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क्या भारत से पैसा निकालकर चीन जा रहे विदेशी निवेशक, अक्टूबर में अब तक एक लाख करोड़ की बिकवाली

अक्टूबर में भारतीय शेयरों में एफपीआई की बिकवाली एक लाख करोड़ रुपये से अधिक पहुंच चुकी है.

FPI selloff in Indian stocks
प्रतीकात्मक फोटो (Getty Image)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 22, 2024, 1:00 PM IST

नई दिल्ली: ऐसा लगता है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की पसंद भारतीय शेयर बाजार से गायब हो रही है. जैसा कि अक्टूबर में अब तक देखी गई बिक्री से पता चलता है. यह भावना में एक तेज बदलाव को दिखाता है. इसमें एफपीआई ने बड़ी मात्रा में इक्विटी बेची है, जो महंगे मूल्यांकन और बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों पर बढ़ती चिंताओं को दिखाता है.

अमेरिकी फेड द्वारा 50 आधार अंकों की दर वृद्धि के बाद भारतीय इक्विटी में एफपीआई का मजबूत प्रवाह तेजी से आउटफ्लो में बदल गया है. एफपीआई कथित तौर पर भारतीय इक्विटी से अपने फंड को चीनी शेयरों में रीडायरेक्ट कर रहे हैं, जो बीजिंग द्वारा अपने स्ट्रगलिंग एसेट और कैपिटल मार्केट को स्थिर करने के लिए हाल ही में उठाए गए उपायों से प्रोत्साहित हैं.

इससे निवेशकों का भरोसा फिर से बढ़ गया है कि चीन अपनी आर्थिक मंदी से उबर सकता है, जिससे कॉर्पोरेट मुनाफे में वृद्धि हो सकती है. चल रहे उपायों के एक हिस्से के रूप में, चीनी केंद्रीय बैंक ने आर्थिक सुधार का समर्थन करने के लिए सोमवार को अपनी प्रमुख उधार दरों में 25 आधार अंकों की कटौती करके इसे नए निचले स्तर पर ला दिया.

रिकॉर्ड पर बिकवाली
ट्रेंडलाइन के आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर में अब तक FPI ने भारतीय इक्विटी से रिकॉर्ड एक लाख करोड़ रुपये निकाले हैं, जो रिकॉर्ड पर सबसे ज्यादा मासिक निकासी है. सबसे ज्यादा मासिक निकासी का पिछला रिकॉर्ड मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान था, जब FPI ने 65,816 करोड़ रुपये मूल्य के भारतीय शेयर बेचे थे.

आर्थिक मामलों के जानकार मानते हैं कि शेयर बाजार गिरने की वजह प्रमुख कंपनियों के दूसरी तिमाही में दिए जाने वाले कमजोर नतीजे भी हैं. यानी कंपनियों ने जो भी अर्निंग जारी किए हैं, वे उत्साहजनक नहीं है. इसकी वजह से मार्केट में निगेटिव सेंटिमेंट है.

इसके अलावा अमेरिकी चुनाव पर भी सबकी नजर बनी हुई है. अमेरिका में पांच नवंबर को राष्ट्रपति के चुनाव होने वाले हैं. अगला राष्ट्रपति कौन होगा, इसको लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है. बहुत से जानकार मानते हैं कि यदि ट्रंप जीते, तो शेयर बाजार के लिए अच्छी स्थिति हो सकती है. इसके साथ ही अमेरिकी फेड रिजर्व बैंक भी ब्याज दर में कटौती कर सकता है.

इन सबसे हटकर पूरी दुनिया की जो राजनीतिक स्थिति है, वह और भी चिंताजनक है. रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के अलावा इजराइल और ईरान के बीच कभी भी जंग की स्थिति आ सकती है. एक अमेरिकी अखबार ने दावा किया है कि इजराइल अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से पहले ईरान पर हमला कर सकता है. और यदि ऐसा हुआ, तो दुनिया में फिर से तनाव बढ़ेगा और बाजार की स्थिति खराब हो सकती है.

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नई दिल्ली: ऐसा लगता है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की पसंद भारतीय शेयर बाजार से गायब हो रही है. जैसा कि अक्टूबर में अब तक देखी गई बिक्री से पता चलता है. यह भावना में एक तेज बदलाव को दिखाता है. इसमें एफपीआई ने बड़ी मात्रा में इक्विटी बेची है, जो महंगे मूल्यांकन और बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों पर बढ़ती चिंताओं को दिखाता है.

अमेरिकी फेड द्वारा 50 आधार अंकों की दर वृद्धि के बाद भारतीय इक्विटी में एफपीआई का मजबूत प्रवाह तेजी से आउटफ्लो में बदल गया है. एफपीआई कथित तौर पर भारतीय इक्विटी से अपने फंड को चीनी शेयरों में रीडायरेक्ट कर रहे हैं, जो बीजिंग द्वारा अपने स्ट्रगलिंग एसेट और कैपिटल मार्केट को स्थिर करने के लिए हाल ही में उठाए गए उपायों से प्रोत्साहित हैं.

इससे निवेशकों का भरोसा फिर से बढ़ गया है कि चीन अपनी आर्थिक मंदी से उबर सकता है, जिससे कॉर्पोरेट मुनाफे में वृद्धि हो सकती है. चल रहे उपायों के एक हिस्से के रूप में, चीनी केंद्रीय बैंक ने आर्थिक सुधार का समर्थन करने के लिए सोमवार को अपनी प्रमुख उधार दरों में 25 आधार अंकों की कटौती करके इसे नए निचले स्तर पर ला दिया.

रिकॉर्ड पर बिकवाली
ट्रेंडलाइन के आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर में अब तक FPI ने भारतीय इक्विटी से रिकॉर्ड एक लाख करोड़ रुपये निकाले हैं, जो रिकॉर्ड पर सबसे ज्यादा मासिक निकासी है. सबसे ज्यादा मासिक निकासी का पिछला रिकॉर्ड मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान था, जब FPI ने 65,816 करोड़ रुपये मूल्य के भारतीय शेयर बेचे थे.

आर्थिक मामलों के जानकार मानते हैं कि शेयर बाजार गिरने की वजह प्रमुख कंपनियों के दूसरी तिमाही में दिए जाने वाले कमजोर नतीजे भी हैं. यानी कंपनियों ने जो भी अर्निंग जारी किए हैं, वे उत्साहजनक नहीं है. इसकी वजह से मार्केट में निगेटिव सेंटिमेंट है.

इसके अलावा अमेरिकी चुनाव पर भी सबकी नजर बनी हुई है. अमेरिका में पांच नवंबर को राष्ट्रपति के चुनाव होने वाले हैं. अगला राष्ट्रपति कौन होगा, इसको लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है. बहुत से जानकार मानते हैं कि यदि ट्रंप जीते, तो शेयर बाजार के लिए अच्छी स्थिति हो सकती है. इसके साथ ही अमेरिकी फेड रिजर्व बैंक भी ब्याज दर में कटौती कर सकता है.

इन सबसे हटकर पूरी दुनिया की जो राजनीतिक स्थिति है, वह और भी चिंताजनक है. रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के अलावा इजराइल और ईरान के बीच कभी भी जंग की स्थिति आ सकती है. एक अमेरिकी अखबार ने दावा किया है कि इजराइल अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से पहले ईरान पर हमला कर सकता है. और यदि ऐसा हुआ, तो दुनिया में फिर से तनाव बढ़ेगा और बाजार की स्थिति खराब हो सकती है.

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