लखनऊ: योगी सरकार (Yogi Government) उत्तर प्रदेश में एक जनपद (UP New District) और बढ़ाने की तैयारी कर रही है. अगर नया जिला अस्तित्व में आया तो इसका नाम फरेंदा संभव हो सकता है. बाद में उसका नाम वीर बहादुर सिंह जनपद रखा जा सकता है, जो गोरखपुर और महाराजगंज की कुछ तहसीलों को मिलाकर बनाया जाएगा. उत्तर प्रदेश का यह कस्बा नेपाल की सीमा से सटा हुआ है. इसी इलाके से लोग नेपाल में प्रवेश करते हैं और थोड़ी ही दूर नेपाल का एक छोटा एयरपोर्ट है जहां से अलग-अलग देशों के लिए विमान सेवा मिलती है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लंबे समय से इस क्षेत्र के विकास को लेकर इस जिले में तब्दील करना चाहते थे. सामरिक दृष्टि से भी यह कस्बा काफी महत्वपूर्ण है. इस इलाके में पाकिस्तान और चीन से गुप्तचर गतिविधियों की भी आशंका रहती है. शायद यही वजह है कि योगी सरकार इस कस्बे को जिला बनाने को लेकर बेहद गंभीर है. वहीं, नए जिले को लेकर महाराजगंज प्रशासन ने आपत्ति जताई है. चलिए आगे जानते हैं इस बारे में,
पूर्व सीएम ने यहीं से राजनीति की : उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह का यह राजनीतिक क्षेत्र है जो कि फिलहाल उत्तर प्रदेश की महाराजगंज तहसील में आता है. यहां विकास को बढ़ावा देने के लिए इसको जिला बनाए जाने की तैयारी है. उत्तर प्रदेश राजस्व आयुक्त की ओर से अपर भूमि व्यवस्था आयुक्त भीष्म लाल वर्मा ने बताया कि महाराजगंज की फरेंदा और गोरखपुर की कैंपियरगंज तहसील को मिलाकर फरेंदा जिला बनाए जाने की तैयारी की जा रही है.
फरेंदा जिले पर एक नजर: महाराजगंज के फरेंदा को आनंदनगर भी कहा जाता है. यह नगर पंचायत है. इस कारण यह तहसील का दर्जा भी रखता है. यह जिला नेपाल से सटा होने के कारण बेहद खास है. नेपाल से सटा होने के कारण यह कस्बा सरकार के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. यहां एक रेलवे स्टेशन भी है जिसे आनंदनगर जंक्शन के नाम से जाना जाता है. यहां से एक रेलवे लाइन नौतनवा भी जाती है. यहां से दिल्ली, जयपुर समेत कई बड़े शहरों के लिए सीधी ट्रेन मिल जाती है. यह तहसील महाराजगंज की प्रमुख तहसीलों में एक है.
सरकारी फाइलें दौड़ाने की तैयारी: इस संबंध में महाराजगंज और गोरखपुर के जिलाधिकारी के अलावा गोरखपुर के मंडल आयुक्त को राजस्व आयुक्त की ओर से रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा गया है. ताकि इसके आगे की कार्यवाही को अंजाम दिया जा सके. सभी तरह की अनापत्तियां मिलने के बाद और रिपोर्ट सकारात्मक होने पर उत्तर प्रदेश की कैबिनेट मीटिंग में इस संबंध में प्रस्ताव लाकर फरिंदा तहसील को नए सिरे से एक जिले में तब्दील कर दिया जाएगा.
महाराजगंज प्रशासन को क्या है आपत्तिः महराजगंज जिला प्रशासन ने इसे लेकर आपत्ति दर्ज कराई है. वर्तमान में महराजगंज जिले में चार तहसीलें हैं. इनमें महराजगंज सदर, निचलौल, फरेंदा और नौतनवा शामिल हैं. अगर फरेंदा और नौतनवा को मिलाकर नया जनपद बना दिया जाता है तो महराजगंज में केवल दो तहसीलें (महराजगंज सदर और निचलौल) बचेंगी जो शासन के मानक के अनुरूप नहीं है. शासन का मानक है कि किसी भी जिले में न्यूनतम तीन तहसीलें होनी जरूरी हैं. महराजगंज जिला प्रशासन ने इस मुद्दे को ध्यान में रखते हुए शासन को अपनी आपत्ति भेजी है. अपर जिलाधिकारी डॉ. पंकज कुमार वर्मा ने कहा कि जिले का मानक तीन तहसीलों का होता है और यदि फरेंदा और नौतनवा को काटकर नया जनपद बनाया जाता है तो महराजगंज का अनुपात बिगड़ जाएगा. इस तर्क के साथ जिला प्रशासन ने सरकार से इस फैसले पर पुनर्विचार करने की गुजारिश की है.
1989 में महाराजगंज बना था नया जिला: बता दें कि दो अक्टूबर 1989 को गोरखपुर को तोड़कर नया जिला महाराजगंज बनाया गया था तभी से महाराजगंज की तहसील में चार तहसीलें आ गईं थीं. इनमें सदर, निचनौल, फ़रौंदा और नौतनवा शामिल है. अब फरौंदा और नौतनवा को मिलाकर नया जिला बनाने की तैयारी हो रही है. ऐसे में दो तहसीलें ही महाराजगंज में बचेंगी. नियमों के अनुसार नए जिले के निर्माण के लिए तीन तहसीलें होना बेहद जरूरी हैं.
बीजेपी प्रवक्ता क्या बोले: उत्तर प्रदेश में 76 वें जिले के तौर पर फरेंदा को विकसित करने के मामले में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने बताया कि भारतीय जनता पार्टी का हमेशा से यह एक लक्ष्य रहा है की शक्ति का विकेंद्रीकरण किया जाए. छोटी इकाइयां होने से बेहतर विकास में मदद मिलती है. ऐसे में फरेंदा के विकास को गति देने के लिए यह प्रस्ताव अभी प्राथमिक स्तर पर है. इस तरह की रिपोर्ट अधिकारी देंगे उस पर फीजिबिलिटी को देखते हुए नए जिले के गठन किया जा सकता है.
नया जिला बनाने की प्रक्रिया कैसे चलती है: एक नया जिला बनाने के लेकर राज्य सरकार सबसे पहले स्थानीय प्रशासन और राजनीतिक दलों से सहमति लेती है. इसके बाद आपत्तियों को दूर करती है. इसके बाद जिला बनाने का निर्णय लिया जाता है. इसके बाद राज्य सरकार की ओर से बिल लाकर राजपत्र में इसकी अधिसूचना जारी की जाती है. इसमें जिले की सीमाओं का स्पष्ट उल्लेख होता है. इसके बाद राज्य सरकार इसे स्वीकृति के लिए राज्यपाल के पास भेज देती है. राज्यपाल नए जिले के स्वीकृति प्रदान करते हैं. इसके बाद जिला अस्तित्व में आ पाता है. जिले में सबसे पहले डीएम और एसपी या फिर एसएसपी की तैनाती की जाती है. इसके बाद जिले के शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सेवाओं से संबंधित अफसरों की तैनाती शुरू हो जाती है.
इससे पहले भी बने कई नए जिलेः जिस वक्त उत्तर प्रदेश का गठन हुआ था तब उत्तर प्रदेश में 65 के करीब जिले थे. इसके बाद में लगातार नए जिले विकसित किए जाते रहे. कानपुर यूपी उत्तर प्रदेश का कभी सबसे बड़ा जिला था आज भी है उसको दो भागों में विभाजित किया गया था कानपुर नगर और कानपुर देहात. इसी के साथ कानपुर देहात से बाद में औरैया एक अलग जिला विकसित किया गया. ऐसे ही संतकबीर नगर, अमेठी, हापुड़, कुशीनगर, संभल जैसे ही कई अन्य जिले विकसित किए गए.
संभल यूपी का सबसे नया जिलाः प्रदेश में कुल 75 जिले हैं. इनमें सबसे नवीनमत जिला संभल है. यह 28 सितंबर 2011 को जिला बना था. इसके अतिरिक्त यहां 826 सामुदायिक विकास खंड, 200 नगर पालिका परिषद्, 17 नगर निगम, 5 विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण, 546 नगर पंचायत और 75 जिला पंचायत मौजूद हैं. वहीं, ग्राम पंचायत की बात करें, तो इनकी संख्या 58 हजार से अधिक हैं.
यूपी का बड़ा और छोटा जिला: यूपी का सबसे बड़ा जिला लखीमपुर खीरी है. इसी के साथ ही उत्तर प्रदेश का सबसे छोटा जिला भदोही है. इसके साथ ही यूपी में सबसे ज्यादा आबादी वाला जिला प्रयागराज है. इसी के साथ आपको बता दें कि यूपी का सबसे बड़ा मंडल लखनऊ मंडल है. वहीं, सबसे छोटा मंडल बस्ती मंडल है. यूपी में कुल 18 मंडल हैं.
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