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खुलासा: मोदी सरकार के लिए खुशखबरी, भारत की गरीबी स्तर में तेजी से गिरावट - भारत में गरीबी रेखा

SBI Report- एसबीआई की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि देश में गरीबी के आंकड़ों में आई गिरावट आई है. साथ ही ग्रामीण एवं शहरी आय के अंतर में भी कमी आई है. पढ़ें पूरी खबर...

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By IANS

Published : Feb 27, 2024, 5:01 PM IST

नई दिल्ली: भारत में गरीबी में तेज गिरावट के साथ-साथ देश में ग्रामीण-शहरी आय विभाजन में भी उल्लेखनीय कमी आई है. इस रिपोर्ट को कंज्यूमर स्पेलिंग सर्वे के एसबीआई रिसर्च ने जारी किया है. 2018 से 19 के बाद से ग्रामीण गरीबी में 440 आधार अंकों की गिरावट आई है. महामारी के बाद शहरी गरीबी में 170 आधार अंकों की गिरावट आई है. ये दिखाता है कि निचले स्तर के लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए सरकार की पहल का महत्वपूर्ण लाभकारी प्रभाव पड़ रहा है.

SBI
एसबीआई

भारत विकास के राह पर
आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण गरीबी अब 7.2 फीसदी (2011-12 में 25.7 फीसदी) है, जबकि शहरी गरीबी 4.6 फीसदी (2011-12 में 13.7 फीसदी) है. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि भारत अधिक आकांक्षी होता जा रहा है, जैसा कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में विवेकाधीन उपभोग (जैसे पेय पदार्थ, नशीले पदार्थ, मनोरंजन, टिकाऊ सामान आदि पर खर्च) की बढ़ती हिस्सेदारी से संकेत मिलता है. शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में आकांक्षा की गति तेज है.

SBI
एसबीआई

एसबीआई की रिपोर्ट
एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण और शहरी मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग खर्च (एमपीसीई) के बीच का अंतर अब 71.2 फीसदी है, जो 2009-10 में 88.2 फीसदी था. ग्रामीण एमपीसीई का लगभग 30 फीसदी मुख्य रूप से डीबीटी ट्रांसफर, ग्रामीण बुनियादी ढांचे के निर्माण में निवेश, किसानों की आय में वृद्धि, और साथ में ग्रामीण आजीविका में उल्लेखनीय सुधार के संदर्भ में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के कारण होता है.

भारत के पिछड़े राज्य आगे बढ़ रहे
एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, उन्नत भौतिक बुनियादी ढांचा दो-तरफा ग्रामीण-शहरी गतिशीलता को सक्षम कर रहा है, जो ग्रामीण और शहरी परिदृश्य के बीच बढ़ते क्षैतिज आय अंतर और ग्रामीण आय वर्गों के भीतर ऊर्ध्वाधर आय अंतर का मुख्य कारण है. जिन राज्यों को कभी पिछड़ा माना जाता था, वे ग्रामीण और शहरी अंतर में सबसे अधिक सुधार दिखा रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में इन कारकों का प्रभाव तेजी से दिख रहा है. ग्रामीण पिरामिड के निचले आधे हिस्से में अब उपभोग पैटर्न ज्यादातर शहरी समकक्षों में परिवर्तित हो रहा है.

गांव और शहरों का विकास दर
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सीपीआई गणना में संशोधित एमपीसीई भार वित्त वर्ष 2024 के लिए भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि को शीर्ष 7.5 फीसदी तक पहुंचाने में मदद कर सकता है. ग्रामीण और शहरी उपभोग सभी वर्गों में औसतन लगभग समान विकास दर (ग्रामीण के लिए 2.66 प्रतिशत, शहरी के लिए 2.59 प्रतिशत) से बढ़ रहा है. गिनी गुणांक के सांख्यिकीय समकक्ष का उपयोग करते हुए फ्रैक्टाइल्स में ग्रामीण और शहरी के बीच क्षैतिज उपभोग असमानता 0.560 से घटकर 0.475 हो गई है.

सबसे निचले खंड में शहरी खपत ग्रामीण समकक्ष की तुलना में केवल 46 फीसदी अधिक भिन्न है. विभिन्न वर्गों में शहरी खपत ग्रामीण समकक्ष की तुलना में केवल 68 प्रतिशत अधिक भिन्न है, जो अखिल भारतीय औसत से बहुत कम है. यह इंगित करता है कि ग्रामीण पिरामिड के निचले आधे हिस्से में अब एमपीसीई पैटर्न ज्यादातर शहरी समकक्षों में परिवर्तित हो रहे हैं.

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भारत विकास के राह पर
आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण गरीबी अब 7.2 फीसदी (2011-12 में 25.7 फीसदी) है, जबकि शहरी गरीबी 4.6 फीसदी (2011-12 में 13.7 फीसदी) है. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि भारत अधिक आकांक्षी होता जा रहा है, जैसा कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में विवेकाधीन उपभोग (जैसे पेय पदार्थ, नशीले पदार्थ, मनोरंजन, टिकाऊ सामान आदि पर खर्च) की बढ़ती हिस्सेदारी से संकेत मिलता है. शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में आकांक्षा की गति तेज है.

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एसबीआई की रिपोर्ट
एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण और शहरी मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग खर्च (एमपीसीई) के बीच का अंतर अब 71.2 फीसदी है, जो 2009-10 में 88.2 फीसदी था. ग्रामीण एमपीसीई का लगभग 30 फीसदी मुख्य रूप से डीबीटी ट्रांसफर, ग्रामीण बुनियादी ढांचे के निर्माण में निवेश, किसानों की आय में वृद्धि, और साथ में ग्रामीण आजीविका में उल्लेखनीय सुधार के संदर्भ में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के कारण होता है.

भारत के पिछड़े राज्य आगे बढ़ रहे
एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, उन्नत भौतिक बुनियादी ढांचा दो-तरफा ग्रामीण-शहरी गतिशीलता को सक्षम कर रहा है, जो ग्रामीण और शहरी परिदृश्य के बीच बढ़ते क्षैतिज आय अंतर और ग्रामीण आय वर्गों के भीतर ऊर्ध्वाधर आय अंतर का मुख्य कारण है. जिन राज्यों को कभी पिछड़ा माना जाता था, वे ग्रामीण और शहरी अंतर में सबसे अधिक सुधार दिखा रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में इन कारकों का प्रभाव तेजी से दिख रहा है. ग्रामीण पिरामिड के निचले आधे हिस्से में अब उपभोग पैटर्न ज्यादातर शहरी समकक्षों में परिवर्तित हो रहा है.

गांव और शहरों का विकास दर
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सीपीआई गणना में संशोधित एमपीसीई भार वित्त वर्ष 2024 के लिए भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि को शीर्ष 7.5 फीसदी तक पहुंचाने में मदद कर सकता है. ग्रामीण और शहरी उपभोग सभी वर्गों में औसतन लगभग समान विकास दर (ग्रामीण के लिए 2.66 प्रतिशत, शहरी के लिए 2.59 प्रतिशत) से बढ़ रहा है. गिनी गुणांक के सांख्यिकीय समकक्ष का उपयोग करते हुए फ्रैक्टाइल्स में ग्रामीण और शहरी के बीच क्षैतिज उपभोग असमानता 0.560 से घटकर 0.475 हो गई है.

सबसे निचले खंड में शहरी खपत ग्रामीण समकक्ष की तुलना में केवल 46 फीसदी अधिक भिन्न है. विभिन्न वर्गों में शहरी खपत ग्रामीण समकक्ष की तुलना में केवल 68 प्रतिशत अधिक भिन्न है, जो अखिल भारतीय औसत से बहुत कम है. यह इंगित करता है कि ग्रामीण पिरामिड के निचले आधे हिस्से में अब एमपीसीई पैटर्न ज्यादातर शहरी समकक्षों में परिवर्तित हो रहे हैं.

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