ETV Bharat / business

पहला आर्थिक सर्वेक्षण कब पेश किया गया, इसे कौन तैयार करता है और इसका महत्व क्या है, जानें सब कुछ - What is Economic Survey - WHAT IS ECONOMIC SURVEY

What is Economic Survey: केंद्रीय बजट से एक दिन पहले केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक सर्वेक्षण संसद में पेश किया जाता है. यह देश के सामने वर्तमान में मौजूद आर्थिक चुनौतियों को उजागर करता है और पिछले वर्ष का आर्थिक विश्लेषण प्रदान करता है. आर्थिक सर्वेक्षण दस्तावेज कौन तैयार करता है और इसका क्या महत्व है? ईटीवी भारत के नेशनल ब्यूरो चीफ सौरभ शुक्ला की इस रिपोर्ट में आर्थिक सर्वेक्षण के बारे में सब कुछ जानें.

What is Economic Survey
अर्थशास्त्री संजीव सान्याल - मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन (File Photo - ANI)
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jul 21, 2024, 10:08 PM IST

नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण 23 जुलाई को संसद में एनडीए सरकार के तीसरा कार्यकाल का पहला बजट पेश करेंगी. यह उनका छठा पूर्ण बजट है और अंतरिम बजट सहित उनका सातवां बजट भाषण होगा. बजट से पहले, सोमवार को संसद में आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया जाएगा. यह दस्तावेज देश के सामने वर्तमान में मौजूद आर्थिक चुनौतियों पर चर्चा करेगा और पिछले वर्ष का आर्थिक विश्लेषण प्रदान करेगा. इसके अलावा यह भारत में आर्थिक विकास के लिए पूर्वानुमान भी प्रस्तुत करेगा. वित्त मंत्री ही संसद में आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत करते हैं.

आर्थिक सर्वेक्षण की भूमिका
आर्थिक सर्वेक्षण अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों जैसे कृषि, औद्योगिक उत्पादन, निर्यात, आयात और बुनियादी ढांचे आदि में विभिन्न रुझानों की पहचान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह संभावित आर्थिक सुधारों के बारे में भी जानकारी देता है जो बजट को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं. रिकॉर्ड के मुताबिक, भारत में पहला आर्थिक सर्वेक्षण 1950-51 के दौरान संसद में पेश किया गया था. शुरुआत में यह केंद्रीय बजट का हिस्सा होता था, लेकिन 1964 से इसे अलग से पेश किया जाता रहा है, जो आर्थिक नीति को आकार देने में इसकी भूमिका को दर्शाता है.

आर्थिक सर्वेक्षण कौन तैयार करता है?
आर्थिक सर्वेक्षण वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार (वी अनंत नागेश्वरन) के नेतृत्व में अर्थशास्त्रियों की एक टीम द्वारा तैयार किया जाता है. परंपरा के अनुसार, आर्थिक सर्वेक्षण अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों पर सांख्यिकीय जानकारी और विश्लेषण प्रदान करता है, जिसमें रोजगार, जीडीपी वृद्धि, महंगाई और बजट घाटे के आंकड़े शामिल होते हैं.

सर्वेक्षण का महत्व
आर्थिक सर्वेक्षण से नीति निर्माताओं को अहम जानकारी और सुझाव मिलते हैं. यह अर्थव्यवस्था के अपने निष्पक्ष विश्लेषण के माध्यम से स्पष्टता लाता है. यह नीति निर्माताओं से लेकर आम जनता तक सभी को मौजूदा आर्थिक स्थितियों और भविष्य की संभावनाओं के बारे में जानकारी देता है. यह सर्वेक्षण भारतीय आर्थिक नीति और प्रदर्शन का अध्ययन करने वाले शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और विश्लेषकों के लिए एक बहुमूल्य दस्तावेज है. यह आर्थिक साहित्य, शोध पत्रों और आर्थिक विकास के विभिन्न पहलुओं पर बहस में योगदान देता है. यह दस्तावेज भारत के आर्थिक शासन में आर्थिक सर्वेक्षण की बहुमुखी भूमिका और विभिन्न हितधारकों पर इसके प्रभाव पर प्रकाश डालता है, जिससे यह आर्थिक नीति विमर्श और निर्णय लेने की आधारशिला बन जाता है.

पिछले वर्ष का आर्थिक सर्वेक्षण
2022-23 के आर्थिक सर्वेक्षण में मुख्य आर्थिक सलाहकार ने बताया था कि पूर्व में वैश्विक आर्थिक संकट गंभीर थे, लेकिन समय के साथ सुधार हुआ. इस सहस्राब्दी के तीसरे दशक में यह परिदृश्य बदल गया है. 2020 से वैश्विक अर्थव्यवस्था को कम से कम तीन झटके लगे हैं. यह सब वैश्विक उत्पादन में महामारी के कारण आई कमी से शुरू हुआ, जिसके बाद रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण दुनिया भर में महंगाई में उछाल आया. सर्वेक्षण में कहा गया था कि हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड महामारी से उबर कर पटरी पर लौट आई है. वित्त वर्ष 2022 में भारत ने कई देशों से ज्यादा सुधार दर्ज किया है और वित्त वर्ष 2023 में महामारी से पहले की विकास दर पर पहुंचने की स्थिति में है.

जीडीपी वृद्धि क्या है?
जीडीपी वृद्धि दर किसी देश की अर्थव्यवस्था की नब्ज टटोलने जैसा है. यह बताता है कि अर्थव्यवस्था एक विशिष्ट समय, आमतौर पर एक वर्ष या एक तिमाही में कितनी तेजी से या धीमी गति से बढ़ रही है. जीडीपी का मतलब सकल घरेलू उत्पाद है, यह उस अवधि में किसी देश की सीमाओं के भीतर उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल बाजार मूल्य को मापता है.

अर्थशास्त्री एक अवधि के जीडीपी की तुलना पिछली अवधि के जीडीपी से करके जीडीपी वृद्धि दर की गणना करते हैं. इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है और इससे हमें इस बात का अंदाजा मिलता है कि अर्थव्यवस्था कितनी अच्छी चल रही है और लोगों पर इसका क्या असर पड़ने की संभावना है. अगर जीडीपी वृद्धि दर सकारात्मक है, इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है. अगर यह नकारात्मक है, तो इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था सिकुड़ रही है.

भारत की वर्तमान आर्थिक स्थिति
2023-24 के लिए जीडीपी वृद्धि दर आठ प्रतिशत के आंकड़े को पार कर गई है और 8.2 प्रतिशत पर पहुंच गई है. साथ ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए भारत के जीडीपी वृद्धि पूर्वानुमान को 6.8 प्रतिशत से बढ़ाकर 7 प्रतिशत तक कर दिया है. यह संशोधन बढ़ी हुई खपत संभावनाओं (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में) के कारण है, जिससे देश की आर्थिक वृद्धि को मजबूती मिलने की उम्मीद है. आईएमएफ ने आगामी वित्तीय वर्ष के लिए अपने विकास अनुमान को 6.5 प्रतिशत की अपेक्षाकृत मामूली दर पर स्थिर रखा है, जैसा कि नवीनतम विश्व आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट में बताया गया है.

यह भी पढ़ें- 'एक राष्ट्र, एक स्वर्ण दर' नीति क्या है, देश के लिए कितना जरूरी, कैसे होंगे फायदे, जानें सब कुछ

नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण 23 जुलाई को संसद में एनडीए सरकार के तीसरा कार्यकाल का पहला बजट पेश करेंगी. यह उनका छठा पूर्ण बजट है और अंतरिम बजट सहित उनका सातवां बजट भाषण होगा. बजट से पहले, सोमवार को संसद में आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया जाएगा. यह दस्तावेज देश के सामने वर्तमान में मौजूद आर्थिक चुनौतियों पर चर्चा करेगा और पिछले वर्ष का आर्थिक विश्लेषण प्रदान करेगा. इसके अलावा यह भारत में आर्थिक विकास के लिए पूर्वानुमान भी प्रस्तुत करेगा. वित्त मंत्री ही संसद में आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत करते हैं.

आर्थिक सर्वेक्षण की भूमिका
आर्थिक सर्वेक्षण अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों जैसे कृषि, औद्योगिक उत्पादन, निर्यात, आयात और बुनियादी ढांचे आदि में विभिन्न रुझानों की पहचान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह संभावित आर्थिक सुधारों के बारे में भी जानकारी देता है जो बजट को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं. रिकॉर्ड के मुताबिक, भारत में पहला आर्थिक सर्वेक्षण 1950-51 के दौरान संसद में पेश किया गया था. शुरुआत में यह केंद्रीय बजट का हिस्सा होता था, लेकिन 1964 से इसे अलग से पेश किया जाता रहा है, जो आर्थिक नीति को आकार देने में इसकी भूमिका को दर्शाता है.

आर्थिक सर्वेक्षण कौन तैयार करता है?
आर्थिक सर्वेक्षण वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार (वी अनंत नागेश्वरन) के नेतृत्व में अर्थशास्त्रियों की एक टीम द्वारा तैयार किया जाता है. परंपरा के अनुसार, आर्थिक सर्वेक्षण अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों पर सांख्यिकीय जानकारी और विश्लेषण प्रदान करता है, जिसमें रोजगार, जीडीपी वृद्धि, महंगाई और बजट घाटे के आंकड़े शामिल होते हैं.

सर्वेक्षण का महत्व
आर्थिक सर्वेक्षण से नीति निर्माताओं को अहम जानकारी और सुझाव मिलते हैं. यह अर्थव्यवस्था के अपने निष्पक्ष विश्लेषण के माध्यम से स्पष्टता लाता है. यह नीति निर्माताओं से लेकर आम जनता तक सभी को मौजूदा आर्थिक स्थितियों और भविष्य की संभावनाओं के बारे में जानकारी देता है. यह सर्वेक्षण भारतीय आर्थिक नीति और प्रदर्शन का अध्ययन करने वाले शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और विश्लेषकों के लिए एक बहुमूल्य दस्तावेज है. यह आर्थिक साहित्य, शोध पत्रों और आर्थिक विकास के विभिन्न पहलुओं पर बहस में योगदान देता है. यह दस्तावेज भारत के आर्थिक शासन में आर्थिक सर्वेक्षण की बहुमुखी भूमिका और विभिन्न हितधारकों पर इसके प्रभाव पर प्रकाश डालता है, जिससे यह आर्थिक नीति विमर्श और निर्णय लेने की आधारशिला बन जाता है.

पिछले वर्ष का आर्थिक सर्वेक्षण
2022-23 के आर्थिक सर्वेक्षण में मुख्य आर्थिक सलाहकार ने बताया था कि पूर्व में वैश्विक आर्थिक संकट गंभीर थे, लेकिन समय के साथ सुधार हुआ. इस सहस्राब्दी के तीसरे दशक में यह परिदृश्य बदल गया है. 2020 से वैश्विक अर्थव्यवस्था को कम से कम तीन झटके लगे हैं. यह सब वैश्विक उत्पादन में महामारी के कारण आई कमी से शुरू हुआ, जिसके बाद रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण दुनिया भर में महंगाई में उछाल आया. सर्वेक्षण में कहा गया था कि हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड महामारी से उबर कर पटरी पर लौट आई है. वित्त वर्ष 2022 में भारत ने कई देशों से ज्यादा सुधार दर्ज किया है और वित्त वर्ष 2023 में महामारी से पहले की विकास दर पर पहुंचने की स्थिति में है.

जीडीपी वृद्धि क्या है?
जीडीपी वृद्धि दर किसी देश की अर्थव्यवस्था की नब्ज टटोलने जैसा है. यह बताता है कि अर्थव्यवस्था एक विशिष्ट समय, आमतौर पर एक वर्ष या एक तिमाही में कितनी तेजी से या धीमी गति से बढ़ रही है. जीडीपी का मतलब सकल घरेलू उत्पाद है, यह उस अवधि में किसी देश की सीमाओं के भीतर उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल बाजार मूल्य को मापता है.

अर्थशास्त्री एक अवधि के जीडीपी की तुलना पिछली अवधि के जीडीपी से करके जीडीपी वृद्धि दर की गणना करते हैं. इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है और इससे हमें इस बात का अंदाजा मिलता है कि अर्थव्यवस्था कितनी अच्छी चल रही है और लोगों पर इसका क्या असर पड़ने की संभावना है. अगर जीडीपी वृद्धि दर सकारात्मक है, इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है. अगर यह नकारात्मक है, तो इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था सिकुड़ रही है.

भारत की वर्तमान आर्थिक स्थिति
2023-24 के लिए जीडीपी वृद्धि दर आठ प्रतिशत के आंकड़े को पार कर गई है और 8.2 प्रतिशत पर पहुंच गई है. साथ ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए भारत के जीडीपी वृद्धि पूर्वानुमान को 6.8 प्रतिशत से बढ़ाकर 7 प्रतिशत तक कर दिया है. यह संशोधन बढ़ी हुई खपत संभावनाओं (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में) के कारण है, जिससे देश की आर्थिक वृद्धि को मजबूती मिलने की उम्मीद है. आईएमएफ ने आगामी वित्तीय वर्ष के लिए अपने विकास अनुमान को 6.5 प्रतिशत की अपेक्षाकृत मामूली दर पर स्थिर रखा है, जैसा कि नवीनतम विश्व आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट में बताया गया है.

यह भी पढ़ें- 'एक राष्ट्र, एक स्वर्ण दर' नीति क्या है, देश के लिए कितना जरूरी, कैसे होंगे फायदे, जानें सब कुछ

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.