हैदराबाद : एक बहुत प्रचलित कहावत है, इलाज से बेहतर बचाव है. जो सही भी है. किसी रोग या समस्या के होने से पहले ही उससे बचाव के लिए प्रयास करना सबसे समझदारी का काम है. इसलिए टीकाकरण को भी सबसे समझदारी भरा कदम माना जा सकता है क्योंकि यह बीमारियों व संक्रमणों से शरीर को सुरक्षा प्रदान करने में मदद करता है.
पोलियो उन्मूलन तथा संक्रामक व अन्य रोगों से बचाव में टीकाकरण की जरूरत व उसके फायदों के बारें में लोगों को जागरूक करने, ना सिर्फ जन्म के तत्काल बाद बच्चे को लगने वाले टीकों को लगवाने के लिए बल्कि हर उम्र के जरूरत अनुसार टीकों को लगवाने के लिए लोगों को प्रेरित करने तथा टीकाकरण अभियानों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हर साल 16 मार्च को राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस या नेशनल वैक्सीनेशन डे/ नेशनल इम्यूनाइजेशन डे मनाया जाता है.
इस साल यह दिवस हर जन तक टीकाकरण की पहुंच को बढ़ावा देने के लिए तथा स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता को सुधारने की दिशा में बेहतर प्रयासों की आवश्यकता पर सबका ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से ‘ टीके सभी के लिए काम करते हैं’ या “ वैक्सीन वर्क्स फॉर ऑल’ थीम पर मनाया जा रहा है.
इतिहास
गौरतलब है कि भारत में सबसे पहली बार राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस वर्ष 1995 में 16 मार्च को मनाया गया था. इस दिन भारत सरकार द्वारा भारत को पोलियो मुक्त बनाने के लिए "प्लस पोलियो अभियान " की शुरूआत की थी, जिसके तहत इस दिन पहली बार बच्चों को पोलियो की वैक्सीन पिलाई गई थी. इसके बाद से पोलियो उन्मूलन के लिए जागरूकता बढ़ाने के साथ अन्य टीकाकरण की जरूरत को लेकर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य के साथ हर साल 16 मार्च को भारत में राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस मनाए जाने की परंपरा शुरू हुई.
हर साल इस अवसर पर सरकारी विभागों तथा सरकारी व निजी, स्वास्थ्य व सामाजिक संस्थाओं द्वारा देश भर में टीकाकरण अभियान चलाये जाते हैं. साथ ही टीकाकरण के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. यहां यह जानना भी जरूरी है कि भारत को वर्ष 2014 में पोलियो मुक्त और सन 2015 में मातृत्व व नवजात टिटनेस उन्मूलन का सर्टिफिकेट मिल चुका है.
टीकाकरण की जरूरत
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार शिशुओं में नियमित टीकाकरण को छोड़ने से नवजात के जीवन पर जानलेवा प्रभाव पड़ सकता है. राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तमाम प्रयासों के बावजूद विश्व में आधे से अधिक बच्चे स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक टीका प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 10लाख बच्चे अपना पांचवा जन्मदिन मनाने से पहले ही मर जाते हैं. इनमें से चार में से एक की मृत्यु निमोनिया और डायरिया के कारण होती है, जो विश्व भर में शिशु मृत्यु का कारण बनने वाली दो प्रमुख संक्रामक बीमारियां है.
रिपोर्ट के अनुसार इनमें से अधिकांश को स्तनपान, टीकाकरण एवं उपचार देकर बचाया जा सकता है. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यदि शिशु का पूरा टीकाकरण किया जाए तो विश्व में लगभग 15 लाख शिशु मृत्यु को रोका जा सकता है.
बच्चों के अलावा बड़ों में भी कई स्वास्थ्य स्थितियों ( फ्लू, कुछ प्रकार के संक्रमण व रोग तथा कुछ प्रकार के कैंसर आदि ) के आधार पर टीके लगवाएं जाते हैं. दरअसल टीकों का उपयोग उस रोग के खिलाफ शरीर में एंटीबॉडी को प्रोत्साहित करने तथा बीमारियों के खिलाफ शरीर में प्रतिरक्षा के बढ़ाने के लिए किया जाता है. कोविड़ 19 पर नियंत्रण में भी इसके वैक्सीन का काफी योगदान रहा था. इसके पहले चेचक व खसरा आदि जानलेवा रोगों पर नियंत्रण का श्रेय भी टीकाकरण को ही जाता है.
सरकारी प्रयास
गौरतलब है कि पूर्ण टीकाकरण को गति प्रदान करने के उद्देश्य के साथ भारत सरकार द्वारा समय-समय पर कई अभियान चलाए जाते रहे हैं. फिलहाल सरकार द्वारा मिशन इंद्रधनुष संचालित किया जा रहा है, जिसे लाभार्थियों की संख्या, भौगोलिक पहुंच और टीकों की मात्रा के आधार पर विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम माना जा रहा है. ज्ञात हो कि इस अभियान के तहत हर साल लगभग 2 करोड़ 70 लाख नवजात शिशुओं को टीका लगाने के लक्ष्य रखा जाता है. इसके तहत हर वर्ष भारत में 90 लाख से भी अधिक टीकाकरण सत्रों का आयोजन किया जाता है.
महत्व
इस सब प्रयासों के बावजूद भारत में जीवन के पहले वर्ष में केवल 65प्रतिशत शिशुओं को ही संपूर्ण टीकाकरण मिल पाता है. वहीं बहुत से स्वास्थ्य समस्याओं व संक्रमणों के लिए उपलब्ध टीकों के बावजूद कभी जानकारी के अभाव तो कभी गलतफहमियों व भ्रम के कारण बहुत से बड़े भी उन टीकों को लगवा नहीं पाते हैं. ऐसे में राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस के आयोजन का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है क्योंकि यह टीकाकरण से जुड़े भ्रमों को संबोधित करने तथा उन्हे दूर करने के लिए मंच तथा मौका तो देता ही है, साथ ही हर उम्र के लिए जरूरी व अलग अलग प्रकार के टीकों के बारें में भी जागरूकता फैलाने के लिए नियमित अभियानों के अलावा भी अतिरिक्त प्रयासों के लिए भी मौका देता है.