हैदराबाद: भारत सहित दुनिया भर में हर 10 साल पर सरकारों की ओर से जनगणना कराया जाता है. जनगणना का व्यापक उद्देश्य होता है. इसके तहत किसी भी देश के भौगोलिक सीमा में आबादी के बारे में गहन जानकारी को वैज्ञानिक विधि से संग्रह किया जाता है. जानकारी/डेटा का विस्तार पूर्वक अध्ययन कर उसके आधार पर नीतियां तैयार की जाती हैं. विश्व जनसंख्या दिवस का उद्देश्य है कि लोगों को जनगणना के माध्यम से देश की जनसंख्या की गणना से होने वाले फायदे के बारे में आम लोगों को जागरूक करना है.
विश्व जनसंख्या दिवस
विश्व जनसंख्या दिवस की स्थापना 1989 में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा की गई थी. यह विशेष दिन जुलाई 1987 में दुनिया की आबादी पांच अरब से ज्यादा हो जाने के महत्व के जवाब में बनाया गया था. डॉ. के.सी. जकारिया ने इस दिन को मनाने का सुझाव दिया था. विश्व जनसंख्या, जो गरीबी, मातृ स्वास्थ्य, खराब आर्थिक दौर और कई अन्य समस्याओं को ध्यान में रखती है.
बीते तीन दशकों में, दुनिया भर के समाजों ने जनसंख्या डेटा एकत्रीकरण, विश्लेषण और उपयोग में सुधार करने में उल्लेखनीय प्रगति की है. आयु, जातीयता, लिंग और अन्य कारकों के आधार पर अलग-अलग किए गए नए जनसंख्या आंकड़े अब हमारे समाजों की विविधता को अधिक सटीक रूप से दर्शाते हैं.
इन प्रगतियों ने वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य सेवा की डिलीवरी को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाया है, जिससे यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों और विकल्पों का प्रयोग करने की क्षमता में पर्याप्त सुधार हुआ है. तेजी से नई प्रौद्योगिकियां पहले से कहीं अधिक लोगों के अनुभवों का अधिक विस्तृत और समय पर मापन करने में सक्षम बना रही हैं. हालांकि, सबसे अधिक हाशिए पर रहने वाले समुदाय डेटा में कम प्रतिनिधित्व करते हैं, जो उनके जीवन और कल्याण को गहराई से प्रभावित करता है.
विश्व जनसंख्या दिवस क्यों
यह पूछने का क्षण है कि अभी भी कौन बिना गिनती के रह रहा है और क्यों. इससे व्यक्तियों, समाजों और किसी को पीछे न छोड़ने के हमारे वैश्विक प्रयासों को क्या नुकसान हो रहा है. यह हम सभी के लिए यह सुनिश्चित करने के लिए और अधिक करने के लिए प्रतिबद्ध होने का भी क्षण है कि हमारे डेटा सिस्टम मानव विविधता की पूरी श्रृंखला को कैप्चर करें ताकि हर कोई देखा जा सके, अपने मानवाधिकारों का प्रयोग कर सके और अपनी पूरी क्षमता तक पहुंच सके.
हमारे समाज के हाशिये पर रहने वालों के अधिकारों और विकल्पों को समझने के लिए, हमें उनकी गिनती करनी चाहिए- क्योंकि हर कोई मायने रखता है. हमारी समृद्ध मानवीय ताना-बाना केवल उतना ही मजबूत है. जब डेटा और अन्य प्रणालियां हाशिये पर रहने वालों के लिए काम करती हैं, तो वे सभी के लिए काम करती हैं. इस तरह हम सभी के लिए प्रगति को गति देते हैं.
विश्व जनसंख्या रुझानः
विश्व की जनसंख्या को 100 करोड़ तक पहुंचने में सैकड़ों हजार साल लगे-फिर लगभग 200 साल में यह सात गुना बढ़ गई. 2011 में, वैश्विक जनसंख्या 700 करोड़ (7 बिलियन) के आंकड़े पर पहुच गई. 2021 में यह लगभग 790 करोड़ (7.9 बिलियन) है, और 2030 में इसके लगभग 850 करोड़ (8.5 बिलियन) 2050 में 969.99 करोड़ (9.7 बिलियन) 2100 में 1090 करोड़ (10.9 बिलियन) तक बढ़ने की उम्मीद है.
यह नाटकीय वृद्धि मुख्य रूप से प्रजनन आयु तक जीवित रहने वाले लोगों की बढ़ती संख्या के कारण हुई है. इसके साथ ही प्रजनन दर में बड़े बदलाव, बढ़ते शहरीकरण और तेजी से बढ़ते प्रवास भी हुए हैं. इन रुझानों का आने वाली पीढ़ियों पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा.
हाल के दिनों में प्रजनन दर और जीवन प्रत्याशा में भारी बदलाव देखने को मिले हैं. 1970 के दशक की शुरुआत में, महिलाओं के औसतन 4.5 बच्चे थे; 2015 तक, दुनिया भर में कुल प्रजनन दर प्रति महिला 2.5 बच्चों से कम हो गई थी। इस बीच, औसत वैश्विक जीवनकाल 1990 के दशक की शुरुआत में 64.6 वर्ष से बढ़कर 2019 में 72.6 वर्ष हो गया है.
इसके अलावा, दुनिया में शहरीकरण और प्रवास में तेजी देखी जा रही है. 2007 पहला ऐसा साल था जब ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में ज्यादा लोग रहते थे और 2050 तक दुनिया की लगभग 66 प्रतिशत आबादी शहरों में रह रही होगी.
विश्व जनसंख्या डैशबोर्ड 2024
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के अनुसार
- कुल जनसंख्या लाखों में : 8,119
- जनसंख्या वार्षिक दोगुनी होने का समय, वर्ष,: 77
- 0-14 आयु वर्ग की जनसंख्या, प्रतिशत: 25
- 10-19 आयु वर्ग की जनसंख्या, प्रतिशत: 16
- 10-24 आयु वर्ग की जनसंख्या, प्रतिशत: 24
- 15-64 आयु वर्ग की जनसंख्या, प्रतिशत: 65
- 65 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग की जनसंख्या, प्रतिशत: 10
- कुल प्रजनन दर, प्रति महिला: 2.3
- जन्म के समय जीवन प्रत्याशा, वर्ष, पुरुष: 71
- जन्म के समय जीवन प्रत्याशा, वर्ष, महिला: 76
भारत में 2011 के बाद जनगणना नहीं हो पाया है. लेकिन संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष हर देश का जनसंख्या से संबंधित डेटा जारी करता है. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के अनुसार
भारत जनसंख्या डैशबोर्ड 2024
- कुल जनसंख्या लाखों में: 1,441.7
- जनसंख्या वार्षिक दोगुनी होने का समय, वर्ष :77
- 0-14 आयु वर्ग की जनसंख्या, प्रतिशत: 24
- 10-19 आयु वर्ग की जनसंख्या, प्रतिशत: 17
- 10-24 आयु वर्ग की जनसंख्या, प्रतिशत: 26
- 15-64 आयु वर्ग की जनसंख्या, प्रतिशत: 68
- 65 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग की जनसंख्या, प्रतिशत: 7
- कुल प्रजनन दर, प्रति महिला: 2
- जन्म के समय जीवन प्रत्याशा, वर्ष, पुरुष: 71
- जन्म के समय जीवन प्रत्याशा, वर्ष, महिला: 74
जनगणना का गौरवशाली इतिहास
भारत में जनगणना का इतिहास काफी पुराना है. साथ हमारा देश दुनिया के उन चुनिंदा देशों में से एक है, जिसका हर 10 साल बाद जनगणना कराने का गौरवशाली इतिहास रहा है. 1901 से 2011 तक एक साल में जनगणना कार्य पूरी कर लिया गया था. इस दौरान 12 बार जनगणना संपन्न हुआ. लेकिन पहली बार 2021 में निर्धारित समय पर जनगणना कोविड-19 के कारण नहीं हुआ. 2024 का जुलाई महीना चल रहा है. अभी तक जनगणना कब प्रारंभ होगा. कब संपन्न होगा, इस बारे में स्पष्ट संकेत नहीं हैं.
भारतीय जनगणना का इतिहास पैराणिक समय से है. सबसे प्राचीन धर्मग्रंथ ‘ऋग्वेद’ से स्पष्ट है कि 800-600 ई.सा पूर्व के समय भी जनसंख्या गणना की जाती थी. 321-296 ई.सा पूर्व के आस-पास लिखे गए कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कर वसूलने के लिए से राज्य की पॉलिसी के उपाय के रूप में जनगणना पर फोकस दिया गया था.
मुगल काल में अकबर के शासन के समय, प्रशासनिक रिपोर्ट ‘आइन-ए-अकबरी’ में जनसंख्या, उद्योग, धन और कई अन्य विशेषताओं से संबंधित व्यापक डेटा के प्रमाण हैं. भारतीय जनगणना के इतिहास को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है, यानी स्वतंत्रता पूर्व युग और स्वतंत्रता के बाद का युग.
भारत में जनगणना का इतिहास 1800 से प्रारंभ होता है, जब अंग्रेजों ने अपनी जनगणना शुरू की थी. इसी क्रम में 1824 में इलाहाबाद शहर में और 1827-28 में जेम्स प्रिंसेप की ओर से बनारस शहर में जनगणना की गई थी.
भारतीय शहर की पहली पूर्ण जनगणना 1830 में हेनरी वाल्टर की ओर से ढाका में की गई थी. इस जनगणना में लिंग और व्यापक आयु वर्ग के साथ जनसंख्या के डेटा और साथ ही घरों और उनकी सुविधाओं को एकत्र किया गया था. दूसरी बार जनगणना 1836-37 में फोर्ट सेंट जॉर्ज की ओर से की गई थी. 1849 में स्थानीय सरकारों को जनसंख्या का पंचवर्षीय रिटर्न आयोजित करने का आदेश दिया.
भारत में जनसंख्या वृद्धि: भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है, जिसकी जनसंख्या 1.3 बिलियन से अधिक है. यह चीन को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है. देश की जनसंख्या में अस्थिर दर से वृद्धि के कारण भारत को जनसंख्या वृद्धि की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ रहा है. जनसंख्या अनुमानों से पता चलता है कि भारत की जनसंख्या 2030 तक 1.5 बिलियन और 2050 तक 2 बिलियन से अधिक हो सकती है. परिणामस्वरूप देश के संसाधनों पर बहुत अधिक मांग होगी और सामाजिक अस्थिरता, गरीबी और पर्यावरणीय गिरावट की स्थिति और खराब होगी. हालांकि सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिए कुछ कदम उठाए हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि और अधिक व्यापक कार्रवाई की आवश्यकता है.
सिर्फ इंसानों की गणना नहीं है जनगणना
जनगणना में सिर्फ जनसंख्या की गिनती नहीं होती है. यह कई मुद्दों पर व्यापक और गहन जानकारी प्रदान करता है. जनसंख्या जनगणना में न केवल लोगों की संख्या, बल्कि पुरुषों और महिलाओं की संख्या, आयु, शिक्षा, वैवाहिक स्थिति, व्यावसायिक स्तर, आय, स्वास्थ्य की स्थिति आदि जैसी जानकारी भी शामिल होती है.
वे आर्थिक विकास, रोजगार, आय वितरण, गरीबी और सामाजिक सुरक्षा को प्रभावित करते हैं. वे स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, आवास, स्वच्छता, पानी, भोजन और ऊर्जा तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करने के प्रयासों को भी प्रभावित करते हैं. व्यक्तियों की ज़रूरतों को अधिक स्थायी रूप से संबोधित करने के लिए, नीति निर्माताओं को यह समझना होगा कि ग्रह पर कितने लोग रह रहे हैं, वे कहां हैं, उनकी उम्र कितनी है और उनके बाद कितने लोग आएंगे.
क्या आप जानते हैं?
- दुनिया भर में 40 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और प्रजनन अधिकारों पर फैसला नहीं ले पाती हैं.
- निम्न और मध्यम आय वाले देशों में चार में से सिर्फ एक महिला ही अपनी मनचाही प्रजनन क्षमता हासिल कर पाती है.
- हर दो मिनट में एक महिला गर्भावस्था या प्रसव के कारण मर जाती है (और संघर्ष की स्थिति में, मौतों की संख्या दोगुनी है).
- लगभग एक तिहाई महिलाओं ने अंतरंग साथी हिंसा, गैर-साथी यौन हिंसा या दोनों का अनुभव किया है.
- सिर्फ छह देशों में संसद में 50 प्रतिशत या उससे ज्यादा महिलाएं हैं.
- दुनिया भर में 80 करोड़ (800 मिलियन) लोगों में से दो तिहाई से ज्यादा जो पढ़ नहीं सकते हैं, वे महिलाएं हैं.
स्रोत: UNFPA