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क्या था अजीज बाशा मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला? जिसे CJI चंद्रचूड़ की पीठ ने किया खारिज

CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने अजीज बाशा मामले में दिए गए पांच जजों की बैंच के फैसले को खारिज कर दिया.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 8, 2024, 1:05 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 4-3 बहुमत से अजीज बाशा मामले में अपने 1967 के फैसले को खारिज कर दिया, जो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) को अल्पसंख्यक का दर्जा देने से इनकार करने का आधार बना. इसने निर्देश दिया कि AMU का दर्जा मौजूदा फैसले में विकसित सिद्धांतों के अनुसार नए सिरे से निर्धारित किया जाएगा.

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने अजीज बाशा मामले में दिए गए पांच जजों की बैंच के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का फैसला मौजूदा मामले में निर्धारित किए गए परीक्षणों के आधार पर किया जाना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि कोई संस्था सिर्फ इसलिए अपना अल्पसंख्यक दर्जा नहीं खो सकती क्योंकि उसे कानून के जरिए बनाया गया है. कोर्ट ने फैसले में कहा कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्ज को नए सिरे से तय किया जाएगा. इसके लिए तीन जजों की पीठ बनाई गई है.

बहुमत ने माना कि कोर्ट को यह जांच करनी चाहिए कि विश्वविद्यालय की स्थापना किसने की और इसके पीछे किसका दिमाग था. अगर वह जांच अल्पसंख्यक समुदाय की ओर इशारा करती है, तो संस्था अनुच्छेद 30 के अनुसार अल्पसंख्यक दर्जा का दावा कर सकती है.

अजीज बाशा मामले में कोर्ट ने क्या कहा था?
इसके साथ सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अजीज बाशा मामले में 1967 के फैसले को खारिज कर दिया. इस फैसले पांच जजों की बैंच ने कहा था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक्ट 1920 का हवाला भी दिया था, जिसके तहत यूनिवर्सिटी की स्थापना की गई थी. बैंच ने कहा था कि एएमयू न तो मुस्लिम समुदाय ने स्थापित किया है और न ही मुस्लिम समुदाय इसे प्रशासित करता है - जो संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए एक आवश्यक है.

1982 में अधिनियम हुआ संशोधित
इसके बाद1981 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और कहा गया कि यूनिवर्सिटी भारत के मुसलमानों ने स्थापित की है. 2005 में विश्वविद्यालय ने मुस्लिम छात्रों के लिए पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्ट में 50 फीसदी सीटें आरक्षित कर दीं. इसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आरक्षण नीति और 1981 के संशोधन को रद्द कर दिया था, जिसके बाद इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई.

यह भी पढ़ें- अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के माइनॉरिटी स्टेटस को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने क्या है? जानें

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 4-3 बहुमत से अजीज बाशा मामले में अपने 1967 के फैसले को खारिज कर दिया, जो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) को अल्पसंख्यक का दर्जा देने से इनकार करने का आधार बना. इसने निर्देश दिया कि AMU का दर्जा मौजूदा फैसले में विकसित सिद्धांतों के अनुसार नए सिरे से निर्धारित किया जाएगा.

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने अजीज बाशा मामले में दिए गए पांच जजों की बैंच के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का फैसला मौजूदा मामले में निर्धारित किए गए परीक्षणों के आधार पर किया जाना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि कोई संस्था सिर्फ इसलिए अपना अल्पसंख्यक दर्जा नहीं खो सकती क्योंकि उसे कानून के जरिए बनाया गया है. कोर्ट ने फैसले में कहा कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्ज को नए सिरे से तय किया जाएगा. इसके लिए तीन जजों की पीठ बनाई गई है.

बहुमत ने माना कि कोर्ट को यह जांच करनी चाहिए कि विश्वविद्यालय की स्थापना किसने की और इसके पीछे किसका दिमाग था. अगर वह जांच अल्पसंख्यक समुदाय की ओर इशारा करती है, तो संस्था अनुच्छेद 30 के अनुसार अल्पसंख्यक दर्जा का दावा कर सकती है.

अजीज बाशा मामले में कोर्ट ने क्या कहा था?
इसके साथ सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अजीज बाशा मामले में 1967 के फैसले को खारिज कर दिया. इस फैसले पांच जजों की बैंच ने कहा था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक्ट 1920 का हवाला भी दिया था, जिसके तहत यूनिवर्सिटी की स्थापना की गई थी. बैंच ने कहा था कि एएमयू न तो मुस्लिम समुदाय ने स्थापित किया है और न ही मुस्लिम समुदाय इसे प्रशासित करता है - जो संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए एक आवश्यक है.

1982 में अधिनियम हुआ संशोधित
इसके बाद1981 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और कहा गया कि यूनिवर्सिटी भारत के मुसलमानों ने स्थापित की है. 2005 में विश्वविद्यालय ने मुस्लिम छात्रों के लिए पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्ट में 50 फीसदी सीटें आरक्षित कर दीं. इसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आरक्षण नीति और 1981 के संशोधन को रद्द कर दिया था, जिसके बाद इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई.

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