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मेनोपॉज के दौरान महिलाओं में क्यों बढ़ जाता है हृदय रोग का खतरा, जानें नए शोध के नतीजे - Menopause and heart disease

Menopause and heart disease: एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि मेनोपॉज के दौर ​​से गुजर रही महिलाओं में कुछ ऐसे परिवर्तन होने की संभावना है जो उनके हार्ट हेल्थ के लिए नुकसान पहुंचनेवाला हो सकता है. पढ़ें पूरी खबर...

Menopause and heart disease
मेनोपॉज के दौरान महिलाओं में क्यों बढ़ जाता है हृदय रोग का खतरा (CANVA)
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By ETV Bharat Health Team

Published : Aug 28, 2024, 4:21 PM IST

हैदराबाद: हाल में हुए एक शोध में यह खुलासा हुआ है कि मेनोपॉज ट्रांजिशन पीरियड से गुजर रही महिलाओं के हार्ट हेल्थ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. शोधकर्ताओं ने इस रिसर्च में पाया कि इस पीरियड के दौरान महिलाओं की लिपिड प्रोफाइल (Lipid profile) में ऐसे बदलाव होते हैं जो हृदय रोग का जोखिम बढ़ा सकते हैं. यह मिथक कि हार्ट डिजीज केवल पुरुषों की समस्या है, अब पुराना हो चुका है.

बता दें, यूके में आयोजित ईएससी कांग्रेस 2024 (30 अगस्त-2 सितंबर) में प्रस्तुत नए शोध में यह भी खुलासा हुआ है कि महिलाओं में होने वाली कुल मौतों में से 40 फीसदी का कारण हार्ट डिजीज है, जिससे यह महिलाओं में मृत्यु का एक प्रमुख कारण बन गया है.

मेनोपॉज के बाद क्यों बढ़ता है हार्ट डिजीज का खतरा?
यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास साउथवेस्टर्न मेडिकल सेंटर, यू.एस. में हुई एक अध्ययन की लेखिका डॉ. स्टेफनी मोरेनो के मुताबिक, मेनोपॉज के बाद महिलाओं में हार्ट डिजीज का जोखिम इसलिए अधिक होता है क्योंकि इस समय के दौरान उनके शरीर में कई हार्मोनल बदलाव होते हैं. मेनोपॉज के दौरान और इसके बाद 'खराब' कम घनत्व प्रकार के लिपोप्रोटीन (एलडीएल) कणों में वृद्धि और 'अच्छे' उच्च घनत्व वाले लिपोप्रोटीन कणों (एचडीएल) में कमी होती है. ऐसे में यह स्थिति हृदय रोग के लिए एक बड़ा जोखिम पैदा करती सकती है, जिसमें कोरोनरी धमनी रोग जैसी समस्याएं शामिल हैं.

कार्डियोवैस्कुलर रोग (सीवीडी) महिलाओं में सबसे ज्यादा मौत का कारण है. महिलाओं में होने वाली सभी मौतों में से 40 फीसदी सी.वी.डी. से होती हैं. जबकि महिलाओं में पुरुषों की तुलना में लगभग दस साल बाद कार्डियोवैस्कुलर रोग (सी.वी.डी.) विकसित होता है, महिलाओं में सी.वी.डी. का जोखिम मेनोपॉज के बाद बढ़ जाता है. सी.वी.डी. खतरा में इस तेजी के पीछे के तंत्र को अच्छी तरह से समझा नहीं गया है, लेकिन रक्त वसा (लिपिड) माप में प्रतिकूल परिवर्तन पेरिमेनोपॉज अवधि के दौरान होने के लिए जाने जाते हैं.

रिसर्च के मुताबिक
इस अध्ययन में, लेखकों ने मेनोपॉज ट्रांजिशन के दौरान होने वाले लिपोप्रोटीन कणों में समय के साथ होने वाले परिवर्तनों की जांच की. डलास हार्ट स्टडी (डीएचएस) के इस शोध में कुल 1,246 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया और इनके लिपिड प्रोफाइल की जांच न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस (एनएमआर) तकनीक का उपयोग करके की गई.

इस अध्ययन में 1346 पुरुष (संदर्भ समूह) भी शामिल थे जिनकी औसत आयु 43 वर्ष थी. कुल 1246 महिलाएं थीं जिनकी औसत आयु पेरी-समूह के लिए 42 वर्ष, पोस्ट-समूह के लिए 54 वर्ष और प्री-समूह के लिए 34 वर्ष थी. महिलाओं में से, 440 (35%) प्री-मेनोपॉजल थीं, 298 (24%) पेरी-मेनोपॉजल थीं और 508 (41 फीसदी) पोस्ट-मेनोपॉजल थीं.

7 वर्षों के औसत अनुवर्ती समय में, सभी तीन महिला समूहों में एलडीएल-पी में वृद्धि हुई थी, लेकिन सबसे बड़ा प्रतिशत परिवर्तन 8.3 फीसदी पर पेरी और पोस्ट समूहों के बीच पाया गया था. पुरुषों की तुलना में, पोस्ट-समूह में एचडीएल-पी में सबसे बड़ा प्रतिशत परिवर्तन 4.8 फीसदी के नकारात्मक परिवर्तन के साथ था.

पुरुषों की तुलना में पेरि-ग्रुप में छोटे-घने एलडीएल में 213 प्रतिशत के परिवर्तन के साथ अधिक प्रतिशत परिवर्तन था. यह प्रतिशत परिवर्तन प्री- और पोस्ट-मेनोपॉज़ दोनों समूहों की तुलना में 15 फीसदी अधिक है.

डॉ. मोरेनो ने बताया कि हमने पाया कि मेनोपॉज (Menopause) के बाद महिलाओं की लिपोप्रोटीन प्रोफाइल में महत्वपूर्ण और प्रतिकूल बदलाव हुए हैं, जिनमें सबसे प्रमुख एलडीएल पार्टिकल्स में बढ़ोतरी है. तो ये परिवर्तन पोस्ट-मेनोपॉजल महिलाओं में हृदय रोग की वृद्धि को समझाने में मदद कर सकते हैं और यह निर्धारित करने में मदद कर सकते हैं कि क्या पहले हस्तक्षेप की आवश्यकता है.

वह निष्कर्ष निकालती हैं कि यह जांचने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है कि क्या लिपोप्रोटीन में ये प्रतिकूल परिवर्तन अधिक हृदय जोखिम में तब्दील होते हैं.

नोट: इस खबर में दी गई जानकारी European Society of Cardiology की वेबसाइट से ली गई है...

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हैदराबाद: हाल में हुए एक शोध में यह खुलासा हुआ है कि मेनोपॉज ट्रांजिशन पीरियड से गुजर रही महिलाओं के हार्ट हेल्थ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. शोधकर्ताओं ने इस रिसर्च में पाया कि इस पीरियड के दौरान महिलाओं की लिपिड प्रोफाइल (Lipid profile) में ऐसे बदलाव होते हैं जो हृदय रोग का जोखिम बढ़ा सकते हैं. यह मिथक कि हार्ट डिजीज केवल पुरुषों की समस्या है, अब पुराना हो चुका है.

बता दें, यूके में आयोजित ईएससी कांग्रेस 2024 (30 अगस्त-2 सितंबर) में प्रस्तुत नए शोध में यह भी खुलासा हुआ है कि महिलाओं में होने वाली कुल मौतों में से 40 फीसदी का कारण हार्ट डिजीज है, जिससे यह महिलाओं में मृत्यु का एक प्रमुख कारण बन गया है.

मेनोपॉज के बाद क्यों बढ़ता है हार्ट डिजीज का खतरा?
यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास साउथवेस्टर्न मेडिकल सेंटर, यू.एस. में हुई एक अध्ययन की लेखिका डॉ. स्टेफनी मोरेनो के मुताबिक, मेनोपॉज के बाद महिलाओं में हार्ट डिजीज का जोखिम इसलिए अधिक होता है क्योंकि इस समय के दौरान उनके शरीर में कई हार्मोनल बदलाव होते हैं. मेनोपॉज के दौरान और इसके बाद 'खराब' कम घनत्व प्रकार के लिपोप्रोटीन (एलडीएल) कणों में वृद्धि और 'अच्छे' उच्च घनत्व वाले लिपोप्रोटीन कणों (एचडीएल) में कमी होती है. ऐसे में यह स्थिति हृदय रोग के लिए एक बड़ा जोखिम पैदा करती सकती है, जिसमें कोरोनरी धमनी रोग जैसी समस्याएं शामिल हैं.

कार्डियोवैस्कुलर रोग (सीवीडी) महिलाओं में सबसे ज्यादा मौत का कारण है. महिलाओं में होने वाली सभी मौतों में से 40 फीसदी सी.वी.डी. से होती हैं. जबकि महिलाओं में पुरुषों की तुलना में लगभग दस साल बाद कार्डियोवैस्कुलर रोग (सी.वी.डी.) विकसित होता है, महिलाओं में सी.वी.डी. का जोखिम मेनोपॉज के बाद बढ़ जाता है. सी.वी.डी. खतरा में इस तेजी के पीछे के तंत्र को अच्छी तरह से समझा नहीं गया है, लेकिन रक्त वसा (लिपिड) माप में प्रतिकूल परिवर्तन पेरिमेनोपॉज अवधि के दौरान होने के लिए जाने जाते हैं.

रिसर्च के मुताबिक
इस अध्ययन में, लेखकों ने मेनोपॉज ट्रांजिशन के दौरान होने वाले लिपोप्रोटीन कणों में समय के साथ होने वाले परिवर्तनों की जांच की. डलास हार्ट स्टडी (डीएचएस) के इस शोध में कुल 1,246 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया और इनके लिपिड प्रोफाइल की जांच न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस (एनएमआर) तकनीक का उपयोग करके की गई.

इस अध्ययन में 1346 पुरुष (संदर्भ समूह) भी शामिल थे जिनकी औसत आयु 43 वर्ष थी. कुल 1246 महिलाएं थीं जिनकी औसत आयु पेरी-समूह के लिए 42 वर्ष, पोस्ट-समूह के लिए 54 वर्ष और प्री-समूह के लिए 34 वर्ष थी. महिलाओं में से, 440 (35%) प्री-मेनोपॉजल थीं, 298 (24%) पेरी-मेनोपॉजल थीं और 508 (41 फीसदी) पोस्ट-मेनोपॉजल थीं.

7 वर्षों के औसत अनुवर्ती समय में, सभी तीन महिला समूहों में एलडीएल-पी में वृद्धि हुई थी, लेकिन सबसे बड़ा प्रतिशत परिवर्तन 8.3 फीसदी पर पेरी और पोस्ट समूहों के बीच पाया गया था. पुरुषों की तुलना में, पोस्ट-समूह में एचडीएल-पी में सबसे बड़ा प्रतिशत परिवर्तन 4.8 फीसदी के नकारात्मक परिवर्तन के साथ था.

पुरुषों की तुलना में पेरि-ग्रुप में छोटे-घने एलडीएल में 213 प्रतिशत के परिवर्तन के साथ अधिक प्रतिशत परिवर्तन था. यह प्रतिशत परिवर्तन प्री- और पोस्ट-मेनोपॉज़ दोनों समूहों की तुलना में 15 फीसदी अधिक है.

डॉ. मोरेनो ने बताया कि हमने पाया कि मेनोपॉज (Menopause) के बाद महिलाओं की लिपोप्रोटीन प्रोफाइल में महत्वपूर्ण और प्रतिकूल बदलाव हुए हैं, जिनमें सबसे प्रमुख एलडीएल पार्टिकल्स में बढ़ोतरी है. तो ये परिवर्तन पोस्ट-मेनोपॉजल महिलाओं में हृदय रोग की वृद्धि को समझाने में मदद कर सकते हैं और यह निर्धारित करने में मदद कर सकते हैं कि क्या पहले हस्तक्षेप की आवश्यकता है.

वह निष्कर्ष निकालती हैं कि यह जांचने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है कि क्या लिपोप्रोटीन में ये प्रतिकूल परिवर्तन अधिक हृदय जोखिम में तब्दील होते हैं.

नोट: इस खबर में दी गई जानकारी European Society of Cardiology की वेबसाइट से ली गई है...

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