पटना : बिहार की सबसे चर्चित हॉट सीट बेगूसराय का लोकसभा चुनाव कई मायनों में अलग है. एक तरफ जहां भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े हिंदुत्व के चेहरे फायर ब्रांड नेता गिरिराज सिंह भाजपा की तरफ से ताल ठोकेंगे तो, वहीं INDIA गठबंधन से किस प्रत्याशी को उतारा जाता है? इस पर बड़ा सवाल है. यह सवाल इसलिए लाजमी है क्योंकि जो पिछली दफा चुनाव हुए थे, उसके पूरे समीकरण इस दफा बदल गए हैं. अब गिरिराज सिंह के सामने कांग्रेस, वाम दल और राष्ट्रीय जनता दल से किस उम्मीदवार को उतारा जाता है यह बड़ा सवाल है.
हवा के बावजूद कन्हैया की हार : इस सवाल के जवाब से पहले आपको लोकसभा चुनाव 2019 के घटनाक्रम को जानना चाहिए. उस समय परिस्थितियां बिल्कुल अलग थी. देश दुनिया में अपनी एक अलग अलग छवि बनाकर युवा नेता के तौर पर उभरे कन्हैया कुमार ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया से चुनाव लड़ा था. उनके चुनाव प्रचार में वाम दल विचारधारा से संबंधित कई चेहरे बेगूसराय में उतरे थे. यहां तक की फिल्मों के कई बड़े और दिग्गज कलाकार भी कन्हैया कुमार के लिए प्रचार करते नजर आए थे. जिसमें शबाना आजमी और प्रकाश राज प्रमुख चेहरे थे. इसके अलावा वाम दल के कई स्टार प्रचारक कन्हैया की जीत के लिए आश्वस्त करते नजर आए. बेगूसराय में ऐसी हवा भी थी कि लगा कि बीजेपी के कैंडिडेट गिरिराज सिंह को कन्हैया कुमार पटखनी दे देंगे.
आरजेडी ने भी उम्मीदवार उतारा था : लेकिन, यह सीट कन्हैया कुमार के लिए इतनी भी आसान नहीं थी. वजह तेजस्वी यादव को बताया जा रहे हैं. तेजस्वी यादव ने गठबंधन धर्म को किनारे करते हुए राजद के तरफ से अपना एक कैंडिडेट बेगूसराय के चुनावी मैदान में उतार दिया. अब जो वोट पूरी तरह से कन्हैया को मिलना चाहिए था उसमें बटवारा हो गया. आपको बता दें की 2019 लोकसभा चुनाव में बेगूसराय सीट पर गिरिराज सिंह को 6 लाख 92 हजार वोट मिले थे. तो वहीं कन्हैया कुमार को 2 लाख 69 हजार वोट मिले थे. जबकि राष्ट्रीय जनता दल की तरफ से चुनाव लड़ने वाले तनवीर हसन को 1लाख 98 हजार वोट मिले थे. ऐसे में कन्हैया कुमार की हार लगभग चार लाख वोटों से हो गई.
क्यों कहा जाता लेनिनग्राद : अब इन तमाम समीकरणों के साथ यह भी जानना जरूरी है कि बेगूसराय मिनी मास्को या फिर पूर्व का लेनिनग्राद क्यों कहा जाता है? दरअसल, आजादी से पहले वामपंथ ने भूमिहार जमींदारों के खिलाफ मोर्चा खोला था. इस वामदल में भी भूमिहार नेता ही थे. बताया जाता है कि उस समय कामरेड चंद्रशेखर सिंह काफी बढ़ चढ़कर इन आंदोलनों में हिस्सा लिए थे. हालांकि उनके पिता रामचरित्र सिंह बिहार सरकार में सिंचाई और विद्युत मंत्री थे. इसके बावजूद कामरेड चंद्रशेखर सिंह वामपंथी आंदोलन में हिस्सा लेते रहे और बेगूसराय के कई विधानसभा क्षेत्र में वामपंथ की विचारधारा दिखने लगी. यही वजह है कि बेगूसराय को पूर्व का लेनिनग्राद कहा जाने लगा.
बैटल ऑफ बेगूसराय : हालांकि, 1952 से लेकर 2019 तक मात्र एक बार 1967 में सीपीआई से योगेंद्र शर्मा सांसद बने थे. आठ बार कांग्रेस के सांसद रहे और बाकी समय में जनता दल, जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी के सांसद इस सीट पर अपना परचम लहराते रहे हैं. पिछले दो बार से बेगूसराय पर भारतीय जनता पार्टी का वर्चस्व है. 2014 में भाजपा के दिग्गज नेता भोला सिंह ने चुनाव जीता था. उनके निधन के बाद यह सीट गिरिराज सिंह को दिया गया. हालांकि गिरिराज सिंह पहले नवादा से सांसद थे लेकिन काफी मान मनौव्वल के बाद गिरिराज सिंह ने बेगूसराय से चुनाव लड़ना स्वीकार किया. फिर जीत कर मंत्री बने.
भूमिहारों का वर्चस्व : जाति समीकरण के लिहाज से देखा जाए तो बेगूसराय पर भूमिहारों का वर्चस्व रहा है. चाहे वह किसी भी पार्टी के रहे हो लेकिन भूमिहार उम्मीदवार ही यहां से जीत हासिल करते रहे हैं. बेगूसराय में 5 लाख से अधिक भूमिहार वोटर हैं. वहीं ढाई लाख के आसपास मुस्लिम मतदाता भी है. कुर्मी कुशवाहा की भी ठीक-ठाक तादाद है यहां 2 लाख से अधिक कुर्मी कुशवाहा वोटर हैं. वहीं यादव की भी संख्या डेढ़ लाख के आसपास है. इसके अलावा जो डिसाइडिंग फैक्टर है उसमें दलित वोट बैंक भी है. ब्राह्मण, राजपूत और कायस्थ की भी संख्या ठीक-ठाक है. जो डिसाइडिंग फैक्टर में शामिल है.
हर दल अपना उम्मीदवार उतारना चाहता : यदि वर्तमान स्थिति में बात की जाए तो गिरिराज सिंह यहां से दोबारा चुनाव लड़ सकते हैं. हालांकि बीजेपी के तरफ से दूसरे उम्मीदवार राकेश सिन्हा भी लगातार तैयारी कर रहे हैं. उन्हें भाजपा ने राज्यसभा सांसद बनाया था लेकिन, बेगूसराय से तालुक रखने की वजह से वह लगातार बेगूसराय में काम करते रहे हैं और इसी वजह से उनकी भी दावेदारी ठीक-ठाक हैं. वहीं पिछली दफा कन्हैया कुमार ने लेफ्ट से अपनी दावेदारी की थी. इस बार वह कांग्रेस में चले गए हैं तो माना जा रहा है कि कन्हैया कुमार को कांग्रेस चुनाव लड़ा सकती है. लेकिन, कन्हैया कुमार के नाम पर राजद कितना तैयार होती है यह सबसे बड़ी बात है.
गिरिराज को कौन देगा टक्कर? : हालांकि राजद के तरफ से दो-तीन चेहरे लगातार बेगूसराय में देखे जा रहे हैं. जिसमें अशफाक करीम, तनवीर हसन और राजवंशी महतो तैयारी कर रहे हैं. हालांकि कांग्रेस की तरफ से कन्हैया कुमार के अलावा अमृता भूषण जो पूर्व में प्रदेश कांग्रेस महिला मोर्चा की अध्यक्ष थीं, वह भी अपनी तैयारी कर रही है. वहीं दूसरी तरफ बेगूसराय सीट पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी अपनी दावेदारी पिछली बार की तरह दोहरा रही है. उनका कहना है कि कन्हैया कुमार को जो वोट मिले थे वह वामदल के थे. ऐसे में राजद तीसरे नंबर पर आई थी और लेफ्ट पार्टी दूसरे नंबर पर थी तो गिरिराज सिंह या फिर भाजपा को सीपीआई ही टक्कर दे सकती है.
प्रयोग का गढ़ है बेगूसराय : बेगूसराय से ताल्लुक रखने वाले और बिहार के वरिष्ठ पत्रकार अशोक मिश्रा बताते हैं कि बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र पूर्वोत्तर राज्यों का मुख्य द्वार है. बिहार के औद्योगिक राजधानी भी बेगूसराय है. बेगूसराय आर्थिक रूप से संपन्न जिला है. बेगूसराय भूमिहार बहुल जिला है. विपरीत परिस्थिति में भी बेगूसराय का चुनाव परिणाम अलग रहे हैं. 1990 में जब जनता दल की लहर चल रही थी उस समय बेगूसराय में कांग्रेस ने चुनाव जीता था और उस समय कृष्णा शाही चुनाव जीतीं थीं.
त्रिकोणीय मुकाबले से हुआ फायदा : बेगूसराय एक तरफ जहां वामपंथियों का गढ़ था तो वहीं समाजवादी पार्टियों का भी गढ़ रहा है और कांग्रेस का भी गढ़ रहा है और बेगूसराय की जनता समय-समय पर परिवर्तन करती रही है. बेगूसराय में दो लोकसभा क्षेत्र थे बलिया और बेगूसराय. अब एक ही लोकसभा क्षेत्र है बेगूसराय. 2019 में तत्कालीन सांसद भोला सिंह का निधन हो गया था और गिरिराज सिंह को नवादा से भेजा गया था. तो यहां के लोगों में नाराजगी थी. लेकिन, समय के साथ दूर हो हो गई. अभी जो तत्कालीन गठबंधन है उस समय कन्हैया कुमार को लेकर ही गठबंधन तारतार हुई थी और तनवीर हसन को राजद ने अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया था और यही वजह थी कि जो एंटी बीजेपी वोटों का बंटवारा हुआ जिससे गिरिराज सिंह की जीत का फासला काफी बढ़ गया था.
कन्हैया के लिए वामदल ही लगाएगा अडंगा : अशोक मिश्रा बताते हैं कि अभी बीजेपी के सामने कई चेहरे हैं. गिरिराज सिंह तो हैं ही अभी राकेश सिन्हा भी लगातार वहां काम कर रहे हैं. स्थानीय स्तर पर लगातार काम कर रहे हैं. गिरिराज सिंह ने भी बेगूसराय में खूब काम किया है. बरौनी फर्टिलाइजर को गिरिराज सिंह ने फिर से जीवित किया. अब कांग्रेस चाह रही है कि वहां से कन्हैया कुमार चुनाव लड़े लेकिन, इस बार आरजेडी से ज्यादा कन्हैया कुमार के लिए वामपंथी पार्टियां ज्यादा अडंगा लगा रही हैं. जिनके दम पर कन्हैया पिछली बार चुनाव लड़े थे.
उम्मीदवारी पर जीत-हार सबकुछ निर्भर : बेगूसराय में बीजेपी की उम्मीदवारी तो है ही महागठबंधन में कांग्रेस भी है, लेफ्ट भी है और राजद भी अपनी उम्मीदवारी दे देना चाहती है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि गिरिराज सिंह यदि मैदान में आते हैं तो उनके सामने कौन होगा? क्योंकि 2019 के बाद से गिरिराज सिंह की और बीजेपी के हैसियत बेगूसराय में बढ़ी है और ऐसे में कहा जा सकता है कि यदि गिरिराज सिंह के सामने महागठबंधन के तरफ से बड़े चेहरे नहीं आते हैं तो गिरिराज सिंह एक बार फिर से आसानी से चुनाव जीत जाएंगे.
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