नई दिल्ली: सॉफ्टबैंक समर्थित स्विगी के किराना गोदाम के कर्मचारी 10 मिनट के भीतर ऑर्डर डिलीवरी करने के लिए रोजाना दौड़ लगाते हैं. उनकी स्पीड स्क्रीन पर सेकंड के हिसाब से ट्रैक की जाती है. बाहर भीषण गर्मी में, स्विगी के बाइकर्स, फर्म की ट्रेडमार्क चमकीले नारंगी रंग की टी-शर्ट पहने हुए, पैक किए गए किराने के ऑर्डर को पास में डिलीवर करते है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक डिलिवरी का पिकअप प्रॉसेस 1 मिनट 30 सेकंड में करनी होती है.
दूध और केले से लेकर गुलाब तक सब कुछ मिनटों में डिलीवर करने के लिए स्विगी के गोदाम पूरे भारत में तेजी से बढ़ रहे हैं. ये एक ऐसा बिजनेस मॉडल है जो भारतीयों की खरीदारी के तरीके को बदल रहा है. यह उन लाखों स्टोरों को भी खतरे में डाल रहा है, जो दशकों से ऐसे देश में किराने के बिजनेस में है.
गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट
गोल्डमैन सैक्स ने अप्रैल में कहा था कि फास्ट डिलीवरी 5 बिलियन या भारत के 11 बिलियन डॉलर के ऑनलाइन किराना बाजार का 45 फीसदी हिस्सा है. जैसा कि दुकानदार सुविधा और गति को प्राथमिकता देते हैं, फास्ट कमर्शियल ऑनलाइन किराना बाजार का 70 फीसदी हिस्सा होगा, जो 2030 तक 60 बिलियन डॉलर को छूने वाला है, ऐसा अनुमान है.
भारत का लास्ट मिनट ऐप
आईपीओ के लिए तैयार स्विगी ने 2014 में एक रेस्तरां भोजन डिस्ट्रीब्यूशन बिनजेस के रूप में शुरुआत की थी. इसका मूल्यांकन 10 बिलियन डॉलर है. लेकिन अब यह भारत में लास्ट मिनट वाले किराना बिजनेस पर अधिक दांव लगाने के लिए गियर बदल रहा है, जो चीन और अमेरिका के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा खुदरा बाजार है. लास्ट मिनट डिलीवरी ऑर्डर पर ग्राहकों को अधिक पेमेंट करना पड़ता है, इसके बावजूद कई उपभोक्ता समय बचाने के लिए भुगतान करने को तैयार हैं.