नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और पश्चिम बंगाल के साथ-साथ केरल के राज्यपालों के सचिवों से बिलों को मंजूरी देने से इनकार करने और उन्हें राष्ट्रपति के विचार के लिए भेजने को चुनौती देने वाली दो राज्य सरकारों द्वारा दायर अलग-अलग याचिकाओं पर जवाब मांगा हैं. पश्चिम बंगाल सरकार और केरल सरकार की अलग-अलग याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी परिदवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच ने दोनों राज्यपालों के सचिव के साथ ही केंद्रीय गृह मंत्रालय को भी नोटिस जारी किया है.
केरल और पश्चिम बंगाल की सरकार ने महीनों से लंबित विधेयकों के चलते राज्य के गवर्नर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. पश्चिम बंगाल और केरल सरकार का कहना है कि कई विधेयकों को महीनों तक लंबित रखा गया, उन पर सहमति देने से इंकार किया गया या राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखने के चलते उन्हें महीनों तक लंबित किया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों राज्यों की इन याचिकाओं पर शुक्रवार (26 जून) को सुनवाई की और राज्यों को नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा है. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी गई कि कई बिल को राज्यपालों ने मंजूरी देने की जगह राष्ट्रपति के पास भेज दिया है.
केरल सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल ने सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष कहा कि बिल 8 महीने से लंबित हैं और उनका मुवक्किल स्वयं राष्ट्रपति के संदर्भ को चुनौती दे रहा है. उन्होंने कहा कि, विधेयकों को लंबित रखा गया है जो कि संविधान के खिलाफ है. वेणुगोपाल ने आगे सीजेआई की अगुवाई वाली बेंच से कहा कि, दिशानिर्देश संबंधी कोर्ट के समक्ष एक और याचिका है, जब तक कि आपके आधिपत्य राज्यपालों को यह नहीं बताते की वे कब सहमति देने से इनकार कर सकते हैं कब वे राष्ट्रपति को संदर्भित कर सकते हैं.
इसी तरह, पश्चिम बंगाल का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी और जयदीप गुप्ता ने कहा कि जब भी मामला सुप्रीम कोर्ट में सूचीबद्ध होता था, राज्यपाल का कार्यालय बिलों को राष्ट्रपति के पास भेज देता था. सीजेआई ने वरिष्ठ वकील से कहा कि अगर बिल आरक्षित करने की शक्ति पर कुछ प्रश्न तैयार करने की संभावना है, तो हमारे लिए इसे तैयार करें और हम निश्चित रूप से दोनों मामलों में नोटिस जारी करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी परिदवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और दोनों राज्यपालों के सचिवों को नोटिस जारी किया. गुप्ता ने कहा कि हमारे द्वारा उल्लेख करने की सूचना देने के बाद, राज्यपाल के कार्यालय ने एक पत्र भेजा है जिसमें कहा गया है कि 'हमने उनमें से कुछ विधेयकों को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित कर दिया है, लेकिन कोई आधिकारिक पत्राचार नहीं हुआ है.' वहीं, सिंघवी ने कहा, 'अब यह चलन बनता जा रहा है, तमिलनाडु मामले में मैंने याचिका दायर की है. जैसे ही मामला सूचीबद्ध होता है, दो विधेयकों को मंजूरी दे दी जाती है. अगली तारीख आती है और फिर राष्ट्रपति के पास कुछ भेजा जाता है.'
वेणुगोपाल ने कहा 'राष्ट्रपति का संदर्भ आसान रास्ता प्रतीत होता है, वे उस राज्य विधानमंडल के साथ सहयोग नहीं करना चाहते हैं जिसका वे हिस्सा हैं. यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है.
इस साल मार्च में, केरल विधानमंडल द्वारा पारित चार विधेयकों पर सहमति रोकने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ केरल ने शीर्ष अदालत का रुख किया. जुलाई में, पश्चिम बंगाल सरकार ने भी 2022 से आठ विधेयकों पर कार्रवाई नहीं करने के लिए राज्य के राज्यपाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, यह दावा करते हुए कि यह संवैधानिक जनादेश के खिलाफ है और राज्य विधायिका के कार्यों को बेकार कर दिया है. पश्चिम बंगाल सरकार ने इस बात पर जोर दिया कि राज्यपाल के आचरण से न केवल संविधान के मूल सिद्धांतों और मूल आधार को परास्त करने और नष्ट करने का खतरा है, बल्कि राज्य के लोगों के अधिकारों का भी उल्लंघन होता है.
ये भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट ने NEET SS 2024 आयोजित न करने के खिलाफ याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा