रांची: झारखंड में विधानसभा चुनाव के लिए जहां राज्य स्तर पर दो बड़े गठबंधन एनडीए और इंडिया अलायंस अपनी अपनी तैयारियों में लगी है. सत्ताधारी गठबंधन होने के नाते झामुमो, कांग्रेस और राजद सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के भरोसे दोबारा सत्ता पाने की जुगत में है. दूसरी ओर एनडीए के भाजपा और आजसू हेमंत सरकार की नाकामियों को जनता के बीच ले जाकर सत्ता पाने की फिराक में है.
इन दोनों राजनीतिक ध्रुवों के अलावा राज्य की चुनावी राजनीति को त्रिकोणीय या बहुकोणीय मुकाबला बनाने के लिए कई छोटे-छोटे दल हैं जो इस बार चुनावी समर में उतरने को बेताब हैं.
इस चुनाव को बहुकोणीय बनाने वाले संभावित दलों पर एक नजर
झारखंड में NDA और INDIA से इतर चुनावी मुकाबले को कई विधानसभा सीटों पर त्रिकोणीय बनाने की क्षमता वाला सबसे सशक्त दल है. जयराम महतो की पार्टी झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (पूर्व में JBKSS) है. लोकसभा चुनाव के समय निर्वाचन आयोग से मान्यता नहीं मिलने पर JBKSS ने सात लोकसभा सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार खड़े कर दिए थे. जब नतीजा घोषित हुए तो जयराम महतो के उम्मीदवार कई विधानसभा सीट में लीडिंग रहे. उनके सात उम्मीदवारों को राज्य में भाजपा, कांग्रेस, झामुमो के बाद सबसे अधिक कुल वोट मिले. युवाओं, स्थानीय मूलवासियों और महतो समाज में खासा लोकप्रिय जयराम महतो की पकड़ सिल्ली, ईचागढ़, रामगढ़, गोमिया, मांडू, बेरमो, बाघमारा, डुमरी, टुंडी और आसपास के इलाके में अच्छी है.
हम और लोजपा (आर)
बिहार की राजनीति में दलितों की राजनीति करने वाले दो प्रमुख दल जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (R) भी दलित वोटरों के भरोसे राज्य की राजनीति में उतरने को बेताब है. राज्य की राजनीति में बेहद छोटे पकड़ वाले दल होने के बावजूद अगर ये दोनों दल दलित वोटरों को अपनी तरफ खींचने में कामयाब रही तो नुकसान भाजपा को होने की संभावना सबसे ज्यादा है. क्योंकि 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान दलित वोटरों का झुकाव एनडीए की तरफ दिखा था. ऐसे में अपनी घोषणा के अनुरूप अगर हम और एलजेपी (रामविलास) ने एनडीए से बाहर रहकर चुनाव मैदान में प्रत्याशी उतार दिया तो उसका नुकसान भाजपा को उठाना पड़ सकता है.
जदयू की रणनीति पर सबका ध्यान
बिहार में सत्तारूढ़ नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड झारखंड में छोटे जनाधार वाली पार्टी है. हालांकि इस बार विधायक सरयू राय को दल में शामिल कराकर नीतीश कुमार राज्य की राजनीति में मजबूत पकड़ दिखाने को बेताब हैं. जदयू की पहली इच्छा भाजपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने की है लेकिन अगर सीट शेयरिंग का मान्य फॉर्मूला नहीं बनता है तो वह अकेले ही चुनाव मैदान में उतरने को तैयार है. एक समय में छतरपुर, तमाड़, मणिका, मांडू सहित कई कुर्मी बहुल इलाके आज भी हैं. ऐसे में अगर एनडीए से अलग होकर जदयू चुनाव मैदान में उतर जाता है तो इसका नुकसान भाजपा के साथ साथ आजसू को भी उठाना पड़ सकता है.
सीपीआई, सीपीएम
राज्य में सीपीआई माले तो इंडिया गठबंधन के साथ होकर राज्य में इंडिया ब्लॉक का हिस्सा बन गया है. लेकिन देश की दो बड़ी लेफ्ट पार्टियां सीपीआई और सीपीएम की राज्य में गिनती छोटे दल के रूप में ही होती है. ऐसे में अगर ये दल चुनाव मैदान में उतरते हैं (जैसा कि प्रबल संभावना है) तो कई विधानसभा सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है और इसका नुकसान महागठबंधन को उठाना पड़ सकता है.
चंपाई के अगले कदम पर भी निर्भर है चुनावी राजनीति
झारखंड की राजनीति को लंबे दिनों से कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि इन छोटे छोटे राजनीतिक दलों के साथ साथ चंपाई सोरेन की अगली राजनीतिक चाल पर नजर रखनी होगी. अगर चंपाई सोरेन अलग पार्टी बनाकर चुनावी समर में उतरते हैं तो संभव है कि कोल्हान के कई विधानसभा क्षेत्र में मुकाबला बहुकोणीय हो जाये और उसका नुकसान इंडिया ब्लॉक को उठाना पड़ जाए.
छोटे छोटे दल बड़ा खेल करने की तैयारी में
इन दलों के अलावा ओवैसी की पार्टी AIMIM भी अभी तक राज्य अपनी कोई खास पकड़ नहीं दिखा पाई है. लेकिन अगर इस बार AIMIM चुनाव मैदान में उतरती है तो उसका भी असर देखने को मिल सकता है.
कोई तीसरा कोण नहीं, सीधी लड़ाई होगी
राज्य में छोटी छोटी राजनीतिक पार्टियां भले ही चुनाव लड़ने और विधानसभा चुनाव में मुकाबले को बहुकोणीय बनाने की कोशिश हो लेकिन राज्य में तीन मुख्य राजनीति दल झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का मानना यहा है. इन पार्टियों के नेताओं का कहना है कि राज्य की जनता अपने वोटों का बिखराव नहीं होने देगी और सीधा मुकाबला होगा जिसमें एक ओर झामुमो की अगुवाई में इंडिया ब्लॉक के दल होंगे तो दूसरी ओर भाजपा और उसके सहयोगी दल. कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता की मानें तो अगर जयराम महतो की पार्टी, जदयू, लोजपा जैसे दल चुनाव में उतरते हैं तो उसका नुकसान एनडीए को ही होगा क्योंकि हमारी महागठबंधन की सरकार ने जितनी जनकल्याणकारी योजनाएं शुरू की है. उससे जनता ने दोबारा महागठबंधन की सरकार बनाने का फैसला कर लिया है.
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