पटना : केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज वित्तीय वर्ष 2025-26 का बजट पेश किया. आज के इस बजट में बिहार में मखाना बोर्ड के गठन का ऐलान किया गया है. वित्त मंत्री के मखाना बोर्ड बनाए जाने की घोषणा से मखाना के विकास के लिए यह मील का पत्थर साबित होगा.
मखाना बोर्ड के गठन की घोषणा : निर्मला सीतारमण द्वारा मखाना बोर्ड के गठन की घोषणा से बिहार के मिथिलांचल एवं कोसी के किसानों को काफी फायदा होने वाला है. विश्व में मखाना उत्पादन का 80 से 90 प्रतिशत उत्पादन मिथिलांचल एवं कोसी के इलाकों में होता है. अभी की स्थिति यह है कि 30 हजार मीट्रिक टन का उत्पादन होता है. जिससे 3000 करोड़ रुपये का किसानों का व्यापार है. कुल मिलाकर वैश्विक स्तर पर यह व्यापार 5000 करोड़ रुपये का है. जो 10 साल पहले तक मात्र 550 करोड़ का हुआ करता था. मखाना बोर्ड के गठन हो जाने से इसके उत्पादन, मार्केटिंग और प्रसंस्करण को बढ़ावा मिलेगा.
मखाना कारोबारी में खुशी : आज के केंद्रीय बजट में मखाना बोर्ड के गठन की घोषणा होते ही मखाना के व्यापार से जुड़े हुए लोग खुश हैं. कटिहार में मोदी मखाना ब्रांड से मखाना का प्रोडक्ट बनाने वाले गुलफराज का कहना है कि आज के केंद्रीय बजट में जिस तरीके से केंद्रीय वित्त मंत्री ने मखाना बोर्ड के गठन की घोषणा की है यह बहुत ही स्वागत योग्य कदम है.
''मखाना कारोबार से जुड़े हुए लोग बहुत दिनों से मखाना बोर्ड के गठन की मांग कर रहे थे, ताकि मखाना के क्षेत्र में व्यापक रूप से विकास हो सके. मखाना व्यापार से जुड़े हुए लोगों को समय-समय पर नई टेक्नोलॉजी की जानकारी हो एवं इसके मूल्यों को लेकर भी एकरूपता आ सके. आज के इस घोषणा के बाद यह तय हो गया है कि इस बोर्ड के गठन के बाद इन तमाम बिंदुओं पर नजर रखी जाएगी. मखाना को जो GI टैग मिला है यह बोर्ड मखाना उद्योग को और आगे बढ़ाने में मदद करेगा.''- गुलफराज, मखाना के व्यापारी
बिहार में मखाना की खेती : बिहार में मखाना की खेती मिथिलांचल एवं कोसी के इलाकों में होती है. देश के कुल मखाना उत्पादन में 80 से 90% उत्पादन मिथिला एवं कोसी के इलाकों में ही होती है. दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, सहरसा, सुपौल, पूर्णिया, कटिहार, खगड़िया, अररिया में मुख्य रूप से मखाना की खेती होती है.
विदेशों तक होती है सप्लाई : बिहार के सभी जिले मिलाकर करीब 56 हजार 389 टन मखाना बीज और 23 हजार 656 टन मखाने का उत्पादन करते हैं. बिहार के मखाना को पड़ोसी देशों के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया और खाड़ी देशों में भी भेजा जा रहा है.
बोर्ड का गठन मील का पत्थर : मखाना उद्योग से जुड़े हुए मनीष आनंद ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि देश के जो भी बड़े प्रोडक्ट हैं. चाहे वह चाय, कॉफी, नारियल इन तमाम प्रोडक्ट के विकास के लिए बोर्ड का गठन किया गया था. मखाना न केवल बिहार का बल्कि देश का एक ग्लोबल प्रोडक्ट बन गया है. इसीलिए मखाना बोर्ड के गठन की मांग वह लोग बहुत दिनों से कर रहे थे.
''इस बोर्ड के गठन के बाद किसान से लेकर व्यापारी को अपने प्रोडक्ट की शुद्धता से लेकर व्यापार तक के लिए अन्य लोगों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा. मखाना का व्यापार पिछले 10 वर्षों में 5000 करोड़ से ज्यादा का हो गया है. अब इस बोर्ड के गठन के बाद उम्मीद है कि मखाना देश के बड़े ब्रांडों में से एक बनेगा.''- मनीष आनंद, मखाना उद्योग के कारोबारी
व्यापार जगत में खुशी : बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के वाइस चेयरमैन आशीष शंकर का मानना है कि मखाना बोर्ड के गठन हो जाने से बिहार के मखाना उद्योग एवं किसानों को बहुत लाभ होगा. मखाना बोर्ड के गठन से उत्पादन क्षेत्र से व्यापार से जुड़े हुए लोगों को बहुत फायदा होगा. दूसरा बेनिफिट यह होगा की मखाना के बाय प्रोडक्ट्स में खीर, रोस्टेड, चिली फेवर डिफरेंट डिफरेंट फ्लेवर इन सबको और बढ़ावा मिलेगा. इससे मखाना उद्योग बुस्टअप होगा.
''मखाना उत्पादन का 90% उत्पादन एक्सपोर्ट हो रहा है. अभी तक टेस्टिंग के लिए बिहार के किसानों को कोलकाता तथा दूसरे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता था. टेस्टिंग रिपोर्ट के लिए 3 महीना तक लोगों को इंतजार करना पड़ता था. अब यह बिहार में ही जल्द हो जाएगा. मार्केटिंग के लिए आपको बैठे बिठाये एक माध्यम मिल गया, जिससे यह प्रोडक्ट पूरी दुनिया में छाया रहेगा.''- आशीष शंकर, वाइस चेयरमैन, बिहार चैंबर आफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज
#बिहार में #मखाना_बोर्ड का गठन
— PIB in Bihar (@PIB_Patna) February 1, 2025
🔹#मखाना के उत्पादन, प्रसंस्करण, गुणवत्ता और मार्केटिंग में सुधार के लिए कार्यक्रम
🔹मखाना उत्पादन से जुड़ी गतिविधियों से संबंधित लोगों को किसान उत्पादक संगठनों के रूप में संगठित करेगा#ViksitBharatBudget2025 #UnionBudget2025 @MOFPI_GOI pic.twitter.com/WdipNeIohC
मखाना को गोरगन नट भी कहा जाता है : मखाना पर रिसर्च करने वाले डॉ. विद्यानाथ झा बताते हैं कि मखाना को अंग्रेजी भाषा में ''गोरगन नट'' कहा जाता है. यह ग्रीक सभ्यता की देन है. इसका बॉटिनिकल नाम ''यूरेल फेरॉक्स सालिसफाइन'' है. उन्होंने कहा कि यह फैटलेस है और इम्युनिटी बूस्टर का काम करता है.
2021 में मखाना को मिला GI टैग : बता दें कि नरेंद्र मोदी की सरकार में दिसंबर 2021 में मिथिला मखाना को GI टैग मिला था. केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के तहत भौगोलिक संकेत अधिकार (GI) और भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री (GIR) ने बिहार मखाना का नाम बदलकर मिथिला मखाना कर दिया था. GI टैग उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री द्वारा जारी किया जाता है.
सिमट रही मखाने की खेती? : हालांकि मिथिलांचल के दिल कहे जाने वाले दरभंगा शहर में तकरीबन 100 साल से मखाना के व्यापारी मुकेश कुमार कहते हैं कि मखाना की खेती और इसका व्यापार बहुत घट गया है. अब इक्के-दुक्के लोग ही मखाना का व्यापार करते हैं. अगर उत्पादन की बात करें तो तकरीबन 1 लाख किलो सालाना इसका उत्पादन हो रहा है, जो पहले की तुलना में 15-20 प्रतिशत ही रह गया है.
मखाना की खेती.. संस्कृति का हिस्सा : मिथिलांचल के एक और किसान महेंद्र सहनी बताते हैं कि मखाना की खेती उनके परिवार में सदियों से होती आ रही है. वे मल्लाह जाति से आते हैं. उनके समुदाय में मखाना की खेती उनकी संस्कृति का हिस्सा है, जो सदियों से मजबूती से जुड़ा हुआ है.
ऐसे हुई मखाना की उत्पत्ति : वरिष्ठ पत्रकार रविभूषण चतुर्वेदी कहते हैं कि मखाना को देव भोजन कहा जाता है. किंवदंती है कि चंद्रमा के ओस बिंदु पृथ्वी पर गिरे उसी से मखाना की उत्पत्ति हुई है. उन्होंने कहा कि मखाना का कल्चरल वैल्यू सबसे ज़्यादा है. उन्होंने कहा कि मिथिलांचल के सभी पर्व-त्योहार जैसे कोजगरा, सामा-चकेवा, हर प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान और सांस्कृतिक आयोजन में इसका प्रमुखता से उपयोग किया जाता है.
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