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क्या AMU में कभी परोसा गया गौ मांस? जानिए- फाउंडर सर सैय्यद अहमद खान का क्या था स्टैंड - AMU BEEF BIRYANI NOTICE CASE

एएमयू के जानकार राहत अबरार और हिन्दू छात्र दिलीप कुशवाहा ने बीफ बिरियानी के नोटिस को बताया फेक, जानिए क्या था पूरा मामला

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी सुलेमान हॉल
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी सुलेमान हॉल (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 14, 2025, 7:02 PM IST

अलीगढ़ः अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के सुलेमान हॉल में बीफ बिरियानी के वायरल नोटिस का मामला रुकने का नाम नहीं ले रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि कभी एएमयू के कैंटीन में कभी गौ मांस परोसा गया था. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैयद अहमद खान का इसको लेकर क्या विचार था. आइए जानते हैं...

1857 में गाय की कुर्बानी पर पाबंदी किसने लगाई ?
डॉ. राहत अबरार ने बताया कि 1857 मे सबसे पहला शख्स अगर कोई था तो वह बहादुर शाह जफर था, जिसने गाय की कुर्बानी पर पाबंदी लगाई. किसी हिंदू ने गाय की कुर्बानी पर पाबंदी नहीं लगाई. मुसलमान का राज था, इसलिए मुसलमानो ने गाय की कुर्बानी पर पाबंदी लगाई. सर सैयद अहमद खान ने भी गाय की कुर्बानी के ऊपर बहुत से आर्टिकल लिखे थे. सर सैयद के दौर में यूनिवर्सिटी के छात्रों ने बकरा ईद के मौके पर गाय की कुर्बानी के लिए लाए थे. इसकी सूचना मिली तो सर सैयद अपने घर से छात्रों के पास आए और न सिर्फ छात्रों को कुर्बानी से रोका बल्कि गाय को आजाद भी किया. इसके साथ ही और की कुर्बानी पर पाबंदी भी लगाई. सर सैयद ने छात्रों से कहा था कि हम गाय की कुर्बानी इसलिए कभी नहीं करेंगे, क्योंकि हिंदू धर्म में गाय को माता माना जाता है. उस दिन से आज तक यूनिवर्सिटी के अंदर कभी गौ मांस नहीं परोसा गया.

एएमयू के छात्र और जानकारों से क्या है बीफ बिरियानी के नोटिस. (Video Credit; ETV Bharat)

गौ मांस के संबंध में सर सैयद ने लिखे थे आर्टिकल
राहत अबरार ने बताया कि सर सैयद ने गौ मांस और गाय की कुर्बानी पर पाबंदी के संबंध में 12 जून 1897 और 4 अक्टूबर 1887 को इंस्टिट्यूट गजट में आर्टिकल सिर्फ उर्दू भाषा में बल्कि अंग्रेजी में भी लिखे. आज भी सर सैयद के इन आर्टिकल को कोई भी मौलाना आजाद लाइब्रेरी में जाकर देख सकता है, इंस्टिट्यूट गजट में जो इतिहास का हिस्सा है. राहत अब्राहम ने कहा कि मैं चाहता हूं कि इस कंट्रोवर्सी को खत्म होना चाहिए और जिस छात्र की भी यह शर्त है उसके खिलाफ एक्शन भी होना चाहिए. सर सैयद अहमद खान द्वारा लिखे गए आर्टिकल का जिक्र राहत अब्राहम ने अपनी किताब "सर सैयद लिगसी ऑफ प्लूरेलिज्म एंड कंपोजिट कल्चर" मैं भी किया है.

लोकल नेता इसका फायदा उठाना चाह रहेः सुलेमान हॉल के निवासी और यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग के रिसर्च स्कॉलर दिलीप कुशवाहा ने नोटिस को लेकर मीडिया तीन-चार दिन से उस कागज के टुकड़े को चलाये जा रहा है. मीडिया को खुद उस कागज के टुकड़े की ऑथेंटिकेशन चेक करनी चाहिए. जबकि उस नोटिस पर ना तो हॉल का नाम है न कोई हस्ताक्षर है, ना नंबर है और ना ही तारीख है. दिलीप कुशवाहा ने अपने हॉल के दोनों छात्र सीनियर फूड और प्रोवोस्ट डॉक्टर फसीह रागीब गौहर पर दर्ज FIR पर अफसोस का इजहार किया. उन्होंने कहा कि इस मामले पर पूरी तरह से राजनीति की जा रही है, चंद लोकल नेता इसका फायदा उठाना चाह रहे हैं और कुछ नहीं है.

बीजेपी की डिवाइड एंड रूल वाली पॉलिसीः यूनिवर्सिटी छात्र मोहम्मद सलमान गौरी ओर रिसर्च स्कॉलर इंजमाम-उल-हक ने बताया कि यूनिवर्सिटी में इतना भाईचारा है कि यहां पर डाइनिंग में एक ही प्लेट में दोनों मदद के लोग एक साथ खाना खाते हैं. यूनिवर्सिटी के अंदर छात्रों को कोई परेशानी नहीं होती है. लेकिन बाहर के लोगों को परेशानी होती है. इंजमाम ने कहा कि हमेशा से बीजेपी की डिवाइड एंड रूल वाली पॉलिसी रहती है. जो अंग्रेज बांटने का काम करते थे, वही बीजेपी कर रही है. कभी जिन्ना की तस्वीर तो कभी बीफ बिरियानी का मुद्दा बनाकर यूनिवर्सिटी को बदनाम करते रहते हैं.

छात्र सलमान ने बताया कि यूनिवर्सिटी के अंदर आज तक कभी गो मांस को परोसा ही नहीं गया. सवाल ही नहीं पैदा होता कि हम इसको सपोर्ट करें, सभी लोग मिलजुल कर भाईचारे के साथ रहते हैं. कुछ छोटे नेता चाहते हैं कि वह राजनीति करें. अपनी राजनीति को चमकाए, समाज में उनका इज्जत मिले इसलिए वह इस तरह के इश्यूज पर बांटने की बयान बाजी करते हैं.

दो छात्रों के खिलाफ एफआईआरः 9 फरवरी को यूनिवर्सिटी प्रॉक्टर मोहम्मद वसीम अली ने अपने बयान में कहा था के टाइपिंग एरर था, इसीलिए नोटिस निकलने वाले दोनों सीनियर फूड छात्रों को शो कॉज नोटिस दे दिया गया है. हॉल के मेन्यू में कोई बदलाव नहीं किया गया है. वहीं, 8 फरवरी को संबंधित धाराओं में थाना सिविल लाइन में दोनों सीनियर फूड छात्रों और हॉल के प्रोवोस्ट के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.
इसे भी पढ़ें-'एएमयू में चिकन बिरयानी की जगह मिलेगी बीफ बिरयानी'; सीनियर फूड डाइनिंग हॉल ने जारी किया नोटिस

अलीगढ़ः अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के सुलेमान हॉल में बीफ बिरियानी के वायरल नोटिस का मामला रुकने का नाम नहीं ले रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि कभी एएमयू के कैंटीन में कभी गौ मांस परोसा गया था. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैयद अहमद खान का इसको लेकर क्या विचार था. आइए जानते हैं...

1857 में गाय की कुर्बानी पर पाबंदी किसने लगाई ?
डॉ. राहत अबरार ने बताया कि 1857 मे सबसे पहला शख्स अगर कोई था तो वह बहादुर शाह जफर था, जिसने गाय की कुर्बानी पर पाबंदी लगाई. किसी हिंदू ने गाय की कुर्बानी पर पाबंदी नहीं लगाई. मुसलमान का राज था, इसलिए मुसलमानो ने गाय की कुर्बानी पर पाबंदी लगाई. सर सैयद अहमद खान ने भी गाय की कुर्बानी के ऊपर बहुत से आर्टिकल लिखे थे. सर सैयद के दौर में यूनिवर्सिटी के छात्रों ने बकरा ईद के मौके पर गाय की कुर्बानी के लिए लाए थे. इसकी सूचना मिली तो सर सैयद अपने घर से छात्रों के पास आए और न सिर्फ छात्रों को कुर्बानी से रोका बल्कि गाय को आजाद भी किया. इसके साथ ही और की कुर्बानी पर पाबंदी भी लगाई. सर सैयद ने छात्रों से कहा था कि हम गाय की कुर्बानी इसलिए कभी नहीं करेंगे, क्योंकि हिंदू धर्म में गाय को माता माना जाता है. उस दिन से आज तक यूनिवर्सिटी के अंदर कभी गौ मांस नहीं परोसा गया.

एएमयू के छात्र और जानकारों से क्या है बीफ बिरियानी के नोटिस. (Video Credit; ETV Bharat)

गौ मांस के संबंध में सर सैयद ने लिखे थे आर्टिकल
राहत अबरार ने बताया कि सर सैयद ने गौ मांस और गाय की कुर्बानी पर पाबंदी के संबंध में 12 जून 1897 और 4 अक्टूबर 1887 को इंस्टिट्यूट गजट में आर्टिकल सिर्फ उर्दू भाषा में बल्कि अंग्रेजी में भी लिखे. आज भी सर सैयद के इन आर्टिकल को कोई भी मौलाना आजाद लाइब्रेरी में जाकर देख सकता है, इंस्टिट्यूट गजट में जो इतिहास का हिस्सा है. राहत अब्राहम ने कहा कि मैं चाहता हूं कि इस कंट्रोवर्सी को खत्म होना चाहिए और जिस छात्र की भी यह शर्त है उसके खिलाफ एक्शन भी होना चाहिए. सर सैयद अहमद खान द्वारा लिखे गए आर्टिकल का जिक्र राहत अब्राहम ने अपनी किताब "सर सैयद लिगसी ऑफ प्लूरेलिज्म एंड कंपोजिट कल्चर" मैं भी किया है.

लोकल नेता इसका फायदा उठाना चाह रहेः सुलेमान हॉल के निवासी और यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग के रिसर्च स्कॉलर दिलीप कुशवाहा ने नोटिस को लेकर मीडिया तीन-चार दिन से उस कागज के टुकड़े को चलाये जा रहा है. मीडिया को खुद उस कागज के टुकड़े की ऑथेंटिकेशन चेक करनी चाहिए. जबकि उस नोटिस पर ना तो हॉल का नाम है न कोई हस्ताक्षर है, ना नंबर है और ना ही तारीख है. दिलीप कुशवाहा ने अपने हॉल के दोनों छात्र सीनियर फूड और प्रोवोस्ट डॉक्टर फसीह रागीब गौहर पर दर्ज FIR पर अफसोस का इजहार किया. उन्होंने कहा कि इस मामले पर पूरी तरह से राजनीति की जा रही है, चंद लोकल नेता इसका फायदा उठाना चाह रहे हैं और कुछ नहीं है.

बीजेपी की डिवाइड एंड रूल वाली पॉलिसीः यूनिवर्सिटी छात्र मोहम्मद सलमान गौरी ओर रिसर्च स्कॉलर इंजमाम-उल-हक ने बताया कि यूनिवर्सिटी में इतना भाईचारा है कि यहां पर डाइनिंग में एक ही प्लेट में दोनों मदद के लोग एक साथ खाना खाते हैं. यूनिवर्सिटी के अंदर छात्रों को कोई परेशानी नहीं होती है. लेकिन बाहर के लोगों को परेशानी होती है. इंजमाम ने कहा कि हमेशा से बीजेपी की डिवाइड एंड रूल वाली पॉलिसी रहती है. जो अंग्रेज बांटने का काम करते थे, वही बीजेपी कर रही है. कभी जिन्ना की तस्वीर तो कभी बीफ बिरियानी का मुद्दा बनाकर यूनिवर्सिटी को बदनाम करते रहते हैं.

छात्र सलमान ने बताया कि यूनिवर्सिटी के अंदर आज तक कभी गो मांस को परोसा ही नहीं गया. सवाल ही नहीं पैदा होता कि हम इसको सपोर्ट करें, सभी लोग मिलजुल कर भाईचारे के साथ रहते हैं. कुछ छोटे नेता चाहते हैं कि वह राजनीति करें. अपनी राजनीति को चमकाए, समाज में उनका इज्जत मिले इसलिए वह इस तरह के इश्यूज पर बांटने की बयान बाजी करते हैं.

दो छात्रों के खिलाफ एफआईआरः 9 फरवरी को यूनिवर्सिटी प्रॉक्टर मोहम्मद वसीम अली ने अपने बयान में कहा था के टाइपिंग एरर था, इसीलिए नोटिस निकलने वाले दोनों सीनियर फूड छात्रों को शो कॉज नोटिस दे दिया गया है. हॉल के मेन्यू में कोई बदलाव नहीं किया गया है. वहीं, 8 फरवरी को संबंधित धाराओं में थाना सिविल लाइन में दोनों सीनियर फूड छात्रों और हॉल के प्रोवोस्ट के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.
इसे भी पढ़ें-'एएमयू में चिकन बिरयानी की जगह मिलेगी बीफ बिरयानी'; सीनियर फूड डाइनिंग हॉल ने जारी किया नोटिस

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