हैदराबाद : दुनिया भर में आज के दौर की सबसे ज्यादा घातक प्रभाव देने वाली समस्याओं/मनोविकार में अवसाद या डिप्रेशन को माना जाता है. सभी जानते हैं पिछले कुछ सालों में लोगों में कई तरह की शारीरिक व मानसिक बीमारियों के मामले बढ़े हैं . जानकारों की माने तो शारीरिक हो या मानसिक, शरीर में किसी भी प्रकार के रोगो के प्रभाव के बढ़ने में डिप्रेशन तथा उसके कारण उत्पन्न होंने वाली अवस्थाएं भी जिम्मेदार कारक हो सकते हैं.
क्या है अवसाद : आमतौर पर लोगों को लगता है कि अवसाद का मतलब उदासी होता है. लेकिन अवसाद इससे बहुत बड़ी समस्या हैं. यह एक ऐसा मनोविकार है जो अपने चरम में पीड़ित को आत्महत्या तक के लिए प्रेरित कर सकता है. उत्तराखंड की मनोचिकित्सक व काउन्सलर डॉ रेणुका बताती हैं कि अवसाद एक ऐसा मनोविकार है जो पीड़ित के सामान्य जीवन को तो प्रभावित करता ही है बल्कि उनमें प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से कई शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के ट्रिगर होने या उनके प्रभावों के बढ़ने का कारण भी बन सकता है.
वह बताती हैं कि आज के समय में बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, अवसाद के मामले बढ़े हैं. कार्यस्थल का माहौल, कार्यस्थल और पढ़ाई में बहुत ज्यादा प्रतियोगिता के चलते दबाव, किसी लंबे समय तक गंभीर बीमारी व उसके प्रभावों के चलते, जीवन में किसी तनाव पूर्ण घटना के कारण, रिश्तों में कड़वाहट या समस्याओं के कारण, समाज व दोस्तों के बीच पर्सनेलिटी , आर्थिक स्थिति या अन्य कारणों से खुद को दूसरों से कमतर मानने या हीनभावना होने जैसे बहुत से कारण हैं जो अवसाद के ट्रिगर होंने का कारण बन सकते हैं. इसके अलावा अवसाद कई बाद वंशानुगत कारणों से भी हो सकता है. अवसाद के ज्यादा बढ़ने के लिए कुछ हार्मोन तथा मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर में असंतुलन को भी जिम्मेदार कारकों में से एक माना जाता हैं.
अवसाद के लक्षण
वह बताती हैं अवसाद में उदासी महसूस होने के साथ दूसरों से बात करने व कोई भी काम करने की इच्छा कम होने लगती है. इसके अलावा इस अवस्था में चीजों या बातों को याद ना रख पाने, भूख ना लगने तथा नींद ना आने जैसी समस्याएं भी होने लगती हैं. ये सब अवस्थाएं तथा मन में नकारात्मक भावनाएं पीड़ित को दोस्तों , परिजनों तथा अन्य लोगों से दूर कर देती हैं. ऐसे में कई बार पीड़ित की मनोदशा इतनी ज्यादा खराब होने लगती हैं कि वह आत्महत्या के बारे में भी सोचने लगता है.
वह बताती हैं कि अवसाद के कुछ अन्य लक्षणों में व्यवहारात्मक समस्याएं जैसे अकारण घबराहट, डर, बेचैनी होना, खुद को नुकसान पहुंचाने की इच्छा होना, छोटी-छोटी बातों पर अधिक चिड़चिड़ापन होना, कुछ हल्का-फुल्का काम करने के बाद भी अधिक थकान महसूस करना, पूरे दिन शरीर में ऊर्जा में कमी रहना, कुछ भी गलत होंने पर खुद को दोषी ठहराना, इटिंग डिसॉर्डर होना, हाथ पांव का ठंडा पड़ना, कभी-कभी सांस लेने में परेशानी महसूस करना जैसे लक्षण भी नजर आ सकते हैं.
अभी भी इलाज में सकुचाते हैं लोग
डॉ रेणुका बताती हैं कि अवसाद के लक्षणों को हल्के में नहीं लेना चाहिए. लेकिन यह जानने के बावजूद भी बहुत से लोग लक्षणों के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नजर आने के बाद भी शर्म , दूसरे क्या जैसी भावनाओं के चलते तो कभी अपनी समस्या को स्वयं स्वीकार ना कर पाने का चलते मनोचिकित्सक से सलाह लेने में कतराते हैं. भले ही पिछले कुछ सालों में अवसाद को लेकर आमजन में जागरूकता बढ़ी है लेकिन अभी भी लोगों में इलाज के लिए मनोचिकित्सक के पास जाकर इलाज करवाने में असहजता तथा सकुचाहट देखी जाती है.
लोगों की इसी मनःस्थिति को समझते हुए तथा लोगों को अवसाद से लड़ने में मदद करने के लिए मनोचिकित्सको, मनोवैज्ञानिकों तथा प्रशिक्षित काउन्सलरों द्वारा व्यक्तिगत रूप में या संगठनात्मक प्रयासों के तहत कई पेड तथा चेरेटी योजनाएं चलाई जा रही हैं जिनमें ऑनलाइन या फोन पर काउंसलिंग की जाती है. यदि इन सेशन के दौरान चिकित्सक को लगता है की पीड़ित की अवस्था ज्यादा खराब है तो वे उन्हे क्लिनिक आने के लिए प्रेरित करते हैं जिससे उन्हे काउंसलिंग के अलावा जरूरी दवाएं तथा थेरेपी दी जा सके. ये योजनाए सिर्फ बड़े शहरों में ही नहीं बल्कि कई छोटे शहरों में संचालित की जा रही है. जिनके बारे में सूचना इंटरनेट पर मौजूद है.
निदान व सावधानियां
डॉ रेणुका बताती हैं कि बहुत से मामलों में अवसाद का इलाज लंबे समय तक चल सकता है. वह बताती हैं कि अवसाद की गंभीरता तथा शरीर व मन पर उसके प्रभाव को जानने के लिए चिकित्सक पीड़ित के शारीरिक स्वास्थ्य की जांच के साथ उसका साइकेट्रिस्ट इवैल्यूएशन करते हैं. जिससे पीड़ित में विकार की गंभीरता के बारें में पता चल सके. अवसाद के निदान के लिए पीड़ित को काउंसलिंग व टॉक थेरेपी के साथ संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी तथा मेडिकेशन (एंटीडिप्रेसेंट व अन्य दवाएं) भी दी जाती हैं. इसके अलावा यदि पीड़ित की अवस्था बहुत ज्यादा गंभीर हो तो उन्हे कुछ विशेष थेरेपी जैसे ब्रेन स्टिमुलेशन थेरेपी की सलाह भी सलाह दी जा सकती है.
डॉ रेणुका बताती हैं कि अवसाद होने के बाद प्रयास करने से अच्छा है कि पहले से ही अवसाद को दूर रखने के लिए हर संभव प्रयास किया जाय . इसके लिए कुछ आदतों को अपनाना लाभकारी हो सकता है. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.
- समय से तथा अच्छा व पोषक आहार खाएं
- नींद संबंधी आदतों को दुरुस्त रखें. जैसे समय से सोएं व जागे तथा जरूरत अनुसार नींद लें.
- नियमित योग, व्यायाम तथा यदि संभव हो तो मेडिटेशन को नियमित दिनचर्या में शामिल करें.
- बच्चों में बचपन से ही अपनी बातों और परेशानियों को साझा करने की आदत डालें , साथ ही घर में ऐसा माहौल बनाएं जहां बच्चे खुलकर माता पिता से बात तथा चर्चा कर सके. बच्चों को स्वस्थ व हल्के वातावरण में स्कूल, पढ़ाई के तनाव, दोस्तों के बीच प्रतियोगिता, पर्सनेलिटी ईश्यूज़्, भावनात्मक रिश्तों तथा अन्य जरूरी बातों के बारें में समझाएं जिससे वे बातें समय पड़ने पर उन पर हावी ना हो सके.
- अच्छे दोस्त बनाए तथा उनसे व अपने परिजनों से नियमित संवाद रखें. नियमित अंतराल पर दोस्तों व परिजनों के साथ समय बिताएं या घूमने जाएं. इसके अलावा अपनी हॉबी को नियमित समय देने की आदत भी बनाए . इससे मन प्रसन्न होगा जिससे तनाव में कमी आएगी.
- ऐसे लोग जिन्हे कोई गंभीर बीमारी हो या जिनका लंबे समय तक इलाज चलने वाला हो उन्हें शुरुआत से ही काउंसलिंग दिलवाएं जिससे वे मानसिक रूप से इस अवस्था के लिए तैयार हो सके. साथ ही उनसे नियमित संवाद बनाए रखें तथा उन्हे मोटिवेट करते रहे.
- ऐसे लोग जिनके परिवार में अवसाद का इतिहास हो वे नियमित तौर पर चिकित्सक से संपर्क में रहे तथा अपने संकेतों की ओर सचेत रहे. जिससे समस्या के ट्रिगर होने पर समय से कार्रवाई की जा सके. depression affect family , symptoms of depression , depression prevention , depression treatment .
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