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गंभीर समस्या है मोटापा, इसे अनदेखा ना करें

World Obesity Day 2024 : मोटापा या ओबेसिटी वर्तमान समय में देश दुनिया में एक गंभीर बीमारी के रूप में संबोधित किया जाने लगा है. दरअसल इसे कई गंभीर बीमारियों के लिए मुख्य कारणों में से एक माना जाता है. दुनिया भर में ओबेसिटी या मोटापे के कम तथा ज्यादा गंभीर नुकसानों को लेकर जानकारी फैलाने तथा लोगों को हर उम्र में इससे बचाव के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से हर साल 4 मार्च को विश्व ओबेसिटी दिवस मनाया जाता है. पढ़ें पूरी खबर..

world obesity day 2024
world obesity day 2024
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Mar 3, 2024, 6:54 PM IST

हैदराबाद : मेडिकल जर्नल द लैंसेट में हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 1990 से वर्ष 2022 तक, पूरे विश्व में मोटापे की दर लड़कियों और लड़कों (बच्चों) में चार गुना से अधिक बढ़ी हैं. वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों में भी माना गया है कि वर्ष 1990 से लेकर वर्ष 2022 तक दुनियाभर में वयस्कों (18 साल से अधिक) में ओबेसिटी का आंकड़ा दोगुने से अधिक तथा 18 से कम आयु वालों में चार गुना बढ़ा है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार 2022 में, दुनिया में 8 में से 1 व्यक्ति मोटापे के साथ जी रहा था.

यह आंकड़े इसलिए खतरे की घंटी बजते हैं कि हर उम्र में प्रभावित कर सकने वाली कई गंभीर बीमारियों, विकारों व अवस्थाओं के लिए मोटापे को मुख्य कारणों में से एक माना जाता है. यहां तक की अमेरिका में तो मोटापे को महामारी की संज्ञा भी दी जाती है. दुनिया भर में लोगों में ओबेसिटी के नुकसान तथा उससे बचाव के तरीकों को लेकर जागरूकता फैलाने व इससे संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने के उद्देश्य से हर साल 4 मार्च को विश्व ओबेसिटी दिवस मनाया जाता है.

क्या कहते हैं आंकड़े
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में मोटापे से ग्रस्त बच्चों, किशोरों और वयस्कों की कुल संख्या वर्तमान में एक अरब से अधिक हो गई है. वहीं द लैंसेट जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ भारत में वर्ष 2022 में 5 से 19 साल की उम्र के बीच के लगभग 12.5 मिलियन बच्चों के वजन में काफी बढ़ोत्तरी देखी गई. जिनमें 7.3 मिलियन लड़के और 5.2 मिलियन लड़कियां थीं. जबकि यह आंकड़ा वर्ष 1990 में केवल 0.4 मिलियन था. रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर मोटापे की दर महिलाओं में दोगुनी से अधिक और पुरुषों में लगभग तीन गुना बढ़ी है.

क्या कहते हैं चिकित्सक
दिल्ली के लाइफ अस्पताल के चिकित्सक डॉ अशरीर कुरैशी बताते हैं कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं या कुछ प्रकार की दवाओं के पार्श्व प्रभावों को छोड़ दिया जाय तो ज्यादातर मामलों में मोटापा या अधिक वजन, आहार के प्रकार व उसके सेवन के तरीकों और शारीरिक गतिविधि या सक्रियता में असंतुलन के कारण होता है. मोटापा ना सिर्फ किसी भी रोग की गंभीरता को बढ़ा सकता है, उसके इलाज में परेशानी उत्पन्न कर सकता है, स्वस्थ होने की गति को कम कर सकता है बल्कि लोगों में कई गंभीर बीमारियों के ट्रिगर होने का कारण भी बन सकता है.

वह बताते हैं स्वस्थ वजन वाले लोगों की तुलना में अधिक वजन या मोटापे वाले लोगों में हाइपरटेंशन, टाइप - 2 डायबिटीज, उच्च एलडीएल कोलेस्ट्रॉल व कम एचडीएल कोलेस्ट्रॉल, ह्रदयरोग , डिसलिपिडेमिया, स्लीप एपनिया, सांस लेने में समस्या, कई प्रकार के कैंसर, पेट संबंधी रोग तथा हड्डियों व मांसपेशियों से जुड़े रोगों सहित बहुत से रोगों व समस्याओं के होने व उनकी गंभीरता बढ़ने का खतरा ज्यादा रहता जाता है. यही नहीं ऐसे लोगों को जल्दी थकान होने, आम दिनचर्या का पालन करने तथा कई बार अपने दैनिक कार्य करने में भी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. इसके अलावा कई बार ओबेसिटी मानसिक समस्याओं विशेषकर तनाव या कुछ मानसिक विकारों के होने का कारण भी बन सकती है.

वह बताते हैं कि मोटापे के लिए कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं जैसे खराब जीवनशैली व आहार शैली, खराब खाने-पीने की आदतें अपनाना ( जैसे ज्यादा मात्रा में प्रोसेस्ड, फास्ट फूड , बाहर का भोजन, मांसाहार या ज्यादा तेल वाला आहार खाना, ज्यादा मीठे पेय पदार्थ या कोल्ड ड्रिंक पीना, ज्यादा मात्रा में शराब पीना आदि) शारीरिक सक्रियता का अभाव आदि. इसके अलावा कई बार अनुवांशिक कारणों से, हार्मोनल समस्याओं के चलते, किसी रोग या उसके इलाज विशेषकर दवाओं के पार्श्व प्रभाव के चलते भी लोगों में मोटापे की समस्या हो सकती है.

विश्व मोटापा दिवस
मोटापा या ओबेसिटी को 21वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक माना जाता है, जो निम्न और मध्यम आय वाले देशों में सबसे तेजी से बढ़ रही है. हालांकि सिर्फ भारत में नहीं बल्कि दुनियाभर में अभी भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो मोटापे को बीमारी नहीं बल्कि स्वस्थ होने का परिणाम मानते हैं. ऐसे में लोगों को समझाने व जागरूक करने की मोटापा एक बीमारी है जो उनके लिए गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है तथा इस समस्या के बचने व इसके इलाज व प्रबंधन के लिए प्रयास हेतु लोगों को प्रेरित करने के उद्देश्य से हर साल 4 मार्च को विश्व मोटापा दिवस मनाया जाता है.

इस आयोजन को सालाना मनाए जाने की शुरुआत वर्ष 2015 में हुई थी. उस समय इसे एक वार्षिक अभियान के रूप में 11 अक्टूबर को मनाया जाता था. लेकिन वर्ष 2020 से विश्व मोटापा दिवस को मनाए जाने की तिथि को बदल कर 4 मार्च कर दिया गया.

इस वर्ष यह आयोजन एक विशेष थीम 'आओ मोटापे के बारे में बात करें और...' पर मनाया जा रहा है. इस बार थीम में और के बाद का स्थान रिक्त रखा गया है. जिसका उद्देश्य यह है कि इस स्थान पर लोग संबंधित मुद्दों जैसे स्वास्थ्य, युवावस्था या अपने आस-पास की दुनिया, किसी को भी रख कर चर्चा कर सकते हैं.

गौरतलब है कि विश्व मोटापा दिवस के लिए वैश्विक मोटापा गठबंधन - जिसमें यूनिसेफ, डब्ल्यूएचओ और विश्व मोटापा महासंघ शामिल है मिलकर कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं. इस वर्ष इस अवसर पर गठबंधन के तहत एक ऑनलाइन वैश्विक कार्यक्रम/ वेबीनार का आयोजन किया जाएगा.

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हैदराबाद : मेडिकल जर्नल द लैंसेट में हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 1990 से वर्ष 2022 तक, पूरे विश्व में मोटापे की दर लड़कियों और लड़कों (बच्चों) में चार गुना से अधिक बढ़ी हैं. वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों में भी माना गया है कि वर्ष 1990 से लेकर वर्ष 2022 तक दुनियाभर में वयस्कों (18 साल से अधिक) में ओबेसिटी का आंकड़ा दोगुने से अधिक तथा 18 से कम आयु वालों में चार गुना बढ़ा है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार 2022 में, दुनिया में 8 में से 1 व्यक्ति मोटापे के साथ जी रहा था.

यह आंकड़े इसलिए खतरे की घंटी बजते हैं कि हर उम्र में प्रभावित कर सकने वाली कई गंभीर बीमारियों, विकारों व अवस्थाओं के लिए मोटापे को मुख्य कारणों में से एक माना जाता है. यहां तक की अमेरिका में तो मोटापे को महामारी की संज्ञा भी दी जाती है. दुनिया भर में लोगों में ओबेसिटी के नुकसान तथा उससे बचाव के तरीकों को लेकर जागरूकता फैलाने व इससे संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने के उद्देश्य से हर साल 4 मार्च को विश्व ओबेसिटी दिवस मनाया जाता है.

क्या कहते हैं आंकड़े
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में मोटापे से ग्रस्त बच्चों, किशोरों और वयस्कों की कुल संख्या वर्तमान में एक अरब से अधिक हो गई है. वहीं द लैंसेट जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ भारत में वर्ष 2022 में 5 से 19 साल की उम्र के बीच के लगभग 12.5 मिलियन बच्चों के वजन में काफी बढ़ोत्तरी देखी गई. जिनमें 7.3 मिलियन लड़के और 5.2 मिलियन लड़कियां थीं. जबकि यह आंकड़ा वर्ष 1990 में केवल 0.4 मिलियन था. रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर मोटापे की दर महिलाओं में दोगुनी से अधिक और पुरुषों में लगभग तीन गुना बढ़ी है.

क्या कहते हैं चिकित्सक
दिल्ली के लाइफ अस्पताल के चिकित्सक डॉ अशरीर कुरैशी बताते हैं कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं या कुछ प्रकार की दवाओं के पार्श्व प्रभावों को छोड़ दिया जाय तो ज्यादातर मामलों में मोटापा या अधिक वजन, आहार के प्रकार व उसके सेवन के तरीकों और शारीरिक गतिविधि या सक्रियता में असंतुलन के कारण होता है. मोटापा ना सिर्फ किसी भी रोग की गंभीरता को बढ़ा सकता है, उसके इलाज में परेशानी उत्पन्न कर सकता है, स्वस्थ होने की गति को कम कर सकता है बल्कि लोगों में कई गंभीर बीमारियों के ट्रिगर होने का कारण भी बन सकता है.

वह बताते हैं स्वस्थ वजन वाले लोगों की तुलना में अधिक वजन या मोटापे वाले लोगों में हाइपरटेंशन, टाइप - 2 डायबिटीज, उच्च एलडीएल कोलेस्ट्रॉल व कम एचडीएल कोलेस्ट्रॉल, ह्रदयरोग , डिसलिपिडेमिया, स्लीप एपनिया, सांस लेने में समस्या, कई प्रकार के कैंसर, पेट संबंधी रोग तथा हड्डियों व मांसपेशियों से जुड़े रोगों सहित बहुत से रोगों व समस्याओं के होने व उनकी गंभीरता बढ़ने का खतरा ज्यादा रहता जाता है. यही नहीं ऐसे लोगों को जल्दी थकान होने, आम दिनचर्या का पालन करने तथा कई बार अपने दैनिक कार्य करने में भी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. इसके अलावा कई बार ओबेसिटी मानसिक समस्याओं विशेषकर तनाव या कुछ मानसिक विकारों के होने का कारण भी बन सकती है.

वह बताते हैं कि मोटापे के लिए कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं जैसे खराब जीवनशैली व आहार शैली, खराब खाने-पीने की आदतें अपनाना ( जैसे ज्यादा मात्रा में प्रोसेस्ड, फास्ट फूड , बाहर का भोजन, मांसाहार या ज्यादा तेल वाला आहार खाना, ज्यादा मीठे पेय पदार्थ या कोल्ड ड्रिंक पीना, ज्यादा मात्रा में शराब पीना आदि) शारीरिक सक्रियता का अभाव आदि. इसके अलावा कई बार अनुवांशिक कारणों से, हार्मोनल समस्याओं के चलते, किसी रोग या उसके इलाज विशेषकर दवाओं के पार्श्व प्रभाव के चलते भी लोगों में मोटापे की समस्या हो सकती है.

विश्व मोटापा दिवस
मोटापा या ओबेसिटी को 21वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक माना जाता है, जो निम्न और मध्यम आय वाले देशों में सबसे तेजी से बढ़ रही है. हालांकि सिर्फ भारत में नहीं बल्कि दुनियाभर में अभी भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो मोटापे को बीमारी नहीं बल्कि स्वस्थ होने का परिणाम मानते हैं. ऐसे में लोगों को समझाने व जागरूक करने की मोटापा एक बीमारी है जो उनके लिए गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है तथा इस समस्या के बचने व इसके इलाज व प्रबंधन के लिए प्रयास हेतु लोगों को प्रेरित करने के उद्देश्य से हर साल 4 मार्च को विश्व मोटापा दिवस मनाया जाता है.

इस आयोजन को सालाना मनाए जाने की शुरुआत वर्ष 2015 में हुई थी. उस समय इसे एक वार्षिक अभियान के रूप में 11 अक्टूबर को मनाया जाता था. लेकिन वर्ष 2020 से विश्व मोटापा दिवस को मनाए जाने की तिथि को बदल कर 4 मार्च कर दिया गया.

इस वर्ष यह आयोजन एक विशेष थीम 'आओ मोटापे के बारे में बात करें और...' पर मनाया जा रहा है. इस बार थीम में और के बाद का स्थान रिक्त रखा गया है. जिसका उद्देश्य यह है कि इस स्थान पर लोग संबंधित मुद्दों जैसे स्वास्थ्य, युवावस्था या अपने आस-पास की दुनिया, किसी को भी रख कर चर्चा कर सकते हैं.

गौरतलब है कि विश्व मोटापा दिवस के लिए वैश्विक मोटापा गठबंधन - जिसमें यूनिसेफ, डब्ल्यूएचओ और विश्व मोटापा महासंघ शामिल है मिलकर कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं. इस वर्ष इस अवसर पर गठबंधन के तहत एक ऑनलाइन वैश्विक कार्यक्रम/ वेबीनार का आयोजन किया जाएगा.

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