हैदराबाद : पिछले दो दिनों से दुबई में हुई बारिश ने 75 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. एक दिन में ही साल भर की बारिश हो गई. एयरपोर्ट से लेकर मॉल तक प्रभावित हैं. लोग यह समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर इस रेगिस्तानी इलाके में इतनी बारिश कैसे हो गई. वह इलाका जहां पर बालू, गर्मी और धूल का प्रकोप रहता है, वहां पर रिकॉर्ड तोड़ बारिश देखकर हर कोई पूछ रहा है, आखिर यह सब कैसे हुआ.
आपको बता दें कि यह सबकुछ क्लाउड सीडिंग की वजह से हुई है. क्लाउड सीडिंग यानी इसे आर्टिफिशियल बारिश भी कहा जाता है. इसके जरिए वांछित जगह पर बारिश करवाई जाती है. दुबई में इसकी टेस्टिंग हो रही थी. लेकिन किसी कारणवश पूरी प्रक्रिया में गड़बड़ी हो गई. इस लापरवाही की वजह से दुबई की सड़कों पर पानी ही पानी दिख रहा है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दुबई के अल-एन एयरपोर्ट से क्लाउड सीडिंग के लिए विमान ने उड़ान भरी थी. सोमवार और मंगलवार के बीच कुल सात बार विमान को उड़ाया गया. इसी प्रक्रिया में कुछ गलती हो गई. दरअसल, इस प्रक्रिया में जितने धूलकण को वातावरण में रहना था, उससे अधिक मात्रा में धूलकण वायुमंडल में शामिल हो गया. इसलिए अधिक मात्रा में बारिश हो गई.
हालांकि, अभी तक यह नहीं पता चल सका है कि इसका असर दुबई से बाहर क्यों पड़ा. दुबई के आसपास के इलाकों में भी साउदर्न जेट स्ट्रीम बह रही है. इसे गर्म हवा भी कहा जाता है. आपको बता दें कि रेगिस्तानी इलाकों में अक्सर धूल भरी आंधी चलती है. इसकी वजह से धूलकण ऊपर उठते हैं और वह क्लाउड सीडिंग का काम करता है. धूलकण को कंडेनसेशन न्यूक्लियाई कहा जाता है.
मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि इस बारिश ने दुबई में 75 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. वैसे, क्लाउड सीडिंग कोई नई घटना नहीं है. यूएई ने 1982 में इसका प्रयोग किया था. तब से इसका उपयोग अक्सर किया जाता रहा है, लेकिन इसे कंट्रोल्ड तरीके से यूज किया जा रहा था.
आसमान में क्लाउड बनाने से पहले वातावरण में धूलकण की कितनी मात्रा है, प्रदूषण के कितने तत्व हैं, कितना एयरोसोल है, इन सबकी जांच होती है. उसके बाद ही क्लाउड सीडिंग की जाती है. यानी विमानों को एक खास ऊंचाई पर ले जाकर एक खास केमिकल को छोड़ा जाता है. वह केमिकल धूलकण के साथ मिलकर बादल का निर्माण करते हैं. इस केमिकल में सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस और सोडियम क्लोराइड या फिर नमक का प्रयोग किया जाता है.
यह भी देखा जाता है कि उस वायुमंडल में कम के कम 40 फीसदी क्लाउड पहले से मौजूद हो. क्लाउड में ह्यूमिडिटी रहनी चाहिए. अगर ह्युमिडिटी की कमी होती है, तो समस्या आ सकती है. मौसम के जानकारों का कहना है कि रेगिस्तानी इलाकों में ज्यादा बारिश करवाए जाने से वहां का प्राकृतिक आवास प्रभावित होता है. बाढ़ आने का भी खतरा बन जाता है.
बारिश का दुबई में ऐसा पड़ा असर
दुनिया के सबसे बड़े शॉपिंग सेंटरों में से एक मॉल ऑफ एमिरेट्स का नजारा कुछ अलग ही था. छत से पानी बह रहा है, सीढ़ियों पर पानी जमा है, छत के कुछ हिस्से गिर गए, यह सब देखकर किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था कि यह सब मॉल के अंदर हो रहा है. शारजाह सिटी सेंटर और डेरा सिटी सेंटर का भी कुछ ऐसा ही हाल था.
क्योंकि यूएई में आमतौर पर अधिक बारिश नहीं होती है, इसलिए यहां पर जल निकासी की बेहतर व्यवस्था नहीं है. अगर अधिक मात्रा में बारिश हो जाती है, तो सड़कों पर भारी जाम लग जाता है, बाढ़ जैसी स्थिति आ जाती है. पड़ोस के देश बहरीन, कतर और सऊदी अरब में भी इस बारिश का असर देखा गया है.
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