हैदराबाद : सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में कुष्ठ रोग एक बड़ी चिंता का कारण रहा है. कुष्ठ रोग एक संक्रामक रोग है साथ ही इसे एक सामाजिक कलंक के रूप में भी देखा जाता है, इसलिए इसके पीड़ितों को सिर्फ जांच व इलाज में समस्याओं का ही नहीं बल्कि सामाजिक भेदभाव का भी सामना करना पड़ता है.
सालों के कुष्ठ रोग की दिशा में कार्य कर रहे कई स्वास्थ्य व सामाजिक संगठन तथा सरकारी व गैर सरकारी संस्थाएं अलग-अलग कार्यक्रमों व आयोजनों के जरिए कुष्ठ रोग तथा उससे जुड़े सभी मुद्दों को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने का प्रयास करते रहे हैं. हर साल जनवरी माह के अंतिम रविवार को मनाया जाने वाला विश्व कुष्ठ रोग दिवस भी इन्ही प्रयासों का हिस्सा है. इस वर्ष यह आयोजन 28 जनवरी को 'बीट लेप्रोसी / कुष्ठ रोग को हराओ' थीम पर मनाया जा रहा है.
क्या है कुष्ठ रोग
कुष्ठ रोग जिसे हैनसेन रोग के नाम से भी जाना जाता है, एक विशिष्ट प्रकार के बैक्टीरिया माइकोबैक्टीरियम लेप्री के कारण होने वाला संक्रामक रोग है. जो मानव शरीर के तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है. इस रोग के चलते त्वचा पर घाव व सुन्नता के साथ तंत्रिकाओं से संबंधित समस्या, ऊपरी श्वसन तंत्र और आंखों संबंधी समस्याएं होने लगती हैं . जो समय पर इलाज ना होने की अवस्था में विकलांगता का कारण भी बन सकता है.
कुष्ठ रोग बचपन से लेकर बुढ़ापे तक किसी भी उम्र में हो सकता है. चिकित्सकों की माने तो समय पर जांच व सही इलाज से कुष्ठ रोग का इलाज संभव है. यही नहीं सही समय पर सही इलाज से इस रोग के कारण हो सकने वाली विकलांगता की आशंका को भी काफी हद तक टाला जा सकता है.
क्या कहते हैं आंकड़े
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने वर्ष 2005 में कुष्ठ रोग को "समाप्त" वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या घोषित किया था, लेकिन अभी भी दुनिया भर में हर साल कुष्ठ रोग से जुड़े लगभग 2 लाख से अधिक नए मामले दर्ज किए जाते हैं. उपलब्ध जानकारी के अनुसार वर्ष 2020 में वैश्विक स्तर पर कुष्ठ रोग के लगभग 130,000 नए मामले सामने आए थे जिनमें से लगभग 73% भारत, ब्राजील और इंडोनेशिया में थे. वहीं वर्ष 2021 में, वैश्विक स्तर पर कुष्ठ रोग के लगभग 1,40,546 नए मामले दर्ज किए गए थे. हालांकि आंकड़ों की माने ती इस दिशा में लगातार हो रहे लगातार प्रयासों का नतीजा है की दुनिया भर में कुष्ठ रोग के मामलों की संख्या घट रही है. वर्तमान समय में भारत में, कुष्ठ रोग का प्रसार प्रति 10,000 लोगों पर 0.4 माना जा रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भी मौजूदा समय में कुष्ठ रोग के सबसे ज्यादा मामले अफ्रीकी और एशियाई देशों में देखे जा रहे हैं.
उद्देश्य
इस वर्ष विश्व कुष्ठ रोग दिवस 2024, ना सिर्फ इस रोग के इलाज की दिशा में प्रगति, पीड़ितों के लिए सरलता से जांच व इलाज की उपलब्धता बेहतर करने , साथ ही कुष्ठ रोग से जुड़े कलंक को मिटाने और कुष्ठ रोगियों को बेहतर जीवन देने के लिए सामाजिक प्रयासों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से “कुष्ठ रोग को हराओ / बीट लेप्रोसी" थीम पर मनाया जा रहा है.
दरअसल इस बीमारी को खत्म करने या इसके निवारण के साथ पीड़ित के पूरी तरह से शारीरिक व मानसिक रूप से ठीक होने के लिए जांच व इलाज के साथ इस रोग से जुड़े सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं को संबोधित करना भी बेहद जरूरी है. जिससे कुष्ठ रोग पीड़ितों को सामाजिक भेदभाद या अलगाव का सामना ना करना पड़े और वे एक बेहतर व सम्मानित जीवन जी सके.
विश्व कुष्ठ रोग दिवस
गौरतलब है कि विश्व कुष्ठ रोग दिवस हर साल जनवरी माह के आखिरी रविवार को मनाया जाता है. इस अवसर पर दुनिया भर में कुष्ठ रोग से प्रभावित लोगों के संगठनों और कुष्ठ रोग को लेकर काम करने वाले स्वास्थ्य व सामाजिक संगठनों द्वारा विभिन्न जागरूकता बढ़ाने वाले कार्यक्रमों व स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन किया जाता है. इसके अलावा इस अवसर पर रोग के बेहतर इलाज की दिशा में प्रयासो के लिए शोध व अनुसंधानों को बढ़ावा देने व उनके लिए धन जुटाने के लिए भी कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.
विश्व कुष्ठ रोग दिवस को मनाए जाने की शुरुआत दरअसल फ्रांसीसी मानवतावादी राउल फोलेरो द्वारा रोग के बारे में गलत धारणाओं को संबोधित व दूर करने तथा कुष्ठ रोग के बारे में जनता को शिक्षित करने के उद्देश्य से वर्ष 1953 में की गई थी. इस आयोजन का एक उद्देश्य महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देना भी था क्योंकि उन्होंने कुष्ठ रोग के दिशा में सबसे पहले प्रयासों की शुरुआत की थी . इसके साथ ही वे आजीवन प्रभावित व्यक्तियों के इलाज व विकास के लिए प्रयास करते रहे थे.
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