SARAI VEGETABLE HEALTH BENEFITS: एमपी का शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है. जो जंगलों से हरा भरा क्षेत्र है. यहां काफी तादात में साल के वृक्ष के जंगल पाए जाते हैं. जिसे लोकल भाषा में कई लोग सरई के नाम से भी जानते हैं. बरसात का सीजन चल रहा है. बरसात के शुरुआत में ही इस क्षेत्र में एक ऐसी सब्जी पाई जाती है, जो आदिवासियों के लिए तो बहुत सस्ती होती है, लेकिन आम लोगों के लिए ₹1000 किलो तक बिकती है, या यूं कहें कि कहीं-कहीं पर तो उससे ज्यादा दाम में भी बिकती है. आखिर यह कौन सी सब्जी है, इसमें क्या खासियत है. सबसे बड़ी बात इतनी महंगी होने के बाद भी इसे खरीदने के लिए लोगों में होड़ क्यों मची रहती है और महज कुछ ही समय के लिए पाई जाने वाली इस सब्जी का हर कोई लुत्फ क्यों उठाना चाहता है.
कौन सी सब्जी, और कहां पाई जाती है ?
इतनी महंगी होने के बाद भी लोगों के बीच में जिस सब्जी की इतनी डिमांड रहती है, आखिर इसका क्या नाम है, कहां पाई जाती है और अलग-अलग क्षेत्र में किस नाम से जाना जाता है. इसे लेकर कृषि वैज्ञानिक बीके प्रजापति बताते हैं. शहडोल क्षेत्र में जो साल के जंगल पाए जाते हैं. जिसे सरई के नाम से भी जाना जाता है. उन जंगलों में बरसात की जैसी ही शुरुआत होती है. लगभग 300 एमएम की बारिश होती है और 30 डिग्री के आसपास का तापमान होता है, उमस बहुत ज्यादा रहती है और बिजली तड़कती रहती है, तब इसका निर्माण होता है, फिर जब बारिश होती है तब आदिवासी समुदाय के लोग पत्तियों के नीचे लकड़ी या किसी डंडे से या किसी दूसरे हथियार से इसे साल के पेड़ के नीचे से निकालकर एक-एक कर ढूंढ कर हर पेड़ के नीचे जा जाकर जंगलों में ढूंढते हैं. इसे इकट्ठा करते हैं. तब यह बाजार में आती है.
शहडोल जिला आदिवासी बहुल इलाका है और यहां इसे पुटू के नाम से जाना जाता है. वहीं छत्तीसगढ़, झारखंड और उड़ीसा में अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग भाषाओं के नाम से जाना जाता है. कहीं रगड़ा, कहीं पुट पुटू, कहीं बोड़ा बोला जाता है. जितने जगह उतने इसके स्थानीय नाम होते हैं. इसकी सबसे बड़ी पहचान यही है कि यह साल (सरई) के जंगलों में पाया जाता है, जिसे आदिवासी समाज के लोग बारिश होने पर जंगलों में जाते हैं और एक-एक कर ढूंढ कर निकालते हैं. कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि यह गेस्ट्रम फैमिली और लाइको परडान टू फैमिली के अंतर्गत पाए जाते हैं.
जंगलों से करते हैं इकट्ठा
ग्रामीण अशोक कोल बताते हैं की इस विशेष प्रकार की बहुमूल्य सब्जी को बरसात के शुरुआती सीजन में ही जंगलों से इकट्ठा किया जाता है. इसे इकट्ठा करना भी इतना आसान नहीं होता है. जैसे ही बारिश होती है, सुबह-सुबह आदिवासी समाज के लोग साल के जंगलों में जाते हैं. एक-एक पेड़ के नीचे डंडे से या दूसरे हथियारों से पत्ते उठाकर ढूंढ कर उसे निकालते हैं, फिर एक-एक करके उसे 1 किलो 2 किलो बनाते हैं और फिर उसे बाजार में लेकर आते हैं. इतनी मशक्कत के साथ इसे ढूंढ कर लाया जाता है. इसीलिए और कम समय के लिए मिलता है. जिसके चलते यह काफी महंगे दामों में बिकता है.
इतना महंगा क्यों बिकता है ?
आखिर इस सब्जी में ऐसी क्या खास बात होती है कि यह सब्जी इतनी महंगे दामों पर बिकती है और खासकर आदिवासियों के लिए इतनी सस्ती क्यों होती है. इसे लेकर व्यापारी शिब्बू और रन्नु बताते हैं की आदिवासियों के लिए ये सस्ती इसलिए होती है, क्योंकि वह खुद जाकर उसे जंगलों से निकालते हैं. इसकी मात्रा कम होती है और गुणवत्तायुक्त एक पौष्टिक और स्वादिष्ट सब्जी निकलती है. इसलिए इसकी डिमांड भी काफी ज्यादा रहती है.
शहडोल के बाजार में 700 से ₹800 किलो तक यह बिकता है. यहां से बाहर जाते ही इसके दाम तो ₹1000 किलो से भी ज्यादा हो जाते हैं. उसके बाद भी लोग इसे हंसते-हंसते खरीदते हैं, क्योंकि इसमें इतनी खासियत होती है कि लोग इसे साल में एक बार जरूर खाना चाहते हैं.
सेहत के लिए वरदान
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र बताते हैं कि उसमें बहुत सारे औषधीय गुण होते हैं, हालांकि अभी ये क्लिनिकली प्रूफ नहीं है, लेकिन कहा जाता है कि एंटीफंगल, एंटीबैक्टीरियल, एंटी कैंसर भी माना जाता है. ये पेट रोग से लेकर चर्म रोग में भी लाभदायक माना गया है. इसे लोग काफी पसंद करते हैं, ये जमीन से मिलने वाला एकमात्र मशरूम है.
कृषि वैज्ञानिक बीके प्रजापति कहते हैं कि स्वास्थ्य के लिए ये इतना फायदेमंद होता है की इसके अंदर विटामिन सी, विटामिन बी, फोलिक एसिड, प्रोटीन, विटामिन बी कांप्लेक्स, विटामिन डी, लवण, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम, थायमिन, पोटाश, कॉपर, मिनरल्स की प्रचुर मात्रा पाई जाती है.
प्रोटीन का अच्छा सोर्स
इसे लेकर आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं की साल के जंगलों में पाए जाते हैं. वहां ये विशेष तरह का फंगस ग्रो करता है. खासतौर पर जब बादल गरजते हैं और वर्षा होती है, ये एक नेचुरल फॉर्म में फंगस है, स्वादिष्ट होता है, और प्रोटीन का अच्छा सोर्स है, मशरूम का भी एक प्रकार है. इसलिए इसकी डिमांड ज्यादा है.
जंगल में जाकर इसे लाना भी एक शौक
आदिवासी ग्रामीण बाबूलाल सिंह, मन्नू बैगा बताते हैं की बरसात के शुरुआती सीजन में सरई के जंगलों में जाना और पुटू को ढूंढना और उसकी सब्जी बनाना, ये उनके समाज में बरसात के सीजन में लोग शौकिया तौर पर करते हैं. बारिश हुई नहीं कि वह जंगलों की ओर निकल पड़ते हैं और दिन भर इसे तलाशते हैं. शाम को इसकी मजेदार स्वादिष्ट सब्जी बनाकर खाते हैं. कुछ लोग तो इस व्यावसायिक स्तर पर भी ढूंढते हैं और एक दो किलो ही इकट्ठा कर लिए तो 1 दिन में हजार से ₹2000 तक वो इससे कमा लेते हैं.