पटना : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्रीय गृह मंत्री की ओर से बुलाए गए नक्सल प्रभावित राज्यों की बैठक से दूरी बना ली, यह पहली बार नहीं है जब नीतीश कुमार दिल्ली में होने वाली बैठकों से दूरी बनाते रहे हैं. इससे पहले नीति आयोग की बैठक में भी नीतीश कुमार नहीं गए थे.
नक्सल प्रभावित राज्यों की दिल्ली में बैठक : जहां तक नक्सल प्रभावित राज्यों की बात है तो 2018 तक बिहार में 22 जिले नक्सल प्रभावित थे अब यह घटकर 8 रह गए हैं. गृह मंत्री अमित शाह ने देश से नक्सलवाद को पूरी तरह से समाप्त करने की बात कही है. ऐसे में यह बैठक महत्वपूर्ण है, क्योंकि बैठक के माध्यम से नक्सल प्रभावित जिले में विकास योजनाओं को लेकर भी रणनीति तैयार होती है.
दिल्ली बैठक में नहीं जाएंगे सीएम नीतीश : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस बैठक के माध्यम से अपने राज्य में अधिक से अधिक केंद्र से धनराशि और योजनाएं ला सकते थे. नीतीश कुमार अमित शाह की किसी भी बैठक में जाने से बचते रहे हैं. ऐसे बिहार में पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की पिछले साल दिसंबर 2023 में बैठक हुई थी, उस समय नीतीश कुमार महागठबंधन में थे. पटना में बैठक हुई थी इसलिए उसमें शामिल होना मजबूरी था. दिल्ली में कोई भी बैठक होती है तो उससे नीतीश कुमार दूरी बना लेते हैं.
बिहार में नक्सल प्रभावित जिले : बिहार में ऐसे तो नक्सलियों का प्रभाव कम हो रहा है. 2018 तक 22 जिले नक्सल प्रभावित थे. 2021 से पहले 16 जिले हो गए थे, 2021 में 6 जिले और नक्सल प्रभाव से मुक्त हुए. जिसमें अरवल, पूर्वी चंपारण, जहानाबाद, मुजफ्फरपुर, वैशाली और नालंदा शामिल था. इसके कारण नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या घटकर 10 हो गई. उत्तर बिहार नक्सली मुक्त हो गया.
8 जिलों पर 'लाल' साया : वहीं 2024 में दो और जिले इस लिस्ट से बाहर आए हैं, जिसमें बांका और पश्चिम चंपारण ( बगहा) शामिल है. बांका नक्सली मुक्त होने के कारण भागलपुर जोन भी अब नक्सल प्रभावित इलाका नहीं रहा. बिहार में अब केवल आठ जिले नक्सल प्रभावित रह गए हैं. जिसमें औरंगाबाद, गया, मुंगेर, जमुई, कैमूर, नवादा, लखीसराय और रोहतास शामिल है. हालांकि इन जिलों में भी नक्सली गतिविधियां काफी कम हो गई हैं.
चर्चा में मनोरमा देवी का मामला : इन इलाकों में कभी-कभार लेवी मांगने की घटनाएं सामने आती हैं. फिलहाल जदयू की पूर्व एमएलसी मनोरमा देवी का मामला खूब चर्चा में है. उन पर नक्सलियों को फिर से खड़ा करने का आरोप भी लगा है. हालांकि इस मामले में डीएसपी की घूस लेते जिस प्रकार से गिरफ्तारी हुई है उसके कारण कई सवाल भी उठ रहे हैं.
एक्टिव हुई है बिहार पुलिस : बिहार पुलिस मुख्यालय ने भी दावा किया कि बिहार में नक्सली प्रभाव में कमी आई है. इसके साथ ही नक्सली वारदात भी कम हुए हैं. इसका बड़ा कारण नक्सल प्रभावित इलाकों में विशेष अभियान चलाया जाना रहा है. कई योजनाओं को नक्सल प्रभावित इलाकों में लागू की गई है. यही कारण है पिछले दस सालों में राज्य में 96 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है. दक्षिण बिहार के जमुई-मुंगेर-लखीसराय क्षेत्र में माओवादी अर्जुन कोड़ा, बालेश्वर कोड़ा, नागेश्वर कोड़ा ने आत्मसमर्पण कर दिया.
कई नक्सलियों का हुआ है सरेंडर : आत्म समर्पण करने वाले नक्सलियों को राज्यस्तरीय आत्मसमर्पण सह पुनर्वासन समिति की ओर से योजना का लाभ दिया जा रहा है. कई नक्सलियों की गिरफ्तारी भी हुई है और कई का एनकाउंटर भी हुआ है. उत्तर बिहार में वर्ष 2023 में जोनल कमांडर रामबाबू राम उर्फ राजन उर्फ प्रहार के साथ रामबाबू पासवान उर्फ धीरज को दो एके-47 के साथ गिरफ्तार किया गया, जिसके बाद उत्तर बिहार में नक्सल गतिविधियों पर पूर्णतः अंकुश लग गया.
पुलिस नक्सली मुठभेड़ : पुलिस और नक्सलियों के मुठभेड़ में माओवादी जगदीश कोड़ा, बिरेन्द्र कोड़ा, मतलू तुरी के मारे गए. माओवादी पिंटु राणा, करूणा, बबलू संथाल, श्री कोड़ा, सुनील मरांडी की गिरफ्तारी के बाद नक्सल गतिविधियों में काफी कमी आई. मगध क्षेत्र में माओवादी के तीन सेंट्रल कमेटी मेंबर (प्रमोद मिश्रा, मिथिलेश मेहता और विजय कुमार आर्य) और कई प्रमुख नक्सली जैसे विनय यादव उर्फ मुराद, अरविन्द भूईयां, अभिजीत यादव के सात कई हार्डकोर नक्सलियों की गिरफ्तारी के बाद नक्सल गतिविधियों में गिरावट आई.
अफीम की फसल की गई नष्ट : गया जिले में दिसंबर 2023 से मार्च 2024 में 2523.40 एकड़ में नक्सलियों द्वारा लगवाए गए अफीम की फसल को नष्ट किया गया. जुलाई 2022 में नक्सली संगठन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट आफ इंडिया के चार सदस्यों को गिरफ्तार किया था और भारी मात्रा में विस्फोटक भी बरामद किया था. अगस्त महीने में औरंगाबाद नक्सल अभियान की विशेष टीम ने 3 लाख का इनामी भाकपा माओवादी संगठन के सब जोनल कमांडर राजेंद्र सिंह और विजय पासवान को गिरफ्तार किया था.
मुख्य धारा में लौट रहे नक्सली : 2 दिन पहले गया पुलिस ने एक लाख के इनामी नक्सली कमलेश रवानी को गिरफ्तार किया है. लगातार हो रही गिरफ्तारी और एनकाउंटर के कारण नक्सलियों की कमर टूट चुकी है और यही कारण है की बड़ी संख्या में नक्सलीय आत्म समर्पण कर रहे हैं. सरकार ने जो विशेष योजनाएं चलाई है उसका असर भी हुआ है, नक्सली अब मुख्य धारा में लौटने लगे हैं. यही कारण रहा कि 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान भी नक्सल से संबंधित कोई घटना नहीं हुई.
2024 में बिहार पुलिस भी सक्रिय : बिहार पुलिस ने राज्य के 43 नक्सलियों के खिलाफ एक से ₹300000 तक के इनाम की घोषणा भी कर रखी है. इनमें 9 नक्सलियों या अपराधियों पर तीन-तीन लाख के इनाम घोषित किए गए हैं. सभी इनामी नक्सली लंबे समय से फरार हैं. विभिन्न जिलों की पुलिस उन्हें तलाश रही है. इनामी नक्सलियों पर 2 से लेकर 44 कांड में शामिल होने का आरोप है. इन नक्सलियों को लेकर कोई भी सामान्य नागरिक इनके संबंध में सूचना देकर गिरफ्तारी में सहयोग करेगा तो उसे इनाम की राशि दी जाएगी.
टोल फ्री नंबर पर दें इनामी नक्सली की सूचना : इनाम की राशि 2 सालों तक लागू रहेगी. बिहार पुलिस के टोल फ्री नंबर 144324 पर इसकी सूचना कोई भी व्यक्ति दे सकता है. पुलिस मुख्यालय द्वारा संबंधित रेंज के डीआईजी आईजी के अनुशंसा पर इनमों की घोषणा की गई है. पुलिस मुख्यालय द्वारा जारी लिस्ट में सबसे ज्यादा, 10 इनामी समस्तीपुर जिले से हैं. इसके बाद 9 मुंगेर से, पटना से 6, गया से चार, सीतामढ़ी एवं वैशाली से तीन-तीन, जमुई एवं मुजफ्फरपुर से दो-दो, जबकि जहानाबाद सुपौल और सारण के एक-एक नक्सली शामिल है.
नक्सल प्रभावित जिलों की बदल रही स्थितियां : नक्सली पर करारा प्रहार और नक्सली क्षेत्र में विकास योजनाओं के कारण नक्सली और उनके परिवार के लोग मुख्य धारा में आ रहे हैं. बिहार में एक समय गया जिले के इमामगंज को बिहार का अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र माना जाता था. इस इलाके में नक्सलियों का खौफ हुआ करता था. लोग घर से निकलकर बाजार जाने के लिए सोचते थे. लेकिन बदलते जमाने के साथ शिक्षा के माध्यम से इस इलाके के युवा पीढ़ी क्षेत्र की तस्वीर बदल रहे हैं. अब विभिन्न सरकारी नौकरी में अपनी सेवा दे रहे हैं. पिछले साल इसी क्षेत्र से 5 लड़कियों का चयन डिफेंस के विभिन्न सेक्टर में हुआ है.
नक्सल प्रभावित इलाकों में विशेष व्यवस्था : नक्सल प्रभावित जिलों में पैरामिलिट्री फोर्स एसएसबी और सीआरपीएफ की तैनाती की जाती है. एएसपी अभियान का पद भी सृजित किया जाता है. अधिकारियों को भ्रमण के लिए मिले विशेष वाहन भी दी जाती है. नक्सल प्रभावित जिलों में केंद्र सरकार की ओर से विशेष आर्थिक सहायता भी दी जाती है. जिससे आधारभूत संरचना, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की स्थिति बेहतर हो सके. सुरक्षा बलों को जोखिम भत्ता भी दिया जाता है. लेकिन जैसे ही जिलों को नक्सल प्रभाव से मुक्त घोषित किया जाता है, सारी सुविधाएं और व्यवस्था समाप्त कर दी जाती है.
2026 तक नक्सल मुक्त होगा देश : केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 2026 तक देश को नक्सली प्रभाव से मुक्त करने की घोषणा की है. उस पर काम भी कर रहे हैं. जिन राज्यों में नक्सली गतिविधियां ज्यादा है, वहां भी लगातार सरकार को सफलता मिल रही है. बिहार में ऐसे तो आठ जिले ही अब नक्सल प्रभावित रह गए हैं, लेकिन नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्री की बैठक में नीतीश कुमार के नहीं जाने पर सियासत भी होने लगी है.
'नीतीश और शाह का संबंध कैसा?' : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास गृह विभाग भी है. ऐसे में नीतीश कुमार का नहीं जाना विपक्ष को एक हमला करने का मौका मिल गया है. आरजेडी प्रवक्ता शक्ति यादव का कहना है कि अमित शाह के साथ नीतीश कुमार का संबंध कैसा है? किसी से छिपा नहीं है. ऐसे भी सीएम जाए या डिप्टी सीएम बिहार को कुछ मिलने वाला है नहीं.
जेडीयू ने दी सफाई : नीतीश कुमार के अमित शाह की बैठक में शामिल नहीं होने पर जदयू की तरफ से सफाई दी जा रही है कि बिहार में बाढ़ की स्थिति है. उस पर मुख्यमंत्री खुद लगातार मॉनीटरिंग कर रहे हैं. विपक्ष के पास हमला करने के अलावा कोई काम नहीं है. लेकिन विशेषज्ञ भी मानते हैं, इस तरह की बैठकों में मुख्यमंत्री जाते तो ज्यादा असर होता है. क्योंकि, नक्सल प्रभावित जिलों में विकास योजनाओं को कैसे बेहतर लागू किया जाए और उसके लिए पर्याप्त राशि केंद्र सरकार से लिया जाए मुख्यमंत्री प्रभावी ढंग से अपने राज्य की बात रख सकते थे. यह काम डिप्टी सीएम या कोई दूसरा बिहार का प्रतिनिधि नहीं कर सकता.
मोदी-शाह की बैठक से नीतीश बनाते रहे हैं दूरी : बिहार सहित पूरे देश में नक्सली गतिविधियां घटी है. क्योंकि लगातार नक्सलियों पर एक्शन हो रहा है. उनके लिए विकास योजनाएं लाई जा रही है और इसलिए बड़ी संख्या में नक्सली आत्मसमर्पण कर मुख्य धारा में लौटने का फैसला भी ले रहे है. लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले भी अमित शाह की बैठक में जाने से दूरी बनाते रहे हैं. यही नहीं प्रधानमंत्री भी इस साल जब नीति आयोग की बैठक की थी तो उसमें भी नीतीश कुमार नहीं गए थे. डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद नीतीश कुमार प्रधानमंत्री और अमित शाह की बैठक में जाने से बचते रहे हैं और इसी कारण इस पर सवाल भी उठता रहा है.
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