नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि वह अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा के लिए दृढ़ता से खड़ा है और वह किसी भी हाल में अपने कर्तव्य में विफल होना नहीं चाहता है. इसके साथ ही कोर्ट ने एक कन्नड़ न्यूज चैनल को राहत प्रदान की, जिसने पूर्व जेडीएस सांसद प्रज्वल रेवन्ना और उनके परिवार से जुड़े सेक्स स्कैंडल का बड़े पैमाने पर प्रसारण किया था.
इतना ही नहीं चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन जजों की पीठ ने कर्नाटक हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें लाइसेंस रिन्यू के आधार पर पावर टीवी के प्रसारण पर रोक लगाई गई थी. पीठ में न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे, जिन्होंने कहा कि यह राजनीतिक प्रतिशोध के अलावा कुछ नहीं है.
बता दें कि कथित तौर पर चैनल और इसके निदेशक राकेश शेट्टी ने जनता दल सेक्युलर (JDU) के नेताओं प्रज्वल रेवन्ना और सूरज रेवन्ना पर व्यापक रूप से रिपोर्टिंग की, जिन पर यौन उत्पीड़न का आरोप है. पीठ ने कहा, "हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने के इच्छुक हैं. यह साफ तौर पर राजनीतिक प्रतिशोध का मामला लगता है.... पीठ ने जोर देकर कहा कि यदि यह अदालत याचिकाकर्ता की रक्षा नहीं करती है तो यह अपने कर्तव्य में विफल होगी.
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि चैनल को 9 फरवरी को भेजा गया कारण बताओ नोटिस चैनल द्वारा अपने अपलिंक और डाउनलिंकिंग लाइसेंस को सबलेट करने से संबंधित था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने पावर टीवी और अन्य द्वारा दायर याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया. वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार और सुनील फर्नांडीस और अधिवक्ता मिठू जैन ने सुप्रीम कोर्ट में पावर टीवी का प्रतिनिधित्व किया. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई सोमवार को तय की है.
पावर टीवी ने याचिका में क्या कहा?
पावर टीवी की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के साथ अन्य 34 चैनलों के समान व्यवहार न करके गलती की है. याचिका में कहा गया है कि ऐसे कई न्यूज चैनल हैं, जिनके नवीनीकरण के लिए आवेदन याचिकाकर्ता की स्थिति के समान ही विचाराधीन है और वे अभी भी पूरी तरह से काम कर रहे हैं.
हालांकि, बिना किसी दलील के या जवाब दाखिल करने के लिए आवश्यक अवसर दिए बिना कारण बताओ नोटिस के आधार पर प्रतिवादियों की दलीलों के आधार पर याचिकाकर्ता न्यूज चैनल को बंद करना याचिकाकर्ताओं के लिए बहुत ही पक्षपातपूर्ण है. इसलिए विवादित आदेश को रद्द किया जाना चाहिए.
हाई कोर्ट ने प्रसारण पर लगाई थी रोक
बता दें कि कर्नाटक हाई कोर्ट ने पावर टीवी को 9 जुलाई तक कोई भी प्रसारण करने से रोक दिया था. 25 जून को हाई कोर्ट ने वरिष्ठ सेवारत आईपीएस अधिकारी डॉ बी आर रविकांतेगौड़ा और जेडीएस नेता और MLC एचएम रमेश गौड़ा और उनकी पत्नी डॉ ए राम्या रमेश द्वारा दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई के बाद अंतरिम आदेश पारित किया था.
हाई कोर्ट के समक्ष यह तर्क दिया गया कि न्यूज चैनल और अन्य निजी प्रतिवादियों के खिलाफ केंद्र द्वारा पहले से ही कार्यवाही शुरू किए जाने के बावजूद, उन्होंने लाइसेंस का आवश्यक नवीनीकरण प्राप्त किए बिना प्रसारण जारी रखा.