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RBI MPC बैठक के फैसलों का कल होगा ऐलान, क्या घटेगी होम-कार लोन की EMI? - RBI MPC Meet 2024

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 7, 2024, 5:11 PM IST

RBI MPC Meet 2024- भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने मौद्रिक नीति निर्णय पर चर्चा करने के लिए 6 अगस्त को तीन दिवसीय सत्र के लिए अपनी बैठक शुरू की. RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास कल 8 अगस्त को रेपो रेट को लेकर घोषणा करेंगे. शक्तिकांत दास की अध्यक्षता वाली छह सदस्यीय समिति ने पिछली आठ नीति समीक्षाओं में रेपो दर को अपरिवर्तित रखा है. फरवरी 2023 से रेपो दर 6.5 फीसदी पर है. पढ़ें पूरी खबर...

RBI Governor Shaktikant Das
RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास (फाइल फोटो) (IANS Photo)

नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक चल रही है, जिसकी घोषणा कल 8 अगस्त को होने वाली है. सभी के मन में एक अहम सवाल यह होगा कि क्या रिजर्व बैंक रेपो रेट में कटौती करेगा? बता दें कि केंद्रीय बैंक ने कमर्शियल बैंकों को लोन देने वाली बेंचमार्क दर को लगातार आठ बार से 6.50 फीसदी पर स्थिर रखा है. और इस बार भी ऐसा ही हो सकता है.

इस बार भी नहीं बढ़ाया जाएगा रेपो रेट!
भारत ने पिछले वर्ष मजबूत आर्थिक विकास दर्ज किया है. और आरबीआई ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए अपने जीडीपी की बढ़ोतरी दर के अनुमान को पिछली एमपीसी बैठक के 7 फीसदी से बढ़ाकर 7.2 फीसदी कर दिया है. लेकिन, एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में स्थिर वृद्धि के बावजूद, महंगाई के मोर्चे पर सब कुछ ठीक नहीं है.

जून में सीपीआई (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) मुद्रास्फीति चार महीने के उच्चतम स्तर 5.08 फीसदी पर पहुंच गई. खाद्य मुद्रास्फीति छह महीने के उच्चतम स्तर 9.36 फीसदी पर पहुंच गई.

जून में कुछ भागों में धीमी प्रगति के बाद, जुलाई और अगस्त में पूरे देश में मानसून की बारिश में तेजी आई है. इससे कृषि गतिविधियों और समग्र ग्रामीण भावनाओं में तेजी आई है. लेकिन आने वाले महीनों में खाद्य कीमतों पर क्या असर होगा, इस पर बारीकी से नजर रखनी होगी.

रेपो रेट क्या है?
जब किसी देश की अर्थव्यवस्था और वित्तीय बाजारों को संभालने की बात आती है, तो मौद्रिक नीति में एक महत्वपूर्ण उपकरण पाया जा सकता है. रेपो दर - रीपरचेसिंग रेट का संक्षिप्त रूप - इसको नाम दिया है. रेपो रेट एक बेंचमार्क ब्याज दर है जिसका यूज भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) मौद्रिक प्रणाली के सुचारू संचालन को सुविधाजनक बनाने के लिए करता है.

अर्थव्यवस्था में पैसे का प्रबंधन करने के लिए RBI के लिए रेपो रेट आवश्यक है. रेपो दर को समायोजित करके, RBI यह प्रभावित कर सकता है कि बैंकों को पैसे उधार लेने में कितना खर्च करना पड़ता है, जिससे लोन और बचत के लिए ब्याज दरें प्रभावित होती हैं. अर्थव्यवस्था के कई पहलू रेपो रेट में बदलाव के प्रति संवेदनशील हैं, जिसमें मुद्रास्फीति, मुद्रा विनिमय दरें और समग्र आर्थिक विकास शामिल हैं.

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नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक चल रही है, जिसकी घोषणा कल 8 अगस्त को होने वाली है. सभी के मन में एक अहम सवाल यह होगा कि क्या रिजर्व बैंक रेपो रेट में कटौती करेगा? बता दें कि केंद्रीय बैंक ने कमर्शियल बैंकों को लोन देने वाली बेंचमार्क दर को लगातार आठ बार से 6.50 फीसदी पर स्थिर रखा है. और इस बार भी ऐसा ही हो सकता है.

इस बार भी नहीं बढ़ाया जाएगा रेपो रेट!
भारत ने पिछले वर्ष मजबूत आर्थिक विकास दर्ज किया है. और आरबीआई ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए अपने जीडीपी की बढ़ोतरी दर के अनुमान को पिछली एमपीसी बैठक के 7 फीसदी से बढ़ाकर 7.2 फीसदी कर दिया है. लेकिन, एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में स्थिर वृद्धि के बावजूद, महंगाई के मोर्चे पर सब कुछ ठीक नहीं है.

जून में सीपीआई (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) मुद्रास्फीति चार महीने के उच्चतम स्तर 5.08 फीसदी पर पहुंच गई. खाद्य मुद्रास्फीति छह महीने के उच्चतम स्तर 9.36 फीसदी पर पहुंच गई.

जून में कुछ भागों में धीमी प्रगति के बाद, जुलाई और अगस्त में पूरे देश में मानसून की बारिश में तेजी आई है. इससे कृषि गतिविधियों और समग्र ग्रामीण भावनाओं में तेजी आई है. लेकिन आने वाले महीनों में खाद्य कीमतों पर क्या असर होगा, इस पर बारीकी से नजर रखनी होगी.

रेपो रेट क्या है?
जब किसी देश की अर्थव्यवस्था और वित्तीय बाजारों को संभालने की बात आती है, तो मौद्रिक नीति में एक महत्वपूर्ण उपकरण पाया जा सकता है. रेपो दर - रीपरचेसिंग रेट का संक्षिप्त रूप - इसको नाम दिया है. रेपो रेट एक बेंचमार्क ब्याज दर है जिसका यूज भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) मौद्रिक प्रणाली के सुचारू संचालन को सुविधाजनक बनाने के लिए करता है.

अर्थव्यवस्था में पैसे का प्रबंधन करने के लिए RBI के लिए रेपो रेट आवश्यक है. रेपो दर को समायोजित करके, RBI यह प्रभावित कर सकता है कि बैंकों को पैसे उधार लेने में कितना खर्च करना पड़ता है, जिससे लोन और बचत के लिए ब्याज दरें प्रभावित होती हैं. अर्थव्यवस्था के कई पहलू रेपो रेट में बदलाव के प्रति संवेदनशील हैं, जिसमें मुद्रास्फीति, मुद्रा विनिमय दरें और समग्र आर्थिक विकास शामिल हैं.

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