शिमला: वैसे तो देशभर के तमाम राज्यों से कांग्रेस की कलह गाथा सुनने को मिलती रहती है. लेकिन लोकसभा चुनाव से ऐन पहले हिमाचल कांग्रेस में मानों कोहराम मचा हुआ है. राज्यसभा चुनाव में जिन 6 कांग्रेस विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की, वो अब बीजेपी के हो चुके हैं. शनिवार को इन सभी ने दिल्ली में बीजेपी का दामन थाम लिया. जिसके बाद लोकसभा चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस के लिए नया संकट आ चुका है क्योंकि चुनाव आयोग इन 6 सीटों पर पहले ही उपचुनाव का ऐलान कर चुका है. इस बीच कांग्रेस के लिए चिंता वाली बात ये है कि पुराने कांग्रेसी हाथ का साथ छोड़ रहे हैं. 6 बागी विधायकों में से 3 के परिवार सालों तक कांग्रेस में रहे हैं.
रवि ठाकुर- लाहौल स्पीति विधानसभा सीट से 2022 में दूसरी बार कांग्रेस की टिकट पर विधायक बने थे. उनकी मां लता ठाकुर भी 1972 में लाहौल स्पीति से कांग्रेस की विधायक थीं और उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का करीबी माना जाता था. लता ठाकुर के बुलावे पर साल 1972 में इंदिरा गांधी ने लाहौल स्पीति का दौरा किया था. इसके बाद भी उनके न्योते पर इंदिरा गांधी दो बार लाहौल स्पीति आई थीं.
हिमाचल निर्माता और प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार के समय भी लता ठाकुर खूब सक्रिय रहीं. लेकिन साल 1976 में महज 35 साल की उम्र में एक कार एक्सीडेंट में उनकी मौत हो गई थी. उसके बाद रवि ठाकुर भी कांग्रेस में शामिल हुए और पिछले करीब 4 दशक से कांग्रेस के साथ थे.
सुधीर शर्मा- कांगड़ा जिले की धर्मशाला सीट से चार बार विधानसभा पहुंच चुके हैं. 2003, 2007, 2012 और फिर 2022 में कांग्रेस की टिकट पर विधायक बने और वीरभद्र सिंह में शहरी विकास मंत्री की जिम्मेदारी भी संभाली. पार्टी ने उन्हें ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सचिव भी बनाया था.
सुधीर शर्मा के पिता पंडित संतराम की पहचान भी कांग्रेस के समर्पित चेहरे और कद्दावर नेता के रूप में थी. वो 1972 में कांगड़ा जिले की बैजनाथ सीट से पहली बार विधायक बने और लगातार 4 बार विधानसभा पहुंचे. कुल 6 बार विधायक रहे संतराम भी वीरभद्र कैबिनेट में मंत्री रहे. 5 दशक से ज्यादा कांग्रेस में रहने के दौरान उन्होंने शिक्षा, कृषि और वन जैसे अहम विभागों के मंत्री और पार्टी संगठन में भी कई जिम्मेदारियां संभाली. उन्हें वीरभद्र सिंह का करीबी माना जाता था और बाद में वीरभद्र सिंह का वरदहस्त सुधीर शर्मा को भी मिला. 2012 में बनी कांग्रेस की वीरभद्र सरकार में सुधीर शर्मा भी मंत्री बने थे.
इंद्र दत्त लखनपाल- हमीरपुर जिले की बड़सर सीट से 2022 में लगातार तीसरी बार चुनाव जीतने वाले आईडी लखनपाल 2012 और 2017 में भी विधानसभा पहुंचे थे. कांग्रेस सेवादल से लेकर विधानसभा तक वो कांग्रेस का झंडा करीब 4 दशक से भी ज्यादा समय से उठाए हुए थे. वीरभद्र सिंह की सरकार में उन्हें भी मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) की जिम्मेदारी मिली थी. शिमला नगर निगमे के काउंसलर से लेकर कांग्रेस सेवा दल और कई कमेटियों के सदस्य से लेकर विधायक और कांग्रेस सरकार में सीपीएस तक की जिम्मेदारी संभाल चुके इंद्र दत्त लखनपाल लंबे अरसे से कांग्रेस का झंडा उठाए हुए थे लेकिन अब उनके हाथ में बीजेपी का झंडा होगा.
हर्ष महाजन- कांग्रेस के 6 बागी और 3 निर्दलीय विधायकों के बीजेपी में जाने की कहानी का सबसे अहम किरदार हर्ष महाजन ही हैं. बीजेपी ने इस बार राज्यसभा चुनाव के लिए हर्ष महाजन को उम्मीदवार बनाया था और क्रॉस वोटिंग की मदद से वो चुनाव जीत भी गए. लेकिन हर्ष महाजन भी 4 दशक से ज्यादा कांग्रेस में रहे और 2022 विधानसभा चुनाव से ऐन पहले उन्होंने भी 'हाथ' छोड़कर कमल थाम लिया था. साल 1993, 1998 और 2003 में वो कुल तीन बार चंबा से विधायक रहे. कांग्रेस सरकार में मंत्री भी बने. वो वीरभद्र सिंह के सबसे करीबियों में थे. शनिवार को दिल्ली में जब कांग्रेस के बागी बीजेपी ज्वाइन कर रहे थे तो मंच पर एक कुर्सी पर हर्ष महाजन भी बैठे थे. माना जा रहा है कि राज्यसभा चुनाव में बीजेपी ने जो उनपर दांव लगाया था उन्होंने उसे साबित करते हुए इस खेल के सबसे अहम किरदार हर्ष महाजन ही हैं. क्रॉस वोटिंग से लेकर बागियों को बीजेपी में शामिल करवाने तक की पटकथा लिखने में हर्ष महाजन का अहम रोल था.
क्यों हो रहा है कांग्रेस से मोह भंग ?
इस सवाल का सामना कांग्रेस का कुनबा बीते करीब एक दशक से देशभर के राज्यों में कर रहा है. लेकिन ऐसा लगता है कि कांग्रेस के अलावा इसका जवाब सभी जानते हैं. कोई भी राज्य हो, बगावत कांग्रेस का मानो पूरक रही है. हिमाचल की सूरत में बगावत के बिगुल पहले भी फूंके गए हैं लेकिन अपने ही 6 विधायक पहले राज्यसभा की जीती हुई सीट हरा दें और फिर बीजेपी के खेमे में चले जाएं. चुनाव से पहले हिमाचल की सियासत में ये इतिहास बनने और कांग्रेस का भविष्य बिगाड़ने जैसा भी साबित हो सकता है. कांग्रेस छोड़ने वाला हर नेता पार्टी और सरकार पर अनदेखी करने से लेकर अपमान करने और केंद्रीय नेतृत्व पर सुनवाई ना करने का आरोप लगाता है. जिसकी ठेस उन नेताओं को लगी है जिनकी पिछली पीढ़ी ने इस पार्टी को सींचा है.
वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण भानू के मुताबिक "बीजेपी में शामिल होने वाले 6 में से 3 बागी तो पैदाइशी कांग्रेसी थे. उनके लिए ये फैसला लेना आसान बिल्कुल नहीं रहा होगा. उनके लिए ये फैसला लेना अपने पुरखों को कष्ट पहुंचाने जैसा रहा होगा लेकिन वो भी अपनी जगह ठीक हैं क्योंकि परिस्थितियां ही ऐसी बन गई थीं कि अपनी ही सरकार और पार्टी में सुनवाई नहीं हो रही थी."
सरकार और संगठन के बीच तालमेल से लेकर, केंद्रीय आलाकमान के दरबार में सुनवाई ना होने जैसी कुछ वजहें हैं जो लगभग हर राज्य के कांग्रेसी कुनबे से सुनने को मिलती है. जिसके कारण लोग हाथ छुड़ाकर दूसरी पार्टियों, खासकर बीजेपी का रुख कर रहे हैं. देश के तमाम राज्यों में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं. कुल मिलाकर दशकों तक पार्टी में रहे नेताओं का मोह अगर भंग हो रहा है तो देशभर में कांग्रेस के गिरते ग्राफ के बीच आलाकमान को सोच विचार करने की जरूरत है. बीते दो लोकसभा चुनाव और कई राज्यों के चुनाव में पार्टी की दुर्गति हो रही है. जिसका सीधा असर कार्यकर्ताओं के मनोबल पर पड़ता है. चुनावी मौसम में दशकों तक साथ रहे चेहरे रातों रात अगर 'हाथ' छोड़ देंगे तो ऐसे में कार्यकर्ताओं के साथ की उम्मीद भी बेइमानी होगी.
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