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भारत ने आर्मेनिया के साथ पहली बार रक्षा क्षेत्र को लेकर किया विचार विमर्श - Armenia

India-Armenia: भारत ने आर्मेनिया के साथ पहली बार डिफेंस को लेकर विचार-विमर्श किया. इसको लेकर आर्मेनिया के रक्षा मंत्रालय ने एक बयान जारी किया है.

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भारत -आर्मेनिया के बीच विचार विमर्श (Etv Bharat)
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By Aroonim Bhuyan

Published : May 17, 2024, 3:44 PM IST

नई दिल्ली: अजरबैजान के नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र से रूसी सेना की वापसी शुरू होने के एक महीने बाद भारत ने पड़ोसी मध्य एशियाई देश आर्मेनिया के साथ पहली बार रक्षा क्षेत्र को लेकर चर्चा की. 14 मई को येरेवन में आयोजित बैठक के बाद आर्मेनिया के रक्षा मंत्रालय ने एक बयान जारी किया है.

बयान के मुताबिक भारतीय पक्ष का नेतृत्व रक्षा मंत्रालय में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के संयुक्त सचिव विश्वेश नेगी ने किया, जबकि अर्मेनियाई पक्ष का नेतृत्व डिफेंस पॉलिसी एंड इंटरनेशन कॉओपरेशन विभाग प्रमुख लेवोन अयवज़्यान ने किया.

बयान के अनुसार परामर्श के बाद दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने एक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए. इस में वर्ष 2024-2025 के लिए भारत और आर्मेनिया के रक्षा मंत्रालयों के बीच एक सहयोग योजना को मंजूरी दी. इसमें द्विपक्षीय रक्षा सहयोग मुद्दों पर एक संयुक्त कार्य समूह की स्थापना का प्रावधान शामिल है.

भारत ने आर्मेनिया के साथ क्यों किया परामर्श?
मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस में एसोसिएट फेलो स्वस्ति राव के अनुसार भारत आर्मेनिया के दो प्रमुख रक्षा उपकरण सप्लायर्स में से एक है. राव ने ईटीवी भारत को बताया कि आर्मेनिया ने रक्षा उपकरण खरीद के लिए 1.5 मिलियन डॉलर का बजट आवंटित किया है. यह बैठक अजरबैजान के नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र से रूसी शांति सेना की वापसी शुरू होने के एक महीने बाद हुई.

उन्होंने बताया कि आर्मेनिया, नागोर्नो काराबाख पर अजरबैजान के साथ क्षेत्रीय संघर्ष में उसका समर्थन नहीं करने के लिए रूस से नाराज है. हालांकि आर्मेनिया सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (CSTO) का एक हिस्सा है, जिसका रूस भी सदस्य है., जबकि अजरबैजान CSTO का सदस्य नहीं है.

CSTO क्या है?
नाटो के समान, सीएसटीओ यूरेशिया में एक अंतरसरकारी सैन्य गठबंधन है, जिसमें छह राज्य शामिल हैं. इसे ताशकंद संधि के रूप में भी जाना जाता है, जिस पर 15 मई 1992 को कई पूर्व सोवियत गणराज्यों: आर्मेनिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान ने हस्ताक्षर किए थे. यह संधि 1994 में लागू हुई, जिसका उद्देश्य आपसी रक्षा के लिए एक रूपरेखा प्रदान करके सोवियत-पश्चात अंतरिक्ष में शांति और स्थिरता बनाए रखना था.

इस संधि में कहा गया है कि एक सदस्य राज्य के खिलाफ आक्रामकता का कार्य सभी सदस्यों के खिलाफ आक्रामकता का कार्य माना जाएगा, जो उन्हें एक-दूसरे की सहायता करने के लिए बाध्य करता है, जिसमें सशस्त्र बल का उपयोग भी शामिल है.

सीएसटीओ यूरेशियन क्षेत्र की सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण रोल अदा करता है. यह अपने सदस्य राज्यों की स्थिरता और सुरक्षा में योगदान देता है. अपनी चुनौतियों के बावजूद, संगठन पारंपरिक और गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों से निपटने के लिए बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य के अनुसार विकास और अनुकूलन जारी रखता है.

क्या है अर्मेनिया और अजरबैजान के बीच संघर्ष?
आर्मेनिया और अजरबैजान दक्षिण काकेशस के एक क्षेत्र विवादित नागोर्नो-काराबाख को लेकर तीन दशकों से अधिक समय से जातीय और क्षेत्रीय संघर्ष में शामिल रहे. 1988 में नागोर्नो-काराबाख में रहने वाले जातीय अर्मेनियाई लोगों ने तत्कालीन नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त ओब्लास्ट को सोवियत अजरबैजान से आर्मेनिया में ट्रांसफर करने की मांग की.

सोवियत संघ के पतन के बाद, ये तनाव एक युद्ध में बदल गया और दिसंबर 1991 में, नागोर्नो-काराबाख के अर्मेनियाई लोगों ने एक नागोर्नो-काराबाख गणराज्य में अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी. हालांकि स्थानीय अजरबैजानियों ने इसका विरोध किया. इस बीच पहला नागोर्नो-काराबाख युद्ध मई 1994 में युद्धविराम के साथ समाप्त हुआ, जिसमें अर्मेनियाई सेना ने नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त ओब्लास्ट के पूरे क्षेत्र के साथ-साथ अजरबैजान के सात जिलों को नियंत्रित कर लिया. गौरतलब है कि 1994 के युद्धविराम के बाद भी इस क्षेत्र पर रुक-रुक कर लड़ाई जारी रही.

सितंबर 2020 में एक बार फिर आर्टाख को लेकर आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच फिर से लड़ाई शुरू हो गई और अजरबैजान ने मुख्य रूप से क्षेत्र के दक्षिणी भाग में क्षेत्रों पर पुनः कब्जा कर लिया. इसके बाद 10 नवंबर, 2020 को आर्मेनिया, अजरबैजान और रूस के बीच हस्ताक्षरित एक युद्धविराम समझौते ने नए सिरे से लड़ाई को समाप्त करने की घोषणा की. इसके तहत आर्मेनिया अगले महीने में नागोर्नो-काराबाख के आसपास के शेष कब्जे वाले क्षेत्रों से हट जाएगा. समझौते में क्षेत्र में रूसी शांति सेना तैनात करने का प्रावधान शामिल था.

आर्मेनिया में भारत की क्या दिलचस्पी है?
भारत एक पैन-तुर्क साम्राज्य बनाने की तुर्की की शाही महत्वाकांक्षा से चिंतित है जो काकेशस और यूरेशिया के कुछ हिस्सों को कवर करेगा. तुर्की एक ऐसे साम्राज्य की कल्पना कर रहा है जिसमें वे सभी राष्ट्र और क्षेत्र शामिल होंगे जहां तुर्क भाषा बोली जाती है. भारत ने अजरबैजान और उसके सहयोगियों, पाकिस्तान और तुर्की की विस्तारवादी योजनाओं का विरोध करने का फैसला किया है.

अजरबैजान के सहयोगी के रूप में पाकिस्तान ने अपने संघर्षों में सहायता के लिए मध्य एशियाई राष्ट्र को सेना की आपूर्ति की है. बदले मेंअजरबैजान ने पाकिस्तान को भू-राजनीतिक, भू-आर्थिक और भू-रणनीतिक लाभ की पेशकश की है. अर्मेनियाई क्षेत्र को सीज करने का उद्देश्य तुर्की, अजरबैजान, पाकिस्तान और अन्य तुर्क-उन्मुख देशों तक निर्बाध पहुंच हासिल करना है.

वहीं, तुर्की, अजरबैजान और पाकिस्तान कश्मीर पर एक समान रुख रखते हैं, जबकि तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने 2019 में जम्मू और कश्मीर में भारत के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की तीखी निंदा की थी, अजरबैजानी अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि वे कश्मीर पर इस्लामाबाद के रुख का समर्थन करते हैं. यह भारत के लिए कूटनीतिक चिंता है.

आर्मेनिया का समर्थन करने का एक और कारण अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) है, जिसमें भारत की बड़ी हिस्सेदारी है. INSTC भारत, ईरान, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्ग का 7,200 किलोमीटर लंबा मल्टी-मॉडल नेटवर्क है. इस मार्ग में मुख्य रूप से भारत, ईरान, अजरबैजान और रूस से जहाज, रेल और सड़क के माध्यम से माल ढुलाई शामिल है.

राव ने कहा, 'हालांकि भारत के अजरबैजान के साथ भी अच्छे संबंध हैं, लेकिन नई दिल्ली की मुख्य चिंता उस देश के तुर्की और पाकिस्तान की धुरी में पड़ने को लेकर है.' साथ ही उन्होंने कहा कि आर्मेनिया के साथ रक्षा सहयोग करके भारत का रूस को नाराज करने का कोई इरादा नहीं है.उन्होंने कहा, 'भारत काकेशस में शांति और स्थिरता चाहता है.'

भारत-आर्मेनिया रक्षा सहयोग कैसा रहा?
हाल के वर्षों में रक्षा सहयोग भारत-आर्मेनिया संबंधों के प्रमुख स्तंभ के रूप में उभरा है. पिछले साल भारत ने स्वदेशी रूप से विकसित मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली आकाश मिसाइल (एसएएम) के निर्यात के लिए 6,000 करोड़ रुपये का सौदा किया था.

आकाश एसएएम प्रणाली के अलावा नई दिल्ली येरेवन को महत्वपूर्ण सैन्य उपकरणों की बिक्री में लगी हुई है. मार्च 2020 में आर्मेनिया ने पहला अंतरराष्ट्रीय ग्राहक बनकर 40 मिलियन डॉलर की लागत से भारतीय स्वाति रडार प्रणाली का अधिग्रहण किया. यह सिस्टम, डीआरडीओ और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास है, जो दुश्मन के आयुधों के खिलाफ काउंटर-बैटरी फायर का पता लगाती है.

सितंबर 2022 में पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर, एंटी-टैंक रॉकेट और विभिन्न प्रकार के गोला-बारूद के लिए 245 मिलियन डॉलर के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए. आर्मेनिया के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाने में भारत के प्रमुख हित हैं.पिछले कुछ साल में भारत-आर्मेनिया संबंध रणनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हो गए हैं.

यह भी पढ़ें- क्या है 'दुबई अनलॉक्ड', जिसकी जांच से दुबई में विदेशी लोगों की प्रॉपर्टी का हुआ खुलासा

नई दिल्ली: अजरबैजान के नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र से रूसी सेना की वापसी शुरू होने के एक महीने बाद भारत ने पड़ोसी मध्य एशियाई देश आर्मेनिया के साथ पहली बार रक्षा क्षेत्र को लेकर चर्चा की. 14 मई को येरेवन में आयोजित बैठक के बाद आर्मेनिया के रक्षा मंत्रालय ने एक बयान जारी किया है.

बयान के मुताबिक भारतीय पक्ष का नेतृत्व रक्षा मंत्रालय में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के संयुक्त सचिव विश्वेश नेगी ने किया, जबकि अर्मेनियाई पक्ष का नेतृत्व डिफेंस पॉलिसी एंड इंटरनेशन कॉओपरेशन विभाग प्रमुख लेवोन अयवज़्यान ने किया.

बयान के अनुसार परामर्श के बाद दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने एक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए. इस में वर्ष 2024-2025 के लिए भारत और आर्मेनिया के रक्षा मंत्रालयों के बीच एक सहयोग योजना को मंजूरी दी. इसमें द्विपक्षीय रक्षा सहयोग मुद्दों पर एक संयुक्त कार्य समूह की स्थापना का प्रावधान शामिल है.

भारत ने आर्मेनिया के साथ क्यों किया परामर्श?
मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस में एसोसिएट फेलो स्वस्ति राव के अनुसार भारत आर्मेनिया के दो प्रमुख रक्षा उपकरण सप्लायर्स में से एक है. राव ने ईटीवी भारत को बताया कि आर्मेनिया ने रक्षा उपकरण खरीद के लिए 1.5 मिलियन डॉलर का बजट आवंटित किया है. यह बैठक अजरबैजान के नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र से रूसी शांति सेना की वापसी शुरू होने के एक महीने बाद हुई.

उन्होंने बताया कि आर्मेनिया, नागोर्नो काराबाख पर अजरबैजान के साथ क्षेत्रीय संघर्ष में उसका समर्थन नहीं करने के लिए रूस से नाराज है. हालांकि आर्मेनिया सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (CSTO) का एक हिस्सा है, जिसका रूस भी सदस्य है., जबकि अजरबैजान CSTO का सदस्य नहीं है.

CSTO क्या है?
नाटो के समान, सीएसटीओ यूरेशिया में एक अंतरसरकारी सैन्य गठबंधन है, जिसमें छह राज्य शामिल हैं. इसे ताशकंद संधि के रूप में भी जाना जाता है, जिस पर 15 मई 1992 को कई पूर्व सोवियत गणराज्यों: आर्मेनिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान ने हस्ताक्षर किए थे. यह संधि 1994 में लागू हुई, जिसका उद्देश्य आपसी रक्षा के लिए एक रूपरेखा प्रदान करके सोवियत-पश्चात अंतरिक्ष में शांति और स्थिरता बनाए रखना था.

इस संधि में कहा गया है कि एक सदस्य राज्य के खिलाफ आक्रामकता का कार्य सभी सदस्यों के खिलाफ आक्रामकता का कार्य माना जाएगा, जो उन्हें एक-दूसरे की सहायता करने के लिए बाध्य करता है, जिसमें सशस्त्र बल का उपयोग भी शामिल है.

सीएसटीओ यूरेशियन क्षेत्र की सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण रोल अदा करता है. यह अपने सदस्य राज्यों की स्थिरता और सुरक्षा में योगदान देता है. अपनी चुनौतियों के बावजूद, संगठन पारंपरिक और गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों से निपटने के लिए बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य के अनुसार विकास और अनुकूलन जारी रखता है.

क्या है अर्मेनिया और अजरबैजान के बीच संघर्ष?
आर्मेनिया और अजरबैजान दक्षिण काकेशस के एक क्षेत्र विवादित नागोर्नो-काराबाख को लेकर तीन दशकों से अधिक समय से जातीय और क्षेत्रीय संघर्ष में शामिल रहे. 1988 में नागोर्नो-काराबाख में रहने वाले जातीय अर्मेनियाई लोगों ने तत्कालीन नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त ओब्लास्ट को सोवियत अजरबैजान से आर्मेनिया में ट्रांसफर करने की मांग की.

सोवियत संघ के पतन के बाद, ये तनाव एक युद्ध में बदल गया और दिसंबर 1991 में, नागोर्नो-काराबाख के अर्मेनियाई लोगों ने एक नागोर्नो-काराबाख गणराज्य में अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी. हालांकि स्थानीय अजरबैजानियों ने इसका विरोध किया. इस बीच पहला नागोर्नो-काराबाख युद्ध मई 1994 में युद्धविराम के साथ समाप्त हुआ, जिसमें अर्मेनियाई सेना ने नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त ओब्लास्ट के पूरे क्षेत्र के साथ-साथ अजरबैजान के सात जिलों को नियंत्रित कर लिया. गौरतलब है कि 1994 के युद्धविराम के बाद भी इस क्षेत्र पर रुक-रुक कर लड़ाई जारी रही.

सितंबर 2020 में एक बार फिर आर्टाख को लेकर आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच फिर से लड़ाई शुरू हो गई और अजरबैजान ने मुख्य रूप से क्षेत्र के दक्षिणी भाग में क्षेत्रों पर पुनः कब्जा कर लिया. इसके बाद 10 नवंबर, 2020 को आर्मेनिया, अजरबैजान और रूस के बीच हस्ताक्षरित एक युद्धविराम समझौते ने नए सिरे से लड़ाई को समाप्त करने की घोषणा की. इसके तहत आर्मेनिया अगले महीने में नागोर्नो-काराबाख के आसपास के शेष कब्जे वाले क्षेत्रों से हट जाएगा. समझौते में क्षेत्र में रूसी शांति सेना तैनात करने का प्रावधान शामिल था.

आर्मेनिया में भारत की क्या दिलचस्पी है?
भारत एक पैन-तुर्क साम्राज्य बनाने की तुर्की की शाही महत्वाकांक्षा से चिंतित है जो काकेशस और यूरेशिया के कुछ हिस्सों को कवर करेगा. तुर्की एक ऐसे साम्राज्य की कल्पना कर रहा है जिसमें वे सभी राष्ट्र और क्षेत्र शामिल होंगे जहां तुर्क भाषा बोली जाती है. भारत ने अजरबैजान और उसके सहयोगियों, पाकिस्तान और तुर्की की विस्तारवादी योजनाओं का विरोध करने का फैसला किया है.

अजरबैजान के सहयोगी के रूप में पाकिस्तान ने अपने संघर्षों में सहायता के लिए मध्य एशियाई राष्ट्र को सेना की आपूर्ति की है. बदले मेंअजरबैजान ने पाकिस्तान को भू-राजनीतिक, भू-आर्थिक और भू-रणनीतिक लाभ की पेशकश की है. अर्मेनियाई क्षेत्र को सीज करने का उद्देश्य तुर्की, अजरबैजान, पाकिस्तान और अन्य तुर्क-उन्मुख देशों तक निर्बाध पहुंच हासिल करना है.

वहीं, तुर्की, अजरबैजान और पाकिस्तान कश्मीर पर एक समान रुख रखते हैं, जबकि तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने 2019 में जम्मू और कश्मीर में भारत के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की तीखी निंदा की थी, अजरबैजानी अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि वे कश्मीर पर इस्लामाबाद के रुख का समर्थन करते हैं. यह भारत के लिए कूटनीतिक चिंता है.

आर्मेनिया का समर्थन करने का एक और कारण अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) है, जिसमें भारत की बड़ी हिस्सेदारी है. INSTC भारत, ईरान, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्ग का 7,200 किलोमीटर लंबा मल्टी-मॉडल नेटवर्क है. इस मार्ग में मुख्य रूप से भारत, ईरान, अजरबैजान और रूस से जहाज, रेल और सड़क के माध्यम से माल ढुलाई शामिल है.

राव ने कहा, 'हालांकि भारत के अजरबैजान के साथ भी अच्छे संबंध हैं, लेकिन नई दिल्ली की मुख्य चिंता उस देश के तुर्की और पाकिस्तान की धुरी में पड़ने को लेकर है.' साथ ही उन्होंने कहा कि आर्मेनिया के साथ रक्षा सहयोग करके भारत का रूस को नाराज करने का कोई इरादा नहीं है.उन्होंने कहा, 'भारत काकेशस में शांति और स्थिरता चाहता है.'

भारत-आर्मेनिया रक्षा सहयोग कैसा रहा?
हाल के वर्षों में रक्षा सहयोग भारत-आर्मेनिया संबंधों के प्रमुख स्तंभ के रूप में उभरा है. पिछले साल भारत ने स्वदेशी रूप से विकसित मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली आकाश मिसाइल (एसएएम) के निर्यात के लिए 6,000 करोड़ रुपये का सौदा किया था.

आकाश एसएएम प्रणाली के अलावा नई दिल्ली येरेवन को महत्वपूर्ण सैन्य उपकरणों की बिक्री में लगी हुई है. मार्च 2020 में आर्मेनिया ने पहला अंतरराष्ट्रीय ग्राहक बनकर 40 मिलियन डॉलर की लागत से भारतीय स्वाति रडार प्रणाली का अधिग्रहण किया. यह सिस्टम, डीआरडीओ और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास है, जो दुश्मन के आयुधों के खिलाफ काउंटर-बैटरी फायर का पता लगाती है.

सितंबर 2022 में पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर, एंटी-टैंक रॉकेट और विभिन्न प्रकार के गोला-बारूद के लिए 245 मिलियन डॉलर के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए. आर्मेनिया के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाने में भारत के प्रमुख हित हैं.पिछले कुछ साल में भारत-आर्मेनिया संबंध रणनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हो गए हैं.

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