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उत्तराखंड में अपेक्षा से ज्यादा 'हमलावर' हो रहे जानवर, आंकड़े कर रहे तस्दीक - World Rabies Day 2024 - WORLD RABIES DAY 2024

World Rabies Day 2024 आज पूरे देश में विश्व रेबीज दिवस मनाया जा रहा है. उत्तराखंड में भी रेबीज के कई मामले सामने आ चुके हैं. इसी बीच हम आपको बताने जा रहे हैं, कि आखिर क्या है रेबीज बीमारी और क्यों मनाया जाता है विश्व रेबीज दिवस.

World Rabies Day 2024
उत्तराखंड में डरा रहे रैबीज के मामले (photo--ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Sep 28, 2024, 6:32 AM IST

Updated : Sep 28, 2024, 8:06 AM IST

देहरादून: हर साल 28 सितंबर को विश्व रेबीज दिवस मनाया जाता है. जिसका मुख्य उद्देश्य रेबीज के बारे में जागरूकता बढ़ाना है. साथ ही इस घातक वायरल बीमारी की रोकथाम और नियंत्रण को बढ़ावा देना है. आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में अमूमन ऐसा देखा जाता है कि कुत्ते के काटने पर ग्रामीण घरेलू नुस्खा हल्दी, मिर्ची और चूना जैसी चीजों को घाव पर लगा लेते हैं, ताकि कुत्ते के काटने से होने वाली रेबीज बीमारी के वायरस को पहले ही खत्म किया जा सके, लेकिन मेडिकल क्षेत्र में इसकी कोई प्रमाणिकता नहीं है.

क्यों मनाया जाता है वर्ल्ड रेबीज डे: ग्लोबल अलायंस फॉर रेबीज कंट्रोल ने साल 2007 में रेबीज डे मनाने की घोषणा की थी. इसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इसे मनाने की सहमति दी. जिसके बाद 28 सितंबर को वर्ल्ड रेबीज डे मनाया जाता है. हर साल रेबीज डे मनाने के लिए एक थीम निर्धारित की जाती है. जिस क्रम में इस साल 2024 के लिए रेबीज दिवस मनाने के लिए "रेबीज सीमाओं को तोड़ना" थीम रखी गई है.

रेबीज एक खतरनाक बीमारी: रेबीज एक घातक बीमारी है जो कुत्ता, बिल्ली, बंदर और जंगली जानवरों के काटने से फैलती है. कुत्तों के काटने के मामले अस्पतालों में अधिक देखे जाते हैं. रेबीज इतनी खतरनाक बीमारी है कि अगर कोई व्यक्ति इसकी चपेट में आ जाता है, तो उसके बचने की संभावना ना के बराबर होती है. रेबीज से ग्रसित मरीज को बचाया नहीं जा सकता है. यही वजह है कि व्यक्ति को कुत्ते के काटने के बाद तत्काल एंटी रेबीज की वैक्सीन लगाने की सलाह दी जाती है.

उत्तराखंड में हमलावर होते जानवर (Video- ETV Bharat)

उत्तराखंड में कुत्ते के काटने से संबंधित हजारों मामले आए सामने: उत्तराखंड में हर साल कुत्ते के काटने से जुड़े हजारों मामले सामने आते हैं. इस साल हालांकि, कोरोनेशन जिला अस्पताल देहरादून में रेबीज बीमारी से ग्रसित एक भी मामला सामने नहीं आया है, लेकिन कुत्ते के काटने से संबंधित इस साल अगस्त महीने तक 6,995 नए मामले सामने आ चुके हैं. इसके अलावा, बिल्ली के काटने से संबंधित 503, बंदर के काटने से संबंधित 137 और अन्य जानवर के काटने से संबंधित 145 मामले सामने आ चुके हैं. यानी जनवरी से अगस्त महीने तक जानवरों के काटने से संबंधित कुल 7,784 नए मामले सामने आ चुके हैं, जिनको वैक्सीन की डोज दी गई है.

साल 2023 में जानवरों के काटने के 4207 नए मामले आए थे सामने: कोरोनेशन जिला अस्पताल में पिछले साल यानी साल 2023 में जानवरों के काटने के कुल 4207 नए मामले सामने आए थे. जिसमें से कुत्ते के काटने के 3,865, बिल्ली के काटने के 229, बंदर के काटने के 60 और अन्य किसी जानवर के काटने के 53 नए मामले सामने आए थे. यानी साल 2023 की तुलना में इस साल महज 8 महीने में ही 6,995 नए मामले सामने आ चुके हैं. इसी क्रम में दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय की बात करें तो जानवरों के काटने संबंधित रोजाना करीब 15 से 20 मामले सामने आ रहे हैं. मरीजों को जांच के बाद वैक्सीन दी जा रही है.

कोरोनेशन जिला अस्पताल में रोजाना 50 मामले आ रहे सामने: नेशनल रेबीज कंट्रोल प्रोग्राम के वैक्सीन कर्मी दिग्विजय ने बताया कि कोरोनेशन जिला अस्पताल में रोजाना एवरेज रेबीज के 50 मामले सामने आ रहे हैं, जिसमें मरीज को पहले फिजिशियन देखते हैं उसके बाद डॉक्टर्स के प्रिस्क्रिप्शन के अनुसार मरीज को वैक्सीन दी जाती है. जब कोई जानवर काटता है तो सबसे पहले साबुन से करीब 15 मिनट तक घाव को पानी से साफ करना होता है, ताकि संक्रमण वायरस को वॉशआउट किया जा सके. उन्होंने बताया कि अस्पताल में घरेलू कुत्ते के काटने के अधिकतर मामले सामने आ रहे हैं, जबकि बाहरी कुत्तों के काटने के मामले बेहद कम आ रहे हैं.

मरीज घाव पर मिर्च, हल्दी लगाकर पहुंचते हैं अस्पताल: दिग्विजय ने बताया कि अगर पालतू कुत्ता काट लेता है और एंटी रेबीज का इंजेक्शन लगा हुआ है, तो उसके काटने पर भी एंटी रेबीज वैक्सीन लगाने की जरूरत होती है. उन्होंने बताया कि जानवरों के काटे गए 10 मरीजों में से 6 मरीज ऐसे होते हैं, जो अपने घाव पर मिर्च, हल्दी या फिर चुना लगा कर आते हैं. हालांकि, अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाली मरीजों में ऐसा देखा जा रहा है. ऐसे में मरीजों को इस बात की जानकारी देते हुए उनके घाव को साफ करने के लिए कहा जाता है.

रेबीज के लक्षण होने पर मरीज की हो सकती है मौत: दून अस्पताल के जनरल मेडिसिन फिजिशियन केसी पंत ने बताया कि रेबीज, कुत्ते समेत किसी भी जंगली जानवर के काटने से होता है. अगर किसी भी व्यक्ति में रेबीज के लक्षण आ गए है, तो उसकी मौत होनी निश्चित है. यही वजह है प्रिकॉशन के तौर पर मरीजों को यही सलाह दी गई है किसी भी कुत्ते या फिर जंगली जानवर के काटने के बाद रेबीज की वैक्सीन जरूर लगवाएं. उन्होंने कहा कि अगर किसी व्यक्ति को जानवर काट लेता है तो उसको सिर्फ साफ पानी से धोना चाहिए और घाव को खुला रखना चाहिए.

मरीज को रेबीज इम्यून ग्लोब्युलिन वैक्सीन दी जाती है: देहरादून जिला अस्पताल के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक वीएस चौहान ने बताया जब कोई जानवर रेबीज से ग्रसित होता है और वो किसी व्यक्ति को काट लेता है तो उस व्यक्ति को भी रेबीज से ग्रसित होने की संभावना रहती है. अगर किसी व्यक्ति में रेबीज के लक्षण आ जाते हैं, तो उसके बचने की संभावना नहीं रहती है. उन्होंने कहा कि जिला अस्पताल में रेबीज से संक्रमित कोई भी मरीज नहीं आया है. अगर जानवर किसी व्यक्ति के सिर, चेहरे या छाती में काट लेता है, तो उस मरीज को रेबीज इम्यून ग्लोब्युलिन वैक्सीन लगाई जाती है.

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देहरादून: हर साल 28 सितंबर को विश्व रेबीज दिवस मनाया जाता है. जिसका मुख्य उद्देश्य रेबीज के बारे में जागरूकता बढ़ाना है. साथ ही इस घातक वायरल बीमारी की रोकथाम और नियंत्रण को बढ़ावा देना है. आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में अमूमन ऐसा देखा जाता है कि कुत्ते के काटने पर ग्रामीण घरेलू नुस्खा हल्दी, मिर्ची और चूना जैसी चीजों को घाव पर लगा लेते हैं, ताकि कुत्ते के काटने से होने वाली रेबीज बीमारी के वायरस को पहले ही खत्म किया जा सके, लेकिन मेडिकल क्षेत्र में इसकी कोई प्रमाणिकता नहीं है.

क्यों मनाया जाता है वर्ल्ड रेबीज डे: ग्लोबल अलायंस फॉर रेबीज कंट्रोल ने साल 2007 में रेबीज डे मनाने की घोषणा की थी. इसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इसे मनाने की सहमति दी. जिसके बाद 28 सितंबर को वर्ल्ड रेबीज डे मनाया जाता है. हर साल रेबीज डे मनाने के लिए एक थीम निर्धारित की जाती है. जिस क्रम में इस साल 2024 के लिए रेबीज दिवस मनाने के लिए "रेबीज सीमाओं को तोड़ना" थीम रखी गई है.

रेबीज एक खतरनाक बीमारी: रेबीज एक घातक बीमारी है जो कुत्ता, बिल्ली, बंदर और जंगली जानवरों के काटने से फैलती है. कुत्तों के काटने के मामले अस्पतालों में अधिक देखे जाते हैं. रेबीज इतनी खतरनाक बीमारी है कि अगर कोई व्यक्ति इसकी चपेट में आ जाता है, तो उसके बचने की संभावना ना के बराबर होती है. रेबीज से ग्रसित मरीज को बचाया नहीं जा सकता है. यही वजह है कि व्यक्ति को कुत्ते के काटने के बाद तत्काल एंटी रेबीज की वैक्सीन लगाने की सलाह दी जाती है.

उत्तराखंड में हमलावर होते जानवर (Video- ETV Bharat)

उत्तराखंड में कुत्ते के काटने से संबंधित हजारों मामले आए सामने: उत्तराखंड में हर साल कुत्ते के काटने से जुड़े हजारों मामले सामने आते हैं. इस साल हालांकि, कोरोनेशन जिला अस्पताल देहरादून में रेबीज बीमारी से ग्रसित एक भी मामला सामने नहीं आया है, लेकिन कुत्ते के काटने से संबंधित इस साल अगस्त महीने तक 6,995 नए मामले सामने आ चुके हैं. इसके अलावा, बिल्ली के काटने से संबंधित 503, बंदर के काटने से संबंधित 137 और अन्य जानवर के काटने से संबंधित 145 मामले सामने आ चुके हैं. यानी जनवरी से अगस्त महीने तक जानवरों के काटने से संबंधित कुल 7,784 नए मामले सामने आ चुके हैं, जिनको वैक्सीन की डोज दी गई है.

साल 2023 में जानवरों के काटने के 4207 नए मामले आए थे सामने: कोरोनेशन जिला अस्पताल में पिछले साल यानी साल 2023 में जानवरों के काटने के कुल 4207 नए मामले सामने आए थे. जिसमें से कुत्ते के काटने के 3,865, बिल्ली के काटने के 229, बंदर के काटने के 60 और अन्य किसी जानवर के काटने के 53 नए मामले सामने आए थे. यानी साल 2023 की तुलना में इस साल महज 8 महीने में ही 6,995 नए मामले सामने आ चुके हैं. इसी क्रम में दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय की बात करें तो जानवरों के काटने संबंधित रोजाना करीब 15 से 20 मामले सामने आ रहे हैं. मरीजों को जांच के बाद वैक्सीन दी जा रही है.

कोरोनेशन जिला अस्पताल में रोजाना 50 मामले आ रहे सामने: नेशनल रेबीज कंट्रोल प्रोग्राम के वैक्सीन कर्मी दिग्विजय ने बताया कि कोरोनेशन जिला अस्पताल में रोजाना एवरेज रेबीज के 50 मामले सामने आ रहे हैं, जिसमें मरीज को पहले फिजिशियन देखते हैं उसके बाद डॉक्टर्स के प्रिस्क्रिप्शन के अनुसार मरीज को वैक्सीन दी जाती है. जब कोई जानवर काटता है तो सबसे पहले साबुन से करीब 15 मिनट तक घाव को पानी से साफ करना होता है, ताकि संक्रमण वायरस को वॉशआउट किया जा सके. उन्होंने बताया कि अस्पताल में घरेलू कुत्ते के काटने के अधिकतर मामले सामने आ रहे हैं, जबकि बाहरी कुत्तों के काटने के मामले बेहद कम आ रहे हैं.

मरीज घाव पर मिर्च, हल्दी लगाकर पहुंचते हैं अस्पताल: दिग्विजय ने बताया कि अगर पालतू कुत्ता काट लेता है और एंटी रेबीज का इंजेक्शन लगा हुआ है, तो उसके काटने पर भी एंटी रेबीज वैक्सीन लगाने की जरूरत होती है. उन्होंने बताया कि जानवरों के काटे गए 10 मरीजों में से 6 मरीज ऐसे होते हैं, जो अपने घाव पर मिर्च, हल्दी या फिर चुना लगा कर आते हैं. हालांकि, अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाली मरीजों में ऐसा देखा जा रहा है. ऐसे में मरीजों को इस बात की जानकारी देते हुए उनके घाव को साफ करने के लिए कहा जाता है.

रेबीज के लक्षण होने पर मरीज की हो सकती है मौत: दून अस्पताल के जनरल मेडिसिन फिजिशियन केसी पंत ने बताया कि रेबीज, कुत्ते समेत किसी भी जंगली जानवर के काटने से होता है. अगर किसी भी व्यक्ति में रेबीज के लक्षण आ गए है, तो उसकी मौत होनी निश्चित है. यही वजह है प्रिकॉशन के तौर पर मरीजों को यही सलाह दी गई है किसी भी कुत्ते या फिर जंगली जानवर के काटने के बाद रेबीज की वैक्सीन जरूर लगवाएं. उन्होंने कहा कि अगर किसी व्यक्ति को जानवर काट लेता है तो उसको सिर्फ साफ पानी से धोना चाहिए और घाव को खुला रखना चाहिए.

मरीज को रेबीज इम्यून ग्लोब्युलिन वैक्सीन दी जाती है: देहरादून जिला अस्पताल के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक वीएस चौहान ने बताया जब कोई जानवर रेबीज से ग्रसित होता है और वो किसी व्यक्ति को काट लेता है तो उस व्यक्ति को भी रेबीज से ग्रसित होने की संभावना रहती है. अगर किसी व्यक्ति में रेबीज के लक्षण आ जाते हैं, तो उसके बचने की संभावना नहीं रहती है. उन्होंने कहा कि जिला अस्पताल में रेबीज से संक्रमित कोई भी मरीज नहीं आया है. अगर जानवर किसी व्यक्ति के सिर, चेहरे या छाती में काट लेता है, तो उस मरीज को रेबीज इम्यून ग्लोब्युलिन वैक्सीन लगाई जाती है.

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Last Updated : Sep 28, 2024, 8:06 AM IST
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