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पश्चिम बंगाल में एक शिक्षक ऐसे भी हैं, जो एक रुपये फीस लेकर बच्चों को दे रहे शिक्षा - Teachers Day

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 5, 2024, 9:51 PM IST

Teachers Day: विकास प्रसाद एक ऐसे शिक्षक हैं जो सिर्फ एक रुपये फीस लेकर बच्चों को पढ़ाते हैं. कुछ साल पहले तक डिसरगढ़ मजार शरीफ के आसपास की फकीर बस्ती में शिक्षा की रोशनी नहीं पहुंचती थी. तब ज्यादातर परिवार भीख मांगकर गुजारा करते थे.

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विकास प्रसाद गरीब छात्रों को पढ़ाते हैं... (ETV Bharat)

आसनसोल: वैसे लोग जो मुश्किल से अपना गुजारा कर पाते हैं, उनके लिए शिक्षा एक सपना है. कुछ साल पहले तक डिसरगढ़ मजार शरीफ के आसपास की फकीर बस्ती में शिक्षा की रोशनी नहीं पहुंचती थी. तब ज्यादातर परिवार भीख मांगकर गुजारा करते थे. हालांकि, मजार शरीफ के सूफी साहब ने फकीर बस्ती के परिवारों के बच्चों को शिक्षा की रोशनी में लाने के लिए एक स्कूल बनवाया था. स्कूल में शिक्षा देने की जिम्मेदारी विकास प्रसाद को मिली. सूफी साहब अब नहीं रहे लेकिन विकास प्रसाद अभी भी स्कूल चला रहे हैं. शिक्षक विकास प्रसाद मात्र 1 रुपए के वेतन पर फकीर बस्ती के बच्चों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं.

डिसरगढ़ में दामोदर नदी के बगल में मजार शरीफ है. इसके बगल में कई साल पहले किसानों की बस्ती बसाई गई थी. जिनका मूल व्यवसाय मजार शरीफ में भीख मांगना या कपड़े और अन्य सामान बेचना था. कुछ लोग छतरियों की मरम्मत करते थे. लेकिन शिक्षा की रोशनी उन गरीब परिवारों तक नहीं पहुंच पाई. साथ ही इलाके में कोई सरकारी स्कूल भी नहीं था. नतीजतन उन परिवारों के बच्चों को स्कूल जाना एक सपना जैसा हो गया. इससे प्रभावित होकर 2008 में मजार शरीफ के सूफी साहब ने मजार के बगल में एक स्कूल बनवाया ताकि फकीर बस्ती के छात्र शिक्षा प्राप्त कर सकें.

वहीं इलाके के पढ़े-लिखे युवक विकास प्रसाद छात्रों को मुफ्त में घर पर ट्यूशन पढ़ाते थे. इसलिए सूफी साहब ने विकास प्रसाद को बुलाकर स्कूल की जिम्मेदारी सौंप दी. बाद में स्कूल को उच्च प्राथमिक विद्यालय के लिए मंजूरी मिल गई. वर्तमान में यहां कक्षा एक से कक्षा सात तक की पढ़ाई होती है. इलाके के पढ़े-लिखे युवक उस स्कूल में मामूली वेतन पर काम करते हैं. स्कूल में छात्रों से सिर्फ एक रुपया लिया जाता है. साथ ही कुछ परोपकारी दान से स्कूल किसी तरह चल रहा है.

विकास प्रसाद ने ईटीवी भारत से कहा कि,छात्रों से एक रुपया इसलिए लिया जाता है क्योंकि उनके अभिभावकों को यह संतोष रहे कि वे बच्चों को पढ़ा रहे हैं. इसका मतलब है कि उन्हें स्कूल आकर कुछ कहने का भी अधिकार होगा. वहीं, हाल ही में स्कूल के बगल में एक उर्दू माध्यम का सरकारी स्कूल है, जहां मिड डे मील दिया जाता है.

इस पर विकास प्रसाद ने कहा कि वे काफी प्रयासों के बावजूद छात्रों को दोपहर का भोजन नहीं दे पा रहे हैं. इसके लेकर उन्होंने नगर पालिका से लेकर कई सरकारी जगहों पर आवेदन किया लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं सुनी. उन्होंने कहा कि, कई छात्र भोजन के लिए सरकारी स्कूलों का रुख कर रहे हैं जिसको लेकर वे कुछ नहीं कह सकते है. फिलहाल इस स्कूल में 80 छात्र हैं. विकास प्रसाद ने घर-घर जाकर छात्रों को लाया. वह कई ऐसे छात्रों को लाते हैं जो पढ़ना नहीं चाहते, स्कूल छोड़ चुके हैं और उन्हें शिक्षा की रोशनी में लाते हैं. ईटीवी भारत शिक्षक दिवस के पावन अवसर पर ऐसे शिक्षक को नमन करता है....

ये भी पढ़ें: महिलाओं का सम्मान सिर्फ शब्दों में नहीं, बल्कि व्यवहार में भी झलका चाहिए: द्रौपदी मुर्मू

आसनसोल: वैसे लोग जो मुश्किल से अपना गुजारा कर पाते हैं, उनके लिए शिक्षा एक सपना है. कुछ साल पहले तक डिसरगढ़ मजार शरीफ के आसपास की फकीर बस्ती में शिक्षा की रोशनी नहीं पहुंचती थी. तब ज्यादातर परिवार भीख मांगकर गुजारा करते थे. हालांकि, मजार शरीफ के सूफी साहब ने फकीर बस्ती के परिवारों के बच्चों को शिक्षा की रोशनी में लाने के लिए एक स्कूल बनवाया था. स्कूल में शिक्षा देने की जिम्मेदारी विकास प्रसाद को मिली. सूफी साहब अब नहीं रहे लेकिन विकास प्रसाद अभी भी स्कूल चला रहे हैं. शिक्षक विकास प्रसाद मात्र 1 रुपए के वेतन पर फकीर बस्ती के बच्चों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं.

डिसरगढ़ में दामोदर नदी के बगल में मजार शरीफ है. इसके बगल में कई साल पहले किसानों की बस्ती बसाई गई थी. जिनका मूल व्यवसाय मजार शरीफ में भीख मांगना या कपड़े और अन्य सामान बेचना था. कुछ लोग छतरियों की मरम्मत करते थे. लेकिन शिक्षा की रोशनी उन गरीब परिवारों तक नहीं पहुंच पाई. साथ ही इलाके में कोई सरकारी स्कूल भी नहीं था. नतीजतन उन परिवारों के बच्चों को स्कूल जाना एक सपना जैसा हो गया. इससे प्रभावित होकर 2008 में मजार शरीफ के सूफी साहब ने मजार के बगल में एक स्कूल बनवाया ताकि फकीर बस्ती के छात्र शिक्षा प्राप्त कर सकें.

वहीं इलाके के पढ़े-लिखे युवक विकास प्रसाद छात्रों को मुफ्त में घर पर ट्यूशन पढ़ाते थे. इसलिए सूफी साहब ने विकास प्रसाद को बुलाकर स्कूल की जिम्मेदारी सौंप दी. बाद में स्कूल को उच्च प्राथमिक विद्यालय के लिए मंजूरी मिल गई. वर्तमान में यहां कक्षा एक से कक्षा सात तक की पढ़ाई होती है. इलाके के पढ़े-लिखे युवक उस स्कूल में मामूली वेतन पर काम करते हैं. स्कूल में छात्रों से सिर्फ एक रुपया लिया जाता है. साथ ही कुछ परोपकारी दान से स्कूल किसी तरह चल रहा है.

विकास प्रसाद ने ईटीवी भारत से कहा कि,छात्रों से एक रुपया इसलिए लिया जाता है क्योंकि उनके अभिभावकों को यह संतोष रहे कि वे बच्चों को पढ़ा रहे हैं. इसका मतलब है कि उन्हें स्कूल आकर कुछ कहने का भी अधिकार होगा. वहीं, हाल ही में स्कूल के बगल में एक उर्दू माध्यम का सरकारी स्कूल है, जहां मिड डे मील दिया जाता है.

इस पर विकास प्रसाद ने कहा कि वे काफी प्रयासों के बावजूद छात्रों को दोपहर का भोजन नहीं दे पा रहे हैं. इसके लेकर उन्होंने नगर पालिका से लेकर कई सरकारी जगहों पर आवेदन किया लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं सुनी. उन्होंने कहा कि, कई छात्र भोजन के लिए सरकारी स्कूलों का रुख कर रहे हैं जिसको लेकर वे कुछ नहीं कह सकते है. फिलहाल इस स्कूल में 80 छात्र हैं. विकास प्रसाद ने घर-घर जाकर छात्रों को लाया. वह कई ऐसे छात्रों को लाते हैं जो पढ़ना नहीं चाहते, स्कूल छोड़ चुके हैं और उन्हें शिक्षा की रोशनी में लाते हैं. ईटीवी भारत शिक्षक दिवस के पावन अवसर पर ऐसे शिक्षक को नमन करता है....

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