नई दिल्ली: भारत का केंद्रीय बजट 1 फरवरी को संसद में पेश किया जाएगा. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट भाषण देंगी और देश के वित्तीय हालात का लेखा-जोखा पेश करेंगी. लेकिन क्या आपको पता है कि 1973-74 के बजट को भारतीय बजट के इतिहास में ब्लैक बजट कहा जाता है. लेकिन इसे ब्लैक बजट क्यों कहा जाता है? इस बजट में उस समय की महत्वपूर्ण आर्थिक चुनौतियों और सरकार की नीतियों को दिखाया गया था, जिसने देश की वित्तीय स्थिति को गहराई से प्रभावित किया. इस समय देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी.
इंदिरा गांधी के 1973 के बजट को क्यों कहा गया ब्लैक बजट?
1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी तनाव का सामना करना पड़ा. युद्ध के खर्चों ने सरकारी खजाने को खाली कर दिया था. स्थिति को और भी बदतर बनाते हुए देश ने सूखे सहित प्राकृतिक आपदाओं का सामना किया, जिसने कृषि उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित किया. इन घटनाओं के कारण सरकारी राजस्व में गिरावट आई और साथ ही साथ खर्च में वृद्धि हुई, जिसके परिणामस्वरूप बजट घाटा बढ़ गया.
तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंतराव बी चव्हाण द्वारा प्रस्तुत 1973-74 के बजट में 550 करोड़ रुपये का चौंकाने वाला राजकोषीय घाटा सामने आया, जो उस समय एक बहुत बड़ी राशि थी और अपने पैमाने में अभूतपूर्व थी. इस खुलासे ने भारत की आर्थिक स्थिति की अनिश्चितता को उजागर किया. अपने बजट भाषण के दौरान चव्हाण ने घाटे को मौजूदा सूखे के लिए जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि सूखे के कारण देश में स्थिति खराब हो गई है. खाद्य उत्पादन में भारी कमी आई है, जिससे बजट घाटा बढ़ गया है.
सरकार ने उस बजट में कुछ महत्वपूर्ण घोषणाएं भी कीं. इनमें कोयला खदानों, बीमा कंपनियों और भारतीय कॉपर कॉरपोरेशन के राष्ट्रीयकरण के लिए 56 करोड़ रुपए का प्रावधान शामिल था. सरकार का तर्क था कि कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण से ऊर्जा क्षेत्र की बढ़ती मांगों को पूरा करने में मदद मिलेगी. ब्लैक बजट का देश की आर्थिक नीतियों और योजनाओं पर गहरा असर पड़ा, जिससे सरकार को खर्चों में कटौती करने और वित्तीय अनुशासन अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ा.