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क्या विरोध के बाद बच जाएगा ऐतिहासिक खलंगा का वन क्षेत्र? युवाओं ने उठाया बीड़ा, वन विभाग ने दिया जवाब - Khalanga Forest Controversy

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : May 13, 2024, 5:21 PM IST

Updated : May 13, 2024, 5:33 PM IST

Khalanga Forest Controversy, KHALANGA Tree Cutting देहरादून के रायपुर क्षेत्र में स्थित खलंगा के जंगल आज योजनाओं की भेंट चढ़ने की तरफ बढ़ रहे हैं. इन्हें बचाने का युवाओं ने भी बीड़ा उठा लिया है. ये जंगल ना केवल पर्यावरण को बचाने की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं बल्कि ये उस इतिहास के भी गवाह है जो यहां कभी अंग्रेजों की शर्मनाक हार के लिए याद किया जाता है.

Khalanga Fores
युवाओं ने उठाया 2000 पेड़ों को बचाने का बीड़ा (photo- ETV Bharat Graphics)
खलंगा के वन क्षेत्र को कटने से बचाने के लिए युवाओं ने उठाया बीड़ा. (VIDEO- ETV BHARAT)

देहरादून: उत्तराखंड में विकास के नाम पर जंगलों की कटाई कोई नई बात नहीं है. इस बार देहरादून के रायपुर क्षेत्र में स्थित खलंगा चर्चाओं में है. दरअसल, इस क्षेत्र में एक बड़ा जलाशय बनाने की बात कही जा रही है, जिसके लिए 2000 पेड़ काटे जाने का अनुमान लगाया जा रहा है. फिलहाल वन विभाग द्वारा पेड़ों पर लाल निशान लगाए गए हैं, और इस योजना के लिए टेंडर भी किए जाने की बात कही जा रही है. वहीं, पेड़ों पर नंबरिंग होने के बाद स्थानीय लोगों और युवाओं का विरोध शुरू हो गया है.

युवाओं ने खलंगा में पर्यावरण बचाने के लिए एक विशेष अभियान छेड़ दिया है. इस अभियान में धीरे-धीरे युवा जनसमर्थन जुटाने की कोशिश में भी लग गए हैं. दरअसल, इस क्षेत्र में जिन पेड़ों को काटा जाना है उन पर वन विभाग के कर्मचारी लाल निशान लगा चुके हैं. बस यही लाल निशान युवाओं को परेशान कर रहे हैं और शायद इसलिए युवाओं ने ही अब देहरादून में पेड़ों को काटे जाने के खिलाफ अभियान खड़ा करने का बीड़ा उठा लिया है.

KHALANGA Tree Cutting
विकास के नाम पर खलंगा वन क्षेत्र से काटे जाने हैं 2000 पेड़ (VIDEO- ETV BHARAT)

रविवार (12 मई) को खलंगा स्थित वन क्षेत्र में बड़ी संख्या में युवा एकाएक इकट्ठा हो गए और पेड़ों को काटे जाने के खिलाफ शांतिपूर्वक अपना अभियान शुरू कर दिया. युवाओं ने पर्यावरण बचाने के लिए इस तरह 2000 पेड़ काटे जाने के खिलाफ सीधे तौर पर अपना विरोध दर्ज कराया. ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरे का भी युवाओं ने जिक्र किया और सरकार को भी पर्यावरण के लिए सजग करते हुए इस योजना पर लिए गए फैसले को वापस लेने की गुजारिश की.

इसको लेकर तमाम राजनीतिक, सामाजिक, जन संगठन से जुड़े लोग और क्षेत्रीय निवासी खलंगा में एकत्रित हुए और जलापूर्ति के लिए इतनी बड़ी संख्या में पेड़ों की बली दिए जाने का विरोध जताया.

युवाओं ने उठाया बीड़ा: पेड़ कटने के खिलाफ चल रहे अभियान के लिए वन क्षेत्र में पहुंची प्रियंका कहती हैं कि, युवा पीढ़ी बिल्कुल भी नहीं चाहती कि जंगल काटा जाए, लेकिन न जाने हमारे राजनेता और सरकार क्या चाहती है. हम बचपन से इस जंगल को देख रहे हैं लेकिन अब किसी योजना के नाम पर बड़ी संख्या में पेड़ काटे जाने की बात कही जा रही है. हमें और स्थानीय लोगों को इससे ऐतराज है. सरकार को अपने इस निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए.

KHALANGA Tree Cutting
लोगों के साथ बच्चों ने भी पेड़ काटने का विरोध जताया (VIDEO- ETV BHARAT)

विरोध दर्ज कराने पहुंचे एक और युवा आशीष का कहना है कि जिस तरह पेड़ कट रहे हैं उससे आने वाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी. उनका कहना है कि, पर्यटक उत्तराखंड में बड़ी-बड़ी बिल्डिंग देखने नहीं आता बल्कि यहां के पर्यावरण के कारण आता है, लेकिन जिस तरह पेड़ों को काटा जा रहा है उससे यहां का पर्यावरण भी प्रभावित हो रहा है. इसलिए ऐसी योजनाओं की जरूरत नहीं है जो यहां के पर्यावरण के लिए खतरा बनें.

इस क्षेत्र में प्रदर्शन कर रहे युवाओं की संख्या धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है. युवा यहां पेड़ काटे जाने पर बेहद ज्यादा नाराज भी दिखाई दे रहे हैं. युवाओं का कहना है कि वो सरकार को समझाने की कोशिश करेंगे और इस अभियान के जरिए योजना को किसी ऐसी जगह पर शिफ्ट करने की मांग होगी, जहां पर पेड़ों को काटने की जरूरत ना पड़े. ये सभी युवा प्रदर्शनकारी सरकार द्वारा अपना निर्णय वापस नहीं लेने तक अभियान जारी रखने की बात कह रहे हैं. गौरा देवी के चिपको आंदोलन को प्रेरणा बनाकर युवा वर्ग पेड़ों को बचाने के लिए अपने अभियान को आगे बढ़ा रहा है.

KHALANGA Tree Cutting
खलंगा के वन क्षेत्र को बचाने के लिए उतरे युवा (VIDEO- ETV BHARAT)

कांग्रेस ने की मुद्दा भुनाने की कोशिश: इसी बीच वहां पूर्व कैबिनेट मंत्री हीरा सिंह बिष्ट भी पहुंचे. उनका कहना है कि सरकार हरे भरे पेड़ों को काटने की साजिश रच रही है. ये जंगल वन और मानव जीवन को सुरक्षित और संरक्षित रखने की जगह है और यह पेड़ पर्यावरण को बचाने के साथ ही ऑक्सीजन देने का काम भी करते हैं, लेकिन सरकार विकास के नाम पर इतने सारे पेड़ों पर आरी चलाने की तैयारी कर रही है. उन्होंने कहा कि जिन अधिकारियों ने यह योजना बनाई है वो उनका दिवालियापन दर्शाता है.

बिष्ट ने बताया कि, पूर्व में वन अधिनियम 1980 जैसे सख्त अधिनियम के तहत खेत में साल के पेड़ को काटने की परमिशन लेने के लिए भी फाइल दिल्ली भेजनी पड़ती थी और अब सरकार 2000 पेड़ काटने की योजना बना रही है. उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारियों के साथ मिलीभगत में वन माफिया भी शामिल हैं, इसलिए इतने पेड़ों को काटकर प्रकृति से खिलवाड़ करने की कोशिश की जा रही है.

KHALANGA Tree Cutting
पेड़ों पर लाल निशान लगाकर चिन्हित किए काटे जाने वाले पेड़. (VIDEO- ETV BHARAT)

क्या कहता है सरकारी अमला: करीब 2 हजार पेड़ काटे जाने और इस पर युवाओं के विरोध प्रदर्शन को लेकर ईटीवी भारत ने यमुना वृत्त वन संरक्षक कहकशां नसीम से बात की. उन्होंने बताया कि, खलंगा में वॉटर ट्रीटमेंट पर रिजर्व वायर के लिए योजना को फिलहाल सैद्धांतिक मंजूरी नहीं मिली है. साल 2020 में ही इस पर प्रपोजल आ गया था लेकिन तब से अब तक फिलहाल औपचारिकताओं को ही पूरा किया जा रहा है.

कहकशां नसीम ने बताया कि लोगों का यह विरोध पेड़ों पर नंबरिंग होने के बाद शुरू हुआ है. हालांकि, अभी यह योजना यहां पर आएगी इस पर भी कोई भी स्थिति स्पष्ट नहीं है. इससे पहले वन विभाग इस योजना को किसी दूसरी जगह पर शुरू किए जाने के लिए कुछ और क्षेत्र का विकल्प भी दे चुका है. हालांकि, पेयजल विभाग तकनीकी कारणों से इसी जगह को योजना के लिए सबसे बेहतर मान रहा है.

उन्होंने बताया कि, करीब 2000 पेड़ों पर योजना के लिए नंबरिंग की गई है लेकिन क्योंकि अभी इस योजना की सैद्धांतिक मंजूरी भी नहीं हुई है तो अभी योजना को लेकर स्थिति बहुत ज्यादा स्पष्ट नहीं है. इस योजना पर यहां करीब 5 से 6 हेक्टेयर वन क्षेत्र लगना है लेकिन यदि योजना यहां शुरू भी होती है तो 2000 पेड़ काटे जाएंगे यह तय नहीं है.

क्या है योजना: कहकशां नसीम बताती हैं कि देहरादून शहर में पेयजल की समस्या को खत्म करने और आने वाले कई वर्षों तक अनुमानित जनसंख्या को समझते हुए इस योजना की शुरुआत की गई थी. सौंग डैम से पेयजल शहर तक पहुंचाना है और इसके लिए वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट और रिजर्व वायर की व्यवस्था की जानी है, इसलिए जमीन की तलाश की जा रही थी. फिलहाल पेयजल विभाग को खलंगा का वन क्षेत्र सबसे बेहतर क्षेत्र लग रहा है. हालांकि, वन विभाग यह कोशिश कर रहा है कि पेयजल विभाग कुछ दूसरे विकल्पों पर भी विचार करे, ताकि साल के इन जंगलों को बचाया जा सके.

क्यों संकट में है वन क्षेत्र: देहरादून में खलंगा का नाम आते ही उस ऐतिहासिक गाथा का स्मरण होने लगता है जो कभी यहां रची गई थी. लेकिन फिलहाल इस जगह पर एक लंबे चौड़े क्षेत्रफल में कई हजार वृक्ष उन यादों को बचाए हुए हैं. लेकिन सरकार अब यहां बड़ी संख्या में वृक्षों को काटने की तैयारी कर रही है. इसके पीछे का तर्क इस जगह पर बनने वाला एक जलाशय है, जिसके लिए सरकारी एजेंसियों द्वारा टेंडर तक किया जा चुका है. बताया जा रहा है कि जरूरी औपचारिकताओं को सरकारी एजेंसियां पूरा कर चुकी है. यही नहीं, यहां काटे जाने वाले करीब 2000 पेड़ों का चिन्हीकरण कर लिया गया है. यहां पेड़ों पर लगे लाल निशान इस बात के गवाह हैं.

खलंगा का इतिहास: खलंगा नाम भारत के इतिहास में दर्ज है. ये क्षेत्र अंग्रेजों की शर्मनाक हार के लिए याद किया जाता है. इस क्षेत्र के ऐतिहासिक महत्व को देखें तो यहां पर 1814 में ब्रिटिश और गोरखाओं के बीच एक भीषण युद्ध हुआ था, उस समय के अत्याधुनिक हथियारों से लैस ब्रिटिश हुकूमत के हजारों सैनिकों ने गोरखाओं पर हमला कर दिया था. इस क्षेत्र में शरण लिए हुए गोरखा अचानक हुए इस आक्रमण से हैरान रह गए थे.

बताया जाता है कि उस समय केवल 600 गोरखा सैनिक की यहां मौजूद थे लेकिन जब युद्ध शुरू हुआ तो गोरखाओं ने रण में ऐसा शौर्य दिखाए कि ब्रिटिश सैनिक युद्ध भूमि छोड़ने को मजबूर हो गए. उस दौरान गोरखा सैनिकों द्वारा करीब 781 अंग्रेज सैनिकों को मार गिराया था. गोरखा सैनिक उस समय तलवार और खुखरी लेकर अंग्रेज सैनिकों पर चढ़ बैठे थे. बड़ी बात यह है कि खुद अंग्रेज भी इस लड़ाई के बाद गोरखाओं के शौर्य की गाथा गाने लगे थे और उन्होंने गोरखा सैनिकों की बहादुरी को देखकर इसके ठीक 1 साल बाद 1815 में गोरखा रेजीमेंट की स्थापना की थी. यह लड़ाई गोरखाओं ने वीर बलभद्र के नेतृत्व में लड़ी थी और इस लड़ाई की ऐतिहासिक जीत के बाद खलंगा में खलंगा वॉर मेमोरियल की स्थापना की गई थी.

इसी ऐतिहासिक जंगल को बचाने के लिए आज युवा शक्ति ने बागडोर अपने हाथ में लेकर सरकार को पुनर्विचार करने पर मजबूर करने की ठान ली है.

ये भी पढ़ेंः खलंगा में गोरखा वॉरियर्स ने फिरंगियों को चटाई थी धूल, अंग्रेजों ने शौर्य के सम्मान में बनाया 'खलंगा युद्ध स्मारक'

ये भी पढ़ेंः मसूरी में सड़क बनाने के लिए काट डाले पेड़! डीएफओ ने मांगे कागजात

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खलंगा के वन क्षेत्र को कटने से बचाने के लिए युवाओं ने उठाया बीड़ा. (VIDEO- ETV BHARAT)

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युवाओं ने खलंगा में पर्यावरण बचाने के लिए एक विशेष अभियान छेड़ दिया है. इस अभियान में धीरे-धीरे युवा जनसमर्थन जुटाने की कोशिश में भी लग गए हैं. दरअसल, इस क्षेत्र में जिन पेड़ों को काटा जाना है उन पर वन विभाग के कर्मचारी लाल निशान लगा चुके हैं. बस यही लाल निशान युवाओं को परेशान कर रहे हैं और शायद इसलिए युवाओं ने ही अब देहरादून में पेड़ों को काटे जाने के खिलाफ अभियान खड़ा करने का बीड़ा उठा लिया है.

KHALANGA Tree Cutting
विकास के नाम पर खलंगा वन क्षेत्र से काटे जाने हैं 2000 पेड़ (VIDEO- ETV BHARAT)

रविवार (12 मई) को खलंगा स्थित वन क्षेत्र में बड़ी संख्या में युवा एकाएक इकट्ठा हो गए और पेड़ों को काटे जाने के खिलाफ शांतिपूर्वक अपना अभियान शुरू कर दिया. युवाओं ने पर्यावरण बचाने के लिए इस तरह 2000 पेड़ काटे जाने के खिलाफ सीधे तौर पर अपना विरोध दर्ज कराया. ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरे का भी युवाओं ने जिक्र किया और सरकार को भी पर्यावरण के लिए सजग करते हुए इस योजना पर लिए गए फैसले को वापस लेने की गुजारिश की.

इसको लेकर तमाम राजनीतिक, सामाजिक, जन संगठन से जुड़े लोग और क्षेत्रीय निवासी खलंगा में एकत्रित हुए और जलापूर्ति के लिए इतनी बड़ी संख्या में पेड़ों की बली दिए जाने का विरोध जताया.

युवाओं ने उठाया बीड़ा: पेड़ कटने के खिलाफ चल रहे अभियान के लिए वन क्षेत्र में पहुंची प्रियंका कहती हैं कि, युवा पीढ़ी बिल्कुल भी नहीं चाहती कि जंगल काटा जाए, लेकिन न जाने हमारे राजनेता और सरकार क्या चाहती है. हम बचपन से इस जंगल को देख रहे हैं लेकिन अब किसी योजना के नाम पर बड़ी संख्या में पेड़ काटे जाने की बात कही जा रही है. हमें और स्थानीय लोगों को इससे ऐतराज है. सरकार को अपने इस निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए.

KHALANGA Tree Cutting
लोगों के साथ बच्चों ने भी पेड़ काटने का विरोध जताया (VIDEO- ETV BHARAT)

विरोध दर्ज कराने पहुंचे एक और युवा आशीष का कहना है कि जिस तरह पेड़ कट रहे हैं उससे आने वाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी. उनका कहना है कि, पर्यटक उत्तराखंड में बड़ी-बड़ी बिल्डिंग देखने नहीं आता बल्कि यहां के पर्यावरण के कारण आता है, लेकिन जिस तरह पेड़ों को काटा जा रहा है उससे यहां का पर्यावरण भी प्रभावित हो रहा है. इसलिए ऐसी योजनाओं की जरूरत नहीं है जो यहां के पर्यावरण के लिए खतरा बनें.

इस क्षेत्र में प्रदर्शन कर रहे युवाओं की संख्या धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है. युवा यहां पेड़ काटे जाने पर बेहद ज्यादा नाराज भी दिखाई दे रहे हैं. युवाओं का कहना है कि वो सरकार को समझाने की कोशिश करेंगे और इस अभियान के जरिए योजना को किसी ऐसी जगह पर शिफ्ट करने की मांग होगी, जहां पर पेड़ों को काटने की जरूरत ना पड़े. ये सभी युवा प्रदर्शनकारी सरकार द्वारा अपना निर्णय वापस नहीं लेने तक अभियान जारी रखने की बात कह रहे हैं. गौरा देवी के चिपको आंदोलन को प्रेरणा बनाकर युवा वर्ग पेड़ों को बचाने के लिए अपने अभियान को आगे बढ़ा रहा है.

KHALANGA Tree Cutting
खलंगा के वन क्षेत्र को बचाने के लिए उतरे युवा (VIDEO- ETV BHARAT)

कांग्रेस ने की मुद्दा भुनाने की कोशिश: इसी बीच वहां पूर्व कैबिनेट मंत्री हीरा सिंह बिष्ट भी पहुंचे. उनका कहना है कि सरकार हरे भरे पेड़ों को काटने की साजिश रच रही है. ये जंगल वन और मानव जीवन को सुरक्षित और संरक्षित रखने की जगह है और यह पेड़ पर्यावरण को बचाने के साथ ही ऑक्सीजन देने का काम भी करते हैं, लेकिन सरकार विकास के नाम पर इतने सारे पेड़ों पर आरी चलाने की तैयारी कर रही है. उन्होंने कहा कि जिन अधिकारियों ने यह योजना बनाई है वो उनका दिवालियापन दर्शाता है.

बिष्ट ने बताया कि, पूर्व में वन अधिनियम 1980 जैसे सख्त अधिनियम के तहत खेत में साल के पेड़ को काटने की परमिशन लेने के लिए भी फाइल दिल्ली भेजनी पड़ती थी और अब सरकार 2000 पेड़ काटने की योजना बना रही है. उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारियों के साथ मिलीभगत में वन माफिया भी शामिल हैं, इसलिए इतने पेड़ों को काटकर प्रकृति से खिलवाड़ करने की कोशिश की जा रही है.

KHALANGA Tree Cutting
पेड़ों पर लाल निशान लगाकर चिन्हित किए काटे जाने वाले पेड़. (VIDEO- ETV BHARAT)

क्या कहता है सरकारी अमला: करीब 2 हजार पेड़ काटे जाने और इस पर युवाओं के विरोध प्रदर्शन को लेकर ईटीवी भारत ने यमुना वृत्त वन संरक्षक कहकशां नसीम से बात की. उन्होंने बताया कि, खलंगा में वॉटर ट्रीटमेंट पर रिजर्व वायर के लिए योजना को फिलहाल सैद्धांतिक मंजूरी नहीं मिली है. साल 2020 में ही इस पर प्रपोजल आ गया था लेकिन तब से अब तक फिलहाल औपचारिकताओं को ही पूरा किया जा रहा है.

कहकशां नसीम ने बताया कि लोगों का यह विरोध पेड़ों पर नंबरिंग होने के बाद शुरू हुआ है. हालांकि, अभी यह योजना यहां पर आएगी इस पर भी कोई भी स्थिति स्पष्ट नहीं है. इससे पहले वन विभाग इस योजना को किसी दूसरी जगह पर शुरू किए जाने के लिए कुछ और क्षेत्र का विकल्प भी दे चुका है. हालांकि, पेयजल विभाग तकनीकी कारणों से इसी जगह को योजना के लिए सबसे बेहतर मान रहा है.

उन्होंने बताया कि, करीब 2000 पेड़ों पर योजना के लिए नंबरिंग की गई है लेकिन क्योंकि अभी इस योजना की सैद्धांतिक मंजूरी भी नहीं हुई है तो अभी योजना को लेकर स्थिति बहुत ज्यादा स्पष्ट नहीं है. इस योजना पर यहां करीब 5 से 6 हेक्टेयर वन क्षेत्र लगना है लेकिन यदि योजना यहां शुरू भी होती है तो 2000 पेड़ काटे जाएंगे यह तय नहीं है.

क्या है योजना: कहकशां नसीम बताती हैं कि देहरादून शहर में पेयजल की समस्या को खत्म करने और आने वाले कई वर्षों तक अनुमानित जनसंख्या को समझते हुए इस योजना की शुरुआत की गई थी. सौंग डैम से पेयजल शहर तक पहुंचाना है और इसके लिए वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट और रिजर्व वायर की व्यवस्था की जानी है, इसलिए जमीन की तलाश की जा रही थी. फिलहाल पेयजल विभाग को खलंगा का वन क्षेत्र सबसे बेहतर क्षेत्र लग रहा है. हालांकि, वन विभाग यह कोशिश कर रहा है कि पेयजल विभाग कुछ दूसरे विकल्पों पर भी विचार करे, ताकि साल के इन जंगलों को बचाया जा सके.

क्यों संकट में है वन क्षेत्र: देहरादून में खलंगा का नाम आते ही उस ऐतिहासिक गाथा का स्मरण होने लगता है जो कभी यहां रची गई थी. लेकिन फिलहाल इस जगह पर एक लंबे चौड़े क्षेत्रफल में कई हजार वृक्ष उन यादों को बचाए हुए हैं. लेकिन सरकार अब यहां बड़ी संख्या में वृक्षों को काटने की तैयारी कर रही है. इसके पीछे का तर्क इस जगह पर बनने वाला एक जलाशय है, जिसके लिए सरकारी एजेंसियों द्वारा टेंडर तक किया जा चुका है. बताया जा रहा है कि जरूरी औपचारिकताओं को सरकारी एजेंसियां पूरा कर चुकी है. यही नहीं, यहां काटे जाने वाले करीब 2000 पेड़ों का चिन्हीकरण कर लिया गया है. यहां पेड़ों पर लगे लाल निशान इस बात के गवाह हैं.

खलंगा का इतिहास: खलंगा नाम भारत के इतिहास में दर्ज है. ये क्षेत्र अंग्रेजों की शर्मनाक हार के लिए याद किया जाता है. इस क्षेत्र के ऐतिहासिक महत्व को देखें तो यहां पर 1814 में ब्रिटिश और गोरखाओं के बीच एक भीषण युद्ध हुआ था, उस समय के अत्याधुनिक हथियारों से लैस ब्रिटिश हुकूमत के हजारों सैनिकों ने गोरखाओं पर हमला कर दिया था. इस क्षेत्र में शरण लिए हुए गोरखा अचानक हुए इस आक्रमण से हैरान रह गए थे.

बताया जाता है कि उस समय केवल 600 गोरखा सैनिक की यहां मौजूद थे लेकिन जब युद्ध शुरू हुआ तो गोरखाओं ने रण में ऐसा शौर्य दिखाए कि ब्रिटिश सैनिक युद्ध भूमि छोड़ने को मजबूर हो गए. उस दौरान गोरखा सैनिकों द्वारा करीब 781 अंग्रेज सैनिकों को मार गिराया था. गोरखा सैनिक उस समय तलवार और खुखरी लेकर अंग्रेज सैनिकों पर चढ़ बैठे थे. बड़ी बात यह है कि खुद अंग्रेज भी इस लड़ाई के बाद गोरखाओं के शौर्य की गाथा गाने लगे थे और उन्होंने गोरखा सैनिकों की बहादुरी को देखकर इसके ठीक 1 साल बाद 1815 में गोरखा रेजीमेंट की स्थापना की थी. यह लड़ाई गोरखाओं ने वीर बलभद्र के नेतृत्व में लड़ी थी और इस लड़ाई की ऐतिहासिक जीत के बाद खलंगा में खलंगा वॉर मेमोरियल की स्थापना की गई थी.

इसी ऐतिहासिक जंगल को बचाने के लिए आज युवा शक्ति ने बागडोर अपने हाथ में लेकर सरकार को पुनर्विचार करने पर मजबूर करने की ठान ली है.

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Last Updated : May 13, 2024, 5:33 PM IST
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