पेट के अल्सर-जिसे पेप्टिक अल्सर भी कहा जाता है-बेहद दर्दनाक हो सकते हैं. अक्सर, पेट के अल्सर से पीड़ित व्यक्ति को अपने पेट में जलन महसूस होती है, जो छाती की हड्डी और नाभि के बीच स्थित होता है. यह दर्द खाने को विशेष रूप से मुश्किल बना सकता है. पेट के अल्सर से पीड़ित व्यक्ति-या जिसे अल्सर होने का खतरा है-को यह चिंता हो सकती है कि वे जो भी खाएंगे, उससे उनके लक्षण और भी बदतर हो जाएंगे. अगर आपको नियमित रूप से पेट के अल्सर का अनुभव हो रहा है, तो उपचार के लिए गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट से मिलना जरूरी है. लेकिन इस बीच, आप अपने खान पान में भी बदलाव कर सकते हैं. गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट के अनुसार, इस खबर के माध्यम से यह जानने की कोशिश करेंगे कि कौन से खाद्य पदार्थ इस बीमारी के उपचार में मदद कर सकते हैं और किन खाद्य पदार्थों से आपको निश्चित रूप से दूर रहना चाहिए...
पेट के अल्सर का क्या कारण है?
भोपाल के वरिष्ठ फिजिशियन डॉ राजेश शर्मा (Dr Rajesh Sharma, Physician, Bhopal) बताते हैं कि पेप्टिक अल्सर में पेट के अंदरूनी हिस्सों विशेषकर अमाशय या छोटी आंत के ऊपरी हिस्से पर छाले होने लगते हैं. जिनका यदि सही समय पर इलाज ना किया जाए तो वे जख्म में बदल जाते हैं और कई बार इन जख्मों के चलते पेट में सूजन हो जाती है.
डॉ. बताते हैं कि पेट के अल्सर के दो मुख्य कारण हैं. एक कारण इबुप्रोफेन, नेप्रोक्सन या एस्पिरिन जैसी गैर-स्टेरायडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाओं की उच्च खुराक या लगातार उपयोग है. दूसरा कारण हेलिकोबैक्टर पाइलोरी नामक बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होता है. कुछ लोगों को अल्सर होने का जोखिम ज्यादा होता है. इसमें शामिल होते हैं जो धूम्रपान करते हैं, अम्लीय खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों का अधिक सेवन करते हैं, अल्सर का पारिवारिक इतिहास रखते हैं और जो अत्यधिक शराब पीते हैं.
आपको कैसे पता चलेगा कि आपको अल्सर है?
ज्यादातर मामलों में आपको पता नहीं चल सकता कि आपको यह बीमारी है. डॉ. का कहना हैं कि 70 प्रतिशत पेट के अल्सर बिना लक्षण वाले होते हैं. जिन लोगों में लक्षण दिखाई देते हैं, उनमें पेट दर्द, अपच और मतली जैसी समस्याएं शामिल हो सकती है. डॉ. आगे कहते हैं कि अल्सर का एक और लक्षण काले रंग का मल होना और कभी-कभी खून आना है.
अल्सर का मुख्य लक्षण पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द है जो खाने के बाद बढ़ जाता है, हालांकि कुछ मामलों में खाने के बाद दर्द ठीक हो सकता है. डॉ. का कहना है कि आधिकारिक निदान प्राप्त करने के लिए आमतौर पर एंडोस्कोपी की आवश्यकता होती है, उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में, पेट और छोटी आंत को सीधे देखने के लिए मुंह के माध्यम से एक कैमरा युक्त छोटी ट्यूब डाली जाती है.
पेप्टिक अल्सर के कारण : पेप्टिक अल्सर या पेट में छालों के लिए कई कारणों को जिम्मेदार माना जा सकता है. जैसे अस्वास्थकारी आहार विशेषकर ज्यादा तेल व मसालों वाले आहार का सेवन, खाने के प्रकार व उसके समय को लेकर अनुशासनहीनता, अधिक शराब व सिगरेट का सेवन, खराब जीवनशैली, किसी प्रकार की दवा या थेरेपी के पार्श्वप्रभाव तथा लीवर, फेफड़ों या किडनी से जुड़े रोग होना आदि. इसके अलावा कई बार हेलिकोबैक्टर पायलोरी बैक्टीरिया (Helicobacter pylori bacteria) के कारण भी यह समस्या हो सकती है. दरअसल यह बैक्टीरिया पेट में खाना पचाने में मदद करने वाले अम्ल की क्षमता को कम करते हैं.
पेट के अल्सर होने पर खाने के लिए 5 खाद्य पदार्थ
वरिष्ठ फिजीशियन डॉ राजेश शर्मा बताते हैं कि पेट के अल्सर का आमतौर पर आहार, जीवनशैली की आदतों और दवा में बदलाव करके इलाज किया जाता है. अगर आपको पेट में अल्सर है या होने का खतरा है तो खाने के लिए नीचे पांच खाद्य पदार्थ दिए गए हैं.
क्रूसिफेरस सब्जियां
डॉ राजेश शर्मा का कहना है कि पेट के अल्सर को ठीक करने के लिए कोई विशिष्ट आहार नहीं दिखाया गया है, लेकिन एक वैज्ञानिक अध्ययन से पता चला है कि उच्च फाइबर वाला आहार पेट के अल्सर से बचने के लिए फायदेमंद हो सकता है. (यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि उच्च फाइबर वाला आहार पेट के अल्सर से बचने में मदद कर सकता है, लेकिन अध्ययन ने यह साबित नहीं किया कि यह उपचार में मदद करता है।) इस कारण से, ब्रोकोली, फूलगोभी, ब्रसेल्स स्प्राउट्स और पत्तेदार साग जैसी क्रूसिफेरस सब्जियां अपने आहार में शामिल करना फायदेमंद हो सकता है.
वैज्ञानिक शोध से पता चलता है कि प्रतिदिन 20 से 30 ग्राम फाइबर खाने से पेट के अल्सर को रोकने में मदद मिल सकती है क्योंकि फाइबर एक बफर के रूप में कार्य करते हैं जो पेट में पित्त एसिड की सांद्रता को कम करने में मदद करते हैं. फाइबर से भरपूर खाद्य पदार्थ पाचन प्रक्रिया में भी सहायता करते हैं, जिससे सूजन और दर्द कम होता है.
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC4743227/
बीन्स और फलियां
अगर आपको पेट के अल्सर होने का खतरा है तो प्रोटीन कहां से प्राप्त करें, इस बारे में उत्सुक हैं? बीन्स और फलियां पोषक तत्वों के बेहतरीन स्रोत हैं, जिन पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि इनमें फाइबर भी भरपूर मात्रा में होता है, जो जैसा कि पहले बताया गया है, पेट के अल्सर को रोकने में मदद कर सकता है. बीन्स और फलियों में फ्लेवोनॉयड भी होते हैं, जो सूजन को कम करने और पेट के अल्सर से ठीक होने में मदद करते हैं.
दही
वैज्ञानिक शोध से पता चलता है कि दही जैसे प्रोबायोटिक खाद्य पदार्थ पेट के अल्सर को ठीक करने में मदद कर सकते हैं, खासकर हेलिकोबैक्टर पाइलोरी बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होने वाले अल्सर को. प्रोबायोटिक युक्त खाद्य पदार्थों में मौजूद अच्छे बैक्टीरिया आंत में संतुलन बहाल करने में मदद करते हैं, जो उपचार में सहायता करता है.
मछली
वैज्ञानिक शोध से पता चलता है कि विटामिन ए से भरपूर खाद्य पदार्थ पेट के अल्सर को ठीक करने में मदद कर सकते हैं. विटामिन ए का एक विशेष रूप से अच्छा स्रोत फैटी मछली है, जैसे मैकेरल, हेरिंग और सैल्मन. विटामिन ए के अन्य अच्छे स्रोतों में अंडे, शकरकंद और आम शामिल हैं.
फल, जैसे कि केला, पपीता, सेब, तरबूज
खट्टे फल जैसे कि संतरे, नींबू और अंगूर जैसे खट्टे फल अम्लीय होते हैं और पेट के अल्सर को बढ़ा सकते हैं. इसके बजाय सेब या केले जैसे गैर-अम्लीय फलों का सेवन करें, तरबूज में पानी अधिक मात्रा में होता है. ये पेट को ठंडा रखता है और मल त्याग के दौरान होने वाले जलन को भी कम करता है. पपीता उष्णकटिबंधीय लोक चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है. पपीता लेटेक्स अपच के इलाज के लिए बहुत उपयोगी होता है. केला अल्सर के रोगियों के लिए सबसे अधिक अनुशंसित फलों में से एक है क्योंकि यह पेट पर आराम देने वाला और सुरक्षात्मक प्रभाव डालता है.
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC3249913/
पेप्टिक अल्सर में कैसा हो परहेज : डॉ राजेश (Dr. Rajesh Sharma, Bhopal) बताते हैं कि पेप्टिक अल्सर होने पर बहुत जरूरी है खानपान का विशेष ध्यान रखा जाए. इस अवस्था में कुछ चीजों से विशेष परहेज करना चाहिए. जैसे फ्राइड फूड, खट्टे पदार्थ जैसे नींबू, काली मिर्च या लाल मिर्च, कैफीन युक्त सोडा या अन्य पदार्थ, चॉकलेट, कॉफी, कोल्ड ड्रिंक्स, शराब, सिगरेट तथा ज्यादा तेल व मिर्च मसाले वाला आहार आदि. वहीं आहार के साथ ही जीवनशैली को दुरुस्त रखना भी काफी जरूरी है. जैसे देर रात कुछ भी खाने से बचे, हमेशा सही समय पर ताजे व संतुलित आहार का सेवन करें, सही समय पर सोए तथा जागे, कम से कम आठ घंटे की नींद लें, तनाव से दूर रहने की कोशिश करें और बिना चिकित्सकीय परामर्श किसी भी दवा का सेवन ना करें.
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