हैदराबाद : पिछले पांच वर्षों में, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी रॉकेट फोर्स (पीएलएआरएफ) ने अपने परमाणु हथियारों के प्रकार और मात्रा में पहले से कहीं अधिक विस्तार कर लिया है. इस समय चीन के पास इतिहास के किसी भी दौर में मौजूद परमाणु हथियारों का सबसे बड़ा जखीरा है, जिसने अमेरिका की भी नींद उड़ा दी है.
दरअसल, पिछले महीने, बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स ने अपनी वार्षिक गहन परमाणु नोटबुक प्रकाशित की है. हंस एम क्रिस्टेंसन, मैट कोर्डा, एलियाना जॉन्स और मैकेंजी नाइट की ओर से लिखी गई इस रिपोर्ट में चीनी परमाणु हथियार, 2024 नामक अध्याय में इस पर गंभीर चेतावनी दी गई है. इसके अनुसार परमाणु शक्ति संपन्न नौ देशों में चीन अकेला ऐसा देश है, जो सबसे अधिक और सबसे तेजी से न केवल परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ा रहा है बल्कि पहले से तैयार ऐसे हथियारों का आधुनिकीकरण भी कर रहा है.
तीन नए मिसाइल साइलो का विकास : साल 2023 में हुए विकास के बारे में बताते हुए लेखकों ने लिखा है कि चीन ने ठोस-ईंधन अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों (आईसीबीएम) के लिए अपने तीन नए मिसाइल साइलो का विकास जारी रखा है. इसके साथ ही वह अपने तरल-ईंधन डीएफ-5 आईसीबीएम के लिए नए साइलो के निर्माण का विस्तार कर चुका है. चीन अब आईसीबीएम और उन्नत रणनीतिक लांच सेंटर और सिस्टम नए वेरिएंट के साथ विकसित कर रहा है. इन लांच सेंटर और सिस्टम में अपलोड करने के लिए नये हथियारों का भी उत्पादन किया जा रहा है.
चीन ने अपने डीएफ-26 दूरी का बैलिस्टिक मिसाइल जोकि मध्यम दूरी की मिसाइल है कि क्षमता और ताकत में विस्तार किया है. जो परमाणु भूमिका में मध्यम दूरी की डीएफ-21 को पूरी तरह से प्रतिस्थापित करने को तैयार है. परमाणु हथियारों में कटौती की वकालत करने वालों के लिए इन आंकड़ों के गंभीर अर्थ निकलते हैं.
चीन न केवल जमीन और ट्रक से लॉन्च होने वाले मिसाइलों को तैयार कर रहा है, बल्कि उसके पास जल और वायु में भी इसी तरह की क्षमता है. रिपोर्ट के मुताबिक पीएलए नौसेना अब अपनी छह प्रकार की 094 परमाणु-संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियों पर जेएल-3 पनडुब्बी-लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइल (एसएलबीएम) तैनात कर रही है. PLA वायु सेना के H-6 बमवर्षकों को एक परिचालन परमाणु मिशन के लिए फिर से नियुक्त किया गया है. इसके साथ ही हवा से प्रक्षेपित होने वाले बैलिस्टिक मिसाइल को विकसित करने पर काम हो रहा है. माना जा रहा है कि स्टील्थ एच-20 बमवर्षक के तैयार हो जाने के बाद चीन की परमाणु हमले की ताकत और भी बढ़ जाएगी.
चीनी सैन्य प्रवक्ताओं ने आईसीबीएम बल के विस्तार की न तो पुष्टि की है और न ही इससे इनकार किया है. चीन पर परमाणु वैज्ञानिकों के बुलेटिन अध्याय के लेखकों ने पीएलएआरएफ की अस्पष्टता को स्वीकार किया है. उन्होंने कहा कि चीन की परमाणु ताकतों का विश्लेषण और अनुमान लगाना एक चुनौतीपूर्ण प्रयास है. विशेष रूप से तब जब चीन की सरकार इस बारे में कोई डेटा जारी नहीं करती है. इसके साथ ही चीन के परमाणु शस्त्रागार के बारे में भी दुनिया को काफी कम जानकारी है.
बीजिंग ने कभी भी आधिकारिक तौर पर हथियारों की संख्या का खुलासा नहीं किया है, और इसकी परमाणु क्षमता के संबंध में इसकी अस्पष्टता इसकी नीति का हिस्सा रही है. जब पूछा गया कि चेयरमैन शी जिनपिंग इस तरह से चीन के बैलिस्टिक-मिसाइल शस्त्रागार को प्राथमिकता क्यों दे रहे हैं, तो कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में न्यूक्लियर पॉलिसी प्रोग्राम के स्टैंटन सीनियर फेलो अंकित पांडा ने एएनआई को बताया कि इसका कोई एक कारण नहीं बताया जा सकता.
शी हमेशा से ही मजबूत सेना और खूब सारी सैन्य ताकत के हिमायती रहे हैं. हथियारों के खास तौर से आईसीबीएम के उत्पादन में बढ़ोतरी उनके इसी विजन की पुष्टि करता है. इसके साथ ही चीन के आतंरिक हालातों में भी इस तरह की कवायद शी को एक मजबूत नेता के तौर पर प्रदर्शितक करने के लिए अहम है. ताइवान और इंडो-पेसिफिक समुद्री क्षेत्र में अमेरिका की बढ़ती दखलअंदाजी भी एक ट्रीगर प्वाइंट हो सकती है. इनमें से कोई एक या ये सभी कारण हो सकते हैं. हम सटीक उत्तर नहीं जानते हैं. चीन ने अभी तक आधिकारिक तौर पर अकूत परमाणु ताकत हासिल करने के पीछे के मकसद के बारे में बात नहीं की है.
यूएस स्ट्रैटेजिक कमांड के पूर्व कमांडर एडमिरल चार्ल्स रिचर्ड ने अप्रैल 2022 में कहा था कि चीन की रणनीतिक ताकतों का विस्तार अपने सहयोगियों के लिए काफी लुभाने वाला है. बल के वर्तमान कमांडर, जनरल एंथोनी कॉटन ने मार्च 2023 में कहा था कि चीन परमाणु हथियारों के मामले में अमेरिका के साथ मात्रात्मक और गुणात्मक समानता हासिल करना चाहता है. उन्होंने कहा था कि चीन कुछ क्षेत्रों में अमेरिका से भी आगे निकल जाना चाहता है.
बता दें कि घोषित रूप से चीन 'न्यूनतम प्रतिरोध' के लिए आवश्यक परमाणु क्षमता हासिल करने की नीति पर चलने की बात करता है. लेकिन ताजा और पहले भी प्रकाशित हो चुके प्रमाणिक रिपोर्टों के आधार पर कई अमेरिकी अधिकारी कह चुके हैं कि चीन के पास आवश्यकता से कहीं अधिक परमाणु हथियार हैं. पेंटागन की राय है कि बड़े पैमाने पर नए मिसाइल साइलो क्षेत्र और चीन की तरल-ईंधन आईसीबीएम सूची के विस्तार से पता चलता है कि बीजिंग अपने परमाणु क्षमता को आक्रामक रूप से बढ़ा रहा है.
दूसरी ओर, चीन इस बात पर जोर देता है कि वह PLARF के प्रोजेक्ट्स पर 'मध्यम' तत्परता के साथ काम कर रहा है. हालांकि, अमेरिका को चीन के इन दावों पर भरोसा नहीं है. उसका कहना है कि मिसाइल साइलो के आक्रामक निर्माण चीन की आधिकारिक 'नो फर्स्ट यूज' नीति के बारे में संदेह पैदा करती है. 2024 की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बात के सबूत हैं कि चीनी सरकार इससे भटक गई है, जिसे उसकी 2023 की राष्ट्रीय रक्षा रणनीति में भी दोहराया गया था.
ताजा प्रकाशित रिपोर्ट में चारों लेखकों ने यह माना कि संभावित खतरा चाहे जितना सघन हो, चीन की पहले इस्तेमाल न करने की नीति की सीमा संभवतः ऊंची है. कई विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे बहुत कम परिदृश्य हैं जिनमें चीन को पहले हमले से रणनीतिक रूप से लाभ होगा. यहां तक कि मामले में भी अमेरिका से सीधे मुकाबले में भी वह ऐसा करने से परहेज करेगा.
उसी दस्तावेज में कहा गया है कि परमाणु बलों का आधुनिकीकरण भविष्य में परमाणु या दोहरी-सक्षम बलों की तैनाती, प्रतिक्रिया और जबरदस्ती के अधिक कुशल तरीकों की पेशकश करना धीरे-धीरे चीन की घोषित परमाणु रणनीति को प्रभावित कर सकता है. 2022 यूएस न्यूक्लियर पोस्चर रिव्यू का मानना है कि चीन किसी संघर्ष या संकट के शुरू होने के पहले ही अपने तेवर दिखा देना चाहता है ताकि अमेरिका और उसके सहयोगी कोई भी कदम उठाने से पहले सचेत रहें.
ताइवान पर आक्रमण का परिदृश्य : क्या ताइवान पर आक्रमण का परिदृश्य ऐसा अवसर बन सकता है जहां चीन परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की धमकी दे सकता है? नाटो और अमेरिका को यूक्रेन संघर्ष में सीधे तौर पर शामिल होने से बचाने के लिए राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी ऐसा परमाणु कार्ड खेला था. पांडा इस बारे में कहते हैं कि ताइवान की आपात स्थिति के बीच परमाणु दबाव का खेल शामिल हो सकता है. चीन ऐतिहासिक रूप से परमाणु धमकियां जारी करने से बचता रहा है. उसने पारंपरिक रूप से काफी संयमित परमाणु रुख बनाए रखा है. हालांकि, शी यह जरूर सोचते होंगे कि बढ़ी हुई परमाणु ताकत के कारण अमेरिका ताइवान के साथ उसके मामलों में दखल देने में ज्यादा विवेकपूर्ण निर्णय लेगा.
पेंटागन की रिपोर्ट: साल 2023 में पेंटागन ने चीन की सैन्य क्षमताओं पर एक रिपोर्ट जारी की थी. इन रिपोर्टों के पिछले संस्करणों में, अमेरिकी रक्षा विभाग ने भविष्यवाणी की थी कि पीएलएआरएफ का परमाणु हथियार भंडार 2030 तक 1,000 तक पहुंच जाएगा. जो 2035 तक शायद 1,500 तक भी पहुंच जाये. इन हथियारों को 'उच्च तैयारी स्तर पर तैनात किया जाएगा'. इनमें से अधिकांश अमेरिका तक पर हमले में सक्षम प्रणालियों पर तैनात किये जायेंगे. हालांकि, बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स ने नोट किया कि पेंटागन के कुछ पिछले अनुमान गलत साबित हुए हैं.
अध्याय की एक तालिका में प्रत्येक मिसाइल प्रकार के लिए निम्नलिखित मात्राएं सूचीबद्ध हैं:
- DF-26 (x108) आईआरबीएम युक्त
- DF-5A (x6) आईसीबीएम
- DF-5B (x60)
- DF-31A (x24)
- DF-31AG (x64)
- DF-41 (x84)
- JL-3 (x72) एसएलबीएम
- H-6K बमवर्षक विमान (x10)
- H-6N बमवर्षक (x10) हवा से बैलिस्टिक मिसाइलें प्रक्षेपित करने में सक्षम
इस स्वतंत्र मूल्यांकन में ध्यान देने योग्य कुछ दिलचस्प बातें हैं. एक यह है कि डीएफ-21 और डीएफ-31 के सभी परमाणु-संचालित संस्करणों को संभवतः सेवानिवृत्त कर दिया गया है. जेएल-2 एसएलबीएम को पहले पनडुब्बियों पर ले जाया गया था. DF-17 हाइपरसोनिक मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल को कभी परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम माना जाता था, लेकिन अब आम सहमति यह है कि ऐसा नहीं है. इसके अलावा, रिपोर्ट में माना गया है कि चीन की आधी DF-26 IRBM सूची परमाणु हथियारों से लैस है, हालांकि इसे सत्यापित नहीं किया जा सकता कि यह अनुमान कितना सटीक है.
चीन और अमेरिका के बीच बातचीत का विषय : इस संबंध में, पांडा ने बताया कि यहां जोखिम हैं, लेकिन उन जोखिमों से चीन के लिए निवारक लाभ हो सकते हैं. पांडा ने कहा कि यह चीन और अमेरिका के बीच बातचीत का विषय होना चाहिए. स्वाभाविक रूप से, यह जटिलता के एक और पूरे क्षेत्र की ओर ले जाता है, क्योंकि बीजिंग परमाणु हथियार नियंत्रण ढांचे पर अमेरिका के साथ जुड़ने से इनकार करता रहा है.
पांडा ने कहा कि चीन ने कहा है कि हथियार नियंत्रण सुनिश्चित करने से पहले अमेरिका और रूस को पहले अपने बल के आकार को बीजिंग के बराबर कम करना चाहिए. हम अब एक ऐसी दुनिया की ओर देख रहे हैं जहां चीन, रूस और अमेरिका के बीच तीन-तरफा हथियारों की दौड़ शुरू होगी.
माना जाता है कि चीन एक स्वदेशी HQ-19 एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल प्रणाली, साथ ही एक हिट-टू-किल मिडकोर्स इंटरसेप्टर विकसित कर रहा है. ये आईआरबीएम और संभवतः आईसीबीएम को निशाना बना सकते हैं, हालांकि परमाणु वैज्ञानिकों के बुलेटिन के लेखकों ने दावा किया है कि इस तरह के हथियारों को विकसित होने में अभी कई साल लगेंगे.
PLARF ने अपनी मिसाइल ब्रिगेड की संख्या में विस्तार किया है. लेखकों का अनुमान है कि बल के पास वर्तमान में 45 ब्रिगेड हैं जिनके पास बैलिस्टिक या क्रूज मिसाइल लांचर हैं. अनुमान है कि इनमें से 30 परमाणु क्षमता वाले लॉन्चर हैं, या जल्द ही इस स्थिति में अपग्रेड हो जाएंगे.
माना जाता है कि एक नई मिसाइल भी विकास के क्रम में है. इसे DF-27 कहा जाता है, इसकी मारक क्षमता कथित तौर पर 5,000-8,000 किमी है. यह देखते हुए कि परमाणु हमलों के लिए ऐसी सीमा अनावश्यक है, क्योंकि ऐसी दूरियां ICBM की ओर से आसानी से तय की जाती हैं, इससे पता चलता है कि DF-27 केवल पारंपरिक स्ट्राइक भूमिका के साथ समाप्त हो सकता है. फरवरी 2023 में अमेरिकी खुफिया ने आकलन किया कि चीन ने DF-27 के लिए एक मल्टीरोल हाइपरसोनिक ग्लाइड वाहन का उड़ान परीक्षण किया था, जिसने लगभग 2,100 किमी की यात्रा की थी.
चीन ने कम से कम एक बार रणनीतिक हाइपरसोनिक ग्लाइड वाहन और फ्रैक्शनल ऑर्बिटल बमबारी प्रणाली का भी परीक्षण किया है. इसकी अभूतपूर्व प्रकृति को देखते हुए जुलाई 2021 में इसका परीक्षण विशेष रूप से महत्वपूर्ण था.
चीन के परमाणु भंडार का विस्तार : चीन के परमाणु भंडार का विस्तार प्लूटोनियम, अत्यधिक समृद्ध यूरेनियम (एचईयू) और ट्रिटियम के भंडार पर निर्भर है. एक आकलन के अनुसार, 2022 के अंत तक, चीन के पास 14 टन एचईयू और 2.9 टन अलग प्लूटोनियम था, जो कि पिछले पांच वर्षों में चीन की परमाणु हथियार सूची को दोगुना करने के लिए पर्याप्त है.
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