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क्या ईरान के नए राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन अपने सुधारवादी एजेंडे को पूरा कर पाएंगे? - Iran President Election

Who is Masoud Pezeshkian: ईरान के नए राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान पेशे से कार्डियक सर्जन हैं. वह ईरान के स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके हैं. वह पहले भी राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ चुके हैं.

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By Aroonim Bhuyan

Published : Jul 6, 2024, 3:15 PM IST

Masoud Pezeshkian
मसूद पेजेशकियान (AP)

तेहरान: ईरान के राष्ट्रपति पद के चुनाव नतीजे सामने आ गए हैं. चुनाव में सुधारवादी नेता मसूद पेजेशकियान की जीत हुई है. उन्होंने 30 मिलियन से अधिक मतों में से 53 फीसदी से अधिक वोट हासिल किए और कट्टरपंथी सईद जलीली को शिकस्त दी. वह हाल ही में हेलीकॉप्टर हादसे मारे गए इब्राहिम रईसी की जगह लेंगे.

रईसी की मौत के बाद ईरान में नए राष्ट्रपति के लिए 28 मई को पहले चरण का मतदान हुआ था. चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिलने के बाद शुक्रवार 5 जुलाई को फिर से वोटिंग हुई और मसूद पेजेशकियान ने जीत हासिल की. पेजेशकियान को एक उदारवादी और सुधारवादी नेता माना जाता है. चुनाव अभियान के दौरान भी उन्होंने सख्त हिजाब कानून को आसान बनाने का वादा किया था.

स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं मसूद पेजेशकियान
29 सितंबर 1954 को उत्तर-पश्चिमी ईरान के महाबाद में अजोरी पिता और कुर्दिश मां के घर जन्मे, पेजेशकियन पेशे से कार्डियक सर्जन हैं. वह ईरान के स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके हैं. उन्होंने ईरान-इराक युद्ध के दौरान मेडिकल टीम को फ्रंट मोर्चे पर भेजा था. इससे पहले उन्होंने 2013 और 2021 में भी राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली.

पेजेशकियान पूर्व राष्ट्रपति हसन रूहानी के करीबी माने जाते हैं. पेजेशकियान को हिजाब के सख्त कानून का विरोधी माना जाता है. 1994 में एक दुखद कार दुर्घटना में उनकी पत्नी और बेटी की मृत्यु हो गई. इस घटना के बाद उन्होंने अपने बाकी तीन बच्चों को अकेले ही पाला.

अजेरी, फारसी और कुर्द भाषा बोलते हैं पेजेशकियान
अजेरी, फारसी और कुर्द भाषा बोलने वाले पेजेशकियन पश्चिमी ईरान से आने वाले देश के पहले राष्ट्रपति हैं. क्षेत्र की महत्वपूर्ण धार्मिक और जातीय विविधता को देखते हुए, लोग अधिक सहिष्णु शासन की उम्मीद कर रहे हैं और उनके राष्ट्रपति पद का जश्न मना रहे हैं.

ईरान के शिया थियोलॉजी को स्वीकार करते हुए पेजेशकियन ने सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को राज्य के मामलों पर अंतिम अधिकार के रूप में मान्यता दी है. बता दें ईरान की क्लेरिकल और गणतंत्र शासन के डुअल सिस्टम के तहत राष्ट्रपति परमाणु मामलों या मिलिशिया समर्थन पर प्रमुख नीतिगत बदलाव नहीं कर सकते हैं. लेकिन राष्ट्रपति ईरान की नीति दिशा को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं.

तबरीज विश्वविद्यालय में वामपंथियों का कब्जा
ईरान में शाही शासन के अंत के बाद देश के विश्वविद्यालयों, खासकर तबरीज विश्वविद्यालय में राजनीति पर वामपंथियों (कम्युनिस्टों) का दबदबा था. विश्वविद्यालय में प्रवेश करने वाले और संघर्ष का रास्ता अपनाने वाले छात्र आर्थिक वामपंथी आंदोलन से प्रभावित थे, क्योंकि उस समय विश्वविद्यालय का माहौल पूंजीवाद विरोधी और बुर्जुआ विरोधी था. इतना ही नहीं मुस्लिम छात्र सार्वजनिक रूप से प्रार्थना भी नहीं कर सकते थे. छात्र संगठन वामपंथी समूहों के हाथों में थे और विश्वविद्यालय में धार्मिक समूहों की उपस्थिति कमजोर थी.

इसी समय डॉ पेजेशकियन ने तबरीज विश्वविद्यालय में प्रवेश किया. मौजूदा माहौल की परवाह किए बिना, उन्होंने कुरान और शिया मुसलमानों के एक प्रमुख ग्रंथ नहज अल-बलागाह की कक्षाएं आयोजित कीं. इस तरह वह मुस्लिम छात्रों को एकजुट कर पाए. धीरे-धीरे, इन कक्षाओं में भाग लेने वाले छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई और कक्षाएं विशेष रूप से लोकप्रिय हो गईं. पेजेशकियन की राजनीतिक यात्रा तब शुरू हुई जब वे 1997 में तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद खातमी के प्रशासन में उप स्वास्थ्य मंत्री के रूप में शामिल हुए. उन्हें चार साल बाद स्वास्थ्य मंत्री नियुक्त किया गया. वह 2001 से 2005 तक स्वास्थ्य मंत्री के रूप कार्यरत रहे.

सुधारवादी के रूप में छवि
ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (IRGC) के समर्थक डॉ पेजेशकियन कई बार ईरान में मौजूदा व्यवस्था की आलोचना कर चुके हैं. 2009 में राष्ट्रपति चुनाव के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान, उन्होंने प्रदर्शनकारियों से निपटने के तरीके की आलोचना की और कहा कि लोगों के साथ जंगली जानवर जैसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए.

ईरान में आर्थिक न्याय की मांग करने वाले लोगों द्वारा 2018 में किए गए विरोध प्रदर्शन के दौरान डॉ पेजेशकियन ने कहा कि प्रदर्शनकारियों से निपटने का अधिकारियों का तरीका वैज्ञानिक और बौद्धिक रूप से गलत था. जब 2002 में अब विश्व प्रसिद्ध हिजाब मामले में पुलिस हिरासत में महसा अमिनी की मौत के बाद लोग सड़कों पर उतरे थे, तो उन्होंने घटना के संबंध में एक आकलन और स्पष्टीकरण टीम के गठन की मांग की थी.

डॉ पेजेशकियन हिजाब सहित महिला-केंद्रित मुद्दों के बारे में मुखर रहे हैं और उन्होंने इस्लामिक ड्रेस कोड बिल के कार्यान्वयन पर संसदीय विधेयक का विरोध किया. उन्होंने साथी सुधारवादी हसन रूहानी के राष्ट्रपति पद के दौरान किए गए 2015 के ईरान परमाणु समझौते का भी जोरदार बचाव किया. इस साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में भाग लेने के लिए ईरान की गार्जियन काउंसिल द्वारा चुने गए छह उम्मीदवारों में से, डॉ. पेजेशकियन एकमात्र ज्ञात सुधारवादी हैं.

चुनावों से पहले राष्ट्रपति पद की बहस के दौरान, डॉ. पेजेशकियन घरेलू और विदेश नीति के मुद्दों पर बहुत मुखर रहे. उन्होंने संकेत दिया कि वे पश्चिम के साथ कूटनीतिक जुड़ाव के लिए तैयार हैं और आर्थिक और सांस्कृतिक सुधारों को शुरू करने के लिए तैयार हैं. उन्होंने यह विचार व्यक्त किया कि पश्चिमी प्रतिबंधों ने संभावित व्यापार भागीदारों को ईरान के साथ जुड़ने से रोक दिया है. डॉ पेजेशकियन की उम्मीदवारी का समर्थन पूर्व सुधारवादी राजनेताओं और मंत्रियों ने किया, जिनमें जावेद जरीफ भी शामिल हैं, जिन्होंने रूहानी के अधीन विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया. डॉ पेजेशकियन ईरान के राष्ट्रपति बनने वाले पहले सुधारवादी नहीं हैं. खत्तामी, जिनके अधीन डॉ. पेजेशकियन ने स्वास्थ्य मंत्री के रूप में कार्य किया, एक सुधारवादी थे. रूहानी भी 2013 से 2021 तक राष्ट्रपति रहे.

इराक और जॉर्डन में भारत के पूर्व राजदूत आर दयाकर, जिन्होंने विदेश मंत्रालय के पश्चिम एशिया डेस्क में भी काम किया है, के अनुसार डॉ. पेजेशकियन का चुनाव ईरान में सुधारों के लिए लोकप्रिय मूड को दर्शाता है. दयाकर ने ईटीवी भारत से कहा, "हालांकि, ईरानी संदर्भ में सुधारों का मतलब राजनीतिक क्षेत्र के बजाय सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में प्रगतिशील परिवर्तन है. रूढ़िवादी आसानी से सुधारों के लिए जगह नहीं देंगे."

उन्होंने कहा कि सुधार के मोर्चे पर अपने न्यूनतम और अधिकतम उद्देश्यों के बीच वह खुद को पूर्व तक ही सीमित रखेंगे. ईरान का राष्ट्रपति, चाहे वह किसी भी खेमे से आता हो, केवल ईरानी नीतियों के लिए स्वर निर्धारित कर सकता है. सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ही सभी नीतिगत मामलों में अंतिम निर्णय लेते हैं.

डॉ पेजेशकियन के नेतृत्व में भारत-ईरान संबंध
दयाकर के अनुसार डॉ पेजेशकियन के चुनाव से भारत-ईरान संबंधों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. उन्होंने कहा, "एक सुधारवादी के रूप में उनकी प्रतिष्ठा से उनके राष्ट्रपति पद के दौरान ईरान के प्रति पश्चिमी शत्रुता कम होने की संभावना है. यह भारत-ईरान संबंधों के लिए भी शुभ संकेत है."

दयाकर ने बताया कि भारत और ईरान के बीच सभ्यतागत संबंध हैं, भले ही पश्चिम एशियाई राष्ट्र का राष्ट्रपति कोई भी हो. उन्होंने कहा, "डॉ. पेजेशकियन के चुनाव से भारत-ईरान संबंधों की प्रकृति पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि इसकी अपनी निरंतरता और गति है."

हालांकि, नई दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा के प्रति डॉ पेजेशकियन की नीतियों और दृष्टिकोण पर नजर रखेगी. अन्य ईरानी नेताओं की तरह, चाहे वे सुधारवादी हों या कट्टरपंथी, डॉ. पेजेशकियन अपने यहूदी विरोधी रुख के लिए जाने जाते हैं. गाजा में इजरायल और हमास के बीच युद्ध के बीच भारत सावधानीपूर्वक संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है और डॉ. पेजेशकियन का दृष्टिकोण नई दिल्ली के लिए विशेष रूप से दिलचस्प होगा.

ईरान भारत को कच्चे तेल का एक प्रमुख सप्लायर भी है. चल रहे इजरायल-हमास और रूस-यूक्रेन युद्धों को देखते हुए, जिसने भू-राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दिया है, भारत को सस्ते कच्चे तेल की आपूर्ति के लिए पहले से कहीं अधिक ईरान पर निर्भर रहना होगा.

भारत ईरान में चाबहार बंदरगाह में भी भारी निवेश कर रहा है, जो अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. डॉ. पेजेशकियन के पूर्ववर्ती रईसी ने इस प्रयास में भारत का समर्थन किया था. अब यह देखना बाकी है कि क्या डॉ. पेजेशकियन तेहरान के दृष्टिकोण में निरंतरता बनाए रखेंगे.

यह भी पढ़ें- ईरान राष्ट्रपति चुनाव: सुधारवादी नेता मसूद पेजेशकियान की जीत, 28 लाख वोटों से सईद जलीली को दी मात

तेहरान: ईरान के राष्ट्रपति पद के चुनाव नतीजे सामने आ गए हैं. चुनाव में सुधारवादी नेता मसूद पेजेशकियान की जीत हुई है. उन्होंने 30 मिलियन से अधिक मतों में से 53 फीसदी से अधिक वोट हासिल किए और कट्टरपंथी सईद जलीली को शिकस्त दी. वह हाल ही में हेलीकॉप्टर हादसे मारे गए इब्राहिम रईसी की जगह लेंगे.

रईसी की मौत के बाद ईरान में नए राष्ट्रपति के लिए 28 मई को पहले चरण का मतदान हुआ था. चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिलने के बाद शुक्रवार 5 जुलाई को फिर से वोटिंग हुई और मसूद पेजेशकियान ने जीत हासिल की. पेजेशकियान को एक उदारवादी और सुधारवादी नेता माना जाता है. चुनाव अभियान के दौरान भी उन्होंने सख्त हिजाब कानून को आसान बनाने का वादा किया था.

स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं मसूद पेजेशकियान
29 सितंबर 1954 को उत्तर-पश्चिमी ईरान के महाबाद में अजोरी पिता और कुर्दिश मां के घर जन्मे, पेजेशकियन पेशे से कार्डियक सर्जन हैं. वह ईरान के स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके हैं. उन्होंने ईरान-इराक युद्ध के दौरान मेडिकल टीम को फ्रंट मोर्चे पर भेजा था. इससे पहले उन्होंने 2013 और 2021 में भी राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली.

पेजेशकियान पूर्व राष्ट्रपति हसन रूहानी के करीबी माने जाते हैं. पेजेशकियान को हिजाब के सख्त कानून का विरोधी माना जाता है. 1994 में एक दुखद कार दुर्घटना में उनकी पत्नी और बेटी की मृत्यु हो गई. इस घटना के बाद उन्होंने अपने बाकी तीन बच्चों को अकेले ही पाला.

अजेरी, फारसी और कुर्द भाषा बोलते हैं पेजेशकियान
अजेरी, फारसी और कुर्द भाषा बोलने वाले पेजेशकियन पश्चिमी ईरान से आने वाले देश के पहले राष्ट्रपति हैं. क्षेत्र की महत्वपूर्ण धार्मिक और जातीय विविधता को देखते हुए, लोग अधिक सहिष्णु शासन की उम्मीद कर रहे हैं और उनके राष्ट्रपति पद का जश्न मना रहे हैं.

ईरान के शिया थियोलॉजी को स्वीकार करते हुए पेजेशकियन ने सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को राज्य के मामलों पर अंतिम अधिकार के रूप में मान्यता दी है. बता दें ईरान की क्लेरिकल और गणतंत्र शासन के डुअल सिस्टम के तहत राष्ट्रपति परमाणु मामलों या मिलिशिया समर्थन पर प्रमुख नीतिगत बदलाव नहीं कर सकते हैं. लेकिन राष्ट्रपति ईरान की नीति दिशा को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं.

तबरीज विश्वविद्यालय में वामपंथियों का कब्जा
ईरान में शाही शासन के अंत के बाद देश के विश्वविद्यालयों, खासकर तबरीज विश्वविद्यालय में राजनीति पर वामपंथियों (कम्युनिस्टों) का दबदबा था. विश्वविद्यालय में प्रवेश करने वाले और संघर्ष का रास्ता अपनाने वाले छात्र आर्थिक वामपंथी आंदोलन से प्रभावित थे, क्योंकि उस समय विश्वविद्यालय का माहौल पूंजीवाद विरोधी और बुर्जुआ विरोधी था. इतना ही नहीं मुस्लिम छात्र सार्वजनिक रूप से प्रार्थना भी नहीं कर सकते थे. छात्र संगठन वामपंथी समूहों के हाथों में थे और विश्वविद्यालय में धार्मिक समूहों की उपस्थिति कमजोर थी.

इसी समय डॉ पेजेशकियन ने तबरीज विश्वविद्यालय में प्रवेश किया. मौजूदा माहौल की परवाह किए बिना, उन्होंने कुरान और शिया मुसलमानों के एक प्रमुख ग्रंथ नहज अल-बलागाह की कक्षाएं आयोजित कीं. इस तरह वह मुस्लिम छात्रों को एकजुट कर पाए. धीरे-धीरे, इन कक्षाओं में भाग लेने वाले छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई और कक्षाएं विशेष रूप से लोकप्रिय हो गईं. पेजेशकियन की राजनीतिक यात्रा तब शुरू हुई जब वे 1997 में तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद खातमी के प्रशासन में उप स्वास्थ्य मंत्री के रूप में शामिल हुए. उन्हें चार साल बाद स्वास्थ्य मंत्री नियुक्त किया गया. वह 2001 से 2005 तक स्वास्थ्य मंत्री के रूप कार्यरत रहे.

सुधारवादी के रूप में छवि
ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (IRGC) के समर्थक डॉ पेजेशकियन कई बार ईरान में मौजूदा व्यवस्था की आलोचना कर चुके हैं. 2009 में राष्ट्रपति चुनाव के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान, उन्होंने प्रदर्शनकारियों से निपटने के तरीके की आलोचना की और कहा कि लोगों के साथ जंगली जानवर जैसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए.

ईरान में आर्थिक न्याय की मांग करने वाले लोगों द्वारा 2018 में किए गए विरोध प्रदर्शन के दौरान डॉ पेजेशकियन ने कहा कि प्रदर्शनकारियों से निपटने का अधिकारियों का तरीका वैज्ञानिक और बौद्धिक रूप से गलत था. जब 2002 में अब विश्व प्रसिद्ध हिजाब मामले में पुलिस हिरासत में महसा अमिनी की मौत के बाद लोग सड़कों पर उतरे थे, तो उन्होंने घटना के संबंध में एक आकलन और स्पष्टीकरण टीम के गठन की मांग की थी.

डॉ पेजेशकियन हिजाब सहित महिला-केंद्रित मुद्दों के बारे में मुखर रहे हैं और उन्होंने इस्लामिक ड्रेस कोड बिल के कार्यान्वयन पर संसदीय विधेयक का विरोध किया. उन्होंने साथी सुधारवादी हसन रूहानी के राष्ट्रपति पद के दौरान किए गए 2015 के ईरान परमाणु समझौते का भी जोरदार बचाव किया. इस साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में भाग लेने के लिए ईरान की गार्जियन काउंसिल द्वारा चुने गए छह उम्मीदवारों में से, डॉ. पेजेशकियन एकमात्र ज्ञात सुधारवादी हैं.

चुनावों से पहले राष्ट्रपति पद की बहस के दौरान, डॉ. पेजेशकियन घरेलू और विदेश नीति के मुद्दों पर बहुत मुखर रहे. उन्होंने संकेत दिया कि वे पश्चिम के साथ कूटनीतिक जुड़ाव के लिए तैयार हैं और आर्थिक और सांस्कृतिक सुधारों को शुरू करने के लिए तैयार हैं. उन्होंने यह विचार व्यक्त किया कि पश्चिमी प्रतिबंधों ने संभावित व्यापार भागीदारों को ईरान के साथ जुड़ने से रोक दिया है. डॉ पेजेशकियन की उम्मीदवारी का समर्थन पूर्व सुधारवादी राजनेताओं और मंत्रियों ने किया, जिनमें जावेद जरीफ भी शामिल हैं, जिन्होंने रूहानी के अधीन विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया. डॉ पेजेशकियन ईरान के राष्ट्रपति बनने वाले पहले सुधारवादी नहीं हैं. खत्तामी, जिनके अधीन डॉ. पेजेशकियन ने स्वास्थ्य मंत्री के रूप में कार्य किया, एक सुधारवादी थे. रूहानी भी 2013 से 2021 तक राष्ट्रपति रहे.

इराक और जॉर्डन में भारत के पूर्व राजदूत आर दयाकर, जिन्होंने विदेश मंत्रालय के पश्चिम एशिया डेस्क में भी काम किया है, के अनुसार डॉ. पेजेशकियन का चुनाव ईरान में सुधारों के लिए लोकप्रिय मूड को दर्शाता है. दयाकर ने ईटीवी भारत से कहा, "हालांकि, ईरानी संदर्भ में सुधारों का मतलब राजनीतिक क्षेत्र के बजाय सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में प्रगतिशील परिवर्तन है. रूढ़िवादी आसानी से सुधारों के लिए जगह नहीं देंगे."

उन्होंने कहा कि सुधार के मोर्चे पर अपने न्यूनतम और अधिकतम उद्देश्यों के बीच वह खुद को पूर्व तक ही सीमित रखेंगे. ईरान का राष्ट्रपति, चाहे वह किसी भी खेमे से आता हो, केवल ईरानी नीतियों के लिए स्वर निर्धारित कर सकता है. सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ही सभी नीतिगत मामलों में अंतिम निर्णय लेते हैं.

डॉ पेजेशकियन के नेतृत्व में भारत-ईरान संबंध
दयाकर के अनुसार डॉ पेजेशकियन के चुनाव से भारत-ईरान संबंधों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. उन्होंने कहा, "एक सुधारवादी के रूप में उनकी प्रतिष्ठा से उनके राष्ट्रपति पद के दौरान ईरान के प्रति पश्चिमी शत्रुता कम होने की संभावना है. यह भारत-ईरान संबंधों के लिए भी शुभ संकेत है."

दयाकर ने बताया कि भारत और ईरान के बीच सभ्यतागत संबंध हैं, भले ही पश्चिम एशियाई राष्ट्र का राष्ट्रपति कोई भी हो. उन्होंने कहा, "डॉ. पेजेशकियन के चुनाव से भारत-ईरान संबंधों की प्रकृति पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि इसकी अपनी निरंतरता और गति है."

हालांकि, नई दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा के प्रति डॉ पेजेशकियन की नीतियों और दृष्टिकोण पर नजर रखेगी. अन्य ईरानी नेताओं की तरह, चाहे वे सुधारवादी हों या कट्टरपंथी, डॉ. पेजेशकियन अपने यहूदी विरोधी रुख के लिए जाने जाते हैं. गाजा में इजरायल और हमास के बीच युद्ध के बीच भारत सावधानीपूर्वक संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है और डॉ. पेजेशकियन का दृष्टिकोण नई दिल्ली के लिए विशेष रूप से दिलचस्प होगा.

ईरान भारत को कच्चे तेल का एक प्रमुख सप्लायर भी है. चल रहे इजरायल-हमास और रूस-यूक्रेन युद्धों को देखते हुए, जिसने भू-राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दिया है, भारत को सस्ते कच्चे तेल की आपूर्ति के लिए पहले से कहीं अधिक ईरान पर निर्भर रहना होगा.

भारत ईरान में चाबहार बंदरगाह में भी भारी निवेश कर रहा है, जो अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. डॉ. पेजेशकियन के पूर्ववर्ती रईसी ने इस प्रयास में भारत का समर्थन किया था. अब यह देखना बाकी है कि क्या डॉ. पेजेशकियन तेहरान के दृष्टिकोण में निरंतरता बनाए रखेंगे.

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