छत्तीसगढ़ का सरगुजा जिला अपनी समृद्ध सांस्कृतिक और विरासत के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें प्राचीन वास्तुकला, मूर्तिकला और ट्राइबल ट्रेडिशन शामिल हैं. सरगुजा नॉर्दन छत्तीसगढ़ में स्थित है और उत्तर प्रदेश, झारखंड, उड़ीसा और मध्य प्रदेश राज्यों के सीमा जिले से सटा है. इस क्षेत्र में प्रागैतिहासिक स्थल, आदिमानवों के रहने गुफाएं और प्राचीन स्मारक देखे जा सकते हैं. पुरातात्विक और ऐतिहासिक धरोहर सरगुजा में भी देखने को मिलते हैं. यहां एक ऐसा ओपन थियेटर है जिसे एशिया की सबसे प्राचीन नाट्यशाला माना जाता है, बगल के जिले सूरजपुर में देश का दूसरा राष्ट्रपति भवन है. वहीं, कला के क्षेत्र में सरगुजा के रजवार हाउस की भित्ति चित्र की कला भी बड़ी धरोहर है इस कला ने सरगुजा को देश विदेश में पहचान दिलाई है.
आप सोच रहे होंगे की राष्ट्रपति भवन तो दिल्ली में है फिर सरगुजा में राष्ट्रपति भवन का क्या काम? तो इस खबर में जानिए कि सरगुजा में राष्ट्रपति भवन क्यों है. दरअसल देश की आजादी के पहले डॉ राजेन्द्र प्रसाद स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सरगुजा में रहे थे. अंग्रेजो से बचने के लिए सरगुजा राजपरिवार ने उन्हें एक शिक्षक के रूप में पंडोनगर में रखा था, यहां राजेन्द्र बाबू पंडो जनजाति के बच्चो और बड़ों को पढ़ाते थे. समय बीता तो देश के पहले राष्ट्रपति वापस सरगुजा आये और उस घर में गये जहां वो रहा करते थे और उस दिन से उस घर को राष्ट्रपति भवन का नाम दिया गया.
दरअसल, देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद राष्ट्रपति बनने के बाद वो 1952 में सरगुजा आये और उसी स्थान पर गये जहां वो रहा करते थे. उस दिन के बाद से स्थानीय प्रशासन ने उस भवन का नाम राष्ट्रपति भवन रख दिया और इस तरह आज भी देश में दूसरा राष्ट्रपति भवन सरगुजा में मौजूद है.
सरगुजा का राष्ट्रपति भवन जाने के लिए आपको अम्बिकपुर से मनेन्द्रगढ़ रोड में 18 किलोमीटर दूर सिलिफीली या ट्रेन मार्ग से कमलपुर रेलवे स्टेशन जाना होगा. कमलपुर से राष्ट्रपति भवन की दूरी महज 2 किलोमीटर और सिलफिली से 3 किलोमीटर है. रामगढ़ जाने के लिए आपको अंबिकापुर से बिलासपुर मार्ग में 45 किलोमीटर दूर स्थित उदयपुर जाना होगा, उदयपुर से रामगढ़ 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
वहीं, रामगढ़ में स्थित नाट्यशाला को एशिया की सबसे प्राचीनतम नाट्यशाला माना गया है. सरगुजा जिले के रामगढ़ पहाड़ियों पर स्थित सीता बेंगरा गुफा देश की सबसे पुरानी नाट्यशाला है. यह पहाड़ी के नीचे एक ऐसा नेचुरल ओपन थियेटर जैसा बना हुआ है, जिस देखकर कोई भी उस दौर के आर्किटेक्ट कला का दीवाना हो सकता है. इस स्थान पर एक मंच है और मंच के सामने हजारो दर्शकों के बैठने की जगह है, जिसे आज भी देखा जा सकता है. इसके निर्माण में वास्तुकला का अद्भुत संयम देखने को मिलता है. इस थियेटर में मंच पर खड़े होकर बोलने पर आवाज लाउड और ईको होने लगती है. नाट्यशाला को ईको फ्री करने के लिए दीवारों में छेद किया गया है. वहीं, गुफा तक जाने के लिए पहाड़ियों को काटकर सीढ़ियां बनाई गई हैं.
सरगुजा के साहित्यकार संतोष दास कहते है की रामगढ़ की नाट्यशाला जैसा नाट्यशाला कहीं नही है ये काफी प्राचीन नाट्यशाला है. ये इतनी बड़ी धरोहर है की महाकवि कालिदास ने मेघदूतम की रचना इसी नाट्यशाला के उपर पर्वत में की थी.
सरगुजा की तीसरी बड़ी धरोहर यहां के रजवार हाउस की कला है जिसे भित्ति चित्र कहा जाता है इस कला ने भी सरगुजा को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई, स्वर्गीय सोना बाई और उनके बाद स्वर्गीय सुन्दरी बाई ने इस कला को विदेशों तक पहुंचाया था. एक विदेशी तो इस कला के इतने मुरीद हुए की वो सरगुजा पहुंच गए और उन्होंने सोना बाई के जीवन पर एक किताब लिख दी डाली. रजवार हाउस में बनने वाली भित्ति चित्र ने सरगुजा को विदेश में पहचान दिलाई है इसे भी संरक्षित करने की जरूरत है.