिन ऐसे संगठन नहीं चाहते हैं कि दरअसल डब्लूटीओ किस तरह से काम करता है और बाहर निकलने का मतलब क्या होता है. अगर भारत डब्लूटीओ से बाहर निकल जाता है, तो वह अपने उत्पादों को प्रतियोगी कीमत पर निर्यात नहीं कर सकता है. वह किसी भी दूसरे देशों में लेबर को भी नहीं भेज सकता है. यह भारत के लिए आर्थिक कहर जैसा हो जाएगा.
हां, भारत ने जो मांग रखी है, वह जायज है. भारत ने सब्सिडी के मापने के तरीके पर सवाल उठाए हैं. डब्लूटीओ अभी भी 1986-88 के समय की कीमतों के आधार पर सब्सिडी का निर्धारण कर रहा है. इसके आधार पर ही पब्लिक स्टॉकहोल्डिंग तय किए जा रहे हैं. जिस वर्ष को आधार बनाकर निर्णय लिया जा रहा है, उसकी वजह से सब्सिडी अधिक दिखती है. लेकिन आज वैसी स्थिति नहीं है. भारत ने सब्सिडी गणना के तरीके में सुधार की मांग की है.
डब्लूटीओ की अगली बैठक जेनेवा में फिर से यह मुद्दा उठेगा. इस बैठक में विकास समझौते के लिए निवेश लाने के प्रयास पर चर्चा होगी, जिस पर अबु धाबी में 120 से अधिक देशों ने सहमति जताई है. हालांकि, भारत और द. अफ्रीका ने उनके इस प्रयास को विफल कर दिया था, क्योंकि उन्होंने कहा कि इसका व्यापार से कोई लेना-देना नहीं है.
2026 में कैमरून में बैठक होनी है. भारत नॉन ट्रेड मुद्दों जैसे जेंडर, एमएसएमई को उठा रहा है. यह उम्मीद जरूर की जानी चाहिए कि चाहे जो भी हो, भारत इतना सशक्त जरूर है, कि वह अपने हितों की रक्षा जरूर करेगा.
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