नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को संसद में आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 प्रस्तुत पेश किया. इसमें यह खुलासा किया गया कि बढ़ती अर्थव्यवस्था की विकास और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए भारत की एनर्जी जरूरतें 2047 तक 2 से 2.5 गुना बढ़ने की उम्मीद है. इसमें कहा गया है कि यह देखते हुए कि संसाधन सीमित हैं. ऊर्जा संक्रमण की गति को जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन बढ़ाने और सतत सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए संसाधनों पर वैकल्पिक मांगों को ध्यान में रखना होगा.
रेनेवेबल एनर्जी की बढ़ोतरी
इस सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत ने अपनी रेनेवेबल एनर्जी क्षमता में वृद्धि और एनर्जी इफिशियन्सी में सुधार के मामले में जलवायु कार्रवाई पर महत्वपूर्ण प्रगति की है. सर्वेक्षण में कहा गया है कि 31 मई, 2024 तक स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता में गैर-जीवाश्म स्रोतों की हिस्सेदारी 45.4 फीसदी तक पहुंच गई है.
इसमें कहा गया है कि इसके अलावा, देश ने 2019 में अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 2005 के स्तर से 33 फीसदी तक कम कर दिया है. इसमें कहा गया है कि रेनेवेबल एनर्जी और क्लीन फ्यूल के विस्तार से भूमि और जल की मांग बढ़ेगी.
रेनेवेबल एनर्जी का सोर्स
रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश रेनेवेबल एनर्जी स्रोत भूमि-प्रधान हैं. विभिन्न ऊर्जा स्रोतों में सबसे अधिक भूमि उपयोग की मांग करते हैं. इसके अलावा, रेनेवेबल एनर्जी के विस्तार के लिए बैटरी स्टोरेज टेक्नोलॉजी की आवश्यकता होती है. इसके लिए महत्वपूर्ण खनिजों की उपलब्धता की आवश्यकता होती है. हालांकि, ऐसे खनिजों का स्रोत भौगोलिक रूप से केंद्रित है.
ऊर्जा सुरक्षा का समर्थन करते हुए स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में तेजी लाने में ऊर्जा दक्षता उपायों के महत्व को पहचानने की भारत की पहल पर प्रकाश डालते हुए, रिपोर्ट में कहा गया है कि देश ने कारोबारी माहौल को बेहतर बनाने और संसाधनों की अधिक मात्रा को उत्प्रेरित करने के लिए कई उपाय किए हैं.
सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड
इसमें कहा गया है कि सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं के लिए आय बढ़ाने के लिए जनवरी-फरवरी 2023 में 16,000 करोड़ रुपये के सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड जारी किए, जो अर्थव्यवस्था के उत्सर्जन की तीव्रता को कम करने के प्रयासों में योगदान देंगे. इसके बाद अक्टूबर-दिसंबर 2023 में सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड के माध्यम से 20,000 करोड़ रुपये जुटाए जाएंगे.
भारत सरकार के मिशन लाइफ को जलवायु परिवर्तन से निपटने और संरक्षण तथा संयम सिद्धांतों के आधार पर संधारणीय जीवन को बढ़ावा देने के लिए एक जन आंदोलन के रूप में परिकल्पित किया गया है. सरकार स्वैच्छिक पर्यावरणीय कार्यों जैसे ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम (जीसीपी) का समर्थन करती है, जो व्यक्तियों, समुदायों, निजी क्षेत्र के उद्योगों और कंपनियों को पुरस्कार के रूप में ग्रीन क्रेडिट प्रदान करके पर्यावरण-सकारात्मक गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करता है.
सर्वेक्षण में जलवायु परिवर्तन मुद्दा पर जोर
सर्वेक्षण में बताया गया है कि भारत ने जलवायु परिवर्तन शमन और लचीलापन बनाने की दिशा में कई अंतर्राष्ट्रीय पहलों का नेतृत्व किया है. अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए), वन वर्ल्ड, वन सन, वन ग्रिड (ओएसओडब्ल्यूओजी), आपदा रोधी अवसंरचना के लिए गठबंधन (सीडीआरआई), लचीले द्वीप राज्यों के लिए अवसंरचना (आईआरआईएस) और उद्योग परिवर्तन के लिए नेतृत्व समूह (लीडआईटी) ऐसे कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण हैं. आर्थिक सर्वेक्षण में इस बात पर जोर दिया गया है कि भारत को जलवायु परिवर्तन की समस्या को अपने नजरिए से देखना चाहिए. इसमें कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के मामले में महत्वपूर्ण प्रगति के बावजूद भारत को अक्सर पश्चिमी समाधानों के साथ तालमेल न बिठाने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ता है.
यह आलोचना भारत के अद्वितीय सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने के प्रति सराहना की कमी से उपजी है, जो पहले से ही सतत विकास के विचारों से समृद्ध है.
यह कहते हुए कि पश्चिम की प्रथाओं को अपनाना भारत के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है, जहां संस्कृति, अर्थव्यवस्था, सामाजिक मानदंड पहले से ही पर्यावरण के साथ जुड़े हुए हैं. आर्थिक सर्वेक्षण में आगे कहा गया है कि भारत का लोकाचार प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण संबंध पर जोर देता है, जो बाजार समाजों को परेशान करने वाली समस्याओं के लिए स्थायी समाधान देता है.
सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत को अपनी जड़ जमाई हुई स्थायी प्रथाओं को सीखना, समझना और अपनाना चाहिए और दूसरों की प्रथाओं को तभी अपनाना चाहिए जब वे उसकी जरूरतों के अनुकूल हों और पर्यावरण और जलवायु की दृष्टि से टिकाऊ हों. इस तरह, भारतीय अपनी इच्छाओं को पूरा करेंगे और उन्हें प्रकृति को नुकसान नहीं पहुंचने देंगे.