सागर: प्रकृति के सफाई दरोगा कहे जाने वाले गिद्धों की तेजी से कम होती संख्या वन्यजीव प्रेमियों और वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय है. गिद्धों को बचाने के लिए तरह-तरह के प्रयास तेज हो गए हैं. इसी सिलसिले में मध्य प्रदेश में गिद्धों की संख्या बढ़ाने के लिए कई तरह के प्रयास किए जा रहे हैं. मध्य प्रदेश वनविभाग केप्टिव ब्रीडिंग के जरिए गिद्धों की नई पीढ़ी तैयार कर रहा है. इस पीढ़ी को बसाने के लिए एमपी के सबसे बड़े टाइगर रिजर्व में तैयारियां जोरों पर चल रही हैं. वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व (नौरादेही) के नरसिंहपुर जिले की डोंगरगांव रेंज में गिद्धकोंच में बसाने के लिए स्थल चयन किया गया है. जहां टाइगर रिजर्व प्रबंधन तैयारियों में जुटा हुआ है. गिद्धों के रहवास के लिए यहां की व्यवस्थाएं पर्याप्त है या नहीं, इसके लिए गिद्ध विशेषज्ञ दिलशेर खान ने नौरादेही टाइगर रिजर्व का दौरा किया.
क्यों तेजी से कम हो रही है गिद्धों की संख्या
गिद्धों की तेजी से कम होती संख्या पर पर्यावरणविदों के साथ जीवविज्ञानियों ने चिंता जतायी है. गिद्धों को प्रकृति का सफाईकर्मी कहा गया है क्योकिं ये मृत मवेशियों को खाते हैं और प्रकृति की सफाई का काम करते हैं. दरअसल गायों और दूसरे दूध देने वाले जानवरों को दूध की मात्रा बढ़ाने और प्रजनन संबंधी दूसरे कारणों में जो दवाएं दी जाती हैं, वो दवाएं उनके मरने के बाद गिद्धों की मौत की वजह बन रही है. सरकार ने कई दवाओं पर प्रतिबंध भी लगा दिए हैं. इसके साथ गिद्धों की गणना का काम शुरू किया गया है. पहली बार 2016 में गिद्धों की गणना की गयी थी तब पूरे प्रदेश में करीब 6900 गिद्ध मिले थे. इस साल नौरादेही टाइगर रिजर्व में फरवरी में शीतकालीन गणना में 1554 गिद्ध पाए गए थे. वहीं ग्रीष्मकालीन गणना में 1252 गिद्ध पाए गए है.
विशेषज्ञों की देखरेख में गिद्धों की कैप्टिव ब्रीडिंग
एमपी में गिद्धों के संरक्षण के लिए उचित वातावरण के कारण वन विभाग उत्साहित है. भोपाल में वन विहार में गिद्धों की कैप्टिव ब्रीडिंग की जा रही है. यह ऐसी प्रक्रिया होती है जिसमें नियंत्रित वातावरण में जानवरों की प्रजनन प्रक्रिया संपन्न करायी जाती है. कैप्टिव ब्रीडिंग से जन्म लेने वाली नई पीढ़ी को उस स्थान पर छोड़ दिया जाता है जहां इनके प्राकृतिक रहवास के साथ भोजन और दूसरी परिस्थितियां मुफीद होती हैं. वनविभाग ने कैप्टिव ब्रीडिंग के साथ-साथ गिद्धों के प्राकृतिक आवास में व्यवस्थाओं की तैयारी भी शुरू कर दी है. इसी कड़ी में मध्य प्रदेश के जाने माने गिद्ध विशेषज्ञ दिलशेर खान ने पिछले दिनों नौरादेही का दौरा करके यहां मौजूद गिद्धकोंच और गिद्धों के दूसरे प्राकृतिक आवास की जांच पड़ताल की और गिद्धों के संरक्षण के लिहाज से उन्हें मुफीद पाया है. उन्होंने कुछ सुझाव दिए भी दिए हैं और तैयारियों को जारी रखने के लिए कहा है.
नौरादेही में बसेगी गिद्धों की नई पीढ़ी
वनविहार में हो रही कैप्टिव ब्रीडिंग से जन्म लेने वाले गिद्ध के बच्चों के जन्म के बाद प्राकृतिक आवास में पलने के लिए नौरादेही टाइगर रिजर्व का चयन किया गया है. जहां वनविहार में कैप्टिव ब्रीडिंग से जन्मे गिद्धों के 3 अव्यस्क जोड़े छोड़े जाएंगे. यहां गिद्धों के प्राकृतिक आवास की काफी संख्या है. टाइगर रिजर्व की डोंगरगांव रेंज में गिद्धकोंच नामक स्थान गिद्धों के प्राकृतिक आवास के रूप में जाना जाता है. यहां काफी संख्या में गिद्ध पाए जाते हैं. आमतौर पर गिद्ध अक्टूबर से दिसंबर माह के बीच अंडे देते हैं. करीब डेढ़ महीने (45 दिन) में बच्चे अंडे से बाहर निकल आते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार ये 5 से 7 महीने में उड़ान भी भरने लगते हैं.
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'गिद्धों की शिफ्टिंग की योजना पर चल रहा काम'
नौरादेही टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर डाॅ ए ए अंसारी बताते हैं कि "विशाल क्षेत्रफल के कारण यहां गिद्धों के संरक्षण के लिए बेहतर वातावरण और माहौल है. हमारे यहां भारतीय गिद्ध और व्हाइट-बैक्ड गिद्ध की काफी अच्छी संख्या है. इसी कड़ी में वन विहार भोपाल के केरबा में गिद्धों की कैप्टिव ब्रीडिंग हुई है, वहां जन्मे बच्चों को यहां छोडे जाने की दिशा में आगे बढ रहे हैं. पिछले दिनों गिद्ध विशेषज्ञ दिलशेर खान और उनकी टीम द्वारा चयनित स्थल का दौरा किया और टाइगर रिजर्व में गिद्धों के दूसरे ठिकानों का भी दौरा किया गया. फिलहाल उन्होंने अपनी रिपोर्ट विभाग को नहीं दी है. उनकी रिपोर्ट के बाद ही गिद्धों की शिफ्टिंग को लेकर योजना पर काम होगा."