नई दिल्ली: विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर ने सोमवार को कांग्रेस और द्रमुक पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टियों ने कच्चातिवु द्वीप को ऐसे उठाया जैसे कि उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जनता को यह जानने का अधिकार है कि कच्चातिवु को कैसे दिया गया. जयशंकर ने यहां नई दिल्ली में भाजपा मुख्यालय मीडिया ब्रीफिंग में कहा, 'हम जानते हैं कि यह किसने किया, हम नहीं जानते कि इसे किसने छुपाया.'
जनता को यह जानने का अधिकार है कि कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को कैसे दिया गया. संसद को यह आश्वासन देने के बाद कि 1974 के समझौते में भारतीयों के मछली पकड़ने के अधिकारों को सुरक्षित रखा गया है. फिर 1976 में भारतीय मछुआरों के मछली पकड़ने के अधिकार भी क्यों छोड़ दिए गए थे. उन्होंने कहा, 1974 में भारत और श्रीलंका ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जहां उन्होंने एक समुद्री सीमा खींची, और समुद्री सीमा खींचने में कच्चातिवु को सीमा के श्रीलंकाई हिस्से में रखा गया.' उन्होंने कहा कि भारत को श्रीलंकाई अधिकारियों के साथ बैठकर समाधान निकालने की जरूरत है.
उन्होंने कहा,'हम 1958 और 1960 के बारे में बात कर रहे हैं. मामले में मुख्य लोग यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि कम से कम हमें मछली पकड़ने का अधिकार तो मिले. यह द्वीप 1974 में दे दिया गया और मछली पकड़ने का अधिकार 1976 में दे दिया गया. एक सबसे बुनियादी पहलू तत्कालीन केंद्र सरकार और प्रधानमंत्रियों द्वारा भारत के क्षेत्र के बारे में दिखाई गई उदासीनता है.'
उन्होंने कहा, 'तथ्य यह है कि उन्हें कोई परवाह नहीं थी. मई 1961 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा एक अवलोकन दिया गया. इसमें उन्होंने लिखा, 'मैं इस छोटे से द्वीप को बिल्कुल भी महत्व नहीं देता और मुझे इसमें कोई हिचकिचाहट नहीं होगी इस पर अपना दावा छोड़ रहा हूं. मुझे इस तरह के मामले अनिश्चित काल तक लंबित रहना और संसद में बार-बार उठाया जाना पसंद नहीं है.'
उन्होंने दोहराया कि पंडित नेहरू के लिए यह एक छोटा सा द्वीप था, इसका कोई महत्व नहीं था और उन्होंने इसे एक उपद्रव के रूप में देखा. उनके लिए जितनी जल्दी आप इसे छोड़ देंगे, उतना बेहतर होगा. यह विचार इंदिरा गांधी के साथ भी जारी रहा. तमिलनाडु से जी. विश्वनाथन नामक एक संसद सदस्य हैं और वे कहते हैं, 'हम भारतीय क्षेत्र से हजारों मील दूर डिएगो गार्सिया के बारे में चिंतित हैं, लेकिन हम इस छोटे से द्वीप के बारे में चिंतित नहीं हैं. प्रधानमंत्री (इंदिरा गांधी) के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने एआईसीसी की बैठक में टिप्पणी की थी कि यह एक छोटी सी बात है.
उन्होंने कहा, 'मुझे वे दिन याद आ रहे हैं जब पंडित नेहरू हमारी उत्तरी सीमा को ऐसी जगह बताते थे जहां घास का एक तिनका भी नहीं उगता. मैं प्रधानमंत्री को याद दिलाना चाहूंगा कि प्रधानमंत्री नेहरू के इस ऐतिहासिक बयान के बाद वह कभी भी देश का विश्वास हासिल नहीं कर पाए. ऐसा ही प्रधानमंत्री (इंदिरा गांधी) के साथ भी हुआ जब उन्होंने कहा कि यह केवल एक छोटी सी बात है और हमारे देश के क्षेत्रों के बारे में चिंता करने की कोई बात नहीं है तो, यह सिर्फ एक प्रधानमंत्री नहीं है. यह उपेक्षापूर्ण रवैया कच्चतिवु के प्रति कांग्रेस का ऐतिहासिक रवैया था.
उन्होंने कहा, 'पिछले 20 वर्षों में 6184 भारतीय मछुआरों को श्रीलंका द्वारा हिरासत में लिया गया है. इसी तरह 1175 भारतीय मछली पकड़ने वाली नौकाओं को श्रीलंका द्वारा जब्त किया गया. यह उस मुद्दे की पृष्ठभूमि है जिस पर हम चर्चा कर रहे हैं.' उन्होंने कहा, 'डीएमके कच्चातिवु को श्रीलंका को सौंपने पर सवाल उठाती है, दावा करती है कि तमिलनाडु सरकार से सलाह नहीं ली गई. तथ्य यह है कि उसे पूरी जानकारी दी गई थी.'
इस मुद्दे पर उनके रवैये के लिए कांग्रेस और द्रमुक की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा, 'कांग्रेस और द्रमुक ने इस मामले को ऐसे देखा जैसे कि उनकी इसके लिए कोई जिम्मेदारी नहीं है.' इस बीच पीएम मोदी ने डीएमके की आलोचना की और कहा, 'बयानबाजी के अलावा डीएमके ने तमिलनाडु के हितों की रक्षा के लिए कुछ नहीं किया है.
कच्चातिवु पर सामने आए नए विवरणों ने डीएमके के दोहरे मानकों को उजागर किया है.' कांग्रेस और द्रमुक पारिवारिक इकाइयां हैं. उन्हें केवल इस बात की परवाह है कि उनके बेटे-बेटियाँ आगे बढ़ें. उन्हें किसी और की परवाह नहीं है. उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया, 'कच्चातिवु पर उनकी उदासीनता ने विशेष रूप से हमारे गरीब मछुआरों और उनके परिवार के हितों को नुकसान पहुंचाया है.