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‘इतनी सख्ती क्यों? सब कुछ पारदर्शी क्यों नहीं हो सकता', मनी लॉन्ड्रिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट की ED को फटकार - SC to ED on furnishing documents

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By Sumit Saxena

Published : Sep 4, 2024, 9:19 PM IST

SC to ED on furnishing documents: सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त को मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामले की जस्टिस एएस ओका,जस्टिस ए अमानुल्लाह और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने सुनवाई की. ईडी की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू कोर्ट में मौजूद रहे.

SC to ED on furnishing documents
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो) (IANS)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से कई कड़े सवाल पूछे, जिसमें एक आरोपी द्वारा जांच के दौरान केंद्रीय एजेंसी द्वारा एकत्र किए गए हर दस्तावेज की मांग की गई. जस्टिस अभय एस ओका, अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की तीन न्यायाधीशों की बेंच मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दस्तावेजों की आपूर्ति से संबंधित अपील पर सुनवाई कर रही थी.

सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से एक विशेष प्रश्न पूछा कि किसी आरोपी को केवल तकनीकी आधार पर दस्तावेज देने से कैसे मना किया जा सकता है और कहा, "कभी-कभी ईडी के पास ऐसे निर्णायक दस्तावेज हो सकते हैं."

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि, केंद्रीय एजेंसी का तर्क है कि आरोपपत्र दाखिल करने के बाद यह निर्णायक दस्तावेज आरोपी को उपलब्ध नहीं कराया जा सकता. पीठ ने कहा, "क्या यह अनुच्छेद 21 (जो जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है) के तहत उसके अधिकार का हनन नहीं करता है?", आगे सवाल करते हुए पीठ ने पूछा, क्या केवल तकनीकी आधार पर आरोपी को दस्तावेज देने से मना किया जा सकता है?

पीठ ने जोर देकर कहा, "सब कुछ पारदर्शी क्यों नहीं हो सकता?" पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अदालतें और जांच एजेंसियां ​​आरोपी को दस्तावेज देने के मामले में सख्त नहीं हो सकतीं। पीठ ने इस पहलू पर विस्तार से चर्चा की कि क्या जमानत के लिए आरोपी मुकदमे के चरण से पहले दस्तावेज मांग सकता है. ईडी का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने तर्क दिया कि अगर आरोपी को पता है कि दस्तावेज हैं, तो वह पूछ सकता है, लेकिन अगर उसे नहीं पता है और वह उस मामले में सिर्फ अनुमान लगाता है, तो वह जांच की मांग नहीं कर सकता.

बेंच ने आगे पूछा, "चूंकि यह जमानत का मामला है, इसलिए समय बदल गया है...क्या हम इतने सख्त होने जा रहे हैं कि व्यक्ति अभियोजन का सामना कर रहा है, लेकिन हम जाकर कहते हैं कि दस्तावेज सुरक्षित हैं? क्या यह न्याय होगा?" पीठ को बताया गया कि अभियुक्त के पास दस्तावेजों की सूची होगी और वह दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 91 के तहत इसकी मांग कर सकता है.

बेंच ने कहा कि, मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में, एजेंसी हजारों दस्तावेज प्राप्त कर सकती है, लेकिन वह उनमें से केवल 50 पर ही निर्भर हो सकती है, और अभियुक्त को हर दस्तावेज याद नहीं हो सकता है. पीठ ने कहा, "फिर वह पूछ सकता है कि मेरे घर से जो भी दस्तावेज बरामद हुए हैं, वे मांगे जाएं." एएसजी ने कहा कि आरोपी के पास दस्तावेजों की एक सूची है और जब तक यह "आवश्यक" और 'वांछनीय' न हो, तब तक वह उन्हें नहीं मांग सकता.

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने आगे कहा कि, यदि कोई आरोपी जमानत या मामले को खारिज करने के लिए दस्तावेजों पर निर्भर करता है तो उसे दस्तावेज मांगने का अधिकार है. राजू ने तर्क दिया कि ऐसा कोई अधिकार नहीं है और कहा कि आरोपी अदालत से इस पर गौर करने का अनुरोध कर सकता है.

ईडी के वकील ने बताया कि मान लीजिए कि कोई दस्तावेज मौजूद नहीं है और यह स्पष्ट रूप से दोषसिद्धि का मामला है और आरोपी केवल मुकदमे में देरी करना चाहता है, तो उस स्थिति में यह अधिकार नहीं हो सकता. पीठ ने पूछा कि आरोपी को बिना देखे कैसे पता चलेगा कि दस्तावेज जरूरी है. ईडी के वकील ने जोर देकर कहा कि मुकदमे से पहले किसी आरोपी को दस्तावेज मिलने से चल रही जांच प्रभावित हो सकती है. इस मामले में विस्तृत सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन, आप नेता मनीष सिसौदिया और बीआरएस नेता के कविता जैसे कई शीर्ष राजनेताओं की गिरफ्तारी के कारण धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) सुर्खियों में है.

ये भी पढ़ें: 'ये सामंती युग नहीं है, राजा जो बोले वैसे चले', सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के CM को सुनाई खरी-खरी

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से कई कड़े सवाल पूछे, जिसमें एक आरोपी द्वारा जांच के दौरान केंद्रीय एजेंसी द्वारा एकत्र किए गए हर दस्तावेज की मांग की गई. जस्टिस अभय एस ओका, अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की तीन न्यायाधीशों की बेंच मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दस्तावेजों की आपूर्ति से संबंधित अपील पर सुनवाई कर रही थी.

सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से एक विशेष प्रश्न पूछा कि किसी आरोपी को केवल तकनीकी आधार पर दस्तावेज देने से कैसे मना किया जा सकता है और कहा, "कभी-कभी ईडी के पास ऐसे निर्णायक दस्तावेज हो सकते हैं."

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि, केंद्रीय एजेंसी का तर्क है कि आरोपपत्र दाखिल करने के बाद यह निर्णायक दस्तावेज आरोपी को उपलब्ध नहीं कराया जा सकता. पीठ ने कहा, "क्या यह अनुच्छेद 21 (जो जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है) के तहत उसके अधिकार का हनन नहीं करता है?", आगे सवाल करते हुए पीठ ने पूछा, क्या केवल तकनीकी आधार पर आरोपी को दस्तावेज देने से मना किया जा सकता है?

पीठ ने जोर देकर कहा, "सब कुछ पारदर्शी क्यों नहीं हो सकता?" पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अदालतें और जांच एजेंसियां ​​आरोपी को दस्तावेज देने के मामले में सख्त नहीं हो सकतीं। पीठ ने इस पहलू पर विस्तार से चर्चा की कि क्या जमानत के लिए आरोपी मुकदमे के चरण से पहले दस्तावेज मांग सकता है. ईडी का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने तर्क दिया कि अगर आरोपी को पता है कि दस्तावेज हैं, तो वह पूछ सकता है, लेकिन अगर उसे नहीं पता है और वह उस मामले में सिर्फ अनुमान लगाता है, तो वह जांच की मांग नहीं कर सकता.

बेंच ने आगे पूछा, "चूंकि यह जमानत का मामला है, इसलिए समय बदल गया है...क्या हम इतने सख्त होने जा रहे हैं कि व्यक्ति अभियोजन का सामना कर रहा है, लेकिन हम जाकर कहते हैं कि दस्तावेज सुरक्षित हैं? क्या यह न्याय होगा?" पीठ को बताया गया कि अभियुक्त के पास दस्तावेजों की सूची होगी और वह दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 91 के तहत इसकी मांग कर सकता है.

बेंच ने कहा कि, मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में, एजेंसी हजारों दस्तावेज प्राप्त कर सकती है, लेकिन वह उनमें से केवल 50 पर ही निर्भर हो सकती है, और अभियुक्त को हर दस्तावेज याद नहीं हो सकता है. पीठ ने कहा, "फिर वह पूछ सकता है कि मेरे घर से जो भी दस्तावेज बरामद हुए हैं, वे मांगे जाएं." एएसजी ने कहा कि आरोपी के पास दस्तावेजों की एक सूची है और जब तक यह "आवश्यक" और 'वांछनीय' न हो, तब तक वह उन्हें नहीं मांग सकता.

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने आगे कहा कि, यदि कोई आरोपी जमानत या मामले को खारिज करने के लिए दस्तावेजों पर निर्भर करता है तो उसे दस्तावेज मांगने का अधिकार है. राजू ने तर्क दिया कि ऐसा कोई अधिकार नहीं है और कहा कि आरोपी अदालत से इस पर गौर करने का अनुरोध कर सकता है.

ईडी के वकील ने बताया कि मान लीजिए कि कोई दस्तावेज मौजूद नहीं है और यह स्पष्ट रूप से दोषसिद्धि का मामला है और आरोपी केवल मुकदमे में देरी करना चाहता है, तो उस स्थिति में यह अधिकार नहीं हो सकता. पीठ ने पूछा कि आरोपी को बिना देखे कैसे पता चलेगा कि दस्तावेज जरूरी है. ईडी के वकील ने जोर देकर कहा कि मुकदमे से पहले किसी आरोपी को दस्तावेज मिलने से चल रही जांच प्रभावित हो सकती है. इस मामले में विस्तृत सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन, आप नेता मनीष सिसौदिया और बीआरएस नेता के कविता जैसे कई शीर्ष राजनेताओं की गिरफ्तारी के कारण धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) सुर्खियों में है.

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