भोपाल। राजधानी के गली-मोहल्लों से लेकर बाजारों तक में नारियल के ठेले आसानी से देखे जा सकते हैं. लोगों को नारियल पानी पिलाने के बाद ये ठेले वाले इसे सड़कों के किनारे या आसपास खुले स्थानों पर फेंक देते हैं. जिससे शहर में कचरे का ढेर बढ़ रहा है. अब नगर निगम भोपाल ने नारियल के खोल का शत-प्रतिशत उपयोग करने के लिए इसका इस्तेमाल करने की योजना बनाई है. इससे नगर निगम अब लाखों रुपये की कमाई करेगा.
साल 2025 तक लगेगा प्रोसेसिंग प्लांट
नगर निगम भोपाल के अधिकारियों ने बताया कि भोपाल को कोकोनट वेस्ट और थर्माकोल वेस्ट की समस्या से निजात मिलने वाली है. यह दोनों वेस्ट नगर निगम के लिए बड़ी समस्या बन गए हैं. अब इसका निष्पादन करने के लिए नगर निगम दो नए प्लांट लगाने जा रही है. इसके लिए नगर निगम पीपीपी मोड पर प्लांट की जगह देगा और बदले में रेवेन्यू मिलेगा. फिलहाल दोनों प्रोजेक्ट की फाइलें बन गई हैं. सबकुछ ठीक रहा तो साल 2025 में कोकोनट वेस्ट और थर्माकोल वेस्ट के प्लांट लग जाएंगे.
नारियल विक्रेताओं से इकठ्ठा किया जाएगा कोकोनट वेस्ट
नगर निगम जोन स्तर पर नारियल पानी का व्यापार करने वालों के साथ संवाद करेगी. इसके बाद उन्हें समझाया जाएगा कि कोकोनट वेस्ट खुले में न फेंके. इसे डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन वाहनों को ही दें. इसके बाद भी यदि दुकानदार नारियल खोल को बाहर फेंकते हुए पकड़ा जाता है तो उसके खिलाफ जुर्माना लगाया जाएगा. नगर निगम द्वारा कोकोनट वेस्ट से रस्सी बनाने के लिए निजी कंपनी को काम दिया जाएगा. इसके लिए जल्द ही टेंडर जारी किए जाएंगे.
शहर में प्रतिदिन चार ट्रक निकलता है नारियल खोल
वर्तमान में शहर के विभिन्न क्षेत्रों से करीब 4 ट्रक नारियल खोल निकल रहे हैं. जिन्हें शहर के 12 गार्बेज में ट्रांसफर स्टेशन भेजा जा रहा है. हालांकि एक एनजीओ निगम से यह नारियल खोल मुफ्त में लेकर तरह-तहर के प्रोडक्ट बनाकर मार्केट में महंगे दामों में बेच रहा है. इसलिए अब निगम खुद ही इसका प्लांट लगाने की तैयारी में है. गौरतलब है कि आर्गेनिक फार्मिंग करने वाले किसानों के लिए यह कोको वेस्ट एक फायदेमंद विकल्प है. इसकी सेल से खेत की मेढ़ बनाने से कई फायदे सामने आ चुके हैं. वहीं इससे निकलने वाले रेशों से कई तरह के प्रोडक्ट बनते हैं.
कोकोनट वेस्ट से बनेगी रस्सी
कोकोनट वेस्ट यानि नारियल खोल से पहले रस्सी बनाई जाती थी. पुराने दौर में ज्यादातर नारियल रस्सी का ही उपयोग किया जाता था लेकिन इसकी जगह नाइलोन और प्लास्टिक ने ले ली जो पर्यावरण के लिए घातक है. दरअसल पानी पीने के बाद जिस खोल को हम फेंक देते हैं उसे एक जगह जमा किया जाता है. इसके बाद इन खोलों को तोड़कर पाइल बनाई जाती है. इस पाइल को मशीन में डालकर इन नारियल खोल को पाउडर में बदल दिया जाता है. धीरे-धीरे प्रेशर से इस पाउडर को लंबे तार में बदला जाता है, जिसे मशीन के ही जरिये रस्सी में बदल दिया जाता है. ये रस्सियां नेचुरल होती हैं.
पाउडर फॉर्म में तैयार होगा थर्माकोल वेस्ट
शहर में रोजाना बड़ी मात्रा में थर्माकोल वेस्ट भी निकलता है, जिसे ना जला सकते हैं ना जमीन में दफन कर सकते हैं. यह भी प्लास्टिक की तरह ही पर्यावरण के लिए घातक माना जाता है. वर्तमान में निगम इस वेस्ट को गार्बेज ट्रांसफर स्टेशनों पर ही एकत्रित कर रहा है. लेकिन हाल ही में आरिफ नगर गार्बेज ट्रांसफर स्टेशन में लगी आग का कारण यह थर्माकोल थे. ये थर्माकोल निगम के लिए परेशानी खड़ी कर रहे हैं इसीलिए नगर निगम अब थर्माकोल वेस्ट के लिए भी प्लांट लगाने जा रही है. जहां थर्माकोल को पाउडर फॉर्म में तैयार कर बड़ी कंपनियों को सप्लाई किया जाएगा.