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भाजपा का चुनावी दांव : विपक्ष के हाथ मुद्दा न लग जाए, बचने के लिए घोषणापत्र में NRC का जिक्र नहीं - Why did BJP Drop NRC from manifesto

Why did BJP Drop NRC from manifesto : भारतीय जनता पार्टी ने 2019 में बड़ी तेजी से NRC लागू करने की बात कहीं थी. उसे सबसे पहले असम में और फिर पूरे भारत में धीरे-धीरे इसे लागू करना था. इसके लिए 2019 के चुनाव जीतने के बाद ही असम में डिटेंशन सेंटर भी तैयार किए जा रहे थे, लेकिन 2024 के संकल्प पत्र में CAA की बात तो की गई लेकिन NRC से भाजपा ने कन्नी काट ली है. आखिर क्या है इसके पीछे की वजह? ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की इस रिपोर्ट में जानते हैं.

Why did BJP Drop NRC from manifesto
भाजपा का चुनावी दांव
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Apr 15, 2024, 10:56 PM IST

Updated : Apr 15, 2024, 11:02 PM IST

नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने 10 डिटेंशन सेंटर बनाए हैं. NRC को ध्यान में रखते हुए इन्हें बनाया गया था. 2019 के बाद सरकार ने 3 और डिटेंशन सेंटर बनाने को बात कही थी, जिसमें एक असम में, एक पंजाब में और एक कर्नाटक में बनना था. वर्तमान में असम में 6 डिटेंशन सेंटर हैं. 2011 में ही असम में 3 डिटेंशन सेंटर बना दिए गए थे.

अगस्त 2016 में सरकार ने लोकसभा में बताया था कि असम में 6 डिटेंशन सेंटर हैं. दिसंबर में लोकसभा में गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने बताया था कि 28 नवंबर 2019 तक असम के 6 सेंटरों में 970 लोग रह रहे हैं. विदेशी नागरिकों को रखने के लिए केंद्र सरकार ने 2009, 2012, 2014 और 2018 में भी राज्यों को डिटेंशन सेंटर बनाने के निर्देश दिए थे. बावजूद इसके जिस NRC को भारतीय जनता पार्टी ने प्रमुखता से 2019 में अपने संकल्प पत्र में जगह दी थी, और जिसकी वजह से विपक्षी पार्टियां लगातार उस पर हमलावर रहीं, ऐसा क्या हुआ कि 2024 के संकल्प पत्र से बीजेपी को NRC की बात हटानी पड़ी.

2019 में बनाया था मुद्दा : सवाल इसलिए है कि बीजेपी ने सीएए को तो इस बार संकल्प पत्र में जगह दी है, जबकि एनआरसी का जिक्र भी नहीं है, जबकि पिछले चुनाव में बीजेपी का यह प्रमुख चुनावी वादा था. 2019 के चुनाव में बीजेपी ने प्रमुखता से सीएए-एनआरसी को चुनावी मुद्दा बनाया था. इस मुद्दे पर खूब बयानबाजी भी हुई थी, धरना प्रदर्शन का भी दौर चला था.

शाह ने भी दिया था बयान: असम इकलौता राज्य है जहां सबसे पहले 1951 में एनआरसी तैयार की गई थी और उसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2019 में अपडेट भी किया गया था. दिसंबर 2019 में गृह मंत्री अमित शाह ने यहां तक कहा था कि 2024 से पहले NRC पूरे देश में लागू कर दी जाएगी. हालांकि दिसंबर 2023 में फिर बयान आया कि फिलहाल NRC लागू नहीं हो रही है.

दरअसल भाजपा हमेशा से कहती रही है कि अवैध घुसपैठियों की वजह से देशवासियों की सांस्कृतिक विरासत में बदलाव आ सकता है साथ ही उनके रोजगार के अवसर भी अवैध रूप से रह रहे लोग उठा लेते हैं. हालांकि 2024 में भाजपा का ये यू-टर्न मात्र चुनाव के लिए है या इस एजेंडे से पार्टी बाहर निकल गई है, ये अभी कहना मुश्किल होगा.

रिस्क नहीं उठाना चाह रही भाजपा : दरअसल विपक्षी पार्टियों ने इतना भ्रम फैला दिया है कि इससे लोगों की नागरिकता छिन जाएगी. यही वजह है कि भाजपा चुनाव के समय ये रिस्क नहीं उठाना चाह रही है.

ना सिर्फ कांग्रेस बल्कि टीएमसी और एआईएमआईएम भी लगातार इसपर हमलावर हैं, जिससे बीजेपी को ये संशय था कि एनआरसी को लेकर विरोधियों द्वारा फैलाए जा रहे भ्रम से मुस्लिम वोटरों का ध्रुवीकरण हो सकता है. नतीजा चुनाव में टीएमसी या विरोधियों को फायदा हो सकता है.

धरना-प्रदर्शन की थी आशंका : साथ ही पार्टी को चुनाव के समय इसके खिलाफ धरना प्रदर्शन होने की भी आशंका थी. क्योंकि ना सिर्फ बंगाल और असम बल्कि यदि ऐसा होता तो पूरे देश में सेक्युलर विंग की तरफ से इसके खिलाफ झंडा उठाए जाने का भी डर था. यही नहीं बीजेपी को ये भी डर सता रहा था कि इससे कहीं बंगाल और असम के हिंदू वोटर्स भी नाराज ना हो जाएं. क्योंकि विपक्षी पार्टियों ने ऐसी धारणाएं फैलाई हैं कि बाहरी देशों से आए ज्यादातर लोगों के पास कागजात नहीं हैं और वह भी इसके लपेटे में आ सकते हैं.

साथ ही विपक्षी लगातार असम का ये मुद्दा भी उठा रहे थे, जिसके तहत असम में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राज्य के 3.29 करोड़ आवेदकों में से लगभग 19 लाख से अधिक को अंतिम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से बाहर कर दिया गया था. अब चुनाव के समय ये मुद्दा विरोधी फिर उठाते तो ये एक मुहिम का रूप ले सकता था और हवा का रुख बदल सकता था. यही वजह है कि मौके की नजाकत को देखते हुए बीजेपी ने विरोधियों की इस राजनीति को ही खत्म कर दिया. सीएए-एनआरसी को लेकर भ्रम ना पैदा हो इसके लिए उसने अपने संकल्प पत्र से एनआरसी को बाहर कर दिया.

सीएए-एनआरसी का फर्क समझाएगी भाजपा : अब सूत्रों की मानें तो पार्टी चुनावी मैदान में लोगों को सीएए और एनआरसी में फर्क भी समझाएगी. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 11 मार्च को सीएए के नियम नोटिफाई किए थे, ताकि इस कानून को लागू किया जा सके. इसमें नागरिकता का पात्र होने के लिए 11 सालों की अवधि को घटाकर पांच साल कर दिया गया था.

सीएए से अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के छह गैर मुस्लिम समुदायों- हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई धर्मों के उन लोगों को नागरिकता दी जा सकती है, जो 31 दिसंबर 2014 या उससे पहले भारत में दाखिल हुए थे.

हालांकि पार्टी के नेता इसपर कुछ भी कहने से बच रहे हैं लेकिन बीजेपी के एक राष्ट्रीय प्रवक्ता ने नाम न लेने की शर्त पर कहा कि सरकार ने समय पर सीएए लागू किया है और ये नागरिकता छीनने वाला नहीं बल्कि देने वाला कानून है. विपक्षी पार्टियां इस पर भी भ्रम फैलाने की कोशिश कर रही हैं. जहां तक बात NRC की है ये सरकार का काम है फिलहाल पार्टी इसपर कोई टिप्पणी नही करेगी.

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नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने 10 डिटेंशन सेंटर बनाए हैं. NRC को ध्यान में रखते हुए इन्हें बनाया गया था. 2019 के बाद सरकार ने 3 और डिटेंशन सेंटर बनाने को बात कही थी, जिसमें एक असम में, एक पंजाब में और एक कर्नाटक में बनना था. वर्तमान में असम में 6 डिटेंशन सेंटर हैं. 2011 में ही असम में 3 डिटेंशन सेंटर बना दिए गए थे.

अगस्त 2016 में सरकार ने लोकसभा में बताया था कि असम में 6 डिटेंशन सेंटर हैं. दिसंबर में लोकसभा में गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने बताया था कि 28 नवंबर 2019 तक असम के 6 सेंटरों में 970 लोग रह रहे हैं. विदेशी नागरिकों को रखने के लिए केंद्र सरकार ने 2009, 2012, 2014 और 2018 में भी राज्यों को डिटेंशन सेंटर बनाने के निर्देश दिए थे. बावजूद इसके जिस NRC को भारतीय जनता पार्टी ने प्रमुखता से 2019 में अपने संकल्प पत्र में जगह दी थी, और जिसकी वजह से विपक्षी पार्टियां लगातार उस पर हमलावर रहीं, ऐसा क्या हुआ कि 2024 के संकल्प पत्र से बीजेपी को NRC की बात हटानी पड़ी.

2019 में बनाया था मुद्दा : सवाल इसलिए है कि बीजेपी ने सीएए को तो इस बार संकल्प पत्र में जगह दी है, जबकि एनआरसी का जिक्र भी नहीं है, जबकि पिछले चुनाव में बीजेपी का यह प्रमुख चुनावी वादा था. 2019 के चुनाव में बीजेपी ने प्रमुखता से सीएए-एनआरसी को चुनावी मुद्दा बनाया था. इस मुद्दे पर खूब बयानबाजी भी हुई थी, धरना प्रदर्शन का भी दौर चला था.

शाह ने भी दिया था बयान: असम इकलौता राज्य है जहां सबसे पहले 1951 में एनआरसी तैयार की गई थी और उसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2019 में अपडेट भी किया गया था. दिसंबर 2019 में गृह मंत्री अमित शाह ने यहां तक कहा था कि 2024 से पहले NRC पूरे देश में लागू कर दी जाएगी. हालांकि दिसंबर 2023 में फिर बयान आया कि फिलहाल NRC लागू नहीं हो रही है.

दरअसल भाजपा हमेशा से कहती रही है कि अवैध घुसपैठियों की वजह से देशवासियों की सांस्कृतिक विरासत में बदलाव आ सकता है साथ ही उनके रोजगार के अवसर भी अवैध रूप से रह रहे लोग उठा लेते हैं. हालांकि 2024 में भाजपा का ये यू-टर्न मात्र चुनाव के लिए है या इस एजेंडे से पार्टी बाहर निकल गई है, ये अभी कहना मुश्किल होगा.

रिस्क नहीं उठाना चाह रही भाजपा : दरअसल विपक्षी पार्टियों ने इतना भ्रम फैला दिया है कि इससे लोगों की नागरिकता छिन जाएगी. यही वजह है कि भाजपा चुनाव के समय ये रिस्क नहीं उठाना चाह रही है.

ना सिर्फ कांग्रेस बल्कि टीएमसी और एआईएमआईएम भी लगातार इसपर हमलावर हैं, जिससे बीजेपी को ये संशय था कि एनआरसी को लेकर विरोधियों द्वारा फैलाए जा रहे भ्रम से मुस्लिम वोटरों का ध्रुवीकरण हो सकता है. नतीजा चुनाव में टीएमसी या विरोधियों को फायदा हो सकता है.

धरना-प्रदर्शन की थी आशंका : साथ ही पार्टी को चुनाव के समय इसके खिलाफ धरना प्रदर्शन होने की भी आशंका थी. क्योंकि ना सिर्फ बंगाल और असम बल्कि यदि ऐसा होता तो पूरे देश में सेक्युलर विंग की तरफ से इसके खिलाफ झंडा उठाए जाने का भी डर था. यही नहीं बीजेपी को ये भी डर सता रहा था कि इससे कहीं बंगाल और असम के हिंदू वोटर्स भी नाराज ना हो जाएं. क्योंकि विपक्षी पार्टियों ने ऐसी धारणाएं फैलाई हैं कि बाहरी देशों से आए ज्यादातर लोगों के पास कागजात नहीं हैं और वह भी इसके लपेटे में आ सकते हैं.

साथ ही विपक्षी लगातार असम का ये मुद्दा भी उठा रहे थे, जिसके तहत असम में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राज्य के 3.29 करोड़ आवेदकों में से लगभग 19 लाख से अधिक को अंतिम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से बाहर कर दिया गया था. अब चुनाव के समय ये मुद्दा विरोधी फिर उठाते तो ये एक मुहिम का रूप ले सकता था और हवा का रुख बदल सकता था. यही वजह है कि मौके की नजाकत को देखते हुए बीजेपी ने विरोधियों की इस राजनीति को ही खत्म कर दिया. सीएए-एनआरसी को लेकर भ्रम ना पैदा हो इसके लिए उसने अपने संकल्प पत्र से एनआरसी को बाहर कर दिया.

सीएए-एनआरसी का फर्क समझाएगी भाजपा : अब सूत्रों की मानें तो पार्टी चुनावी मैदान में लोगों को सीएए और एनआरसी में फर्क भी समझाएगी. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 11 मार्च को सीएए के नियम नोटिफाई किए थे, ताकि इस कानून को लागू किया जा सके. इसमें नागरिकता का पात्र होने के लिए 11 सालों की अवधि को घटाकर पांच साल कर दिया गया था.

सीएए से अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के छह गैर मुस्लिम समुदायों- हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई धर्मों के उन लोगों को नागरिकता दी जा सकती है, जो 31 दिसंबर 2014 या उससे पहले भारत में दाखिल हुए थे.

हालांकि पार्टी के नेता इसपर कुछ भी कहने से बच रहे हैं लेकिन बीजेपी के एक राष्ट्रीय प्रवक्ता ने नाम न लेने की शर्त पर कहा कि सरकार ने समय पर सीएए लागू किया है और ये नागरिकता छीनने वाला नहीं बल्कि देने वाला कानून है. विपक्षी पार्टियां इस पर भी भ्रम फैलाने की कोशिश कर रही हैं. जहां तक बात NRC की है ये सरकार का काम है फिलहाल पार्टी इसपर कोई टिप्पणी नही करेगी.

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Last Updated : Apr 15, 2024, 11:02 PM IST
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