नई दिल्ली: लोगों में जागरूकता और अस्पतालों में सुविधाओं की कमी के चलते कैंसर के प्राथमिक चरण में ही जांच बड़ी चुनौती बनी हुई है. इसलिए देश के सबसे प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थान दिल्ली एम्स ने आईआईटी दिल्ली के साथ मिलकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआआई) तकनीक की मदद से स्तन कैंसर की स्क्रीनिंग और जांच की सुविधा विकसित करने पर शोध शुरू किया है.
एम्स के कैंसर सेंटर में सोमवार को आयोजित प्रेस वार्ता में संस्थान के डाक्टरों ने यह जानकारी दी. डाक्टरों को उम्मीद है कि यह तकनीक स्तन कैंसर की पहले चरण में पहचान कर इलाज में मददगार होगी. कैंसर सेंटर की प्रमुख डॉ. सुषमा भटनागर ने बताया कि भारत में कैंसर के करीब 60 प्रतिशत मरीज अब भी एडवांस स्टेज में इलाज के लिए पहुंचते हैं.
शोध सफल होने पर कैंसर की स्क्रीनिंग में मददगार हो सकता है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
महिलाओं में सबसे ज्यादा पाया जाने वाला कैंसर स्तन कैंसर है. महिलाएं स्वयं भी इसका स्क्रीनिंग कर सकती हैं. अस्पतालों में स्तन कैंसर की जांच और स्क्रीनिंग के लिए मैमोग्राफी की जाती है. लेकिन, देश में महिलाओं की बड़ी आबादी की मैमोग्राफी जांच और उसकी रिपोर्ट तैयार करने के लिए बड़ी संख्या में डाक्टरों की जरूरत पड़ेगी. इसलिए एआई तकनीक पर शोध किया जा रहा है ताकि मैमोग्राफी जांच में डाक्टर की भूमिका कम की जा सके और तकनीक के इस्तेमाल से रिपोर्ट तैयार हो सके. रिपोर्ट में गलतियों की संभावना ना हो इस बात का शोध में ध्यान रखा जा रहा है.
मुंह के कैंसर, स्तन और सर्वाइकल कैंसर की स्क्रीनिंग के लिए पिछले कई वर्षों से अभियान चलाए जाने के बावजूद बहुत कम लोगों की स्क्रीनिंग हो पाती है. प्रिवेंटिव मेडिसिन की एसोसिएट प्रोफेसर डा. पल्लवी शुक्ला ने बताया कि इस स्क्रीनिंग कार्यक्रम को प्रभावी बनाने के लिए आशा वर्कर प्रशिक्षित की जाएंगी. एम्स दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग के चिकित्सक अधिकारियों को प्रशिक्षित कर रहा है. वे आशा वर्कर को प्रशिक्षित करेंगे. प्रशिक्षित आशा वर्कर घर-घर जाकर स्तन और सर्वाइकल कैंसर की स्क्रीनिंग के लिए 30 वर्ष से अधिक उम्र की सभी महिलाओं को पंजीकृत करेंगी.
कैंसर की स्क्रीनिंग के लिए घर-घर जाकर पंजीकारण करण करेंगी आशा वर्कर
ओरल कैंसर के स्क्रीनिंग के लिए महिलाओं के साथ-साथ पुरुष भी पंजीकृत किए जाएंगे. मेडिकल आंकोलाजी विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डा. अजय गोगिया ने कहा कि पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में लोग दस वर्ष कम उम्र में कैंसर से पीड़ित होते हैं. लेकिन ज्यादातर मरीजों के एडवांस स्टेज में बीमारी की पहचान होने से पश्चिमी देशों की तुलना में इलाज का परिणाम बेहतर नहीं होता है.डा. सुषमा भटनागर ने बताया कि एम्स में अंतिम स्टेज के कैंसर मरीजों को पैलेटिव केयर के जरिये मरीज की देखभाल की जाती है.ताकि अनावश्यक रूप से आईसीयू में भर्ती करने की जरूरत न पड़े.
ये भी पढ़ें : कैंसर से लड़ने के लिए इंडियन कैंसर सोसाइटी की खास पहल, ‘राइज अगेंस्ट कैंसर मोबाइल एप्लीकेशन लॉन्च
एडवांस स्टेज के मरीजों को होम केयर की दी जा रही सुविधा
पिछले माह एम्स के राष्ट्रीय कैंसर संस्थान (एनसीआई) में भर्ती हुए अंतिम स्टेज के 25 कैंसर मरीजों में से 20 मरीजों के लक्षणों को ठीक करके उनके घर भेजा गया. एक एनजीओ कैन सपोर्ट के साथ मिलकर एडवांस स्टेज के मरीजों को होम केयर की सुविधा दी जा रही है. इसके लिए 35 टीमें बनाई गई हैं. जिसमें डाक्टर, नर्स और पैरामेडिकल कर्मचारी शामिल होते हैं, जो सप्ताह में एक बार मरीज के घर जाकर मरीजों की परेशानियों को दूर करते हैं.साथ ही मरीज के परिजनों की काउंसलिंग करके उनकी मानसिक पीड़ा को कम कर के और मरीज को खुशनुमा माहौल देने के लिए जागरूक करते हैं.
ये भी पढ़ें : World Cancer Day 2024: देश में 2023 में 3.4 लाख से अधिक लोगों को हुआ सर्वाइकल कैंसर, जान लें बचाव के उपाय