मुंबई: मंगलवार को लोकसभा में केंद्रीय बजट पेश करने वाली वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर हर टैक्सपेयर की निगाहें लगी होंगी. लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के पहले पूर्ण बजट में पर्सनल इनकम टैक्स के मामले में कुछ राहत मिलने की उम्मीद है. चुनावी साल की परंपराओं के कारण वित्त मंत्री इस साल फरवरी में पेश किए गए अंतरिम बजट में ऐसा नहीं कर पाई थीं. क्योंकि मतदाताओं को लुभाने के लिए कोई भी घोषणा करने पर रोक है.
हालांकि, इस बार ऐसी कोई बाध्यता नहीं है और मध्यम वर्ग के टैक्सपेयर आशा कर रहे हैं. क्योंकि आयकर भुगतान में कोई भी कमी सीधे उनके हाथों में अधिक खर्च करने योग्य आय में तब्दील हो जाती है, जो व्यक्तिगत खपत को सीधे बढ़ावा देती है. पिछले कुछ सालों में, टैक्स अधिकारियों के बीच इनकम टैक्स कलेक्शन प्रक्रिया को सरल और सुव्यवस्थित करने की प्रवृत्ति रही है.
इन उपायों में इनकम टैक्सस्लैब को रिजनेबल बनाना, आयकर फॉर्म का सरलीकरण और ऑनलाइन आयकर रिटर्न दाखिल करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना और टैक्सपेयर को समय पर प्रतिपूर्ति सहित आयकर रिटर्न की समय पर प्रोसेसिंग शामिल है.
हालांकि, देश की दो आयकर व्यवस्थाओं- पुरानी आयकर व्यवस्था और नई आयकर व्यवस्था. इसके तहत कर स्लैब की बहुलता और कर कटौती और छूट की अधिकता इसे काफी जटिल काम बनाती है.
यहां भारत के आयकर स्लैब और दोनों आयकर व्यवस्थाओं के तहत लागू कर दरों का डिटेल्स दिया गया है. कुछ प्रमुख कटौतियों का डिटेल्स दिया गया है जिनका आयकरदाता दावा कर सकते हैं.
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT), देश में प्रत्यक्ष करों को प्रशासित करने वाला सर्वोच्च निकाय, व्यक्तियों के लिए दो कर व्यवस्थाएँ प्रदान करता है- पुरानी व्यवस्था और नई व्यवस्था. दोनों व्यवस्थाओं में अलग-अलग कर स्लैब और उनकी संबंधित आयकर दरें हैं.
पुरानी आयकर व्यवस्था
पुरानी आयकर व्यवस्था धारा 80 के तहत कई कटौतियों और छूटों की अनुमति देती है, जिससे संभावित रूप से कर का बोझ कम होता है. यहां आकलन वर्ष 2024-25 (वित्त वर्ष 2023-24 में अर्जित आय) के लिए स्लैब और दरों का विवरण दिया गया है.
इनकम स्लैब (रुपये में) | टैक्स रेट |
2,50,000 तक | शून्य |
2,50,001 - 5,00,000 | 2,50,000 रुपये से अधिक पर 5 फीसदी |
5,00,001 - 10,00,000 | 12,500 रुपये + 5,00,000 रुपये से अधिक पर 20 फीसदी |
10,00,000 रुपये से अधिक पर | 1,12,500 रुपये + 10,00,000 रुपये से अधिक पर 30 फीसदी |
आयकर अधिनियम की धारा 115-BAC के तहत नई आयकर व्यवस्था
नई आयकर व्यवस्था, जो डिफॉल्ट टैक्स व्यवस्था बन गई है. ये टैक्सपेयर द्वारा रिकॉर्ड बनाए रखने की बोझिल प्रक्रिया को कम करने के लिए डिजाइन किया गया है. जैसे कि किराए की रसीदों की कॉपी, बिल और अन्य चीजों के अलावा किए गए खर्च की रसीदें. आयकर 1961 के तहत, टैक्सपेयर की यह जिम्मेदारी है कि वे छह साल तक रिकॉर्ड बनाए रखें. अगर आयकर निर्धारण अधिकारी कोई प्रश्न उठाता है या किए गए खर्च को वैरिफाई करना चाहता है जो कानून के तहत किसी कटौती या छूट के लिए योग्य है.
आयकर अधिनियम 1961 की धारा 115-BAC के तहत नई आयकर व्यवस्था कम दरों के साथ एक सरलीकृत कर संरचना देती है. लेकिन धारा 80 के तहत अधिकांश कटौती को समाप्त करती है. यहां आकलन वर्ष 2024-25 के लिए स्लैब और दरें दी गई हैं.
इनकम स्लैब (रुपये में) | टैक्स रेट (फीसदी) |
3,00,000 तक | शून्य |
3,00,001 - 6,00,000 | 3,00,000 रुपये से अधिक पर 5 फीसदी |
6,00,001 - 9,00,000 | 15,000 रुपये + 6,00,000 रुपये से अधिक पर 10 फीसदी |
9,00,001 - 12,00,000 | 45,000 रुपये + 9,00,000 रुपये से अधिक पर 15 फीसदी |
12,00,001 - 15,00,000 | 90,000 रुपये + 12,00,000 रुपये से अधिक पर 20 फीसदी |
15,00,000 से अधिक पर | 1,50,000 रुपये + 15,00,000 रुपये से ऊपर 30 फीसदी |
अपने लिए सही टैक्स व्यवस्था कैसे चुनें?
पुरानी और नई व्यवस्था के बीच निर्णय लेना कई कारणों पर निर्भर करता है. जैसे कि आपकी कुल आय, निवेश योजनाएं और आप कितनी कटौती के लिए पात्र हैं. टैक्सपेयर को अपनी वित्तीय स्थिति का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करना चाहिए और यह निर्धारित करने के लिए कर सलाहकार से परामर्श करना चाहिए कि आपके मामले में कौन सी व्यवस्था सबसे अधिक कर लाभ देती है.